शनिवार, 29 मार्च 2014

विधानसभा चुनाव में टिकट न मिलने के कारण पहले से नाराज थे शक्तावत

केकड़ी विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व प्रधान भूपेंद्र सिंह शक्तावत का कांग्रेस में शामिल होना भाजपा प्रत्याशी प्रो. सांवरलाल के लिए एक बड़ा झटका है। उनका सावर सताईसा क्षेत्र में खासा प्रभाव है और इससे राजपूत वोटों का धु्रवीकरण कांग्रेस प्रत्याशी सचिन पायलट की ओर हो सकता है। उल्लेखनीय बात ये है कि वे अकेले नहीं बल्कि दल-बल के साथ आए हैं। भाजपा की जिला मंत्री आशा कंवर राठौड़, केकड़ी देहात महिला मोर्चा अध्यक्ष सज्जन कंवर राठौड़, सरपंच सावर पुष्पेंन्द्र सिंह शक्तावत, पूर्व पंचायत समिति सदस्य गोपी लोधा, पूर्व पंचायत समिति सदस्य मांगी लाल धोबी, पंचायत समिति सदस्य नारायण मीणा आदि भी कांग्रेस में शामिल हो गए हैं।
आपको बता दें कि शक्तावत भाजपा से पहले ही नाराज चल रहे थे। हाल ही संपन्न विधानसभा चुनाव में वे टिकट के प्रबल दावेदार थे, मगर भाजपा ने ऐन वक्त पर ब्राह्मण कार्ड खेलते हुए शत्रुघ्र गौत्तम को प्रत्याशी बनाकर चुनाव मैदान में उतार दिया था। हालांकि चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा प्रत्याशी के समर्थन में हुई वसुन्धरा राजे की सभा में मंच पर दिखाई दिये थे, मगर चर्चाएं यही थीं कि उनकी सक्रिय भागीदारी के अभाव रहा।
इससे पहले 2008 के विधानसभा चुनाव में वे भाजपा से बगावत कर चुके हैं। पार्टी ने श्रीमती रिंकू कंवर को प्रत्याशी बनाया, इस पर उन्होंने बगावत कर दी। उन्हें 17 हजार 801 वोट मिले थे। रिंकू हार गईं और कांग्रेस के रघु शर्मा जीत गए थे।

यानि कि भाजपा से हुई थी आप के सोमानी की डील

अजमेर संसदीय क्षेत्र में आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी अजय सोमानी ने किससे डील करके मैदान से हटने निर्णय किया, इसका खुलासा हो पाता, उससे पहले ही भाजपा के वरिष्ठ नेता व नगर सुधार न्यास के पूर्व सदर धर्मेश जैन ने खुद खुलासा कर दिया कि उन्होंने ही सोमानी को समझाया था कि मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए भाजपा को समर्थन दें। इससे यह साफ हो गया है कि सोमानी भाजपा नेताओं के दबाव में थे। डील में क्या हुआ, कितने में हुई, आगे क्या फायदा देना तय हुआ, ये तो पता नहीं, मगर समझा जा सकता है कि इस आर्थिक युग में भला कौन केवल समझाइश से मान जाता है। जो कुछ भी हो जैन ने अंदर की बात का खुलासा करके सोमानी को मैदान से हटवाने का श्रेय तो ले लिया है। अब ये पता नहीं कि मुंह पर स्याही पुतवाने की एवज में जैन ने उनको भाजपा प्रत्याशी प्रो. सांवरलाल जाट से कुछ दिलवाने का तय करवाया है या नहीं।
इसी सिलसिले में एक कानाफूसी पर भी जरा गौर करें। वो ये कि जिस आखिरी बैठक में सोमानी ने मैदान से हटने का निर्णय सुनाया, उसमें कहा बताया कि चूंकि वे खुद तो जीत नहीं पाएंगे, इस कारण बेहतर ये है कि वे हट जाएं ओर मोदी को रोकने के लिए कांगे्रेस का समर्थन करें। इस पर बैठक में मौजूद कार्यकर्ता भड़क गए थे।
अब बात करें ये कि क्या वाकई सोमानी के हटने से भाजपा को लाभ होगा? कुछ लोग मानते हैं कि माहेश्वरी समाज में उनका अच्छा नेटवर्क है, मगर वे इतने बड़े नेता भी नहीं कि उनके कहने से माहेश्वरी समाज के लोग वोट डालने के बारे में निर्णय करने जा रहे थे या अब करेंगे। सच तो ये है कि उन्हें आप के कार्यकर्ता ही ठीक से नहीं जानते। उलटा कार्यकर्ताओं को एक बड़ा गुट उनके खिलाफ था। सोमानी से मैदान से हटने का एक कारण ये भी था। वे नामांकन भरने वाले दिन से ही कुछ निराश से थे। वे मैदान से हट न जाएं, इस बात की आशंका कार्यकर्ताओं को पहले से ही हो गई थी। समझा जा सकता है कि वरना पहले से स्याही का इंतजाम कैसे हो गया?
हां, इतना जरूर है कि बैलेट पर चूंकि अब आम आदमी पार्टी का सिंबल नहीं होगा, इस कारण जो कांग्रेस विरोधी वोट पहले सोमानी को मिलने की संभावना थी, वह अब भाजपा की ओर जा सकता है। मगर इसमें सोमानी का कोई लेना-देना नहीं होगा। एक बात और। सोमानी के हटने के बाद कार्यकर्ताओं में निराशा और किंकर्तव्यविमूढ़ है कि अब वह क्या करे? संभव है पार्टी की ओर से निर्देश आएं कि वे नोटा का बटन दबाने की अपील करें।
-तेजवानी गिरधर

