मंगलवार, 21 जून 2011

दूसरे दिन ही पलट गए संभागीय आयुक्त


संभागीय आयुक्त अतुल शर्मा ने सोमवार को यातायात पुलिस व परिवहन विभाग के अधिकारियों की संभाग स्तरीय बैठक में अवैध वाहनों की धरपकड़, गलत पार्किंग करने वाले वाहन चालकों व ओवर लोडिंग गतिविधियों पर प्रभावी कार्यवाही करने के साथ-साथ जैसे ही यह भी कहा कि दुपहिया वाहन में पीछे बैठने वाले व्यक्ति भी हैलमेट पहनें, तो जाहिर तौर पर सभी को अचरज हुआ। विरोध तो होना ही था।
असल बात तो ये है कि अजमेर शहर में व्यस्ततम यातायात की स्थिति और वाहनों की धीमी गति को लेकर पहले से ही दुपहिया वाहन चालक के लिए हेममेट जरूरी कर दिए जाने से लोग खफा हैं, ऐसे में जब उन्होंने पीछे बैठने वाले के लिए भी हेलेमेट पहनने के आदेश दिए तो उसका तुरंत विरोध हुआ। शर्मा भी समझ गए कि बैठक में उनसे गलती से यह निकल गया था कि पीछे बैठने वाले को भी हेलमेट पहनना होगा, जबकि अभी तक यातायात महकमे ने इस प्रकार का नियम अजमेर पर लागू नहीं किया है, दूसरे ही दिन विरोध के मद्देनजर अपना बयान वापस ले लिया। वे जानते थे कि इसको लेकर हंगामा हो जाएगा। मजे की बात ये रही कि विपक्षी दल भाजपा तो चुप रहा, जबकि सत्तारूढ़ दल कांग्रेस ने ही विरोध दर्ज करवा दिया। ऐसे में उन्होंने दूसरे ही दिन सूचना व जनसंपर्क कार्यालय के माध्यम से यह खबर जारी करवाई कि अजमेर संभाग के शहरी क्षेत्रों में केवल दुपहिया वाहन चालक के लिए हेलमेट पहनना जरूरी है, पीछे बैैठने वाले व्यक्ति के लिए हेलमेट पहनना जरूरी नहीं है। खबर में यह भी बताया गया है कि संभागीय आयुक्त कार्यालय में मंगलवार को प्राप्त यातायात विभाग की अधिसूचना की प्रति के आधार पर यह स्पष्ट किया जा रहा है कि केवल जयपुर में दुपहिया वाहन चालक के साथ-साथ पीछे बैठने वाले व्यक्ति के लिए भी हेलमेट पहनना जरूरी किया गया है।
सवाल ये उठता है कि जब यातायात विभाग की ओर से पीछे बैठने वाले के लिए हेलमेट पहनना जरूरी नहीं किया गया था तो उन्होंने किस आधार पर नया आदेश जारी कर दिया? इसने जिम्मेदार अधिकारी का बिना किसी आधार पर नया नियम लागू करने की बात कहना सचमुच अफसोसनाक है। यह भी साफ है कि अपनी गलती का अहसास होते ही उन्होंने यातायात विभाग से अधिसूचना की प्रति मंगवाई और उसके आधार पर अपने आदेश में संशोधन कर दिया।
एक सवाल ये भी है कि चलो संभागीय आयुक्त से तो चलो भूल हो गई, लेकिन बैठक में यातायात विभाग के नियम-कायदे जानने वाले क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी सत्येन्द्र नामा, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक बी.एस.मीना, जिला परिवहन अधिकारी अजमेर सुधीर बंसल सहित डीडवाना के बी.एल.मीना, नागौर के ओमप्रकाश मारू, ब्यावर के रमेश पांडे, टोंक के जे.पी.बैरवा, यातायात निरीक्षक अनवर खान व सुरेन्द्र सिंह(मेड़ता) तथा भीलवाड़ा जिले के यातायात पुलिस के अधिकारियों व उपनिदेशक श्रीमती वीना वर्मा भी मौजूद थे, उन्होंने क्यों नहीं उस वक्त उन्हें यह जानकारी दी कि वे गलत बात कह रहे हैं? जाहिर है, उनकी हालत तो ये थी कि बिल्ली के गले में घंटी बांधे कौन?
खैर, अब आइये उनके एक और बयान पर नजर डालें, जिसमें उन्होंने कहा कि सड़क के किनारों पर हैलमेट बेचने वाले दुकानदारों को भी पाबन्द करना जरूरी है कि वे निर्धारित मानदंडों के अनुसार बनाये गये हैलमेट ही बेचें। सवाल ये उठता है कि संभागीय आयुक्त को अचानक अब जा कर यह बात कैसे सूझी? अजमेर में हेलमेट लागू किए अरसा हो गया है और सड़क किनारे हेलमेट बेचने वाले निर्धारित मानदंडों वाले हेलमेट की बजाय घटिया हेलमेट बेचते रहे हैं और अब तक तो अधिसंख्य दुपहिया वाहन चालक उनसे वे हेलमेट खरीद भी चुके हैं। ऐसे में अब नए आदेश देने के क्या मायने हैं? सवाल ये भी है कि क्या वाकई प्रशासन को उन दुकानदारों के खिलाफ कार्यवाही का अधिकार है? और यह मान भी लें कि प्रशासन को अधिकार है व संभागीय आयुक्त को अब जा कर ख्याल आया है, तो यह भी नाई नाई बाल कितने, यजमान अभी सामने आ जाएंगे। देखते हैं क्या वाकई उन दुकानदारों के खिलाफ कार्यवाही होती है?