सोमवार, 27 दिसंबर 2021

कासलीवाल की खबर ने बनाया इतिहास

सरकारी च्यवनप्राश को डकारने से वंचित हो गए सफेदपोश


खबर यदि दमदार हो तो वह अपना असर छोड़ती ही है। सरकार को भी उसके आगे नतमस्तक होना पड़ता है। इसका एक दिलचस्प वाकया आपकी नजर पेश है। मामला हालांकि थोड़ा पुराना है, मगर चूंकि वह इतिहास में अपनी जबरदस्त उपस्थिति दर्ज करवा गया, लिहाजा आपकी जानकारी में भी होना ही चाहिए। वाकया इस प्रकार है। प्रदेश के गरीबों को च्यवनप्राश व अन्य औषधियां वितरित करने के लिए अजमेर में स्थित आयुर्वेद निदेशालय के अधीन रसायनशाला में इनका निर्माण किया जाता था। यहां से प्रदेश के तीन हजार से अधिक औषधालयों को सप्लाई की व्यवस्था की गई थी। विधानसभा व सचिवालय स्थित औषधालयों को भी इसकी सप्लाई की जाने लगी। हर साल शीतकालीन बजट सत्र से पहले ही इन औषधालयों के मार्फत विधायकों व नौकरशाहों को भी च्यवनप्राश वितरित किया जाने लगा। असल में सभी औषधालयों के लिए तब करीब साढे तीन, चार हजार किलो च्यवनप्राश बनाया जाता था लेकिन इसमें से ढाई हजार किलो तो अकेले विधानसभा व सचिवालय के दो औषधालयों में ही सप्लाई होने लगा। बंदरबांट करके एक एक किलो के  सफेदपोशों व आला अफसरों को दिया जाने लगा। यह जानकारी जैसे ही दैनिक भास्कर के खोजी पत्रकार श्री सुरेश कासलीवाल को मिली तो उन्होंने इस खबर को प्रमुखता से प्रकाशित कर दिया। इस खबर को तत्कालीन आयुर्वेद मंत्री इंदिरा मायाराम ने संज्ञान में लिया और मामले की गहराई से जांच करवाई। इसमें च्यवनप्राश का अधिकतर हिस्सा सफेदपोशों में बंट जाने व जरूरतमंदों के वंचित रहने की पुष्टि हो गई। इस पर उनके निर्देश पर विभाग के शासन सचिव ने आयुर्वेद निदेशक को जनवरी 2002 में पत्र लिख दिया। इसमें लिखा था कि चूंकि पिछले तीन साल के रिकार्ड से यह ज्ञात हुआ है कि रसायनशाला में जो च्यवनप्राश बन रहा है वह समस्त औषधालयों के जरूरतमन्द रोगियों को नहीं मिल पा है। अतः इसका निर्माण जारी रखने का कोई औचित्य नहीं है। अतः च्यवनप्राश का निर्माण तुरंत प्रभाव से बंद कर दिया जाए। अर्थात न रहेगा बांस न रहेगी बांसुरी। इस प्रकार सरकारी च्यवनप्राश को डकारने से वंचित हो गए सफेदपोश। जहां तक मुझे याद है, खबर का हेडिंग था, गरीबों का च्यवनप्राश खा जाते है सफेदपोश। दरअसल सरकारी औषधालयों में बहुत सी ओषधियाँ खाने में बहुत कड़वी होती थी, सरकार ने यह सोचकर च्यवनप्राश शुरू करवाया था कि गरीब लोग च्यवनप्राश के साथ उस ओषधि को मिलाकर ले सके। इसके अलावा जो शरीर से बहुत कमजोर हो उसे दिया जा सके। लेकिन गरीबों की जगह तीन चौथाई हिस्सा सफेदपोश व अफसरों की ताकत और उन्हें हष्ट पुष्ट बनाने के काम में आने लग गया था।

एक दिलचस्प बात ये हुई कि जैसे ही भास्कर में च्यवनप्राश के निर्माण पर रोक की खबर लगी तो एक अन्य समाचार ने यह प्रकाशित कर दिया कि आयुर्वेद रसायनशाला में च्यवनप्राश के निर्माण पर कोई रोक नहीं लगी है। बल्कि इसका निर्माण बदस्तूर जारी है। इस पर सुबह ही तत्कालीन संपादक श्री अनिल लोढा ने श्री कासलीवाल को फोन कर बताया कि आज तो अन्य समाचार पत्र ने आपकी खबर की धुलाई कर दी है। तब उन्होंने संपादक जी से बस इतना कहा कि सर भास्कर कल भी तो छपेगा। चूंकि कासलीवाल ने अपने भरोसेमंद सूत्रों के आधार पर ठोक बजा कर ही खबर बनाई थी इस कारण वे निष्चिंत थे। लेकिन मन में धुकधकि मच गई, उन्हें अपने सोर्स से वो पत्र जो लेना था। उनसे बातचीत हुई और सुबह रसायनशाला खुलते ही वहां पहुँच गए। जहां सोर्स ने उन पर जताए भरोसे को कायम रखते हुए चाय की थड़ी पर ही आदेश की कॉपी थमा दी। तब श्री कासलीवाल भास्कर आफिस में रोजाना सुबह होने वाली मीटिंग में पहुँचे ओर संपादक श्री अनिल लोढ़ा जी को उस आदेश की कॉपी सौपी। अगले दिन ही भास्कर के अंतिम पेज पर आयुर्वेद विभाग के उप शासन सचिव का वह पत्र ही, यह है सच्चाई, शीर्षक से प्रकाशित कर दिया जिसमें आयुर्वेद निदेशक को च्यवनप्राश के निर्माण पर रोक का आदेश दिया गया था। है न खबर के असर का दिलचस्प वाकया।  यह भी रोचक बात तब से लेकर आज तक राजकीय आयुर्वेद रसायनशाला में च्यवनप्राश का निर्माण वापस शुरू ही नहीं हो पाया। 

श्री कासलीवाल वर्तमान में दैनिक भास्कर अजमेर में ही अजमेर जिले के सेटेलाइट इंचार्ज हैं। उन्होंने इस प्रकार की अनेक स्टोरीज कवर की हैं, जिनके दूरगामी प्रभाव हुए हैं। खबरों के जरिए अनेक ऐसी जानकारियों से उन्होंने जनता को रूबरू करवाया है, जिसके बारे में किसी को पता नहीं लग पाया था। उनमें से एक खबर ये भी थी कि बाल विवाह पर रोक कानून बनाने वाले हरविलास शारदा खुद ही शिकार थे बाल विवाह के।

इसके अतिरिक्त एक बहुत ब्रेकिंग स्टोरी की, जिसमें तत्कालीन राष्ट्रपति श्री अब्दुल कलाम लोकार्पण समारोह तक में नहीं गए। हुआ यह था जब श्री सुरेश कासलीवाल दैनिक भास्कर के ब्यावर ब्यूरो चीफ थे। तब टाटगढ़ में राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जी का वहां पहाड़ी पर स्थित प्रज्ञा शिखर के लोकार्पण समारोह में आने का कार्यक्रम तय हुआ। उनके आने की तैयारियां भी शुरू हो गयी। इस बीच ही श्री सुरेश कासलीवाल ने यह खबर ब्रेक की कि राष्ट्रपति जहां लोकार्पण करने वाले हैं वहा जमीन ही विवादित है और कोर्ट में केस विचाराधीन है, ऐसे में राष्ट्रपति के हाथों लोकार्पण पर ही सवाल खड़े हुए। खबर की गूंज इतनी बड़ी थी कि सुरक्षा एजेंसियों के जरिये राष्ट्रपति भवन तक जा पहुचीं। विवाद से जुड़े कागजात भी तलब कर लिए गए। प्रशासन के भी हाथ पैर फूल गए। खबर का इतना जबरदस्त असर हुआ कि राष्ट्रपति श्री अब्दुल कलाम तय दिन टाटगढ़ तो आये लेकिन पहाड़ी पर स्थित प्रज्ञा शिखर के लोकार्पण कार्यक्रम में नहीं गए बल्कि नीचे ही छोटे छोटे बच्चों से मिल कर ही वापस चले गए।

वस्तुतः कासलीवाल जी की दैनिक न्याय अखबार के समय से ही मुझसे काफी नजदीकी रही है। इसी कारण उनकी पत्रकारिता की यात्रा के बारे में मेरी गहन जानकारी है। इस कारण मैं पूरी जिम्मदारी व यकीन के साथ कह सकता हूं कि 

श्री कासलीवाल अजमेर के उन चंद पत्रकारों में शामिल हैं, जिन्होंने पत्रकारिता महज नौकरी के लिए नहीं की, बल्कि पूरे जुनून के साथ गहरे में डूब कर की। ऐसे ही जुनूनियों के लिए कहा गया है कि जिन खोजा तिन पाइयां गहरे पानी पैठ।


स्वामी अनादि सरस्वती चिति संधान योग केन्द्र की प्रमुख


स्वामी अनादि सरस्वती को चिति संधान योग केंद्र के संस्थापक रहे स्वामी धर्म प्रेमानंद सरस्वती के ब्रह्मलीन होने के पश्चात उत्तराधिकारी घोषित किया गया है। स्वामी अनादि अब चिति संधान योग केंद्र का प्रमुख हो गई हैं। अजमेर के लोहागल रोड स्थित अनादि आश्रम में आयोजित श्रद्धांजलि कार्यक्रम में स्वामी अनादि को पगड़ी पहनाने की रस्म हरिद्वार स्थित परमार्थ आश्रम के प्रमुख और पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वामी चिन्मयानंद महाराज ने अदा की। उन्होंने चादर ओढ़ाई और ब्रह्मा मंदिर के महंत प्रघानपुरी जी ने पगड़ी पहनाई। इस अवसर पर स्वामी चिन्मयानंद ने कहा कि अजमेर में ब्रह्माजी की नगरी पुष्कर होने के कारण ही स्वामी धर्म प्रेमानंद ने चिति संधान योग संस्थान की स्थापना अजमेर में की थी। इस मौके पर संन्यास आश्रम के स्वामी शिव ज्योतिषानंद, श्याम सुंदर शरण देवाचार्य आदि संत मौजूद थे।

स्वामी अनादि सरस्वतीे भावपूर्ण संबोधन में ब्रह्मलीन स्वामी धर्मप्रेमानंद जी के पावन श्रीचरणों में अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करते हुये संपूर्ण उत्तरदायित्व का वरण करने का प्रण लिया और चिति संधान योग की परंपरा और ध्येय को सतत आगे बढ़ाने के प्रयत्न में प्रण-प्राण से जुटे रहने का संकल्प लिया।

उनके एक प्रषंसक वीरेन्द्र मिश्र ने फेसबुक पर उनके व्यक्तित्व पर अनूठा षब्द चित्र खींचा है, वह इस प्रकार हैः-स्वामी श्री अनादि सरस्वती ने स्नातकोत्तर तक षिक्षा अर्जित की है। विगत पच्चीस वर्ष से भी अधिक समय में देश-विदेश में अनेक यात्रायें कर जनसभाएं की हैं और भारतीय मूल्यों और भारतीयता की सनातन परम्पराओं की अलख जगाई है।

पौराणिक प्रसंगों, उद्धरणों और कथा वस्तुओं को आधुनिकता के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करने की उनकी विशिष्ट और अनुपम शैली है, जो आधुनिक शिक्षा प्राप्त व्यक्तियों विशेषकर युवाओं और तरुण वर्ग के मन-मस्तिष्क पर एक विशेष प्रभाव उत्पन्न करती है। स्वामी अनादि सरस्वती प्रकृति संवर्धन से जुड़े अनेकं प्रकल्पों पर कार्य करती हैं जिनमें वर्षा-जल-संरक्षण प्रमुख है। गौरक्षा प्रकल्प, बालकों-तरुणों के उत्तम पोषण और स्वास्थ्य से जुड़े प्रकल्प, युवाओं में व्याप्त नैराश्य और अवसाद की स्थिति को औषधियों और परामर्श द्वारा संपूर्ण रूप से दूर कर उन्हें कर्म और कर्तव्य का मार्ग दर्शाने की महती प्रयोजनाओं पर उनके कार्य उल्लेखनीय हैं। 

अनेकं आध्यात्मिक, धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय गतिविधियों से जुड़े कार्यक्रमों को अबाध गति प्रदान करने के अपने व्यस्ततम जीवन में स्वामी अनादि सरस्वती जी की दो पुस्तकें दैवी संपदा और अमृत संदेश प्रकाशनाधीन हैं।

यहां यह बताना प्रासंगिक ही होगा कि कि एक प्रखर साध्वी के रूप में कम उम्र में ही खासी लोकप्रिय हो जाने के कारण ही भाजपा उन्हें पिछले विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर सीट से चुनाव लडाने पर विचार कर रही थी। कदाचित उन्होंने ही पर्याप्त रुचि नहीं ली।


दरगाह नाजिम अष्फाक हुसैन बहुत कुछ करना चाहते थे


अमूमन भले आदमी के साथ कुछ ज्यादा ही नाइंसाफी होती है। कायनात का यह कैसा निजाम है, आज तक समझ में नहीं आया। देवता भी आमतौर पर राक्षसों से परेषान होता है, जबकि देवता राक्षस को कोई तकलीफ नहीं देता। इस अनुभव के साथ मैं आपसे साझा करने जा रहा हूं हाल ही हुए एक वाकये का।

सब जानते हैं कि अजमेर में दरगाह ख्वाजा साहब का प्रबंध संभालने वाली दरगाह कमेटी में नाजिम के तौर पर काम कर रहे जनाब अष्फाक हुसैन ने एक कथित विवाद के चलते इस्तीफा दे दिया। 

