बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

आरपीएससी के बाहर निषेधाज्ञा कोई समाधान नहीं

rpsc thumbरोजाना हो रहे धरना-प्रदर्शन से तंग आ कर आखिर जिला प्रशासन ने आरपीएससी के आसपास निषेधाज्ञा लागू कर दी है। अब आयोग के खिलाफ अभ्यर्थी धरना-प्रदर्शन नहीं कर सकेंगे। खुद अतिरिक्त जिला दंडनायक शहर जगदीश पुरोहित से स्वीकार किया है कि यह कार्यवाही आयोग द्वारा आयोजित की जाने वाली विभिन्न परीक्षाओं के अभ्यर्थियों द्वारा आयोग कार्यालय के बाहर आए दिन किए जाने वाले प्रदर्शनों को रोकने के लिए की गई है।
यहां ज्ञातव्य है कि पिछले काफी समय से आरपीएससी के सामने आए दिन अभ्यर्थियों का जमावड़ा हो रहा था। विशेष रूप से ग्रेड सेकंड टीचर्स भर्ती परीक्षा, पीटीआई, एसआई, एचएम भर्ती परीक्षा आदि के अभ्यर्थियों में असंतोष है, मगर उसके समाधान की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया है। नतीजतन अभ्यर्थियों में असंतोष बढ़ता जा रहा है। आयोग के बाहर का माहौल आए दिन गरमा जाता और पुलिस को रोजना मशक्कत करनी पड़ी थी। ऐसे में जिला प्रशासन ने आखिरकार निषेधाज्ञा लागू कर समस्या के समाधान की कोशिश की है। बेशक इससे जिला प्रशासन व पुलिस की समस्या का समाधान तो हो जाएगा, मगर परेशान अभ्यर्थियों की समस्या का क्या होगा, इस पर न आयोग और न ही सरकार ध्यान दे रही है। ग्रेड सेकंड टीचर्स भर्ती परीक्षा गणित व सामाजिक विज्ञान के अभ्यर्थियों की ही चर्चा करें, तो वे आयोग के बाहर पिछले 31 जनवरी से अनिश्चितकालीन धरना दे रहे थे। उनकी समस्या का समाधान तो हुआ नहीं और निषेधाज्ञा लागू कर दिी गई। अब वे धरना-प्रदर्शन नहीं कर सकते। एक लोकतांत्रिक देश में अपने विरोध की अभिव्यक्ति की आजादी छीन लेना वाकई शर्मनाक है। इससे लगता है कि सरकार अपनी व्यवस्थाओं के प्रति तो पूरी संवेदनशील है, मगर शांति से प्रदर्शन करने वाले अभ्यर्थियों की समस्याओं से उसका कोई लेना-देना ही नहीं है।
असल में आयोग के मौजूदा अध्यक्ष रिटायर्ड आईपीएस हबीब खान को विरासत में बदहाल आयोग ही मिला था। पूर्व अध्यक्ष प्रो. बी एम शर्मा उनके लिए ऐसी समस्याएं छोड़ गए, जिनसे आयोग की प्रतिष्ठा धूमिल होती जा रही है। शर्मा के कार्यकाल में प्रश्नपत्रों के जितने मामले कोर्ट में गए, उतने कभी नहीं गए। आरजेएस व एपीपी जैसी महत्वपूर्ण परीक्षा के मामले कोर्ट में गए, जो कि एक बहुत ही गंभीर बात है। इसके अतिरिक्त आरएएस, लेखाकार-कनिष्ठ लेखाकार, पीआरओ, एपीआरओ आदि की परीक्षाओं में प्रश्नपत्रों में अनेक आपत्तियां आईं। आरएएस प्री का भौतिकी विषय का प्रश्न पत्र तो आयोग को दोबारा ही करना पड़ गया। आरजेएस की 21 दिसम्बर 2011 को हुई परीक्षा में 26 प्रश्नपत्रों पर आपत्तियां थीं, जिनमें से 14 को तो आयोग ने भी माना। इतना ही नहीं हबीब खान के कार्यभार संभालने के ठीक दूसरे ही दिन आयुर्वेद विभाग में विवेचक पदों पर भर्ती के लिए ली गई संवीक्षा परीक्षा पर भी सवालिया निशान लग गया। कुल मिला कर अभ्यर्थियों की इस प्रकार की नियमित शिकायतों से आयोग की पूरी कार्यप्रणाली पर ही प्रश्नचिन्ह लग गया है। आयोग भले ही इसके लिए प्रश्न पत्र बनाने वाले को दोषी बताए, मगर जिम्मेदारी तो आयोग की है। हाल ही एक तथ्य और उजागर हुआ है। वो यह कि ने गत वर्ष पेपर बनवाने पर 15 करोड़ रुपए खर्च किए, इसके बावजूद विभिन्न भर्ती परीक्षाओं के प्रश्न पत्रों में गलतियों की भरमार रही। जब तक आयोग व सरकार इस मामले में गंभीर नहीं होगी, तब तक न तो हालात सुधरेंगे और न ही अभ्यर्थियों के रोष को कम किया जा सकेगा।
-तेजवानी गिरधर