सोमवार, 27 अक्तूबर 2014

बेचारे अफसर तो पिस जाएंगे दोनों के बीच

प्रो. वासुदेव देवनानी व श्रीमती अनिता भदेल के रूप में अजमेर शहर को एक साथ स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री मिलने पर हर शहरवासी में खुशी है कि अब शहर को बेहतर विकास होगा। दोनों में प्रतिस्पद्र्धा रहेगी काम करवाने की। दोनों ही चाहेंगे कि वे अपने-अपने खाते में बेहतर से बेहतर काम दर्ज करें। एक साथ दो मंत्रियों के होने का एक लाभ ये भी हो सकता है कि अगर वे विकास के किसी मुद्दे पर एक राय हो जाएं तो मुख्यमंत्री को उनकी माननी ही होगी। मगर दूसरी ओर बताया जाता है कि दोनों के एक साथ बराबर का मंत्री बनने के कारण प्रशासनिक हलके में सन्नाटा है। अफसर ये जानते हैं कि दोनों के बीच तालमेल का अभाव है और टकराव बना ही रहता है। ऐसे में अब किसकी मानेंगे और किसकी नहीं। यदि किसी मुद्दे पर एक मंत्री की राय एक है और दूसरे की दूसरी तो बेचारे अफसर क्या करेंगे। एक को राजी करो तो दूसरा राजी। यानि कि उनका तो मरण ही है। मगर दूसरी ओर कुछ का मानना है कि इस मनभेद का फायदा भी उठाया जा सकता है। चालाक अफसर इसका फायदा भी उठा सकते हैं। वे एक को दूसरे की भिन्न राय का हवाला देते हुए हाथ खड़े कर देंगे। वे सीधे मुख्यमंत्री तक बात पहुंचा कर मार्गदर्शन मांग लेंगे। जो कुछ भी हो, सकारात्मक सोच वाले तो यही सोचते हैं कि एक साथ दो मंत्री होने के कारण अजमेर के दिन फिरेंगे।

अजमेरनामा ने तीन दिन पहले ही बता दिया था कि 27 तक हर हाल में मंत्रीमंडल विस्तार होगा

राज्य मंत्रीमंडल के लंबे समय से प्रतीक्षित विस्तार का आखिर हो ही गया। इस बारे में कई बार चर्चा होती रही कि विस्तार अब होगा, तब होगा, मगर हर बार किसी न किसी वजह से वह टलता ही रहा, मगर अब स्थिति ऐसी आ गई कि तुरत-फुरत में विस्तार का कार्यक्रम आयोजित करना पड़ा। इस बारे में अजमेरनामा ने तीन दिन पहले 24 अक्टूबर को ही यह जानकारी आपसे शेयर कर दी थी कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को आगामी 27 अक्टूबर तक विस्तार करना ही होगा। संभवत: अजमेरनामा राज्य का एक मात्र ऐसा मीडिया रहा, जिसने यह आकलन प्रस्तुत किया था।
अपुन ने बताया था कि असल में यूं तो वसुंधरा राजे के पास आगामी 15 नवंबर तक का समय था। तब नसीराबाद से विधायक बनने के बाद इस्तीफा देकर सांसद बने प्रो. सांवरलाल जाट के बिना विधायक रहते मंत्री बने रहने को छह माह पूरे होने हैं। इस बात की कोई संभावना भी नहीं थी कि उन्हें फिर से विधानसभा का चुनाव लडय़ा जाए। अगर विधायक रखना ही था तो इस्तीफा ही क्यों दिलवाते। खैर, चूंकि 15 नवंबर तक जाट को इस्तीफा देना ही होगा और उनके इस्तीफा देते ही न्यूनमत 12 मंत्रियों की बाध्यता आ जाएगी, यानि कि तब तक उन्हें मंत्रीमंडल का विस्तार करना ही होगा। मगर इस बीच समस्या ये आ गई कि राज्य में कुछ स्थानीय निकायों के चुनाव के लिए आचार संहिता 28 अक्टूबर को लागू हो जाएगी और तब वे मंत्रीमंडल का विस्तार नहीं कर पाएंगी, इस कारण अब यह लगभग पक्का ही है कि 27 अक्टूबर तक किसी भी सूरत में मंत्रीमंडल का विस्तार कर दिया जाएगा। हालांकि बाद में जानकारी ये भी आई कि आचार संहिता इसमें आड़े नहीं आएगी, मगर जैसे ही 27 को विस्तार का कार्यक्रम तय हुआ, यही माना जाएगा कि आचार संहिता की वजह से ही ऐसा किया गया।
इसमें भी एक पेच बताया गया था। वो ये कि भाजपा हाईकमान की इच्छा थी कि फिलहाल जाट के इस्तीफा देने के साथ सिर्फ एक-दो नए मंत्री बना दिए जाएं और पूरा विस्तार बाद में किया जाए, मगर जानकारी ये है कि वसुंधरा ठीक से विस्तार करना चाहती थीं। आखिर उनकी बात मान ली गई। मंत्रियों की शपथ के बाद अब कुछ लोग ये भी मान रहे हैं कि वसुंधरा राजे पूरी तरह से संघ में दबाव में नहीं रहीं और उन्हें कुछ स्वतंत्रता दी गई थी। विशेष रूप से इस लिए कि इसमें वरिष्ठ नेता घनश्याम तिवाड़ी को शामिल नहीं किया गया, जो कि संघ खेमे से हैं और वसुंधरा के धुर विरोधी हैं। बहरहाल, मंत्रीमंडल का बहुप्रतीक्षित विस्तार हो चुका है, प्याज की छिलके बाद में धीरे-धीरे खुलते रहेंगे।
-तेजवानी गिरधर