मंगलवार, 5 जुलाई 2016

क्या अब प्रो. जाट के पुत्र रामस्वरूप लांबा को आगे लाया जाएगा?

प्रो. सांवरलाल जाट
अजमेर के सांसद व केन्द्रीय जलदाय राज्य मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट को कथित रूप से स्वास्थ्य कारणों से मंत्रीमंडल से हटाए जाने के साथ ही राजनीतिक हलकों में एक बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है। वो यह कि अगर प्रो. जाट अस्वस्थता के चलते वे बहुत सक्रिय नहीं रह सकते तो आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर उनके विकल्प के तौर पर किस जाट नेता को आगे बढ़ाया जाएगा।
वस्तुत: पिछले परीसीमन के बाद अजमेर लोकसभा क्षेत्र जाट बहुल हो गया है। इसी के मद्देनजर भाजपा ने पिछले चुनाव में जाट नेता प्रो. जाट को मैदान में उतारा और वह प्रयोग सफल रहा। चाहे उसमें मोदी लहर का भी योगदान रहा हो। सब जानते हैं परिसीमन से पहले यह रावत बहुल सीट थी, उसी की बदौलत प्रो. रासासिंह रावत लगातार यहां से जीतते रहे। परिसीमन के बाद रावत बहुल इलाका इस लोकसभा क्षेत्र से कट गया। उसी के चलते प्रो. रासासिंह रावत की जगह किरण माहेश्वरी को चुनाव मैदान में उतारा गया, मगर वे कांग्रेस के दिग्गज सचिन पायलट के आगे टिक नहीं पाईं और वह प्रयोग विफल हो गया। गलती को सुधारते हुए उसके बाद के चुनाव में प्रो. जाट पर दाव खेला गया और वह पूरी तरह से सफल रहा। अब जब स्वास्थ्य कारणों के चलते प्रो. जाट को मंत्रीमंडल से हटाया गया है तो भाजपा के लिए विचारणीय सवाल ये हो गया है कि आगामी लोकसभा चुनाव के लिए किस जाट नेता को उभारा जाए।
यूं तो भाजपा के पास कई जाट नेता हैं, मगर समझा जाता है कि प्रो. जाट अपने बेटे रामस्वरूप लांबा को आगे लाना चाहेंगे। अपने बेटे को राजनीतिक वारिस बनाने के मकसद से ही उसका नाम उन्होंने पिछले नसीराबाद विधानसभा उपचुनाव में आगे बढ़ाया था। ज्ञातव्य है कि प्रो. जाट के लोकसभा चुनाव जीतने के बाद यह सीट खाली हो गई थी। तब लांबा के लिए पूरी ताकत लगाई गई, मगर उन दिनों भाजपा में परिवारवाद के खिलाफ माहौल बना होने के कारण उनको मौका नहीं मिला। यदि भाजपा लांबा को आगे लाना चाहेगी तो स्वाभाविक रूप से उनको प्रो. जाट के निजी समर्थकों व जाट समाज का पूरा सहयोग मिलेगा। यूं भी मंत्री पद से हटाए जाने का उनके समर्थकों व समाज को मलाल है, ऐसे में लांबा को संवेदना का फायदा मिल सकता है। ज्ञातव्य है कि प्रो. जाट केवल भाजपा के दम पर नहीं हैं, बल्कि उनकी अपने समर्थकों की लंबी चौड़ी फौज है, जो कि प्रो. जाट के केन्द्र व राज्य में मंत्री रहते उपकृत हो चुकी है। मंत्री पद से हटाए जाने के कारण भाजपा हाईकमान पर भी समायोजन के तौर पर लांबा को तवज्जो देने का दबाव रहेगा।
भाजपा के पास दूसरे सबसे दमदार नेता अजमेर डेयरी अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी हैं, जो कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट से जबरदस्त नाइत्तफाकी के चलते कांग्रेस छोड़ चुके हैं। हालांकि भाजपा में शामिल नहीं हुए हैं, मगर पिछले चुनाव में उन्होंने भाजपा के लिए खुल कर काम किया था। डेयरी अध्यक्ष के नाते चौधरी का अजमेर लोकसभा क्षेत्र के गांव-गांव ढ़ाणी-ढ़ाणी तक नेटवर्क है। जिले का शायद की कोई ऐसा गांव हो, जहां तक उनकी पहुंच व पकड़ न हो। अगर भाजपा उनको आगे लाती है तो उनसे बेहतर कोई नेता हो नहीं सकता। वैसे यहां आपको बता दें कि कुछ लोग अब भी चौधरी की कांग्रेस में वापसी की कोशिशों में लगे हुए हैं। भाजपा के पास तीसरा नाम है श्रीमती सरिता गैना का, जो कि जिला प्रमुख रह चुकी हैं। जिला प्रमुख रहते उन्होंने पूरे जिले में अपनी कुछ पकड़ बनाई, मगर पिछले विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस के रामनारायण गुर्जर से पराजित हो कर अपने नंबर कम करवा चुकी हैं। प्रो. जाट की सीट खाली होने के बाद सरिता गैना इस जीती हुई सीट को केन्द्र व राज्य में भाजपा सरकारें होते हुए भी कब्जे में नहीं रखवा पाईं। उनके स्वसुर सी. बी. गैना की भी दावेदारी गिनी जाती रही है। उनके अतिरिक्त किशनगढ़ विधायक भागीरथ चौधरी भी एक विकल्प हो सकते हैं। लब्बोलुआब यह तय है कि प्रो. जाट की अस्वस्था के चलते आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा फिर किसी जाट नेता पर ही दाव खेलेगी।
 -तेजवानी गिरधर
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कुशल मैनेजर निकले सी. आर. चौधरी

