रविवार, 26 जून 2011

मुख्यमंत्री की बची न बची, मेयर की प्रतिष्ठा तो मिट्टी में मिल गई



दीप दर्शन हाउसिंग सोसायटी की ओर से बसाई गई माधव नगर कॉलोनी में 59 लोगों के प्लॉट का आवंटन रद्द करने और 10 दुकानों को सीज करने की कार्यवाही जिस प्रकार ताबड़तोड़ की गई, उससे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की प्रतिष्ठा बची या नहीं, पता नहीं, मगर अजमेर के मेयर कमल बाकोलिया की तो मिट्टी में ही मिल गई। यहां उल्लेखनीय है कि दीप दर्शन सोसायटी के कथित जमीन घोटाले में गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत का नाम जोड़े जाने के बाद जैसे ही गहलोत की कुर्सी पर आंच आने लगी, उन्होंने पहले पंचशील कॉलोनी में दीप दर्शन सोसायटी के नाम नगर सुधार न्यास की ओर से आवंटित 63 बीघा जमीन के आवंटन व लीज को रद्द कर दिया गया। इसके बाद इसी सोसायटी की माधव नगर कॉलोनी को भी लपेटे में ले लिया गया।
कानून के जानकार ही नहीं बल्कि आम आदमी भी समझ रहा है कि गहलोत ने अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए सारे नियम-कायदे ताक पर रख कर कार्यवाही कर दी और कोर्ट से आवंटियों को राहत मिलने की पूरी उम्मीद है, लेकिन इससे अजमेर नगर निगम के मेयर कमल बाकोलिया की प्रतिष्ठा के तो पलीता लग ही गया। माधव नगर में बाकोलिया का भी मकान है। अफसोसनाक पहलु ये है कि जमीन पर कब्जा लेने को नगर निगम के ही सीईओ सी. आर. मीणा दल-बल के साथ गए और निगम स्थित चैंबर में बैठे बाकोलिया को हवा तक नहीं लगी। जाहिर है ऊपर से इशारा था कि उन्हें पता नहीं लगना चाहिए, वरना वे रोड़ा अटका सकते हैं। सरकार के इस रवैये से जहां यह साफ हो गया है कि उनकी प्राथमिकता गहलोत की प्रतिष्ठा बचाना था, मेयर की जाए तो जाए, वहीं यह भी स्पष्ट हो गया है कि मेयर की सरकार में कितनी पहुंच है। सरकार में छोडिय़े, स्थानीय स्तर पर भी उनका तंत्र कितना कमजोर है, इसकी भी पोल पट्टी खुल गई। वे निगम में ही बैठे थे और मीणा सहित निगम के दल के मौके पर रवाना हो कर कार्यवाही करने तक उन्हें हवा तक नहीं लगी। साफ है कि वे मेयर बनने के बाद उसकी कुर्सी पर बैठ कर इतराना भर सीख पाए हैं, मेयर वाली प्रशासनिक योग्यता और रुतबा हासिल नहीं कर पाए हैं। कुछ लोगों का मानना है कि सरकार चाहती तो बाकोलिया को यह कह कर पहले विश्वास में ले सकती थी कि कार्यवाही करना उनकी मजबूरी है, मगर उसने बाकोलिया को इस योग्य भी नहीं समझा। रहा मीणा का तो उन्हें तो सरकार का हुक्म बजाना था, तनख्वाह तो वही देती है। हालांकि बाकोलिया ने मीणा को पत्र लिख कर उन्हें अंधेरे में रखने का कारण पूछा है, मगर जिस अधिकारी पर सरकार का हाथ हो, उसके लिए ऐसे पत्र के कोई मायने ही नहीं हैं।