हालांकि वे इस विवाद से पहले भी बेहतर तरीके से काम न कर पाने के कारण इस्तीफा दे चुके थे, 

जो कि नामंजूर कर दिया गया। मगर वह विवादित खबर के हो हल्ले के बीच दफ्न हो गया।

खैर, जो कुछ हुआ वह सब को पता है, मगर मैं वह पहलु आपको दिखाना चाहता हूं, जो ठीक से उजागर नहीं हो पाया।

आपको बता दूं कि जब वे आईएएस के रूप में सरकारी नौकरी से निवृत्त होने के बाद एक बार फिर दरगाह नाजिम नियुक्त हुए तो मेरी एक खास मुलाकात हुई। मैंने उनसे पूछा था कि पिछला कार्यकाल तो सबको पता है, इस बार क्या कुछ नया करना चाहेंगे।

उन्होंने बताया कि पिछली बार सरकारी नौकरी में रहते हुए पद संभाला था। इस बार केवल एक ही ख्वाहिष है कि दरगाह षरीफ में कुछ खास किया जाए। यहां के इंतजामात को और बेहतर किया जाए। जायरीन को बेहतरीन सुविधाएं दी जाएं। इसके अतिरिक्त दरगााह षरीफ, ख्वाजा साहब और सूफीज्म पर एक ऐसी वेब साइट बनाई जाए, जिसके जरिए पूरी दुनिया के लोगों को न केवल यहां के बारे में सब कुछ जानने का मौका मिले, अपितु हर आम ओ खास तक सूफीज्म का संदेष दिया जा सके। इतना ही नहीं, इस्लाम पर भी एक पुस्तक बनाने की इच्छा है, ताकि अनेक प्रकार की भ्रांतियां दूर की जा सकें। वेब साइट व लेखन के इस पाकीजा काम में सहयोग करने में मैने उनको वचन दिया। मगर अधिकतर समय कोराना में जाया हो जाने के कारण वह पूरा नहीं कर पाया, जिसका मुझे बेहद अफसोस है।

ऐसा नहीं है कि जनाब अष्फाक हुसैन को पहली बार विपरीत हालात से मुकाबिल होना पडा। इससे पहले भी जब वे अजमेर नगर सुधार न्यास के सचिव थे, तब भी एक वाकया हुआ था, जिस पर मैने तब ऊंट पर बैठे अश्फाक को काट खाया कुत्ता हैडिंग से एक ब्लॉग लिखा था।


आइये, देखते हैं उसमें क्या लिखा था

कहते है जब बुरा वक्त आता है तो ऊंट पर बैठे आदमी को भी कुत्ता काट खाता है। आप कहेंगे कि ऊंट पर बैठे आदमी को कुत्ता कैसे काट सकता है? असल में जब कुछ बुरा वक्त आता है तो ऊंट जमीन पर बैठ जाता है और उसी वक्त मौका देख कर कुत्ता काट खाता है। ऐसा ही कुछ हो रहा है इन दिनों नगर सुधार न्यास के सचिव अश्फाक हुसैन के साथ।

कभी तेज-तर्रार अफसर के रूप में ख्यात रहे अश्फाक हुसैन दोधारी तलवार की धार पर से गुजरने वाले दरगाह नाजिम पद पर बिंदास काम कर चुके हैं। दरगाह दीवान और खादिमों के साथ तालेमल बैठाने के अलावा दुनियाभर से आने वाली तरह-तरह की खोपडिय़ों से मुकाबला करना कोई कठिन काम नहीं है। पिछले कुछ नाजिम तो बाकायदा कुट भी चुके हैं, मगर अश्फाक ने बड़ी चतुराई से इस पद को बखूबी संभाला। किसी के कब्जे में न आने वाले कई तीस मार खाओं को तो उन्होंने ऐसा सीधा किया कि वे आज भी उनके मुरीद हैं।

इन दिनों अश्फाक ज्यादा उखाड़-पछाड़ नहीं करते, शांति से अफसरी कर रहे हैं, मगर वक्त उन्हें चैन से नहीं रहने दिया जा रहा। सबसे ज्यादा परेशानी संभागीय आयुक्त अतुल शर्मा से ट्यूनिंग नहीं हो पाने की वजह से है। और तो और, कांग्रेसी भी उनके पीछे पड़ गए हैं। न्यास की पृथ्वीराज नगर योजना में पात्र आवेदकों को भूखंड नहीं देने 

और भूमि के बदले भूमि का आवंटन न करने को लेकर पहले तो एक अखबार में लंबी-चौड़ी खबर छपवाई और फिर दूसरे ही दिन उनके चैंबर में जा धमके। पहले तो वे कांग्रेसियों के गुस्से को पीते रहे, मगर जैसे ही उनके मुंह से निकला कि वे तो प्रस्ताव बना कर कई बार जयपुर के चक्कर लगा चुके हैं, सरकार आपकी है, वहीं मामले अटके हुए हैं तो कांग्रेसी भिनक गए। उन्होंने इसे अपनी तौहीन माना। सरकार से तो लड़ नहीं सकते, अश्फाक पर ही पिल पड़े। हालात इतने बिगड़ गए कि कांग्रेसियों ने उन्हें इस कुर्सी पर नहीं बैठने देने की चेतावनी तक दे डाली। कांग्रेसियों व उनके बीच टकराव की असल वजह क्या है, अपुन को नहीं पता, मगर लगता है मामला प्रॉपर्टी डीलरों से टकराव का है।

खैर, कांग्रेसियों के हमले पर अपुन को याद आया कि ये वही अश्फाक हुसैन हैं, जिनकी गोपनीय रिपोर्ट के आधार पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के अपेक्षित एक सौ एक नानकरामों में से एक नानकराम को कांग्रेस का टिकट मिला था। गहलोत उनसे इतने खुश हुए कि अपने गृह जिले जोधपुर ले गए। 

बहरहाल ताजा मामला भी पिछले वाकये जैसा है। वे दरगाह षरीफ में कुछ अच्छा करना चाहते थे, मगर कुछ ताकतों को यह नागवार गुजरा। दरगाह कमेटी के सदर से नाइत्तफाकी भी इसकी एक वजह रही। उन्हें ऐसे विवाद में उलझाने की कोषिष की गई, जिस पर किसी को यकीन नहीं हो रहा। 

आखिर में एक तथ्य का जिक्र किए देते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में उनके कांग्रेस के टिकट पर पुश्कर विधानसभा सीट से चुनाव लडने की चर्चा थी। अब देखते हैं कि आगे क्या वे राजनीति की ओर रुख करेंगे या कुछ और।



शुक्रवार, 17 दिसंबर 2021

दोनों विधायकों के आगे फिर उपेक्षित हुए अध्यक्ष


लगातार चार बार जीत कर और अधिक मजबूत हो चुके अजमेर उत्तर के विधायक वासुदेव देवनानी व अजमेर दक्षिण की विधायक श्रीमती अनिता भदेल के सामने एक बार फिर षहर भाजपा संगठन उपेक्षा का षिकार हो गया है। यह साजिषन हुआ या इत्तेफाक से, कुछ पता नहीं, लेकिन अजमेर नगर निगम की मेयर ब्रजलता तो यही आरोप लगा रही हैं कि उनके साथ ऐसा जान बूझकर किया गया।

ज्ञातव्य है कि राज्य सरकार की नीतियों के खिलाफ भाजपा की ओर से हल्ला बोल के लिए कलेक्ट्रेट पर प्रदर्षन किया गया। इस दौरान हुई वारदात ने एक बार फिर जता दिया है कि देवनानी व भदेल ने जाने-अनजाने षहर जिला भाजपा अध्यक्ष पद पर बैठे डॉ प्रियषील हाडा की उपेक्षा कर दी, जिसका षिकार उनकी धर्मपत्नी श्रीमती ब्रजलता हाडा भी हुईं।

सवाल ये उठता है कि जब यह पहले से तय था कि प्रदर्शन के बाद कलेक्टर को ज्ञापन देने के लिए सभी विधायक, शहर व देहात के जिलाध्यक्ष सहित महापौर को जाना था तो फिर देवनानी व भदेल षहर जिला अध्यक्ष व महापौर को साथ लिए बिना ही कलेक्टर के चैंबर में कैसे चले गए। उन्हें यह तो ख्याल रखना ही चाहिए था कि हाडा दंपति को भी साथ रखते। यूं नेताओं का आगे पीछे हो जाना कोई खास बात नहीं, मगर असल में विवाद इस कारण उत्पन्न हो गया कि विधायक तो अंदर पहुंच गए, जबकि हाडा दंपती को पुलिस वालों ने रोक दिया। स्वाभाविक रूप से उन्हें अपमान महसूस हुआ होगा। सच में देखा जाए तो यह चूक पुलिस के स्तर पर हुई। प्रष्न उठता है कि क्या वहां तैनात पुलिस कर्मी हाडा दंपति को नहीं जानते थे।   

इस घटना का गंभीर पहलु ये है कि महापौर साफ तौर पर आरोप लगा रही हैं कि पुलिसकर्मियों ने उन्हें कहा कि दोनों विधायक मना करके गए हैं कि किसी को अंदर नहीं आने दें। दूसरी ओर देवनानी ने सफाई दी कि अगर हमने यदि मना किया होता तो वह कैसे आते। हाड़ा दंपती पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं। अगर वाकई यह बयान सही है तो यह और भी गंभीर बात उजागर हो गई कि हाडा दंपति व विधायकों के बीच पूर्वाग्रह हैं। 

महापौर हाडा की आपत्ति बिलकुल जायज है कि वे अजमेर षहर की प्रथम नागरिक हैं और उनके पतिदेव षहर जिलाध्यक्ष, जिनके नेतृत्व में ज्ञापन दिया जाना था, तो विधायक पहले कैसे चले गए।

घटना का रोचक पहलु ये रहा कि विधायक व अन्य पदाधिकारी जिला कलेक्टर के पास पहुंच गए, जबकि ज्ञापन हाडा के पास था और वे बिना ज्ञापन के वहां बैठे रहे। तकरीबन 15 मिनट बाद जब हाडा दंपति आए तभी जा कर औपचारिक तौर पर ज्ञापन दिया गया। चलो, विधायक पहले अंदर चले गए लेकिन महापौर को कम से कम इस पर संतुस्ट हो जाना चाहिए था कि उनके पतिदेव के आने पर ही ज्ञापन देने की रस्म अदा हुईं मगर वे गुस्से में एक कदम और आगे निकल गईं, जिससे इस वीडियो के आरंभ में गई पंक्तियों पर ठप्पा लग गया कि विधायकों के आगे संगठन कमतर रहा है। 

ब््रजलता हाडा ने कहा कि सारी व्यवस्था उन्होंने की है। बीते एक सप्ताह से लगातार तैयारियों में जुटे हुए हैं। तय था कि जिलाध्यक्ष के नेतृत्व में सभी विधायक ज्ञापन देंगे, लेकिन यहां क्रेडिट दोनों विधायक ले रहे हैं। यह परिपाटी गलत है। वाकई यही परिपाठी है। इन दोनों विधायकों के आगे संगठन अध्यक्ष सदैव बौना ही रहा है। अध्यक्ष कोई भी रहा हो, मगर कार्यकारिणी में अधिकतर पदाधिकारी इन दोनों विधायकों की पसंद के रहे हैं। रिकार्ड उठा के देख लीजिए कि नगर निगम के चुनावों में सदैव अधिकतर टिकट दोनों विधायक तय करते रहे हैं। असल में उसकी वजह ये कि ग्राउंड पर असल पकड विधायकों की है। वे ही कार्यकर्ताओं के काम करवाते हैं। इस कारण संगठन के अधिकतर पदाधिकारी व कार्यकर्ता विधायकों के व्यक्तिगत फॉलोअर हैं। यह असलियत भाजपा हाईकमान अच्छी तरह से जानता हैं मगर चूंकि वह जानता है कि पकड तो विधायकों की ही है इस कारण वह स्थिति को नजरअंदाज कर जाता है।

हाड़ा ने इस मामले को लेकर प्रदेश नेतृत्व को शिकायत भेजे जाने की बात कही है। हालांकि होना जाना कुछ नहीं है, मगर इस वारदात से यह साफ हो चुका है कि अध्यक्ष संगठन के मुखिया भले ही हों मगर चलती विधायकों की ही है।


मंगलवार, 14 दिसंबर 2021

ओवैसी की नजर अजमेर पर भी


राजनीतिक गलियारे से यह खबर छन कर आ रही है कि जिस प्रकार ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के राष्ट्रीय अध्यक्ष असदुद्दीन ओवेसी उत्तर प्रदेष विधानसभा चुनाव में दखल देने के बाद दो साल बाद राजस्थान में होने वाले विधानसभा चुनाव का रुख करेंगे। बताया जाता है कि उन्होंने अपने संपर्कों के माध्यम से राज्य की मुस्लिम बहुल सीटों पर नजर रखना आरंभ कर दिया है। अजमेर जिले की बात करें तो पुस्कर के अतिरिक्त मसूदा और अजमेर उत्तर में उनकी पार्टी के उम्मीदवार मैदान में उतर सकते हैं। ज्ञातव्य है कि दरगाह ख्वाजा साहब व तीर्थराज पुष्कर की वजह से अजमेर दुनियाभर में अपनी पहचान रखता है। पुष्कर के अतिरिक्त अजमेर उत्तर व मसूदा में मुस्लिम मतदाता अच्छी तादाद में हैं। वैसे यह प्रत्याषियों की व्यक्तिगत छवि और दमखम पर निर्भर करेगा कि उनकी परफोरमेंस कैसी रहेगी क्योंकि फिलवक्त ओवेसी का यहां कोई प्रभाव नहीं है, लेकिन समझा जाता है कि मुस्लिम समुदाय का युवा वर्ग उनकी ओर आकर्षित हो सकता है। अगर ऐसा होता है तो इन सीटों पर चुनाव लडने वाले कांग्रेस उम्मीदवारों को सावचेत रहना होगा। उन्हें जीतने के लिए अतिरिक्त मेहनत करनी होगी व नए जातीय समीकरण तलाषने होंगे। अगर ओवेसी सच में गंभीरता दिखाते हैं तो कांग्रेस पार्टी को भी प्रत्याषियों के चयन में अतिरिक्त सावधानी बरतनी होगी। बेषक चुनाव दो साल बाद हैं, मगर ये दो साल देखते देखते कब गुजर जाएंगे, पता नहीं नहीं चलेगा।


