शुक्रवार, 7 जनवरी 2011

ढ़ेबरी टाइट करना शुरू किया मीणा ने

अजमेर नगर निगम के नए सीईओ सी. आर. मीणा ने निगम की चर्रमर्र कर रही चूलों की ढ़ेबरी टाइट करना शुरू कर दिया है। जैसे ही उन्होंने सफाई ठेके वार्डों में श्रमिकों की तैनाती कर हाजरी भरने और वेतन भुगतान करने पर पाबंदी लगाई, सफाई निरीक्षकों व जमादारों में खलबली मच गई। सफाई व्यवस्था को पहली बार तरीके से खांचे में लाने पर पार्षदों को भी तकलीफ हुई। सभी ने मिल कर अपने तेवर दिखाने की कोशिश की तो मीणा ने भी आंखें तरेर कर उनकी क्लास ले डाली। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि पाबंदी उन्होंने सफाई ठेका कंपनी के कहने पर नहीं लगाई है, बल्कि यह कदम शहर के हित में उठाया है। रहा सवाल नौकरी का तो न तो उन्हें सीट का मोह है और न ही किसी के दबाव की परवाह। गलत काम और गलत बात बर्दाश्त नहीं करूंगा।
असल में जैसे ही मीणा ने यह कदम उठाया तो सफाई कर्मचारी संघों का खुद-ब-खुद लगा कि ठेका कंपनी के कहने पर ही ऐसा हुआ है और ऐसा करके कंपनी उन्हें चोर व भ्रष्ट बता कर बदनाम कर रही है। हुआ भी कुछ ऐसा कि अखबार वालों ने मीणा के निर्णय को फर्जी हाजरी खाने पर काबू पाने के संदर्भ में इसका प्रकाशन किया। जाहिर तौर पर इससे निरीक्षकों, जमादारों व सफाई कर्मचारियों की भद्द पिटी। इस पर मीणा ने स्पष्ट कर दिया कि ऐसा कुछ भी नहीं है। जब निगम के किसी अधिकारी ने भ्रष्ट या चोर नहीं कहा है, तो उन्हें कैसे लग रहा है कि उन्हें चोर माना जा रहा है। उनके तेवर देख कर सबको सांप सूंघ गया। गर्मागर्मी तो बहुत हुई। बस यूं समझें कि उनके मुंह से यह नहीं निकला कि चोर की दाढ़ी में तिनका क्यूं नजर आ रहा है। पार्षदों को भी तकलीफ हुई कि इस कदम से उन पर अप्रत्क्ष रूप से फर्जी हाजरी खाने का आरोप आ रहा है, इस कारण वे भी बौखलाए, मगर मीणा ने साफ कर दिया कि उनका कोई भी हित नहीं है, उन्हें तो केवल शहर की बहबूदी का ख्याल है और इसमें पार्षदों को भी सहयोग करना चाहिए।
अपुन ने मीणा के निगम में लगते ही कह दिया था कि वे एक सुलझे हुए और व्यावहारिक प्रशासनिक अधिकारी हैं। कहां ठंडा होना है और कहां गर्म, उन्हें सब कुछ पता है। उन्हें अजमेर की नब्ज भी अच्छी तरह पता है। उम्मीद है कि वे ठीक वैसे ही कामयाब होंगे, जैसे किसी जमाने में उन्हीं के नाम राशि सी. आर. चौधरी कामयाब हुए थे। और सबसे बड़ी बात ये है कि जब निगम महापौर कमल बाकोलिया के आग्रह पर निगम में मीणा को तैनात किया है तो दोनों में पटनी ही है। ताजा प्रकरण में भी वे खुल कर मीणा के साथ दिखाई दिए। ऐसा लगता है कि मीणा के प्रयासों से शहर के हालात तो सुधरेंगे ही, निगम का ढ़ांचा भी सुधरेगा और किसी अधिकारी का मुंह काला करने या थप्पड़ मारने की जुर्रत कोई नहीं कर पाएगा।
जाते-जाते कैसे तय कर गए पत्रकारों के प्लॉट?
लो जाते-जाते जिला कलेक्टर व नगर सुधार न्यास अध्यक्ष राजेश यादव पत्रकारों की अरसा पुरानी मांग पूरी कर के उस पर ठप्पा लगा गए। बताया जाता है कि तकरीबन 55 पत्रकारों को प्लाट देना तय कर लिया गया है, अब केवल लॉटरी निकालना बाकी है।
यूं तो पत्रकारों में इस बात को लेकर बड़ी खुशी है कि आखिर न्यास प्रशासन ने उनकी सुध तो ली, लेकिन इसी के साथ इस सवाल पर भी कानाफूसी हो रही है कि जाते-जाते आखिरी दिन मेहरबानी करने का राज क्या है? जिन हालात में उनका सीएमओ में तबादला हुआ है, कुछ लोग इसको इससे जोड़ कर देख रहे हैं।
सर्वविदित ही है कि इन दिनों न्यास के भ्रष्टाचार को लेकर हंगामा मचा हुआ है। विपक्षी दल भाजपा तो फिर भी देर से जागा, मगर सत्तारूढ़ कांग्रेस ने ही आसमान सिर पर उठा लिया। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के जांच के आदेश दिए जाने के बाद जा कर कांग्रेसी चुप हुए हैं। ऐसा माना जा रहा है कि भले ही कांग्रसियों ने न्यास सचिव अश्फाक हुसैन और विशेषाधिकारी अनुराग भार्गव पर हमला किया, मगर उसकी आंच राजेश यादव पर भी पहुंच रही थी। स्वाभाविक सी बात है कि अकेले न्यास सचिव अपने स्तर पर थोड़े ही घपला कर सकते हैं। कदाचित यादव का कोई लेना-देना न हो तो भी न्यास के पदेन अध्यक्ष के नाते उनकी भी जिम्मेदारी तो बनती ही है। ईमानदारी से जांच हुई तो सब कुछ सामने आ जाएगा। बताते हैं कि सरकार ने इस प्रकरण को गंभीर माना है। फौरी तौर पर भले ही यादव को सीएमओ में लगाए जाने को उनका कद बढऩे के रूप में माना जा सकता है, लेकिन बताते हैं कि उन्हें काफी सोच-समझ कर ही वहां लगाया गया है। सीएमओ में पहले से सीनियर आईएएस बैठे हैं। ऐसे में जूनियर आईएएस की हालत एक बड़े बाबू से ज्यादा नहीं होती।
बहरहाल, माना ये जा रहा है कि यादव ने जाते-जाते पत्रकारों को खुश इसलिए किया ताकि वे उनके जाने के बाद पीछे से गड़े मुर्दे ज्यादा न उखाड़ें। इसकी दूसरी वजह ये मानी जाती है कि पहले वे इस कारण रुचि नहीं ले रहे थे, क्योंकि पत्रकारों के बीच प्लॉटों को लेकर विवाद चल रहा था। उनकी सोच ये रही होगी कि पत्रकारों के पचड़े में कौन पड़े। लेकिन जाते-जाते उन्हें लगा कि एक तो पत्रकारों को खुश कर दें और दूसरा ये कि अगर विवाद हुआ भी तो नया कलेक्टर निपटेगा।