केन्द्रीय मंत्रीमंडल में राज्यमंत्री के रूप में शुमार नागौर के सांसद सी. आर. चौधरी ने यह साबित कर दिया है कि वे एक कुशल मैनेजर हैं। उन्होंने मौका लगते ही केन्द्र सरकार में स्थान बना लिया।
असल में चौधरी मौलिक रूप से राजनीतिज्ञ नहीं हैं। वे प्रशासनिक सेवा के अफसर रहे हैं। और प्रशासनिक अफसरों को पता होता है कि सत्ता तो बदलती रहती है, इस कारण सभी राजनीतिक दलों में घुसपैठ बनाए रखते हैं। जब जिसकी सरकार, तब उस दल के आका से ट्यूनिंग। और बेहतर यही होता है कि अगर ढंग के पद पर रहना है तो जिसका राज, उसके पूत बन कर रहो।
हालांकि चौधरी जब तक सरकारी सेवा में रहे, तब उनकी अपनी कार्यशैली की वजह से पहचान रही। एक कुशल प्रशासक के उनमें सभी गुण हैं। अजमेर में सिटी मजिस्ट्रेट पद पर रहते उनके संपर्क में आए लोग जानते हैं कि वे कितने ठंडे दिमाग से उग्र से उग्र आंदोलनकारियों को कैसे मीठी गोली देते थे। इसमें कोई दो राय नहीं कि चौधरी की कार्यकुशलता की वजह से उन्हें तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राजस्थान लोक सेवा आयोग का सदस्य बनाया था, मगर इस सच को भी नहीं नकारा जा सकता कि इसके पीछे जाट समुदाय को खुश करने की भी नीति रही। यही वजह रही कि उनका झुकाव कांग्रेस की ओर माना जाने लगा। इसे वे भलीभांति जानते थे, इस कारण जैसे ही भाजपा की सरकार आई तो मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे की नजदीकी हासिल करने की कोशिश की। भाजपा भी चाहती थी कि जाट बहुल नागौर जिले के किसी शख्सियत को आगे बढ़ाया जाए, ताकि उसके माध्यम से कांग्रेस विचारधारा के रहे जाटों में पैठ बनाई जा सके। इसी के तहत उन्हें वसुंधरा राजे ने उन्हें राजस्थान लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष बनाया। यानि के चौधरी ने बड़ी चतुराई से अपने जाट होने का फायदा उठाया। यह कम चतुराई नहीं कहलाएगी कि सरकारी पद से सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने राजनीति का रुख कर लिया और मिर्धा परिवार के दबदबे वाले नागौर जिले से भाजपा का टिकट हासिल कर लिया। आकर्षक व्यक्तित्व, जातीय लामबंदी और मोदी लहर के दम पर वे जीत भी गए। जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पहला मंत्रीमंडल बनाया तो आयोग अध्यक्ष जैसे पद रहे योग्य प्रशासक के नाते उसमें प्रवेश की कोशिश की, मगर धरातल पर प्रो. सांवरलाल जाट की पकड़ मजबूत होने के कारण उन्हें कामयाबी हासिल नहीं हुई। चूंकि प्रो. जाट को राज्य का केबीनेट मंत्री रहते लोकसभा चुनाव लड़ाया गया और उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज सचिन पायलट को हराया तो जाट समुदाय से पहला हक उनका ही था। खैर, अब जब कि स्वास्थ्य कारणों से प्रो. जाट को हटाया गया तो चौधरी ने तुरंत उनकी जगह हासिल करने का जुगाड़ कर लिया। वे सुलझे विचारों के नेता हैं, ऐसे में उम्मीद की जा सकती है कि वे अपनी कार्यशैली से मोदी का दिल जीत लेंगे। हालांकि उनका रुझान अपने गृह जिले नागौर की ओर ज्यादा रहेगा, मगर उम्मीद की जाती है कि नागौर के अजमेर संभाग में होने के कारण अजमेर का भी ख्याल रखेंगे। यूं भी काफी समय अजमेर में बिताने के कारण अजमेर के प्रति उनका विशेष रहा है।
-तेजवानी गिरधर
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प्रो. जाट का मंत्री पद से हटना अजमेर को बड़ा झटका

