बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

आप में शुरू हुई तू-तू मैं-मैं


कीर्ति पाठक
कीर्ति पाठक
जैसे महल हो या झौंपड़ी, कहीं भी आग लग सकती है, वैसे ही पद का झगड़ा ऐसा है, जो हर जगह होता है। शैशव काल से गुजर रही गिनती के सदस्यों वाली आम आदमी पार्टी की अजमेर इकाई में भी पद को लेकर तू-तू मैं-मैं शुरू हो गई है। हुआ असल में यूं कि पार्टी के कर्मठ कार्यकर्ता नील शर्मा को कार्यकर्ता-संगठन संयोजक अजमेर की जिम्मेदारी दिए जाने पर उन्हें फेसबुक पर पार्टी की अजमेर प्रभारी श्रीमती कीर्ति पाठक की ओर से हार्दिक शुभकामनाएं दी गईं और आशा व्यक्त की गई कि आप के सहयोग से आम आदमी पार्टी अजमेर में संगठन का काम दु्रत गति से आगे बढ़ेगा।
इस पर पार्टी के एक हितचिंतक बुजुर्ग केशवराम सिंघल ने प्रतिक्रिया दी कि -मुझे आश्चर्य हुआ.... क्या श्री राजेंद्र सिंह हीरा, जो इस पद पर कार्य कर रहे हैं, उन्हें कब हटाया गया, किसने हटाया? पार्टी की एक बैठक में मुझे तो बताया गया था कि कार्यकर्ता/संगठन संयोजक श्री राजेंद्र सिंह हीरा हैं। मुझे पता चला कि श्री राजेंद्र सिंह हीरा ने राज्य सम्मेलन में भी इस पद की हैसियत से 17 फरवरी 2013 को भाग लिया था। आपके इस समाचार से मुझे आश्चर्य हुआ।
इस पर प्रतिप्रतिक्रिया करते हुए श्रीमती पाठक ने लिखा कि-केशवराम सिंघल जी, कल की कार्यकारिणी बैठक में सर्वसम्मति से ये निर्णय लिया गया था। राजेन्द्र सिंह जी अब इस जिम्मेदारी को नहीं निभा रहे हैं। और एक बात, आम आदमी पार्टी में कोई भी पद नहीं होता। यहां सब अपने को दी गई जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हैं।
केशवराम सिंघल
केशवराम सिंघल
हालांकि यह पार्टी के अंदर का मामला है कि वह किसे जिम्मेदारी देती है या नहीं। इसके अतिरिक्त श्रीमती पाठक जैसी जिम्मेदार पदाधिकारी जो कह रही हैं, वह सही ही होगा, मगर जिस तरह फेसबुक पर सार्वजनिक रूप से इस पद को लेकर क्रिया-प्रतिक्रिया हुई है, उससे लगता है कि जरूर कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ हुई है।
बहरहाल, पारदर्शिता की पैराकार आम आदमी पार्टी की पारदर्शिता जब फेसबुक पर आती है तो यह एक सुखद बात है कि वहां सब कुछ पारदर्शी है।
-तेजवानी गिरधर

क्या नए एसपी हटाएंगे मदारगेट से ठेले?