गुरुवार, 9 दिसंबर 2021

न चाहते हुए भी देवनानी ने रलावता को दी भरपूर तवज्जो

 कांग्रेस के वरिश्ठ नेता महेन्द्र सिंह रलावता व अजमेर उत्तर के भाजपा विधायक वासुदेव देवनानी के बीच जुबानी जंग जारी है। आए दिन एक दूसरे पर टीका टिप्पणी करते रहते हैं। गुरुवार को भी देवनानी ने पलटवार करते हुए बयान जारी किया है। हालांकि देवनानी का कहना है कि जब रलावता को कांग्रेस व जनता ही गंभीरता से नहीं लेती, तो मैं भी नहीं लेता, लेकिन बयान जितना लंबा और प्रहारक है, वह साबित करता है कि देवनानी ने रलावता को काफी गंभीरता से लिया है और उन्हें भरपूर तवज्जो दे रहे हैं।

बयान हालांकि उनके कार्यालय प्रभारी ने जारी किया है लेकिन चूंकि वह देवनानी की अधिकत ईमेल आईडी के जरिए आया है, इसलिए यही माना जाएगा कि कार्यालय प्रभारी ने देवनानी को बयान का मजमून दिखा कर ही मेल किया होगा। ऐसा भी संभव है कि देवनानी ने कार्यालय प्रभारी को प्रतिक्रिया देने को कहा हो और उन जनाब ने अति उत्साह में लंबा चौडा बयान टाइप कर दिया हो।

बयान में रलावता को हवाई बातें करने वाले व बडबोले नेता की संज्ञा दी गई है। उन्होंने रलावता के बयान के प्रत्युत्तर में कहा है कि जहां तक मेरी याददाश्त कमजोर होने और च्यवनप्राश खाने की बात है, वह तो पिछले चार चुनाव में जनता देख चुकी है और अब भी देख रही है। दरअसल, याददाश्त रलावता की कमजोर है और उन्हें च्यवनप्राश खाना चाहिए। जनता उन्हें विधानसभा चुनाव में नकार चुकी है। देवनानी ने कहा कि रलावता द्वारा उनके लिए च्यवनप्राश भेजने संबंधी दिया गया बयान रलावता की घटिया सोच और ओछी मानसिकता का द्योतक है। चलो इस आरोप प्रत्यारोप से यह तो पता लगा कि याददाष्त बढाने के लिए च्यवनप्राथ खाना चाहिए। वैसे एक बात है, देवनानी अमूमन निम्न स्तरीय बयान देने के आदी नहीं हैं, लेकिन ऐसा प्रतीता होता है कि उन्होंने रलावता के बयान को कुछ ज्यादा ही गंभीरता से ले लिया है।

देवनानी ने एक बात तो पते की की है। वो यह कि सारे विधायक सरकार की ओर से दिए जाने वाले धन से ही

विकास कार्य करवाते हैं न कि अपनी जेब से। कांग्रेसी विधायक भी। उनकी बात में दम है, मगर जब कुछ विधायक विकास कार्यों का षुभारंभ इस तरह से करते और उसका प्रचार करते हैं मानो अपनी जेब से करवा रहे हों तो जनता में यह जुमला सुना जा सकता है कि कौन सा अपनी जेब से करवा रहे हैं। सिक्के का दूसरा पहलु ये है कि यदि षुभारंभ की खबरें जारी नहीं करेंगे तो जनता को पता कैसे लगेगा कि उनके विधायक ने कितने काम करवाए हैं, भले ही वे विधायक फंड से अर्थात सरकारी खजाने से हो रहे हैं।

बात ही बात में देवनानी केन्द्र सरकार के योगदान को बयां करने से नहीं चूके कि जल वितरण व्यवस्था सुधारने और मेडिकल कॉलेज सहित शहरभर में सैकड़ों विकास कार्य स्मार्टसिटी योजना के तहत कराए जा रहे हैं, जिसके लिए अरबों रूपए केंद्र सरकार दे रही है। 

उन्होंने कहा कि दरअसल रलावता आए दिन इस तरह के बयान चर्चाओं में बने रहने के लिए देते हैं। इसमें कोई दोराय नहीं कि नेता लोग चर्चा में रहने के लिए ही बयान दिया करते हैं। मगर इस सच से भी इंकार नहीं किया जाना चाहिए कि बयान पर पलट बयान से रलावता और ज्यादा चर्चा में आ जाएंगे।

अपन इस बयानी कुष्ती को इस रूप में लेते हैं। देवनानी का बयान जारी करना इसलिए जायज बनता है कि वे अगले चुनाव में भी मैदान में उतरेंगे, क्योंकि लगातार चार बार जीतने के बाद पांचवीं बार उनका टिकट कटने का कोई कारण नजर नहीं आता। रहा सवाल रलावता का तो उनकी गतिविधियों से यह साफ झलकता है कि वे दुबारा चुनाव लडने की तैयारी कर रहे हैं।  

दोनों महानुभावों के बीच में अपना टांग फंसाना इसलिए गैर वाजिब नहीं माना जाना चाहिए क्योंकि ये तो अपनी ड्यूटी है कि जनता को बयान वार की निश्पत्ति से तो वाकिफ करवाया जाए। वैसे यह अच्छी बात है, वही लोकतंत्र खूब फलता फूलता है, जिसमें चैक एंड बैलेंस होता हो। इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए। ऐसी खींचतान से ही तो विकास का मार्ग प्रषस्त होता है।


शनिवार, 27 नवंबर 2021

बदलते समीकरणों में सुरेष टाक एडीए चेयरमेन के प्रबल दावेदार


हालांकि जब से एडीए चेयरमेन पर नियुक्ति को लेकर चर्चा चल रही है, तब से किषनगढ के निर्दलीय विधायक सुरेष टाक का नाम भी दावेदारों की फेहरिष्त में षामिल है। हालांकि वे बहुत गंभीर नहीं माने जा रहे थे। लेकिन बदले समीकरणों में उनको प्रबल दावेदार माना जा रहा है। असल में राज्य मंत्रीमंडल विस्तार के साथ यह चर्चा आम है कि वे विधायक जिन्होंने मुख्यमंत्री अषोक गहलोत को सरकार बचाने में मदद की, उन्हें मंत्री पद न दे पाने के बाद किसी और तरीके से उपकत करने पर विचार किया जा रहा है। ऐसे विधायकों को या तो संसदीय सचिव बनाया जाएगा या किसी बोर्ड या आयोग की जिम्मेदारी दी जाएगी। इस लिहाज से टाक को अजमेर विकास प्राधिकरण का सदर बनाए जाने की प्रबल संभावना बताई जा रही है। बताते हैं कि खुद उनकी रुचि भी इस नियुक्ति में है, ताकि अपने विधानसभा क्षेत्र की बेहतर सेवा कर सकें। ज्ञातव्य है कि प्राधिकरण के क्षेत्र में किषनगढ भी षामिल है। उसका एक लाभ ये होगा कि इस माध्यम से वे अपने राजनीतिक भविष्य का ताना बुनने में कामयाब हो सकेंगे।

हालांकि अब तक राजस्थान स्टेट सीडृस कारपोरेषन लिमिटेड के पूर्व अध्यक्ष धर्मेन्द्र राठौड को ही नंबर वन दावेदार माना जाता रहा है लेकिन न जाने यह चर्चा कहां से आई है कि एडीए चेयरमेन का पद उनके कद के अनुरूप नहीं है। वे किसी राज्य स्तरीय आयोग या बोर्ड की जिम्मेदारी चाहते हैं इस कारण एडीए में रुचि नहीं ले रहे। 

यदि मुख्यमंत्री चाहेंगे तो टाक को अध्यक्ष बनाने में कोई दिक्कत नहीं आने वाली है लेकिन मुख्यमंत्री के ही करीबी पूर्व विधायक नाथूराम सिनोदिया को यह नागवार गुजरेगा। अगर एडीए के जरिए टाक मजबूत होते हैं तो उसे भला सिनोदिया व अन्य प्रमुख कांग्रेसी नेता कैसे बर्दाष्त कर सकते हैं। 

एक पहलु ये भी है कि टाक को ऑब्लाइज करने से कांग्रेस को आगे चल कर क्या फायदा होने वाला है। वे मूलतः भाजपा मानसिकता के हैं। इस कारण कांग्रेस में तो षामिल होंगे नहीं। अगले चुनाव में भाजपा का टिकट ही लेना चाहेंगे। वैसे भी उनके निजी समर्थकों में भाजपा मानसिकता के मतदाता अधिक हैं। एक बात ये भी कही जा रही है कि ताजा हालात में उन्हें किसी पद से नवाजने की कोई मजबूरी तो है नहीं। सरकार बहुत मजबूत है। यह ठीक है कि उन्होंने कांग्रेस सरकार का साथ दिया मगर उसी के साथ किषनगढ के विकास में सरकार का साथ भी तो ले लिया।

बेषक सरकार बनाते समय उनकी गरज रही मगर उससे कहीं अधिक उनकी गरज रही क्योंकि निर्दलीय रह कर सरकार से अपेक्षित लाभ नहीं उठा सकते थे।

इस मसले का एक पहलु ये भी है कि पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के साथ समझौते के तहत उनकी पसंद के विधायकों को मंत्री पद मिल चुका है। अन्य राजनीतिक व सांगठनिक नियुक्तियों में भी उनकी हिस्सेदारी होगी। जो जिले उनके हिस्से में होंगे उनमें यदि अजमेर भी षामिल हुआ तो टाक के लिए एडीए अध्यक्ष बनना कुछ कठिन होगा।

रहा सवाल अन्य दावेदारों का तो पूर्व विधायक डॉ श्रीगोपाल बाहेती, पूर्व विधायक डॉ राजकुमार जयपाल, अजमेर दक्षिण चुनाव लड चुके हेमंत भाटी व अजमेर उत्तर से चुनाव लड चुके महेन्द्र सिंह रलावता के नाम प्रमुखता से लिए जा रहे है। पारिवारिक पश्ठभूमि के दम पर जयपाल ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है। अगर पायलट की चली तो भाटी का नंबर आ सकता है। बताते हैं कि रलावता की ज्यादा रुचि अगले चुनाव में है। ऐसा भी हो सकता है कि बाहेती को अगले चुनाव में टिकट न मिलने की संभावना के चलते गहलोत उन्हें उपकत कर सकते हैं। वैसे भी सभी दावेदारों में व उनके करीबी हैं। सच बात तो ये है कि पिछले पैंतीस साल से वे ही उनके नंबर वन झंडाबरदार हैं।

खैर, इस सब बातों के बावजूद फिलवक्त माना जा रहा है कि राठौड के अतिरिक्त टाक सबसे प्रबल दावेदार बन चुके हैं। कुछ लोगों का मानना है कि जल्द की उनमें से एक की नियुक्ति का ऐलान हो जााएगा।


शुक्रवार, 19 नवंबर 2021

पेयजल समस्या का समाधान न हो पाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण


यह बेहद षर्मनाक व अफसोसनाक है कि अजमेर में पेयजल सप्लाई व्यवस्था में सुधार के लिए पूर्व षिक्षा राज्य मंत्री व अजमेर उत्तर के मौजूदा भाजपा विधायक वासुदेव देवनानी को आंदोलन की चेतावनी देनी पड गई। वह भी तब जबकि सत्तारूढ कांग्रेस के पूर्व विधायक डा राजकुमार जयपाल के नेतत्व में इसी मसले पर ज्ञापन दिया जा चुका है। विपक्ष की भूमिका तो सहज समझ में आती है लेकिन सत्तारूढ दल को भी अगर नाराजगी जतानी पड रही है तो इससे समस्या की गंभीरता के साथ उसके प्रति प्रषासनिक अकर्मण्यता व लापरवाही जाहिर होती है। जलदाय महकमा अपने कर्तव्य के प्रति कितना बेपरवाह है, यह स्वयं सिद्ध है। जनता काफी दिन से पेयजल समस्या भोग रही है। ऐसा हो नहीं सकता कि महकमे के अधिकारी इससे अनभिज्ञ हों। बावजूद इसके अगर वे समस्या का समाधान नहीं कर रहें हैं या नहीं कर पा रहे हैं तो यह चिंताजनक है। संभव है कि अधिकारियों को पेयजल सप्लाई दुरुस्त रखने में कोई तकनीकी दिक्कत आ रही हो मगर यदि ऐसा है तो उन्हें सार्वजनिक बयान जारी करना चाहिए। और चुप हैं तो इसका मतलब है कि सिस्टम पर उनका कोई नियंत्रण ही नहीं है। उनकी विफलता का ही नतीजा है कि सत्तारूढ दल कांग्रेस तक को आवाज उठानी पड रही है। स्मार्ट सिटी की दिषा में बढ रहे अजमेर के लिए यह बहुत पीडादायक है कि जनता की मूलभूत समस्या का ही समाधान नहीं हो पा रहा। ऐसे स्मार्ट षहर में रहने से क्या फायदा जिसमें पानी सप्लाई का ना तो कोई दिन निश्चित है और ना ही समय। अनेक क्षेत्रों में तो 72 से 96 घंटे के अंतराल से पानी की सप्लाई की जा रही है। कई क्षेत्रों में जब पानी सप्लाई होता है, तो पहले दस-पन्द्रह मिनट तक तो गंदा पानी आता है। इसके बाद साफ पानी भी कम प्रेशर से बहुत कम समय के लिए सप्लाई किया जाता है, जिससे दैनिक जरूरत की पूर्ति भी नहीं हो पाती है। आजादी के बाद आठवें दषक में भी ऐतिहासिक षहर अजमेर पानी के लिए तरस रहा है तो इसका मतलब ये है कि यहां का कोई धणी धोरी नहीं है। ऐसी व्यवस्था के लिए ही तो पोपा बाई का राज जुमले का इजाद हुआ था। 


