मंगलवार, 30 जुलाई 2013

भगत को फंसाने वाला अजमत खुद फंसता नजर आ रहा है

नरेन शहाणी
लैंड फॉर लैंड प्रकरण में रिश्वत मांगने के आरोप में नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष नरेन शहाणी को फंसाने वाला अजमत खुद फंसता नजर आ रहा है। इस प्रकरण तबादले का दंड भुगत रहे न्यास के पूर्व कैशियर ललित मिश्रा जो शिकायत मुख्यमंत्री से की है, जिसकी जांच शुरू हो गई है, को सही मानें तो अजमत ने खुद भी गोलमाल किया है। मिश्रा की शिकायत है कि अजमत को जिस जमीन के बदले जमीन आवंटित की गई थी, वह जमीन पहले ही बिक चुकी थी।
न्यास अध्यक्ष भगत को शहीद कर चुके इस प्रकरण में यह जो नया मोड़ आया है, वह इस ओर इशारा करता है कि यह आपसी खींचतान का नतीजा है। इसका अंदाजा अजमत के उस बयान से होता है, जिसमें उसने कहा है कि मिश्रा ने उसे शाहनी सहित अन्य के खिलाफ गवाही नहीं देने के लिए धमकी दी है। अजमत ने कहा कि 27 जुलाई को मिश्रा ने फोन कर कहा कि राजीनामा कर लो, तुम्हारी वजह से मेरा तबादला हो गया है।
हालांकि मिश्रा इस आरोप से इंकार करते हैं और कह रहे हैं कि उनका अजमत से कोई लेना-देना नहीं है और शिकायत सीधे मुख्यमंत्री से की गई है, मगर ठीक ऐसे मौके पर जब कि रिश्वत प्रकरण की जांच चल  रही है, अजमत के बारे में शिकायत संदेह पैदा करती है। यदि मिश्रा को अजमत की ओर से किए गए गोलमाल की पहले से जानकारी थी तो उन्होंने तब इसकी शिकायत क्यों नहीं की, यह एक बड़ा सवाल है। मिश्रा ने जिस तरह की शिकायत की है, उससे तो अजमत का चरित्र ही संदेह के घेरे में आता है और साफ नजर आता है कि भगत व अन्य को बाकायदा साजिश रच कर फंसाया गया है। हालांकि इसका अर्थ यह कत्तई नहीं कि भगत व अन्य ने रिश्वत मांगी ही नहीं, मगर इतना तय है कि लेन-देन को लेकर एकमत न होने के कारण भगत को फंसाने की योजना बनाई गई। कुछ सूत्र तो यह तक बताते हैं कि इसमें भी कहीं न कहीं अन्य राजनेताओं के तार जुड़े हुए हैं। जहां तक मिश्रा की शिकायत का सवाल है, उसकी जांच नगरीय विकास विभाग ने पूर्व आईएएस अधिकारी एम के खन्ना को सौंप दी है।
उल्लेखनीय है कि एंटी करप्शन ब्यूरो ने रिश्वत प्रकरण में न्यास अध्यक्ष नरेन शहानी भगत, दो प्रापर्टी डीलर मनोज गिदवानी व महेश अग्रवाल, पूर्व सचिव निशु अग्निहोत्री और उपनगर नियोजक साहिबराम जोशी के खिलाफ 21 जून को तीन अलग- अलग मुकदमे दर्ज किए थे। अब एंटी करप्शन ब्यूरो के एडिशनल एसपी भूपेन्द्र सिंह चूड़ावत मामले की जांच कर रहे हैं।
आइये, अब नजर डालते हैं मिश्रा की ओर से की गई शिकायत में दिए गए तथ्यों पर-
1. अवाप्ति के आठ प्रकरणों में समर्पणकर्ता ने अजमत खां, अमीन खां और रेखा बानो को मुआवजा प्राप्त करने एवं भूखंड के बदले भूखंड प्राप्ति के लिए अधिकृत कर रखा है। प्रकरण में अजमत ने फर्जी समर्पण पत्र दिया है, जो कि न्यास की पत्रावली में मौजूद है।
2. फर्जी समर्पण पत्र के आधार पर भूमि के बदले भूमि देने का प्रस्ताव बना कर कमेटी के सामने रखा गया। प्रस्ताव पर 4812.19 वर्गगज जमीन आवंटित करने का निर्णय किया गया और 15 अक्टूबर 09 को प्रकरण को कमेटी में रखा गया और भूमि के बदले भूमि देने का फैसला करते हुए प्रकरण राज्य सरकार को भेज दिया गया।
3. फर्जी समर्पण पत्र प्रस्तुत होने पर एक खातेदार द्वारा अजमत के खिलाफ सिविल लाइन थाना पुलिस में मुकदमा दर्ज कराया गया। इस खातेदार ने 21 दिसंबर 12 को न्यास में भी आपत्ति पेश की थी। लेकिन इसका आज तक निस्तारण नहीं किया गया है।
4. राज्य सरकार की एम्पॉवर्ड कमेटी ने 6 अगस्त 12 को लैंड फॉर लैंड के आठों मामलों में स्वीकृति प्रदान कर नयास आदेश की प्रति भिजवाई गई थी। सचिव ने सरकार के आदेश की पालना करने के लिए उक्त प्रकरणों में स्वामित्व, अदालती मुकदमों और अब्दुल रहमान बनाम सरकार प्रकरण को ध्यान में रखकर आगे की कार्रवाई के निर्देश दिए थे।
5. अजमत ने आठों प्रकरणों में राज्य सरकार द्वारा बताए गई कार्रवाई से बचने के लिए एसीबी का डर दिखाया और इसके चलते इन प्रकरणों में स्वामित्व की जांच नहीं की गई। न ही राज्य सरकार द्वारा अनुमोदित ले आउट प्लान सक्षम कमेटी से अनुमोदन कराया गया।
6. आठों प्रकरणों में 16 अप्रेल 1991 को अवाप्ति की कार्रवाई शुरू हुई थी, कलेक्टर ने मुआवजा भी न्यायालय में जमा करा दिया था। सरकार के आदेशानुसार 13 दिसंबर 2001 में कहा गया है कि कोई खातेदार न्यास के नाम भूमि 28 फरवरी 2002 तक निशुल्क समर्पित करता है तो अधिकृत व्यक्ति को 15 प्रतिशत विकसित भूखंड आवंटित किए जा सकते हैं, जबकि समर्पण पत्र 13 दिसंबर 2001 के पहले का है।
7. विवादित जमीन खातेदारों ने पहले ही अन्य लोगों को बेच दी। इसके बाद न्यास ने भूमि के बदले भूमि का सरकार से अनुमोदन भी करा लिया, जो कि नियम विरुद्ध है। अजमत खां के पक्ष में समर्पण पत्र किसी भी सक्षम अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया गया। न्यास में सचिव पद पर रहे अधिकारियों पर मिलीभगत का आरोप लगा है।
कुल मिला कर अब यह पूरा प्रकरण उलझता नजर आ रहा है, जिसकी जद में न्यास के पूर्व अधिकारी भी लपेटे में आ सकते हैं।
-तेजवानी गिरधर