gaurav shrivastavकहा जाता है कि अजमेर जिले के नए पुलिस कप्तान गौरव श्रीवास्तव काफी कड़क और ऊर्जावान हैं, इसी कारण उनसे उम्मीद की जा रही है कि वे भ्रष्टाचार का दाग झेल रही अजमेर की पुलिस को सुधारने के लिए कुछ कदम उठाएंगे। खुद उन्होंने भी पदभार संभालते ही कहा था कि वे ईमानदारी की मिसाल पेश करेंगे। ऐसे ईमानदार पुलिस कप्तान से उम्मीद की जा सकती है कि वे शहर के हृदय स्थल मदारगेट पर यातायात के लिए मुसीबत का सबब बने हुए ठेलों को हटवाएंगे।
यहां यह लिखना प्रासंगिक ही होगा कि जब अजमेर के हितों के लिए गठित अजमेर फोरम की पहल पर बाजार के व्यापारियों की एकजुटता से एक ओर जहां शहर के इस सबसे व्यस्ततम बाजार मदारगेट की बिगड़ी यातायात व्यवस्था को सुधारने का बरसों पुराना सपना साकार रूप ले रहा था, तब पूर्व पुलिस कप्तान राजेश मीणा के रवैये के कारण नो वेंडर जोन घोषित इस इलाके को ठेलों से मुक्त नहीं किया जा पाया।
MadarGateमीणा यह कह कर ठेले वालों को हटाने में आनाकानी कर रहे थे कि पहले निगम इसे नो वेंडर जोन घोषित करे और पहल करते हुए इमदाद मांगे, तभी वे कार्यवाही के आदेश देंगे। उनका तर्क ये भी बताया जा रहा था कि पहले नया वेंडर जोन घोषित किया जाए, तब जा कर ठेले वालों को हटाया जाना संभव होगा। असल बात ये है कि संभागीय आयुक्त की अध्यक्षता में गठित समिति मदार गेट को पहले से ही नो वेंडर जोन घोषित कर चुकी है। मीणा के तर्क के मुताबिक उसे निगम की ओर से नए सिरे से नो वेंडर जोन घोषित करने की जरूरत ही नहीं। पुलिस को खुद ही कार्यवाही करनी चाहिए। रहा सवाल मीणा के पहले वेंडर जोन घोषित करने का तो स्वाभाविक रूप से जो इलाका नो वेंडर जोन नहीं है, वही वेंडर जोन है। अव्वल तो उनका इससे कोई ताल्लुक ही नहीं कि ठेले वालों को नो वेंडर जोन से हटा कर कहां खड़ा करवाना है। उनके इस तर्क से तो वे ठेले वालों की पैरवी कर रहे प्रतीत होते थे। इसे भले ही साबित करना थोड़ा कठिन हो कि पुलिस वाले ठेले वालों से मंथली लेते हैं, मगर सच्चाई यही बताई जाती है। यदि वे ठेलों को हटाते हैं तो उसकी मंथली मारी जाती है। निलंबित एसपी मीणा को तो कदाचित यह जानकारी थी ही, नए एसपी श्रीवास्तव को भी जानकारी हो चुकी होगी। देखते हैं इस आरोप से मुक्त होने के लिए ही सही, वे कोई कार्यवाही करते हैं या नहीं? क्या ईमानदार पुलिस प्रशासन देने का वादा करने वाले श्रीवास्तव इस पर गौर करते हैं या नहीं? अगर वे कुछ करते हैं तो इससे एक तो उनका वादा पूरा होगा, वहीं शहर की जनता को मदार गेट पर सुगम यातायात हासिल हो सकेगा, जो कि वर्षों पुरानी जरूरत है।
-तेजवानी गिरधर

पुष्कर में आखिर कब थमेगी विदेशियों की नंगाई?