यानि कि पार्षद चंद्रकांता पारलेचा का भाजपा टिकट तो पक्का समझें

लोकसभा चुनाव की रेलमपेल में अजमेर नगर निगम की पार्षद चंद्रकांता पारलेचा ने भाजपा में शामिल हो कर अपना अगला टिकट पक्का कर लिया है। ज्ञातव्य है कि चंद्रकांता के पति विमल पारलेचा भाजपा के पार्षद रह चुके हैं। निगम चुनाव में उन्होंने पिछली बार अपनी पत्नी के लिए भाजपा से टिकट मांगा था और पार्टी से टिकट नहीं मिलने पर चंद्रकांता चुनाव में निर्दलीय खड़ी हुई थीं। जीत के बाद कांग्रेस में शामिल हो गईं। वे उप महापौर के लिए हुए चुनाव में कांग्रेस की प्रत्याशी भी थीं। इसमें उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा था। कानाफूसी है कि अब जब कि उन्होंने पाला बदल लिया है तो उन्होंने तकरीबन एक साल बाद होने वाले नगर निगम चुनाव में अपना टिकट पक्का कर लिया है। जाहिर सी बात है कि वे आगामी पांच साल राज्य में भाजपा सरकार का तो लुत्फु लेंगी ही, दुबार पार्षद बनने का चांस भी हासिल करेंगी।

किस डील के तहत नाम वापस लिया आप के सोमानी ने



अजमेर में अन्ना हजारे के आंदोलन से लेकर आम आदमी पार्टी की स्थापना से जारी कलह लोकसभा चुनाव में आखिर इस कदर फूटी कि पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी अजय सोमानी ने मैदान ही छोड़ दिया। जाहिर तौर पर इससे कार्यकर्ताओं में गुस्सा फूट पड़ा और इस हरकत पर टिकट की एक दावेदार श्रीमती किरण शेखावत ने सोमानी के मुंह पर कालिख पोत दी। इस सनसनीखेज वारदात के बाद एक बड़ा सवाल ये उठ खड़ा हुआ है कि आखिर ऐसी क्या डील हुई कि सोमानी ने टिकट मिलने के बाद नामंाकन पत्र भी दाखिल किया, मगर रणछोड़दास बनने को मजबूर हो गए। कार्यकर्ता इस बात का पता लगाने में जुटे हुए हैं कि उनकी डील किसी पार्टी से हुई।
जहां तक उनके नाम वापस लेने का सवाल है कि अपुन ने पहले ही बता दिया था कि नामांकन दाखिल करने के बाद अपेक्षित उत्साह व सक्रियता नहीं दिखाये जाने से कार्यकर्ता हतप्रभ और सशंकित हैं। उन्हें आशंका थी कि कहीं सोमानी नाम वापस न ले लें। और हुआ भी यही। सोमानी ने गुपचुप तरीके से नाम वापस ले लिया, मगर गुस्साए कार्यकर्ता उनके पीछे लगे हुए थे। उन्होंने सोमानी के खिलाफ जम कर नारे लगाए और टिकट की ही एक दावेदार श्रीमती किरण शेखावत ने स्याही डाल कर उनका मुंह काला कर दिया।
कहने की जरूरत नहीं है कि सोमानी को लेकर आरंभ से आम सहमति नहीं थी। उनके टिकट के दावे को रिजेक्ट कर दिया गया था और आखिरी विकल्प के रूप में एनजीओ चलाने वाले प्रिंस सलीम का नाम फाइनल कर दिया गया था। मगर आखिरी क्षणों में आनाकानी करने पर जल्दबाजी में सोमानी का नंबर आ गया। पार्टी हाईकमान के इस निर्णय से नाराज नील शर्मा उर्फ श्याम सुंदर शर्मा, सरस्वती चौहान व मौंटी राठौड़ उर्फ पुष्पेन्द्र सिंह राठौड़ सरीके कर्मठ कार्यकर्ताओं ने पार्टी छोड़ दी।
-तेजवानी गिरधर