रविवार, 14 नवंबर 2021

धर्मेन्द्र सिंह राठौड की मौजूदगी से मची खलबली


देष के प्रथम प्रधानमंत्री स्वर्गीय पंडित जवाहरलाल नेहरू की जयंती के अवसर पर नहेरू सर्किल पर आयोजित श्रद्धाजंलि सभा और उसके बाद जनजागरण के तहत महंगाई के विरोध में निकाली पद यात्रा में राजस्थान स्टेट सीडृस कारपोरेषन लिमिटेड के पूर्व अध्यक्ष धर्मेन्द्र राठौड की मौजूदगी से अजमेर के कांग्रेसी गलियारे में खलबली मच गई है। उनके अजमेर आगमन के कई अर्थ निकाले जा रहे हैं। उन्होंने चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा जी की अध्यक्षता में आयोजित जेएलएन मेडिकल कॉलेज में नवनिर्मित आईंसीयू के वर्चुअल उद्घाटन कार्यक्रम में भी हिस्सा लिया एवं भवन का अवलोकन किया।

कार्यक्रम के दौरान आम चर्चा थी कि उन्हें अजमेर विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष बनाया जाना लगभग तय हो गया है, इसी कारण स्थानीय कांग्रेसियों के घुलने मिलने के लिए वे यहां आए हैं। कुछ का मानना था कि आगामी विधानसभा चुनाव में वे पुश्कर सीट से लडने का मानस रखते हैं, उसी के तहत सक्रिय हुए हैं। जो कुछ भी हो मगर उनकी मौजूदगी अजमेर में राजनीतिक हचचल तो हुई ही है, इससे कोई इंकार नहीं कर सकता। ऐसा नहीं है कि उनके राजनीतिक प्रभाव से अजमेर के कांग्रेसी अनभिज्ञ हैं। पिछले दिनों अजमेर नगर निगम में उनकी पसंद के कुछ नए चेहरे मनोनीत पार्शद बनाए गए हैं। इतना ही नहीं हाल ही हुए उपचुनाव में उनकी भूमिका भी किसी से छिपी हुई नहीं है। इससे उनका कद और बढा है। बताया जाता है कि वे मुख्यमंत्री अषोक गहलोत के बहुत करीबी हैं। इसी कारण उनके अजमेर विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष बनने की प्रबल संभावना है। इसके लिए बने पैनल में उनका नाम टॉप पर बताया जाता है। दूसरी ओर कुछ लोगों का तर्क है कि भाजपा मानसिकता के सिंधी व वणिक वोटों को साधने के लिए इन दोनों वर्गों में से किसी को मौका देने का विचार है। उंट किस करवट बैठेगा, कुछ नहीं कहा जा सकता।

बहरहाल, अगर वे किसी नियोजित एजेंडे के तहत अजमेर में सक्रिय हो रहे हैं तो उसका असर यहां पहले से स्थापित राजपूत नेता महेन्द्र सिंह रलावता पर पड सकता है। ज्ञातव्य है कि रलावता एक बार फिर अजमेर उत्तर से चुनाव लडने की तैयारी कर रहे हैं। अगर धर्मेन्द्र राठौड पुश्कर 

से टिकट लाते हैं तो अजमेर जिले में दूसरे राजपूत नेता को कहीं से टिकट मिलने की संभावना कम होती है। राठौड की एंटी का असर पूर्व षिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ पर भी पड सकता है। कहने की जरूरत नहीं है कि पिछले चुनाव में हारने के बाद भी लगातार सक्रिय हैं और आगामी चुनाव में भी उनकी प्रबल दावेदारी रहेगी।

वैसे, रविवार को कांग्रेसियों की तादाद अपेक्षाकत अधिक थी। इस कारण चर्चाओं का बाजार भी गरम था। कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए पूर्व षहर कांग्रेस अध्यक्ष विजय जैन ने भरपूर कोषिष की थी। उन्होंने अनेक नेताओं व पदाधिकारियों को खुद फोन किया था। कहने की जरूरत नहीं है कि आगामी दिनों में राजनीतिक नियुक्तियां होनी हैं, इस कारण भी संख्या में इजाफा नजर आया।

-तेजवानी गिरधर

7742067000

देवनानी की लगातार जीत कोई पहेली नहीं

 


हाल ही जयपुर में अजमेर उत्तर के विधायक व पूर्व षिक्षा राज्य मंत्री वासुदेव देवनानी ने पत्रकारों के साथ आयोजित दीपावली मिलन समारोह में संकेत दिया कि पार्टी चाहेगी तो वे पांचवीं बार भी उनकी जीत की पहेली को हल नहीं करने देंगे। जयपुर के एक पत्रकार की ओर से इस समारोह के कवरेज में इसका जिक्र किया है। उसका षीर्शक इस प्रकार हैः- 

वासुदेव देवनानी एक शिक्षक राजनेता....सीएम गहलोत भी जिनसे जीत का राज पूछते हैं। आगे लिखा है कि देवनानी अजमेर से लगातार चौथी बार विधायक हैं और राज्य के शिक्षा मंत्री भी रहे हैं। वे राजनीति में आने से पहले उदयपुर में कॉलेज शिक्षक थे। एक बार मुंबई जाने वाली एक उड़ान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और वे साथ ही थे तो सीएम गहलोत जैसे मंझे हुये राजनेता ने भी उनसे पूछा कि आपकी लगातार जीत का राज तो बताओ। भले ही यह बात गहलोत ने हास्य विनोद में कही हो लेकिन देवनानी वाकई अपने विरोधियों के लिए अबूझ पहेली बने हुए हैं। 

आगे लिखा है कि देवनानी जितने सरल दिखते हैं उतने ही गंभीर राजनेता हैं। वे हर दिन राजनीति करते हैं। उनके विरोधियों को यही बात सीख लेनी चाहिए कि राजनीति पार्ट टाइम काम नहीं है...लगातार विधायक होने पर भी विवादों से दूर रहना और अपने मतदाताओं से निरंतर संपर्क में रहना उनकी दूसरी खूबी है। अपनी संघ निष्ठ विचारधारा के प्रति पूर्णतः समर्पित हैं और बिना लाग लपेट उसका पालन करते हैं...जब शिक्षा मंत्री बने तो विरोधी रोते रहे वे पाठ्यक्रमों को सुधार कर उसमें महाराणा प्रताप को महान करके ही माने....

वे राजस्थान के एकमात्र सिंधी विधायक हैं और 70-71 की आयु में भी शाकाहारी जीवन शैली से पूरी तरह से स्वस्थ हैं। उन्होंने कहा है कि अगली पार्टी सिंधी दाल पकवान की ही देंगे। उनके पुत्र महेश भी उनसे राजनीति सीख रहे हैं और उम्मीद है वे अपने पिता का नाम रोशन करेंगे।

जहां तक देवनानी को विरोधियों के लिए अबूझ पहेली करार दिया गया है, असल में वैसा कुछ है नहीं। स्थानीय राजनीति को ठीक से समझने वाले जानते हैं कि वे लगातार चौथी बार भी कैसे जीत गए। उसमें चमत्कार जैसी कोई बात नहीं है। यह ठीक है कि वे पूर्वकालिक राजनीतिज्ञ हैं, मतदाताओं के निरंतर संपर्क में रहते हैं, जिसकी जीत में अहम भूमिका होती है। लेकिन गहराई में जाएंगे तो समझ में आ जाएगा कि जिसे अबूझ पहेली बताया जा रहा है, वह बुझी बुझाई है। बाकायदा दो और दो चार है। उनके लिए यह अबूझ पहेली हो सकती है, जिन्हें धरातल की जानकारी ही नहीं है। 

उनकी जीत का एक महत्वपूर्ण पहलु ये है कि अजमेर उत्तर की सीट भाजपा के लिए वोट बैंक के लिहाज से अनुकूल है। इसका सबसे बडा प्रमाण ये है कि जब वे पहली बार उदयपुर से आ कर यहां चुनाव लडे तब उन्हें कोई नहीं जानता था। बिलकुल नया चेहरा। स्थानीयवाद के नाम पर बाकायदा उनका विरोध भी हुआ, लेकिन संघ ने विरोध करने वालों को मैनेज कर लिया। यानि कि केवल संघ और भाजपा मानसिकता वाले वोटों ने उन्हें विधायक बनवा दिया। ऐसा जीत का राज जानने की वजह से घटित नहीं हुआ। संघ का यह प्रयोग विफल भी हो सकता था। अगर पूर्व कांग्रेस विधायक स्वर्गीय नानकराम जगतराय कांग्रेस के बागी बन कर निर्दलीय मैदान में न उतरते। उन्होंने तकरीबन छह हजार से ज्यादा वोट हासिल किए, जबकि कांग्रेस के अधिकत प्रत्याषी नरेन षहाणी भगत करीब ढाई हजार वोटों से ही हारे थे। 

दूसरी बार हुआ ये कि कांग्रेस ने नया प्रयोग करते हुए गैर सिंधी के रूप में डॉ श्रीगोपाल बाहेती को चुनाव मैदान में उतारा। वे सषक्त प्रत्याषी थे, मगर सिंधीवाद के नाम पर अधिसंख्य सिंधी मतदाता एकजुट हो गए और देवनानी के पक्ष में चले गए। हालांकि यह सही है कि अधिकतर सिंधी मतदाता भाजपा मानसिकता के ही माने जाते हैं, लेकिन सिंधीवाद के चलते कांग्रेस विचारधारा के सिंधी भी देवनानी को वोट डाल आए। इतना ही नहीं, अजमेर दक्षिण के अधिसंख्य सिंधी मतदाता भी भाजपा के साथ चले गए और श्रीमती अनिता भदेल जीत गईं। गौरतलब बात ये है कि देवनानी मामूली वोटों के अंतर से ही जीत पाए थे।

तीसरी बार कांग्रेस ने फिर डॉ बाहेती में भरोसा जताया चूंकि उनके व देवनानी के बीच जीत का अंतर ज्यादा नहीं था। तीसरी बार फिर सिंधीवाद ने अपना रोल अदा किया और देवनानी जीत गए। उधर अजमेर दक्षिण की सीट भी कांग्रेस के हाथ नहीं आ पाई। चौथी बार वही रिपिटीषन। फिर गैर सिंधी के रूप में महेन्द्र सिंह रलावता को कांग्रेस का टिकट मिला। नतीजतन कांग्रेस के प्रमुख सिंधी दावेदार की पूरी टीम सचिन पायलट का विरोध करते हुए सिंधीवाद के नाम पर देवनानी के साथ हो ली। हालांकि रलावता का परफोरमेंस अच्छा था, लेकिन सिंधी अंडरकरंट देवनानी के काम आ गया। चूंकि रलावता का यह पहला चुनाव था, जबकि देवनानी के पास तीन चुनावों का अनुभव था और टीम भी सधी सधाई थी, इस कारण रणनीतिक रूप वे बेहतर साबित हुए।

यह आम धारणा है कि अगर कांग्रेस किसी सिंधी को टिकट देती तो देवनानी के लिए जीतना कठिन हो सकता था, क्योंकि उनके खिलाफ एंटी इंकंबेंसी काम कर रही थी। निश्कर्श ये है भले ही देवनानी के लगातार चौथी बार जीतने को उनकी लोकप्रियता के रूप में गिना जाए और उनकी जीत को कोई अबूझ पहेली करार दी जाए, मगर उनकी जीत की असल वजह जातीय समीकरण भाजपा के अनुकूल होने के अतिरिक्त सिंधी मतदाताओं का लामबंद होना ही है। 

जरा गौर कीजिए। उन्होंने अपनी जीत का राज खुद ही खोलते हुए कह दिया कि अगली पार्टी सिंधी दाल पकवान की ही देंगे।

अब बात करते हैं आगामी चुनाव की। जो व्यक्ति लगातार चार बार जीता हो उसे पांचवीं बार टिकट से वंचित करने का कोई कारण नजर नहीं आता। हालांकि संघ का एक खेमा देवनानी के तनिक विरोध में है, लेकिन वह उनका टिकट कटवा पाएगा, इसमें संदेह है। यदि कोई स्थिति विषेष बनी तो अपने बेटे महेष को आगे ला सकते हैं। इसका संकेत मीडिया कवरेज में दिया ही गया है कि उनके पुत्र महेश भी उनसे राजनीति सीख रहे हैं और उम्मीद है वे अपने पिता का नाम रोशन करेंगे।

आखिर में मीडिया कवरेज पर एक टिप्पणी करना लाजिमी है। वो ये कि कवरेज में यह माना गया है कि गहलोत ने जीत का राज हास्य विनोद में ही पूछा था, फिर भी टाइटल ये दिया कि वासुदेव देवनानी एक शिक्षक राजनेता....सीएम गहलोत भी जिनसे जीत का राज पूछते हैं। समझा जा सकता है षब्दों का यह खेल देवनानी को महिमा मंडित करने के लिए किया गया है। पूरे कवरेज में भाशा का झुकाव भी जाहिर करता है उसके पीछे मानसिकता विषेश काम कर रही है। 

-तेजवानी गिरधर

7742067000

रविवार, 7 नवंबर 2021

नानकराम जगतराय को कैसे मिला था टिकट?