स्मार्ट सिटी की ओर कदम बढ़ा रहे अजमेर के लिए केन्द्रीय जलदाय राज्य मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट का मंत्रीमंडल से हटना एक बहुत बड़ा झटका है। हालांकि अजमेर कोटे से राज्यसभा सदस्य भूपेन्द्र यादव भी केन्द्र में एक प्रभावी नेता हैं, मगर प्रो. जाट जमीन से जुड़े नेता रहे हैं, जिनके हटने के बाद स्थानीय राजनीति में नए समीकरण बनने का धरातल तैयार हो गया है।
असल में एक लंबे अरसे से यह चर्चा थी कि प्रो. जाट को मंत्रीमंडल से हटाया जाएगा। कोई कहता कि बीमारी की वजह से वे अब अक्षम हैं, इस कारण तो कोई कहता उनकी कोई खास परफोरमेंस नहीं, इस कारण वे मोदी को पसंद नहीं हैं, मगर इतना तय है कि वे मंत्रीमंडल में रहे ही अपने व्यक्तिगत दम पर और जातीय समीकरण के तहत। यह उनका दुर्भाग्य ही रहा कि वे राज्य में केबीनेट स्तर के मंत्री रहे, मगर पार्टी हित की खातिर लोकसभा का चुनाव लडऩा पड़ा। पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी ने कांग्रेस के दिग्गज नेता व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट को हराने के लिए उन्हें लड़ाया गया। वे खरे भी उतरे। हालांकि लोकदल से भाजपा में आए प्रो. जाट राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की पसंद की कभी नहीं रहे, मगर राज्य की राजनीति में अहम स्थान रखने के कारण कभी मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के हनुमान रहे प्रो. जाट को केन्द्रीय मंत्रीमंडल में स्थान मिला। आपको याद होगा कि सचिन पायलट अजमेर के पहले सांसद थे, जिन्हें केन्द्रीय मंत्रीमंडल में स्थान मिला था। अजमेर विकास की राह पर चला ही था कि अगले चुनाव में मोदी लहर में टिक नहीं पाए। उनके हारने के बाद जो स्थान रिक्त हुआ, उसकी पूर्ति प्रो. जाट ने की। मगर इसे अजमेर का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि केन्द्र में मंत्री बनने के बाद उनका स्वास्थ्य लगातार गिरता ही गया। कुछ ऐसा ही राज्य में भूतपूर्व केबीनेट मंत्री स्वर्गीय किशन मोटवानी के साथ हुआ। जब वे अजमेर को कुछ देने की हैसियत में आए तो उनका स्वास्थ्य खराब हो गया और अंतत: निधन हो गया।
श्रीमती वसुंधरा राजे की पूर्ववर्ती सरकार में जल संसाधन मंत्री रहे प्रो. सांवरलाल जाट प्रदेश के प्रमुख भाजपा नेताओं में शुमार हैं। उन्होंने श्रीमती वसुंधरा राजे के लिए कई बार संकट मोचक के रूप में भूमिका निभाई। स्वर्गीय श्री बालूराम के घर गोपालपुरा गांव में 1 जनवरी 1955 को जन्मे प्रो. जाट ने एम.कॉम. व पीएच.डी. की डिग्रियां हासिल की हैं। पेशे से वे प्रोफेसर हैं, मगर बाद में राजनीति में भी उन्होंने सफलता हासिल की। वे 13 दिसंबर 1993 से 30 नवंबर 1998 तक सहायता एवं पुनर्वास विभाग के राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और 8 दिसंबर 2003 से 8 दिसंबर 2008 तक जल संसाधन, इंदिरा गांधी नहर परियोजना, जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी, भू-जल एवं सिंचित क्षेत्र विकास विभाग के मंत्री रहे। तेरहवीं विधानसभा के चुनाव में उनका विधानसभा क्षेत्र भिनाय परिसीमन की चपेट में आ गया और उन्होंने नसीराबाद से चुनाव लड़ा, लेकिन कुछ वोटों के अंतर से ही महेन्द्र सिंह गुर्जर से पराजित हो गए। पिछले विधानसभा चुनाव में वे नसीराबाद विधानसभा क्षेत्र से जीते और राज्य में केबीनेट मंत्री बने। इसके बाद उन्हें सचिन पायलट को टक्कर देने के लिए लोकसभा का चुनाव लड़ाया गया और वे विजयी हुए। उनके सांसद बनने के बाद जब नसीराबाद में उपचुनाव हुआ तो भाजपा की उम्मीदवार श्रीमती सरिता गैना रामनारायण गुर्जर से हार गईं।
बहरहाल, प्रो. जाट का हटना अजमेर के लिए एक बड़ा झटका तो है ही, खुद उनके लिए भी यह राजनीतिक अवसान कहलाएगा। तीन साल बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में क्या स्थितियां बनेंगी, कुछ कहा नहीं जा सकता, मगर भाजपा को उनके समकक्ष दावेदार को तो तलाशना ही होगा।

-तेजवानी गिरधर
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