pushlar touristहाल ही जर्मनी के एक सिरफिरे विदेशी पर्यटक ने तीर्थराज पुष्कर के बद्री घाट चौक में ऊलजुलूल हरकतें कर बीच बाजार में मजमा लगा दिया। बाजार में जानवरों की भांति उछल-कूद करने लगा। मूत्रालय की दीवारों पर करीब एक घंटे तक लंबी-लंबी छलांग लगाने का अभ्यास करता रहा। जानकारी के अनुसार वह होटल में भी ऐसी ही हरकतें करता रहा। उछल-कूद करते हुए पड़ोसियों के घरों में भी जाता रहा। करीब एक घंटे तक हंगामा मचाने के बाद मौके पर पहुंची पर्यटक पुलिस ने उसे धर-दबोचा और दोबारा ऐसी हरकतें नहीं करने की हिदायत देकर छोड़ दिया।
किसी विदेशी का तीर्थराज में इस प्रकार की हरकतें करने का यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी कई बार विदेशी पर्यटक इस प्रकार की नंगाई कर चुके हैं। कई बार पुष्कर की पवित्रता को भंग करते हुए अश्लील हरकतें कर चुके है। और यह भी एक कड़वा सच है कि ऐसा वे मादक पदार्थों का सेवन करने के बाद ज्यादा करते हैं। सवाल ये उठता है कि आखिर यह सिलसिला कब तक चलेगा? आखिर कब तक इन्हें छोटी-मोटी कानूनी कार्यवाही अथवा हिदायत दे कर छोड़ा जाता रहेगा? आखिर कभी इस पर पूरी तरह रोक लगेगी या भी नहीं? कभी उनसे पूछा भी गया है कि क्या वे अपने देश में भी इसी तरह नंगाई करते हैं? क्या उन्हें अपने देश में इस प्रकार भद्दा प्रदर्शन करने की पूरी आजादी है? कैसे मान लें कि हमें दकियानूसी और पिछड़ा मानने वाले हमसे कहीं ज्यादा सभ्य हैं? कैसे मान लें कि वे हमसे ज्यादा सुसंस्कृत हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि जो कुछ करने की उनके देश में आजादी नहीं है, उसकी कुंठा की पूर्ति यहां की लचर कानून व्यवस्था का फायदा उठा कर हमारी संस्कृति को तार-तार किए दे रहे हैं? अफसोसनाक बात है कि आए दिन इस प्रकार की घटनाएं होती रहती हैं, मगर आज तक इसका स्थाई समाधान नहीं खोजा जा सका है।
यह सही है कि पर्यटन महकमे की ओर किए जाने वाले प्रचार-प्रसार के कारण यहां विदेशी पर्यटक खूब आकर्षित हुए हैं और सरकार की आमदनी बढ़ी है, मगर विदेशी पर्यटकों की वजह से यहां की पवित्रता पर भी संकट आया है। असल में पुष्कर की पवित्रता उसके देहाती स्वरूप में है, मगर यहां आ कर विदेशी पर्यटकों ने हमारी संस्कृति पर आक्रमण किया है। होना तो यह चाहिए कि विदेशी पर्यटकों को यहां आने से पहले अपने पहनावे और चाल-चलन पर ध्यान देने के कड़े निर्देश जारी किए जाने चाहिए। उन्हें पहले से ही पाबंद किया जाना चाहिए कि उन्हें यहां ऊलजुलूल हरकतें करने की आजादी कत्तई नहीं दी जाएगी। संबंधित पयर्टक एजेंसियों को भी इस बारे में पहले से आगाह किया जाना चाहिए। जैसे मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारे में जाने से पहले सिर ढ़कने और जूते उतारने के नियम हैं, वैसे ही पुष्कर में भ्रमण के भी अपने कायदे होने चाहिए। यद्यपि इसके लिए कोई ड्रेस कोड लागू नहीं किया सकता, मगर इतना तो किया ही जा सकता है कि पर्यटकों को सख्त हिदायत हो कि वे अद्र्ध नग्न अवस्था में पुष्कर की गलियों या घाटों पर नहीं घूम सकते। होटल के अंदर कमरे में वे भले ही चाहे जैसे रहें, मगर सार्वजनिक रूप से अंग प्रदर्शन नहीं करने देना चाहिए। इसके विपरीत हालत ये है कि अंग प्रदर्शन तो दूर विदेशी युगल सार्वजनिक स्थानों पर आलिंगन और चुंबन करने से नहीं चूकते, जो कि हमारी संस्कृति के सर्वथा विपरीत है। कई बार तो वे ऐसी मुद्रा में होते हैं कि देखने वाले को ही शर्म आ जाए। यह ठीक है कि उनके देश में वे जैसे भी रहते हों, उसमें हमें कोई ऐतराज नहीं, मगर जब वे हमारे देश में आते हंै तो कम से कम यहां की मर्यादाओं का तो ख्याल रखें। विशेष रूप तीर्थ स्थल पर तो गरिमा में रह ही सकते हैं। विदेशी पर्यटकों के बेहूदा कपड़ों में घूमने से यहां आने वाले देशी तीर्थ यात्रियों की मानसिकता पर बुरा असर पड़ता है। वे जिस मकसद से तीर्थ यात्रा को आए हैं और जो आध्यात्मिक भावना उनके मन में है, वह खंडित होती है। जिस स्थान पर आ कर मनुष्य को अपनी काम-वासना का परित्याग करना चाहिए, यदि उसी स्थान पर विदेशी पर्यटकों की हरकतें देख कर तीर्थ यात्रा का मन विचलित होता है तो यह बेहद आपत्तिजनक और शर्मनाक है। कई बार तो ऐसा लगता है कि विदेशी पर्यटक जानबूझ कर अद्र्धनग्न अवस्था में निकलते हैं, ताकि स्थानीय लोग उनकी ओर आकर्षित हों। जब स्थानीय लोग उन्हें घूर-घूर कर देखते हंै, तो उन्हें बड़ा रस आता है। जाहिर तौर पर जब दर्शक को ऐसे अश्लील दृश्य आसानी से सुलभ हो तो वे भला क्यों मौका गंवाना चाहेंगे। स्थिति तब और विकट हो जाती है जब कोई तीर्थ यात्री अपने परिवार के साथ आता है। आंख मूंद लेने के सिवाय उसके पास कोई चारा नहीं रह जाता।
यह भी एक कड़वा सत्य है कि विदेशी पर्यटकों की वजह से ही पुष्कर मादक पदार्थों की मंडी बन गया है, जिससे हमारी युवा पीढ़ी बर्बाद होती जा रही है। इस इलाके एड्स के मामले भी इसी वजह से सामने आते रहे हैं।
यह सही है कि तीर्थ पुरोहितों ने पुष्कर की पवित्रता को लेकर अनेक बार आंदोलन किए हैं, कहीं न कहीं वे भी अपनी आमदनी के कारण आंदोलनों को प्रभावी नहीं बना पाए हैं। तीर्थ पुरोहित पुष्कर में प्रभावी भूमिका में हैं। वे चाहें तो सरकार पर दबाव बना कर यहां का माहौल सुधार सकते हैं। यह न केवल उनकी प्रतिष्ठा और गरिमा के अनुकूल होगा, अपितु तीर्थराज के प्रति लोगों की अगाध आस्था का संरक्षण करने के लिए भी जरूरी है।
-तेजवानी गिरधर