आपको याद होगा कि स्वर्गीय श्री नानकराम जगतराय को अजमेर पष्चिम विधानसभा सीट के उपचुनाव में कांग्रेस का टिकट मिला था और उन्होंने भाजपा के स्वर्गीय श्री लक्ष्मणदास माचिसवाला को हराया था। इस चुनाव में तत्कालीन काबिना मंत्री श्री बी डी कल्ला प्रभारी थे। उनका सहयोग पूर्व विधायक डॉ के सी चौधरी कर रहे थे। राज्य सरकार के अधिसंख्य मंत्रियों ने चुनाव प्रचार के लिए वार्डवार जिम्मेदारी संभाली  थी और कांग्रेस ने यह सीट जीती थी।

असल में यह सीट तत्कालीन काबीना मंत्री स्वर्गीय श्री किषन मोटवानी के निधन से खाली हुई थी। उस वक्त कांग्रेस के लिए समस्या ये थी कि उसके पास षहर स्तर कोई भी सषक्त सिंधी दावेदार नहीं था। जो थे वे वार्ड स्तर के थे। नानकराम का कद भी पार्षद स्तर का ही था, लेकिन वे मिलनसारिता और सहज सुलभता की वजह से लोकप्रिय थे। 

अब बात करते हैं कि टिकट के लिए नानकराम का चयन कैसे हुआ? हालांकि उन्हें टिकट दिलवाने का कई लोग श्रेय ले सकते हैं, लेकिन इस सिलसिले एक राज मेरे दिल में दफन है, जो आपसे साझा कर रहा हूं। मैं यह कत्तई दावा नहीं करता कि उन्हें टिकट दिलवाने में अकेली मेरी ही भूमिका थी। 

स्वाभाविक रूप से कई पैमानों पर जांचने-परखने के बाद उन्हें टिकट दिया गया होगा।

खैर, असल बात पर आते हैं। हुआ यूं कि उन दिनों मैं दैनिक भास्कर में सिटी चीफ के पद पर काम कर रहा था। तत्कालीन अतिरिक्त जिला कलेक्टर, जिनका नाम उजागर करना उचित नहीं होगा, का फोन आया कि मुख्यमंत्री श्री अषोक गहलोत ने तीन सिंधी दावेदारों का पैनल मंगवाया है और अभी तुंरत भेजना है। चूंकि आपकी राजनीति पर अच्छी पकड है, लिहाजा आप बेहतर बता सकते हैं कि कौन कौन सिंधी नेता जीतने के काबिल हैं। यहां ये बताना प्रासंगिक है कि वे मुख्यमंत्री के करीबी थे। 

मैने अपनी समझ के हिसाब से नानकराम के अतिरिक्त दो नाम सुझाये। उन्होंने वह पैनल भिजवा दिया। बेषक मेरी सलाह उस वक्त अत्यंत गोपनीय थी, लेकिन चूंकि अपने आप में यह एक खबर भी थी, इस कारण मैंने वह खबर प्रकाषित कर दी। खबर पढ कर नानकराम तो भौंचक्क ही रह गए। उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी कि उनका नाम पैनल में षामिल किया जाएगा। उनका कोई मानस या तैयारी भी नहीं थी। नानकराम का फोन आया कि ये खबर कहां से आई। क्या ये सच है? मैने पूरा वाकया उनको सुना दिया। उन्होंने अपनी दावेदारी को गंभीरता से लिया और उसी दिन उन्होंने जयपुर की राह पकडी। अपने राजनीतिक संपर्कों का इस्तेमाल किया और टिकट हासिल करने में कामयाब हो गए। जीत भी गए। असल में वे जमीन से जुडे नेता थे, जबकि लक्ष्मणदास माचिसवाला संपन्न थे। हालांकि कांग्रेस की एडी चोटी की मषक्कत की तो नानकराम की जीत में अहम भूमिका रही ही, लेकिन साथ ही उनकी खुद की सरल व ईमानदार नेता की छवि भी काम आई।

प्रसंगवष बता दें कि उन्होंने विधायक के तौर पर पूरी ईमानदारी के साथ काम किया। सरल स्वभाव की स्थिति ये थी कि रोडवेज की बस से जयपुर जाया करते थे। एक बार बस स्टैंड से तांगे में बैठ कर आए तो इस खबर ने सुर्खियां बटोरी। ईमानदारी मिसाल ये कि एक बार बातचीत में मुझसे जिक्र किया कि उनके मोती कटला स्थित छोटे से ऑफिस में लगे टेलीफोन का उपयोग हर कोई करता है और टेलीफोन का बिल इतना आने लगा है कि उसे चुकाना ही भारी पड रहा है। हालांकि विधायक के नाते उन्हें टेलीफोन पेटे राषि मिलती है, मगर वह काफी कम है।

उनकी सबसे खास बात ये थी कि उन्होंने किसी को डिजायर के लिए मना नहीं किया। कई लोगों के काम भी हुए।

एक बात और याद आ गई। एक बार मुख्यमंत्री गहलोन ने कहीं ये बयान दिया कि उन्हें जीतने के लिए एक सौ एक नानकराम चाहिए। इसी बयान ने उनमें दंभ भर दिया। उन्हें ख्याल था कि दूसरी बार भी उन्हें हाईकमान बुला कर टिकट देगा, इस कारण हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे और श्री नरेन षहाणी टिकट लाने में कामयाब हो गए। नानकराम को उनके षुभ चिंतकों ने लोकप्रियता के दम पर निर्दलीय लडने की सलाह दी। हालांकि दिल्ली से अजमेर आए कांग्रेस के बडे नेताओं ने सरकार बनने पर यूआईटी का चेयरमैन पद ऑफर किया, मगर वे नहीं माने। उन्हें तकरीबन छह हजार से कुछ अधिक वोट ही मिले और कांग्रेस के नरेन षहाणी भाजपा के टिकट पर पहली बार मैदान में उतरे प्रो वासुदेव देवनानी से मात्र ढाई हजार वोटों से हार गए। इस लिहाज से यह माना जा सकता है कि नरेन षहाणी भगत की हार में नानकराम की ही भूमिका रही। देवनानी एक बार क्या जीते वे तो धरतीपकड की तरह लगातार तीन और चुनाव जीत चुके हैं। हालांकि चुनाव अभी दूर हैं, लेकिन जानकारी है कि वे पांचवीं बार भी ताल ठोकने के मूड में हैं।


-तेजवानी गिरधर

7742067000, 8094767000


रविवार, 19 सितंबर 2021

जीवन के 88 वसंत पूर्ण किए वरिष्ठ पत्रकार आर.डी. कुवेरा ने


राज्य के वरिष्ठ पत्रकार श्री आर. डी. कुवेरा का जीवन संघर्ष के बाद सफलता की सजीव कहानी है। आज 88 साल की उम्र में भी वे पूर्ण स्वस्थ हैं और लेखन कार्य सतत जारी रखे हुए हैं। उनका जन्म 19 सितम्बर 1933 को किशनगढ़ में स्वगीय श्री रतनलाल कुवेरा के घर हुआ। सन् 1953 में मैट्रिक पास करने के तुरंत बाद उन्होंने इंडियन इंश्योरेंस कंपनी में एजेंट का कार्य शुरू किया। इसके बाद किशनगढ़ में न्यू सुमेर टॉकीज के मैनेजर रहे। बाद में जोधपुर के जॉर्ज टॉकीज सर्किट की ओर से फिल्म प्रतिनिधि के रूप में काम किया। इसी प्रकार मैसर्स हुकमचंद संचेती एंड संस के विक्रय प्रतिनिधि के रूप में भी काम किया। सन् 1958 में टेरिटोरियल आर्मी के प्रशिक्षण शिविर में सर्वश्रेष्ठ केडेट का पुरस्कार प्राप्त किया। उन्होंने सेना प्रमुख की ओर से सर्टिफिकेट ऑफ मेरिट भी हासिल है। उन्होंने 1959 में 105 इन्फेंट्री बटालियन में रह कर नई दिल्ली में गणतंत्र दिवस की परेड में भाग लिया। इसके बाद किशनगढ़ विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय जयनारायण व्यास के संपर्क में आए। उन्हीं के आदेश पर उन्हें शिक्षा विभाग में क्लर्क की नौकरी करने का मौका मिला। बाद में ग्रेड बदलवा कर ब्यावर के सनातन धर्म हायर सेकंडरी स्कूल और पटेल हायर सेकंडरी स्कूल में शिक्षण कार्य किया।

तकरीबन 12 वर्ष तक सरकारी नौकरी करने के बाद उन्होंने निजी व्यवसाय शुरू कर दिया और अजमेर में बुक सेंटर के नाम से दुकान खोली एवं लाइब्रेरी सप्लाई व प्रकाशन का कार्य शुरू किया। वे अजमेर गांधी शांति प्रतिष्ठान के कार्यालय प्रभारी और श्री गोकुलभाई भट्ट के शराबबंदी आंदोलन के कार्यालय प्रभारी भी रहे हैं। दिलचस्प बात ये है कि उन्होंने ब्यावर में स्वर्गीय श्री घनश्याम जी से कत्थक का विधिवत दो साल प्रशिक्षण लिया है और प्रदेश के अनेक स्थानों पर लोकनृत्य सहित कई सांस्कृतिक प्रदर्शन किए हैं। सन् 1974 में उनकी रुचि पत्रकारिता में हुई और साप्ताहिक लगन एक्सप्रेस व जिला कांग्रेस कमेटी के मुखपत्र कांग्रेस समाचार का संपादन किया। सन् 1975 से 81 तक दैनिक नवज्योति के लिए पूरे राजस्थान का भ्रमण कर अनेक स्थानों पर संवाददाता व एजेंट नियुक्त किए। अजमेर नगर सुधार न्यास के भूतपूर्व अध्यक्ष स्वर्गीय श्री माणकचंद सोगानी के साथ न्यास के लिए जनसंपर्क प्रभारी का कार्य किया। उन्होंने जयपुर में कांग्रेस शताब्दी समारोह के अवसर पर स्वर्गीय श्री मथुरादास माथुर के साथ विशाल प्रदर्शनी का संयोजन किया और एक्जीबीशन एट ए ग्लांस का संपादन किया। 

सन् 1985 से 2009 तक दैनिक आधुनिक राजस्थान के बीकानेर व जयपुर ब्यूरो प्रमुख रहे। वे संत श्री रामचंद्र डोंगरे, श्री रामसुखदास महाराज व श्री मुरारी बापू के अजमेर व सलेमाबाद में आयोजित प्रवचन कार्यक्रमों के मीडिया प्रभारी भी रहे हैं। इसी प्रकार सामाजिक क्षेत्र में मग ब्राह्मण समाज के वैवाहिक परिचय सम्मेलनों के मीडिया प्रभारी और अखिल भारतीय सर्वाेदय सम्मेलन में मीडिया व वालेंटियर सेवा के संयुक्त संयोजक रहे हैं।  वर्तमान वे राज्य सरकार के अधिस्वीकृत स्वतंत्र पत्रकार हैं। वे जयपुर में पिंक सिटी प्रेस क्लब के संस्थापक सदस्य हैं और राजस्थान श्रमजीवी पत्रकार संघ में अनेक पदों रहे हैं। 

उन्होंने दैनिक नवज्योति के प्रधान संपादक श्री दीनबंधु चौधरी के जीवन पर रचित गौरव ग्रंथ के सामग्री संकलन, संपादन व प्रकाशन में अहम भूमिका निभाई है। इस ग्रंथ का विमोचन मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत ने जयपुर में आयोजित एक भव्य समारोह में किया।

उनके जीवन की सफलता का दूसरा पहलु ये है कि उनके प्रयासों से ही आज उनके दोनों सुपुत्र प्रतिष्ठित फर्म कुवेरा कार्ड्स एंड गिफ्ट व न्यू कुवेरा गिफ्ट आइटम्स का संचालन कर रहे हैं।


अजमेरनामा आपके शतायु होने की कामना करता है।

रविवार, 18 जुलाई 2021

एडीए अध्यक्ष पद पर नियुक्ति को लेकर रहस्य गहराया


अजमेर स्मार्ट सिटी लिमिटेड में पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती और डॉ. राजकुमार जयपाल को स्वंतत्र डायरेक्टर बनाए जाने के साथ ही अजमेर विकास प्राधिकरण में अध्यक्ष पद पर नियुक्ति को लेकर को लेकर रहस्य गहरा गया है। सिक्के का एक पहलु तो ये है कि इन दोनों के अलावा अन्य सभी दावेदारों में उम्मीद जगी है। ऐसा माना जा रहा है कि मौजूदा राजनीतिक समीकरणों में इन दोनों की राजनीतिक नियुक्ति के साथ ही अन्य दावेदारों के लिए एडीए में जाने का रास्ता खुल गया है। ऐसा माना जा रहा है कि इन दोनों नेताओं को चूंकि समायोजित किया जा चुका है, लिहाजा इन में से कोई भी एडीए अध्यक्ष नहीं बन पाएगा। हालांकि यह बहुत जरूरी नहीं है कि ऐसा ही हो, मगर मोटे तौर पर यही माना जा रहा है। सिक्के का दूसरा पहलु ये है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि अब एडीए अध्यक्ष बनाया ही न जाए।