ताजा घटनाक्रम से यह भी साबित हो गया है कि बाकोलिया को अभी तक राजनीतिक समझ नहीं आ पाई है। वे चाहते तो यह कह कर अपनी प्रतिष्ठा बचा सकते थे कि उन्हें सरकारी आदेश की जानकारी थी। भले ही उन्होंने कायदे-कानून के मुताबिक जमीन ले कर मकान बनाया था, लेकिन चूंकि सरकार के आदेश हैं, इस कारण उन्होंने कार्यवाही होने दी। रहा सवाल अपने मकान का, उसे कानूनी तरीके से ही वैध करवा लेंगे। मगर न तो उनमें खुद की इतनी सूझबूझ है और न ही उनके सलाहकारों में। उलटे अंधेरे में रख कर कार्यवाही करने पर ऐतराज जता कर उन्होंने अपनी प्रतिष्ठा ही मिट्टी में मिला ली। इतना ही नहीं इस मामले को मुद्दा बनाने की मजबूरी के चलते यह भी पोल खुलवा ली कि न तो पूरे कांग्रेसी पार्षद उनके साथ हैं और न ही कांग्रेस संगठन। बाकोलिया के समर्थक कांग्रेसियों ने तो मीणा के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित कर दिया, जबकि मूल धड़ा अलग ही बना रहा। हालत ये हो गई कि उनके चैंबर में ही कांग्रेसी आपस में भिड़ लिए।
इस मामले का रोचक पहलु ये है कि कांग्रेस संगठन का मूल धड़ा इस कारण भी दूर खड़ा रहा क्यों कि उसके प्रमुख सिपहसालार डॉ. जसराज जयपाल व डॉ. सुरेश गर्ग ने ही तो जमीन घोटाले की शिकायत की थी। अब जब कि सरकार ने कार्यवाही कर दी है तो वे उस पर सवाल कैसे खड़ा कर सकते थे, भले ही उसमें कांग्रेसी मेयर का भी मकान हो।
वैसे एक बात तो है बाकोलिया के इस तर्क में जरूर दम है कि इसी प्रकार यदि सरकार और प्रशासन को ही सब कुछ अपने स्तर पर करने का अधिकार है तो लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए निगम मेयर व बोर्ड का कोई मतलब ही नहीं है। इससे तो बेहतर है कि निगम में प्रशासक ही नियुक्त कर दिया जाए। लेकिन दूसरे अर्थ में यह सियापा मात्र ही है, क्योंकि इससे मेयर की बहुत किरकिरी हुई है। काश वे अजमेर और जयपुर में अपनी पकड़ बनाते तो कम से कम ये दिन तो नहीं देखने पड़ते। यहां भी चंद लोगों से घिरे रहने और जयपुर में लिंक नहीं बनाने का नतीजा है अजमेर के प्रथम नागरिक को जीवन का सबसे बुरा दिन देखना पड़ गया।
रहा सवाल वैभव गहलोत के बहाने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को घेरने का तो ताजा कार्यवाही के बाद मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे व वैभव गहलोत के नाम वाले विवादित परचे को विधानसभा के पटल पर रखने वाले अजमेर उत्तर के भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी अब चुप हैं। जैसे ही माधव नगर की जमीन सरकार ने हथियाई, ये खबरें छन-छन कर सामने आ रही हैं कि जमीन का आवंटन भाजपा राज में ही हुआ था। हालांकि तत्कालीन जिला कलेक्टर करणी सिंह ने ऐतराज किया, मगर सरकार ने उसे नजरअंदाज कर आवंटन करने के आदेश दे दिए। मजे की बात ये है कि उस वक्त नगर परिषद (तब निगम नहीं बनी थी) पर भाजपा का कब्जा था। बताते हैं कि नियमों की अनदेखी कर जमीन आवंटन करने की एवज में कुछ लोग उपकृत भी हुए थे। उन्हीं में एक ने अपना प्लॉट बाकोलिया को बेच दिया था।
राजनीति से अलग हट कर देखें तो सरकार की यह कार्यवाही उन निर्दोष आवंटियों पर तो कहर ही है, जिन्होंने बाकायदा नियमानुसार जारी जमीन के भूखंड लिए। उनके पास फिलहाल सिर पीटने के अलावा कोई चारा नहीं है।