बहरहाल सवाल ये खड़ा होता है कि क्या ये दोनों नेता इन नियुक्तियों से खुश हैं। कहते हैं न कि अंधे मामा से काणा मामा अच्छा, इस कहावत के लिहाज से देखें तो दोनों ने संतोष कर लिया होगा कि चलो कुछ तो मिला। लेकिन इतना पक्का है कि ये नियुक्तियां उनके बहुत सुखद नहीं हैं। विषेश रूप से डॉ. बाहेती के लिए। वो इसलिए कि अब तक के सारे मीडिया आकलन में माना जा रहा था कि एडीए के लिए वे ही नंबर वन दावेदार हैं। उसकी वजह भी साफ  है कि वे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सर्वाधिक करीब हैं। हालांकि बीच में कुछ लोगों ने कहना आरंभ कर दिया था कि अब पहले जैसी करीबी नहीं रही। उसका क्या आधार था, पता नहीं फिर भी वे नंबर वन पर ही माने जा रहे थे। मौजूदा नियुक्ति को देखते हुए तो लगता है कि कुछ लोगों का जो अनुमान था, कहीं वह सही तो नहीं था। बाहेती को एडीए अध्यक्ष बनाने की बजाय स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट से जोडने से तो यही अर्थ निकलता है। आपको याद होगा कि किसी समय बाहेती को मिनी सीएम माना जाता था। उसी वजह से उनका रुतबा आज तक बना हुआ है। अगर यह सही है कि स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट से जोडने के बाद उनकी एडीए सदर बनने की संभावना समाप्त हो गई है तो यह उनके लिए अच्छा नहीं हुआ। एक अर्थ में इसे अन्याय की संज्ञा भी दी जा सकती है कि जीवन भर गहलोत की वफादारी का अपेक्षित इनाम नहीं मिल पाया। कहां एडीए अध्यक्ष और कहां स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट का डायरेक्टर। वहां वे कुछ नहीं कर सकते क्योंकि अधिसंख्य योजनाओं को अंतिम रूप दिया जा चुका है और एमओयू भी हो चुके हैं। वे भले ही निजी कारणों से प्रोजेक्ट मीटिंग में नहीं जा पाए हों, मगर कुछ का मानना है कि वे नाराजगी के चलते नहीं गए। कुछ लोग केवल इसी कारण माला व गुलदस्ते के साथ बधाई देने से बचे कि कहीं वे बुरा न मान जाएं कि किस बात की बधाई देने आए हो।

कुछ लोगों का अनुमान है कि बाहेती व जयपाल को स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में जोडऩे के बाद एडीए अध्यक्ष बनाए जाने की संभावना समाप्त हो गई है। हो सकता है सरकार अब बिना नियुक्ति के ही काम चला ले। यूं भी इस पद के लिए कम से कम गहलोत खेमे में कोई दमदार दावेदार नहीं है। जो हैं वे सचिन पायलट खेमे के हैं। उनका नंबर आएगा या नहीं कुछ कहा नहीं जा सकता।

मुख्यमंत्री की मंशा क्या है किसी को पता नहीं फिर भी मीडिया में अन्य दावेदारों के नाम उछल रहे हैं। उनमें कुछ वास्तविक दावेदार हैं तो कुछ हवाई। नियुक्ति कब होगी होगी भी या नहीं मगर मीडिया में जिन दावेदारों के नाम उछल रहे हैं वे खुशफहमी में जीने लगे हैं।


तेजवानी गिरधर

7742067000

सोमवार, 28 जून 2021

एडीए अध्यक्ष की नियुक्ति के बिना विकास की उम्मीद बेमानी


यह एक दुर्भाग्य ही है कि अजमेर जैसा ऐतिहासिक शहर और विश्व मानचित्र पर अंकित जाने-माने पर्यटन स्थल का विकास पहले नगर सुधार न्यास व बाद में अजमेर विकास प्राधिकरण में अमूमन देर से अध्यक्ष की नियुक्ति होने के कारण बार-बार बाधित हुआ है। आज भी स्थिति ये है कि नई सरकार तकरीबन ढ़ाई साल पूरे कर रही है, मगर अब तक अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं हो पाई है।

यह सर्वविदित ही है कि पहले यूआईटी हो या अब एडीए, शहर के विकास के नए आयाम स्थानीय राजनीतिक व्यक्ति के अध्यक्ष रहने पर स्थापित हुए हैं। जब भी प्रशासनिक अधिकारी के हाथों में कमान रही है, विकास की गति धीमी हुई है। इसके अनेक उदाहरण हैं। वजह ये है कि जिला कलेक्टर या संभागीय आयुक्त के पास अध्यक्ष का भी चार्ज होने के कारण वे सीधे तौर पर कामकाज पर ध्यान नहीं दे पाते। वैसे भी उनकी कोई विशेष रुचि नहीं होती। वे तो महज औपचारिक रूप से नौकरी को अंजाम देते हैं। उनके पास अपना मूल दायित्व ही इतना महत्वपूर्ण होता है कि वे टाइम ही नहीं निकाल पाते। निचले स्तर के अधिकारी ही सारा कामकाज देखते हैं। इसके विपरीत राजनीतिक व्यक्ति के पास अध्यक्ष का कार्यभार होने पर विकास के रास्ते सहज निकल आते हैं। एक तो उसको स्थानीय जरूरतों का ठीक से ज्ञान होता है। इसके अतिरिक्त जनता के बीच रहने के कारण यहां की समस्याओं से भी भलीभांति परिचित होता है। वह किसी भी विकास के कार्य को बेहतर अंजाम दे पाता है। प्रशासनिक अधिकारी व जनता के प्रतिनिधि का आम जन के प्रति रवैये में कितना अंतर होता है, यह सहज ही समझा जा सकता है। राजनीतिक व्यक्ति इस वजह से भी विकास में रुचि लेता है, क्योंकि एक तो उसकी स्थानीय कामों में दिलचस्पी होती है, दूसरा उसकी प्रतिष्ठा भी जुड़ी होती है। उनका प्रयास ये रहता है कि ऐसे काम करके जाएं ताकि लोग उन्हें वर्षों तक याद रखें और उनकी राजनीतिक कैरियर भी और उज्ज्वल हो। 

इस बात के प्रमाण हैं कि जब भी न्यास के अध्यक्ष पद पर कोई राजनीतिक प्रतिनिधि बैठा है, शहर का विकास हुआ है। चाहे कांग्रेस की सरकार हो या भाजपा की। हर न्यास अध्यक्ष ने चाहे शहर के विकास के लिए, चाहे अपनी वाहवाही के लिए, काम जरूर करवाया है। पृथ्वीराज चौहान स्मारक, सिंधुपति महाराजा दाहरसेन स्मारक, लवकुश उद्यान, झलकारी बाई स्मारक, वैकल्पिक ऋषि घाटी मार्ग, अशोक उद्यान, राजीव उद्यान, गौरव पथ, महाराणा प्रताप स्मारक सहित अनेक आवासीय योजनाएं उसका साक्षात प्रमाण हैं।

सरकारों की अरुचि अथवा कोई अन्य मजबूरी हो सकती है, मगर अध्यक्ष की नियुक्ति समय पर न होना अजमेर शहर के लिए नुकसानदेह है। महत्वपूर्ण ये नहीं है कि नियुक्ति के दावेदारों को इंतजार करना पड़ रहा है, बल्कि महत्वपूर्ण ये है कि शहर के विकास में अहम भूमिका अदा कर सकने वाली इस विशेष संस्था की निष्क्रियता से शहर का विकास अवरुद्ध हो रहा है। ये उतना महत्वपूर्ण नहीं है कि दावेदारों की अपेक्षा पूरी हो, बल्कि जरूरी ये है कि अजमेर वासियों की अपेक्षाएं पूरी हों।

वर्तमान में प्राधिकरण तकरीबन ढ़ाई साल से प्रशासनिक अधिकारियों भरोसे ही चल रहा है। ऐसे में विकास तो दूर रोजमर्रा के कामों की हालत भी ये है कि जरूरतमंद लोग चक्कर लगा रहे हैं और किसी को कोई चिंता नहीं। नियमन और नक्शों के सैंकड़ों काम अटके पड़े हैं। स्पष्ट है कि विकास अवरुद्ध हुआ है।

यहां यह बताना महत्वपूर्ण है कि प्राधिकरण गठित होने की वजह से भविष्य में विकास की रफ्तार तेज होने की आशा बलवती हुई थी। वजह ये कि प्राधिकरण का क्षेत्र काफी बड़ा हो गया था। इसके तहत किशनगढ़ और पुष्कर शहर के अतिरिक्त 119 गांव भी इसका हिस्सा बन गए। यानि कि प्राधिकरण यूआईटी की तुलना में एक उच्च शक्ति वाली संस्था बन गई। न्यास अध्यक्ष को 25 लाख रुपए और सचिव को दस लाख रुपए के वित्तीय अधिकार थे, मगर अध्यक्ष और कमिश्नर (सचिव) दोनों के वित्तीय अधिकार एक-एक करोड़ रुपए हो गए। इसमें सरकार की ओर से घोषित एक चेयरमैन के अलावा एक सचिव और 19 सदस्यों का प्रावधान है। 19 सदस्यों में से 12 सदस्य अधिकारी और 7 सदस्य राजनीतिक नियुक्तियों के रखने का प्रावधान है। जैसे ही प्राधिकरण का गठन हुआ तो सभी समाचार पत्रों में यह शीर्षक सुर्खियां पा रहा था कि अब लगेंगे अजमेर के विकास को पंख। उम्मीद जताई गई थी कि सही योजनाएं बनीं और तय समय में काम पूरे हुए तो एक दशक में ही अजमेर महानगर में तब्दील हो सकता है। इसके ठोस आधार भी हैं। प्राधिकरण की सीमाएं किशनगढ़ औद्योगिक क्षेत्र तक हैं, यानि केंद्रीय विद्यालय तक हमारी पहुंच हो गई है। बाड़ी घाटी अब प्राधिकरण का हिस्सा है, यानि विदेशी पर्यटकों की पहली पसंद बने पुष्कर तीर्थ को हम विकास की दृष्टि से अंतरराष्ट्रीय सुविधाएं दे सकते हैं। ब्यावर रोड पर सराधना और नारेली तीर्थ हमारी सीमा में आ जाने से हम कई दृष्टि से विकसित हो जाएंगे। हवाई अड्डा तो गेगल निकलते ही हम छू लेंगे। कुल मिला कर अजमेर विकास प्राधिकरण का गठन अजमेर के विकास में मील का पत्थर साबित हो सकता था। मगर वह इस कारण नहीं हो पा रहा कि पिछली बार भी नियुक्ति में देरी हुई, इस बार भी हो रही है।

कुल मिला कर जब तक प्राधिकरण के सदर पद पर किसी राजनीतिक व्यक्ति की नियुक्ति नहीं होती, तब तक अजमेर का विकास यूं ही ठप पड़ा रहेगा।

-तेजवानी गिरधर

7742067000

अजमेर पर गीत

 


पिछले दिनों सोशल मीडिया पर अजमेर शहर पर कुछ गीत खूब धूम मचाए हुए थे। चूंकि रचनाओं के साथ उनके लेखकों का नाम नहीं था, इस कारण यह पता नहीं लग पाया कि इनकी रचना किसने की है? अजमेर का परिचय कराने वाले इन गीतों को लिखने वाले अज्ञात रचनाकारों का बहुत बहुत साधुवाद। इनमें वर्तनी व व्याकरण की त्रुटियां थीं, जिन्हें दुरुस्त कर दिया गया है।



अजमेर की जो धरा है थोड़ा हटके जरा है

शहर ये खूबियों और रस-स्वादों से भरा है

स्टेशन के नए गेट से निकलते ही गांधी मार्केट दिखता है

जहां बिक्किलाल का शरबत बिकता है

मदार गेट में घुसते ही पुरानी मंडी नजर आती है

इस संकड़ी गली को देख रूह कांपती है

एक बात दिमाग को बरबस छील जाती है

कैसे इस गली में औरतें दोने चाटती हैं

ये गली प्राचीन अजमेर की याद दिलाती है

बुद्धामल के सोन हलवे से मिलवाती है

नया बाजार भी अपने दो रूप दिखाता है

दिन में ये सोने चांदी का गढ़ कहलाता है

शाम ढ़लते ही चौपाटी सा नजर आता है

सर्दी में चरी चाय और सूप लीजिये जनाब

गर्मी में मिल्क बादाम, फालूदा है लाजवाब

कड़ी कचोरी में अजमेर का नहीं है कोई तोड़

नया बाजार चौपड़ या केसरगंज के मोड़

बरसात का मौसम अलग मजा लाता है

बिसिट के दाल पकौड़ों में आनंद आता है

लोग कहते हैं, समझ समझ का फेर है 

इसीलिए इस नगरी का नाम अजमेर हैै


लीजिए, एक और गीत सुनिये

वाह रे अजमेर

तेरे शहर में 

जहां गली तो है तो

कड़क्का चौक भी है

नया बाजार की चमक के साथ

पुरानी मंडी भी है।

श्रीनगर तो कश्मीर में है

पर श्रीनगर रोड यहां है

आदर्श नगर का आदर्श है

पर मामले उलझने पर

कचहरी रोड भी यहीं है

हाथीभाटा में कोई हाथी या भाटा नहीं

तो लोहागल में भी कोई लोहा गलता नहीं

चूनपचान गली में कोई हो हल्ला नहीं

तो झूला मोहल्ला में भी कोई झूला नहीं

नला बाजार में नाले के

पानी का बहाव है

प्यास बुझाने के लिये

गोल प्याऊ का ठहराव है

नवाब का बेड़ा से नवाबी तो गयी

पर साथ में ठठेरा चौक की ठक ठक भी गयी 

आशाओं भरा आशा गंज तो है

पर बगैर किसी रंज के

सिर्फ गंज भी यहीं है।

डिग्गी तलाब तो तलाव न रहा

साथ में खारी कुई पता नहीं

अब भी खारी है कि नहीं 

इमाम बाड़ा शांत तो

तोपदड़ा में भी कोई तोप का शोर नहीं

पूराने शहर के बाहर 

दिल्ली गेट, आगरा गेट भी है

शहर के भीतर

अंदर कोट भी है

घसेटी और चूनपचान

जैसी गलियों में पेट न भरे तो

लंगर खाना गली भी है

चलते चलते अब थका हूं

ठहराव के लिये

पड़ाव आया हूं

पता नहीं कौन आ कर पड़ाव करते थे

अब तो आवाजाही, गहमा रही है।


तेजवानी गिरधर

7742067000

शुक्रवार, 25 जून 2021

अजमेर नगर निगम में लिफाफा सिस्टम सेट नहीं हो पा रहा


कानाफूसी है कि नगर निगम में वर्षों से कथित रूप से चल रहा लिफाफा सिस्टम इस बार के बोर्ड में ठीक से इम्प्लीमेंट नहीं हो पाया है। स्वाभाविक रूप से व्यवस्था बदलने पर नई व्यवस्था को सेट होने में थोड़ा टाइम तो लगता ही है। वैसे भी मौजूदा मेयर श्रीमती बृजलता हाड़ा राजनीति में नई-नई हैं। इस कारण उन्हें सिस्टम को समझने में टाइम लग रहा है। वे फूंक-फूंक कर कदम रख रही हैं। उनके पतिदेव डॉ. प्रियशील हाड़ा भी कुल मिला कर सीधे-सादे व ईमानदार हैं। इसे यूं भी कहा जा सकता है कि इस दंपति को लिफाफा संस्कृति व सिस्टम की ठीक से जानकारी नहीं है। अगर जानकारी है भी तो अनुभव की कमी है। ऐसे में घाघ अधिकारियों से इस बारे में चर्चा करना खतरे से खाली नहीं है। राजनीतिक रूप से भी खतरा कम नहीं है। श्रीमती हाड़ा के आगामी विधानसभा चुनाव में प्रमुख दावेदार बनने की पूरी संभावना है। जाहिर तौर पर उनका एक नया शक्ति केन्द्र बनना जिनको नागवार गुजर रहा है, वे घात लगा कर बैठे हैं कि कहीं चूक हो तो फिश प्लेट गायब करवा दें। उससे भी बड़ी बात ये कि राज्य में सरकार कांग्रेस की है। ऐसी स्थिति में किसी प्रकार की रिस्क नहीं ली जा सकती।

हालांकि जानकारी है कि कुछ एक अनुभवी व तेज-तर्रार ने अपना हिसाब-किताब बना लिया है, लेकिन कई अभी वंचित हैं। सिस्टम सेट नहीं हो पा रहा। ऐसे में स्वाभाविक रूप से वंचित वर्ग में असंतोष व निराशा व्याप्त है। उन्हें उम्मीद है कि कभी तो सिस्टम सेट होगा। ज्ञातव्य है कि पिछले बोर्ड में सभी संतुष्ट थे। किसी को कोई शिकायत नहीं थी। बिना किसी राजनीतिक भेद के सभी तत्कालीन मेयर धर्मेन्द्र गहलोत के पैर छूते थे।

खैर, असल में समस्या ये भी है कि कोटा तो पहले जितना ही है, जबकि हिस्सेदारों की संख्या बढ़ गई है। अगर राजनीतिक नियुक्तियां हुईं तो यह संख्या और बढ़ जाएगी। ऐसे में लिफाफे का वजन कम हो जाएगा।

वैसे शहर वासियों के लिए यह सुखद है कि लिफाफा सिस्टम कायम नहीं हो पा रहा। हालांकि समझा जाता है कि देर-सवेर सिस्टम लागू तो हो जाएगा, मगर यदि वह लागू नहीं हो पाता तो हाड़ा दंपति की साफ-सुथरी छवि पर कोई कीचड़ नहीं उछाल पाएगा। फिलहाल उनके लिए यही अच्छा है। सिक्के का दूसरा पहलु ये है कि अगर उन्होंने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो कहीं निचले स्तर पर सेटिंग न शुरू हो जाए, वह और भी घातक होगी। 


-तेजवानी गिरधर

7742067000

tejwanig@gmail.com

बुधवार, 23 जून 2021

शुरू से ऐसे दबंग हैं भंवर सिंह पलाड़ा


24 जून को अजमेर की जिला प्रमुख श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा के पतिदेव जाने-माने समाजसेवी श्री भंवर सिंह पलाड़ा का जन्मदिन है। इस मौके पर तकरीबन साढ़े दस साल पहले यानि 21 दिसंबर 2010 को अजमेरनामा में प्रकाशित वह पोस्ट यकायक ख्याल में आ गई, जो उनके मौजूदा व्यक्तित्व और कृतित्व की पृष्ठभूमि का दिग्दर्शन करवाती है।

भाजपा के सारे नेताओं को यह तकलीफ हो सकती है कि उनकी धर्मपत्नी श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा भाजपा के बेनर पर वार्ड मेंबर बनीं, मगर टिकट न मिलने पर अपने समर्थक भाजपाई वार्ड मेंबर्स के अतिरिक्त कांग्रेसी मेंबर्स के सहयोग से जिला प्रमुख बन बैठीं। पर्याप्त संख्या बल होने के बावजूद टिकट न दिए जाने पर उनका यह कदम मौजूदा राजनीति के हिसाब से उचित ही प्रतीत होता है। पाटी्र्र के प्रति निष्ठा एक मुद्दा हो सकता है, मगर स्थानीय भाजपा नेताओं का उनके प्रति आरंभ से जो रवैया था, उसे देखते हुए कम से कम उन्हें तो ऐतराज करने का अधिकार नहीं है।

आइये, वह पोस्ट पढ़ कर देख लेते हैं:-

सरकार से अकेले जूझ रहे हैं पलाड़ा, सारे भाजपाई अजमेरीलाल

एक तो प्रदेश में कांग्रेस सरकार, दूसरा ब्यूरोक्रेसी का बोलबाला, दोनों से युवा भाजपा नेता भंवरसिंह पलाड़ा अकेले भिड़ रहे हैं, बाकी सारे भाजपाई तो अजमेरीलाल ही बने बैठे हैं। सभी भाजपाई मिट्टी के माधो बन कर ऐसे तमाशा देख रहे हैं, मानो उनका पलाड़ा और जिला प्रमुख श्री सुशील कंवर पलाड़ा से कोई लेना-देना ही नहीं है।


असल में जब से पलाड़ा की राजनीति में एंट्री हुई है, तभी से सारे भाजपाइयों को सांप सूंघा हुआ है। भाजपा संगठन के अधिकांश पदाधिकारी शुरू से जानते थे कि वे स्वयं तो केवल संघ अथवा किसी और की चमचागिरी करके पद पर काबिज हैं, चार वोट उनके व्यक्तिगत कहने पर नहीं पड़ते, जबकि पलाड़ा न केवल आर्थिक रूप से समर्थ हैं, अपितु उनके समर्थकों की निजी फौज भी तगड़ी है। यही वजह थी कि कोई नहीं चाहता था कि पलाड़ा संगठन में प्रभावशाली भूमिका में आ जाएं। सब जानते थे कि वे एक बार अंदर आ गए तो बाकी सबकी दुकान उठ जाएगी। यही वजह रही कि जब पहली बार उन्होंने पुष्कर विधानसभा क्षेत्र से टिकट मांगा तो स्थानीय भाजपाइयों की असहमति के कारण पार्टी ने टिकट नहीं दिया। ऐसे में पलाड़ा ने चुनाव मैदान में निर्दलीय उतर कर न केवल भाजपा प्रत्याशी को पटखनी खिलाई, अपितु लगभग तीस हजार वोट हासिल कर अपना दमखम भी साबित कर दिया। उसका परिणाम यह हुआ कि दूसरी बार चुनाव में पार्टी को झक मार कर उन्हें टिकट देना पड़ा। मगर स्थानीय भाजपाइयों ने फिर उनका सहयोग नहीं किया और बागी श्रवण सिंह रावत की वजह से उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। इसके बाद भी पलाड़ा ने हिम्मत नहीं हारी।

प्रदेश में कांग्रेस सरकार होने के बाद भी अकेले अपने दम पर पत्नी श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा को जिला प्रमुख पद पर काबिज करवा लिया। जाहिर है इससे पूर्व जलदाय मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट, पूर्व सांसद प्रो. रासासिंह रावत सहित अनेक नेताओं की दुकान उठ गई है। भाजपा के सभी नेता जानते हैं कि पत्नी के जिला प्रमुख होने के कारण उनका नेटवर्क पूरे जिले में कायम हो चुका है और जिस रफ्तार से वे आगे आ रहे हैं, वे आगामी लोकसभा चुनाव में अजमेर सीट के सबसे प्रबल दावेदार होंगे। कदाचित इसी वजह से कई भाजपा नेताओं को पेट में मरोड़ चल रहा है और वे शिक्षा मंत्री व जिला परिषद की सीईओ शिल्पा से चल रही खींचतान को एक तमाशे के रूप में देख रहे हैं। हर छोटे-मोटे मुद्दे पर अखबारों में विज्ञप्तियां छपवाने वाले शहर व देहात जिला इकाई के पदाधिकारियों के मुंह से एक भी शब्द नहीं निकल रहा है कि प्रदेश की कांगे्रस सरकार राजनीतिक द्वेषता की वजह से जिला प्रमुख के कामकाज में टांग अड़ा रही है। ऐसे विपरीत हालात में भी दबंग हो कर पूरी ईमानदारी से जिला प्रमुख पद को संभालना वाकई दाद के काबिल है।

बहरहाल, दूसरी बार जिला प्रमुख पद पर काबिज होने के बाद जिस बिंदास तरीके से पतिदेव के सहयोग से श्रीमती पलाड़ा काम कर रही हैं, वह सबके सामने है, और स्थानीय भाजपाई सदके में हैं।

-तेजवानी गिरधर

7742067000

मंगलवार, 18 मई 2021

सबा खान : एक जिंदा औरत का इंतकाल


सुर्खी पढ़ कर आपका चौंकना लाजिमी है। इंतकाल तो किसी जिंदा इंसान का होता है, भला मरा हुआ कैसे इस फानी दुनिया को छोड़ सकता है? वह तो पहले ही अलविदा कर चुका होता है। आपके दिमाग में उठा यह सवाल बिलकुल वाजिब है। मगर मेरी कलम की कोख से यह सुर्खी इसलिए पैदा हुई, क्योंकि मेरी नजर में यह शहर गिनती के जिंदा लोगों की बस्ती है।   इसका कत्तई मायने ये नहीं कि बाकी के सारे लोग मरे हुए हैं। वे भी जिंदा हैं, मगर उतने नहीं, जितने सबा खान जैसे गिनती के लोग होते हैं। मायने ये कि शहर के सारे वाशिंद जिंदा तो हैं, मगर जिस्मानी तौर पर। दिमागी या रूहानी तौर पर नहीं। या तो वे दिमाग सिरहाने रख कर सो रहे हैं या फिर उनकी रूह मर चुकी है। कुछ दोस्तों को ऐसा कहना नागवार गुजर सकता है, मगर जरा मेरे अंदाज-ए-बयां पर गौर फरमाइये। यदि आपने ये जुमला सुना हो कि अजमेर टायर्ड और रिटायर्ड लोगों का शहर है, तो बड़ी आसानी से आपको मेरी बात गले उतर जाएगी। अजमेर के बारे में यह जुमला मेरी मखलूक नहीं। जब मेरी समझदानी अभी ठीक से काम करना भी शुरू नहीं हुई थी, तब से समझदार लोगों से सुनता आया हूं। नहीं पता कि ये जुमला किसके मुंह से निकला, मगर जमीनी हकीकत यही है। किसी शायर ने यूं ही नहीं कहा कि अजीब लोगों का बसेरा है इस शहर में, सब कुछ सहन करते हैं, मगर चूं तक नहीं करते। ये चंद अल्फाज अजमेर और अजमेर वासियों की फितरत को बयां करते हैं।

बहरहाल सबा खान का जिक्र करते हुए उनके नाम के साथ मरहूम इसलिए नहीं जोडूंगा, चूंकि उनके भीतर जो जज्बा था, वो शहर में गिनती के जिंदा लोगों के जेहन में धड़क रहा है। वह कभी नहीं मरा करता। सबा ने जो पहचान बनाई, वह उनके अलविदा होने के बाद भी जिंदा है। और नाम के साथ श्रीमती इसलिए नहीं जोडूंगा कि मेरी नजर में वे मर्द औरत थीं। बिंदास। उनके कांधे पर चस्पा उन तमगों का जिक्र करना बेमानी सा है, जिसके बारे में हर किसी को पता है कि वे राजस्थान प्रदेश महिला कांग्रेस की प्रदेश महासचिव थीं, अजमेर शहर जिला महिला कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं, सामाजिक सरोकार के क्षेत्र में अग्रणी संस्था प्रिंस सोसाइटी के संस्थापक अध्यक्ष और जवाहर फाउंडेशन की मजबूत स्तंभ थीं। हां, इतना जरूर कहना पड़ेगा कि वे एक जिंदादिल इंसान, हरदिल अजीज और खुश मिजाज थीं। हर किसी से बड़े खुलूस के साथ मिला करती थीं, मानों बरसों जी जान-पहचान हो।

जैसे ही उनके इंतकाल की खबर आई तो वाट्सऐप और फेसबुक के जरिए पूरे शहर में आग की तरह फैल गई। सुनने वाले हर शख्स की सांसें चंद लहमात के लिए ठहर सी गई। हजारों की आंखों में पानी तैरने लगा। किसी को यकीन ही नहीं हुआ। मगर यह कड़वी हकीकत थी। असल में वे भरपूर सेहतमंद थीं। गर कोरोना के शिकंजे में नहीं आतीं तो खूब जीतीं। क्या यह सरासर नाइंसाफी नहीं है कि कोरोना ने कम उम्र में ही जबरन उनकी सांसें रोक दीं? बिना यह सोचे कि ऐसे इंसानों की अजमेर को कितनी दरकार है?

अब जरा, उनकी शख्सियत के बारे में। उनमें गजब की फुर्ती थी, चुस्ती थी। यानि बिजली जैसी चपलता। तभी तो उनकी साथिनें पूछा करती थीं कि कौन सी चक्की का आटा खाती हो। कांग्रेस में तकरीबन दस साल शहर महिला अध्यक्ष रहीं। इस दौरान शायद ही कोई ऐसा दिन रहा हो कि वे कहीं नजर न आई हों। राजनीति से इतर भी वे आम अवाम के हर काम के लिए जुटी दिखाई देती थीं। उनके पास शहर का जो भी मसला आता था, जो भी फरियादी आता था, वे तत्काल आला अफसरान के चेंबर में बेधड़क घुस कर पैरवी करती थीं। सियासत उनकी रोजमर्रा की जिंदगी बन गई थी। कांग्रेस और भाजपा, दोनों में इस किस्म के नेता कम ही हैं। बावजूद इसके नगर निगम के लगातार दो चुनावों में कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया। असल में टिकट बांटने का गणित ही कुछ और है। हां, चंद महीनों के लिए जरूर मनोनीत पार्षद बनाया गया, मगर इतने समय में वे कर भी क्या सकती थीं? असल में उनका सपना था कि चाहे अजमेर से चाहे पुष्कर से, विधायक बनें और जनता की सेवा करें।

अफसोस, एक मर्द औरत कोरोना से जंग हार गईं। और इसी के साथ अपार संभावनाओं का अंत हो गया। शहर वासियों केलिए भी, परिवार वालों के लिए भी।

इन्ना लिल्लाही व इन्ना इलेही राजऊन

अल्लाह उन्हें जन्नतुल फिरदोस में आला मुकाम अता फरमाए। गमजदा परिवार वालों को सब्र जमील अता फरमाए।

-तेजवानी गिरधर

7742067000

tejwanig@gmail.com

मंगलवार, 11 मई 2021

अजमेर ने पांच बार सांसद रहे जनप्रिय नेता प्रो. रासासिंह रावत को खो दिया


भाजपा के वरिष्ठ नेता और अजमेर से पांच बार भाजपा के सांसद रहे प्रो. रासासिंह रावत का निधन हो गया। प्रो. रावत सहज सुलभता और अपनी विशेष भाषण शैली और धाराप्रवाह उद्बोधन के कारण लोकप्रिय थे। उनका जन्म सन् 1 अक्टूबर 1941 को श्री भूरसिंह रावत के घर हुआ। उन्होंने बी.ए. व एल.एल.बी. और हिंदी व संस्कृत में एम.ए. की शिक्षा अर्जित की और अध्यापन कार्य से अपनी आजीविका शुरू की। उन्हें 25 साल तक अध्यापन का अनुभव था। उल्लेखनीय सेवाओं के कारण उन्हें शिक्षक दिवस, 5 सितम्बर 1989 को राज्य सरकार की ओर से सम्मानित किया गया। अध्यापन कार्य के दौरान स्काउटिंग में विषेश सेवाएं देने के कारण उन्हें राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया जा गया। सामाजिक संगठन आर्य समाज अजमेर से उनका गहरा नाता रहा और पूर्व में इसके अध्यक्ष रहे व बाद में संरक्षक रहे। समाजसेवा से उनका कितना गहरा रिश्ता है, इसका अनुमान उनके दयानंद बाल सदन के प्रधान, भारतीय रेड क्रॉस सोसायटी के प्रधान व राजस्थान रावत राजपूत महासभा के पूर्व प्रधान व हाल तक संरक्षक का दायित्व निभाने से हो जाता है। वे सामाजिक, धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यों में विशेष रुचि रखते थे। भाजपा की नई चुनावी रणनीति के चलते उन्हेंं राजसमंद से लड़ाया गया, लेकिन इसमें कामयाबी नहीं मिली। बाद में उन्हें अजमेर शहर भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया। 

भाजपा में जाने से पहले रासासिंह रावत ने दो बार कांग्रेस के टिकट पर भीम विधानसभा सीट से चुनाव भी लड़ा था, लेकिन वे हार गए। बाद में भाजपा में शामिल हो गए। वे विरजानंद स्कूल के प्रधानाचार्य रहे। बाद में उन्हें डीएवी स्कूल का प्राचार्य बना दिया गया, फिर वे आर्य समाज क प्रधान भी बने। आर्य स्कूलों में शिक्षा का स्तर सुधारने में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान भी रहा है।

सांसद के रूप में उन्होंने सभी पांचों कार्यकालों में उन्होंने लोकसभा में अपनी शत-प्रतिशत उपस्थिति दर्ज करवाई। अजमेर से जुड़ा शायद ही कोई ऐसा मुद्दा रहा होगा, जो उन्होंने लोकसभा में नहीं उठाया। यह अलग बात है कि दिल्ली में बहुत ज्यादा प्रभावी नेता के रूप में भूमिका न निभा पाने के कारण वे अजमेर के लिए कुछ खास नहीं कर पाए। एक बार उनके मंत्री बनने की स्थितियां निर्मित भी हुईं, लेकिन चूंकि तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी के सोलह सहयोगी दलों के साथ मिल कर सरकार बनाने के कारण वे दल आनुपातिक रूप में मंत्री हासिल करने में कामयाब हो गए और प्रो. रावत को एक सांसद के रूप में ही संतोष करना पड़ा। उनकी सबसे बड़ी विशेषता ये थी कि वह सहज उपलब्ध हुआ करते थे। बेहद सरल स्वाभाव और विनम्रता उनके चारित्रिक आभूषण थे। 

रासा सिंह रावत के निधन पर भाजपा शहर जिला अध्यक्ष डॉ. प्रियशील हाड़ा, राज्यसभा सांसद भूपेंद्र यादव, अजमेर लोकसभा सांसद भागीरथ चौधरी, विधायक वासुदेव देवनानी, विधायक अनिता भदेल, राजस्थान धरोहर संरक्षण एवं प्रोन्नति प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष ओंकारसिंह लखावत, महापौर ब्रजलता हाड़ा, धर्मेश जैन, अरविंद यादव, शिव शंकर हेड़ा, धर्मेंद्र गहलोत, सुरेंद्र सिंह शेखावत, नीरज जैन, रमेश सोनी, जयकिशन पारवानी, संपत सांखला, संजय खंडेलवाल, आनंद सिंह राजावत, दीपकसिंह राठौड़, सीमा गोस्वामी, रमेश मेघवाल, हेमंत सुनारीवाल, देवेन्द्र सिंह शेखावत आदि ने दुख व्यक्त किया है।

7742067000

tejwanig@gmail.com

रविवार, 7 फ़रवरी 2021

क्या ब्रिजलता हाडा अपने जेठ स्वर्गीय राजेन्द्र हाडा का स्मार्ट सिटी का सपना साकार करेंगी?


अब जब कि अजमेर नगर निगम के मेयर पद पर भाजपा की ब्रिजलता हाडा काबिज हो गई हैं, तो यकायक उनके जेठ स्वर्गीय वकील श्री राजेन्द्र हाडा बाबत लिखे एक आलेख का स्मरण हो आया। अजमेर को स्मार्ट सिटी बनाने को लेकर उन्होंने एक सपना देखा था। मगर धरातल पर स्मार्ट सिटी का कामकाज  बहुत धीमी गति से चल रहा है। इस पर मैने ’स्मार्ट सिटी की कछुआ चाल पर कितनी विह्वल होगी स्वर्गीय श्री राजेन्द्र हाड़ा की आत्मा’ हैडिंग से लिखा था। अब जब कि उनकी ही भाभी ब्रिजलता हाडा धर्मपत्नी डॉ प्रियषील हाडा मेयर बन गई हैं तो यह उम्मीद की जानी चाहिए कि वे स्मार्ट सिटी की दिषा में बहुत  गंभीरता से काम करेंगी। यह न केवल अजमेर के हित में होगा, अपितु स्वर्गीय राजेन्द्र हाडा को असली श्रद्धांजलि होगी। 

प्रसंगवष वह आलेख हूबहू पेष हैः-


स्मार्ट सिटी की कछुआ चाल पर कितनी विह्वल होगी स्वर्गीय श्री राजेन्द्र हाड़ा की आत्मा


गुरुवार, 19 दिसंबर 2019। आज से ठीक चार साल पहले अजमेर के एक ऐसे लाल को काल के क्रूर हाथों ने हमसे छीन लिया, जिसने स्मार्ट सिटी बनने वाले अजमेर को एक सपना दिया था। वह सपना कितना कीमती था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनको उस सपने के लिए बाकायदा पुरस्कृत किया गया। 

आपको याद होगा कि मौजूदा प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अपने पिछले कार्यकाल में अमेरिका यात्रा के दौरान वहां के राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ मिल कर अजमेर सहित दो शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने की घोषणा की थी। इसी सिलसिले में 2 अक्टूबर 2015 को अजमेर नगर निगम ने ऑन लाइन सुझाव मांगे थे। तब शहर के जाने-माने वकील व पत्रकार स्वर्गीय श्री राजेन्द्र हाड़ा ने दस पेज का एक सुझाव सौंपा था कि कैसे इस पुरानी बसावट वाले शहर को स्मार्ट किया जा सकता है। उनके सुझाव को सर्वश्रेष्ठ मानते हुए निगम ने 29 नवंबर 2015 को उन्हें एक समारोह में प्रमाण पत्र के साथ पंद्रह हजार रुपए का नकद पुरस्कार दिया, जिसमें तत्कालीन शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी, मेयर धर्मेन्द्र गहलोत व आयुक्त एच. गुईटे मौजूद थे। समझा जा सकता है कि उन्होंने कितने महत्वपूर्ण सुझाव दिए होंगे। आज जब हम स्मार्ट सिटी की कछुआ चाल को देखते हैं तो स्वर्गीय श्री हाड़ा की पांचवीं पुण्यतिथी पर बरबस उनकी याद आ जाती है। अगर वे हयात होते तो अपनी आंखों से देखते कि उन्होंने जो सपना नगर निगम को सौंपा था, उसका हश्र क्या हो रहा है? बेशक उनकी आत्मा विह्वल होगी कि उन्होंने जो सुझाव दिए, जिन्हें कि सराहा भी गया, उस पर अमल में कितनी कोताही बरती जा रही है।

प्रसंगवश बता दें कि स्वर्गीय श्री राजेन्द्र हाड़ा पेशे से मूलत: वकील थे, मगर पत्रकारिता में भी उनको महारत हासिल थी। लंबे समय तक दैनिक नवज्योति में कोर्ट की रिपोर्टिंग की। बाद में दैनिक भास्कर से जुड़े, जहां उनके भीतर का पत्रकार व लेखक पूरी तरह से पुष्पित-पल्लवित हुआ। उन्होंने पत्रकारिता में आए नए युवक-युवतियों को तराश कर परफैक्ट पत्रकार बनाया। वे एक संपूर्ण संपादक थे, जिनमें भाषा का पूर्ण ज्ञान था, समाचार व पत्रकारिता के सभी अंगों की गहरी समझ थी। अजयमेरू प्रेस क्लब का संविधान बनाने में उनकी अहम भूमिका थी। उनकी अंत्येष्टि के समय पार्थिव शरीर से उठती लपटों ने मेरे जेहन में यह सवाल गहरे घोंप दिया कि क्या कोई कड़ी मेहनत व लगन से किसी क्षेत्र में इसलिए पारंगत होता है कि वह एक दिन इसी प्रकार आग की लपटों के साथ अनंत में विलीन हो जाएगा? खुदा से यही शिकवा कि यह कैसा निजाम है, आदमी द्वारा हासिल इल्म और अहसास उसी के साथ चले जाते हैं। वे अब हमारे बीच नहीं हैं, मगर मुझ सहित अनेक लोगों के जेहन में जिंदा हैं। चलो, वे बहुत सारा अर्जित ज्ञान अपने साथ ले गए, लेकिन संतोष है कि नगर निगम को अपना सपना जरूर सौंप गए। मगर साथ ही अफसोस भी है कि उस सपने को पूरा होने पर नौ दिन चले, अढ़ाई कोस वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। 

स्वर्गीय श्री हाड़ा की पुण्यतिथी पर उनकी धर्मपत्नी श्रीमती चांदनी हाड़ा के अहसासात को जानने की कोशिश की तो उन्होंने कुछ इस तरह अपना अनुभव बांटा:- उन्होंने पुरस्कार स्वरूप मिली राशि से अपने पिता, बहिन, पत्नी, पुत्र व छोटे भाई के दोनों बच्चों को रणथंभोर की यात्रा करवाई। उन्होंने करीब आठ सौ सीढिय़ां चढ़ कर गणेश जी की प्रतिमा से क्या कुछ मांगा था, समझ में नहीं आया। मगर उसका परिणाम ये हुआ कि पिताश्री का गणेश जी पर से विश्वास उठ गया। आज वे कहते हैं कि मैं गणेश जी को नहीं मानता। स्वाभाविक है कि जिस पिता ने वृद्धावस्था में अपने जवान बेटे खोया होगा, उसकी आस्था तो टूटेगी ही। मेरे व परिवार के सपने तो विधाता ने छीन लिए मगर मेरे पति को असली श्रद्धांजलि यही होगी कि उनके सपने को हम अजमेर वासी साकार होता हुआ देखें।

-तेजवानी गिरधर

7742067000

tejwanig@gmail.com