सोमवार, 7 मई 2012

कांग्रेसियों में असंतोष बढ़ रहा है सचिन पायलट के प्रति

हालांकि अजमेर के कांग्रेस सांसद व केन्द्रीय सूचना प्रौद्योगिकी व संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट अपने संसदीय क्षेत्र पर पूरा ध्यान दे रहे हैं और यहां के विकास के प्रति गंभीर नजर आते हैं, बावजूद इसके छोटे कांग्रेसी नेताओं व कार्यकर्ताओं में उनके प्रति असंतोष बढ़ता जा रहा है। आम जनता से भी उनका जुड़ाव नहीं हो पा रहा और यही आम धारणा बनती जा रही है कि वे आते तो हैं, मगर उनके दौरे आमतौर पर हवाई ही होते हैं। उनसे मिलना बेहद कठिन काम है। पायलट के लिए यह खबर चौंकाने वाली हो सकती है, मगर धरातल की सच्चाई यही है।
असल में छोटे नेताओं व कार्यकर्ताओं को तकलीफ ये है कि वे पायलट से सीधे जान-पहचान नहीं बना पा रहे हैं। वे पायलट के कार्यक्रमों में होते तो हैं, मगर नजदीक जा कर मिल नहीं पाते। या यूं कहिए कि जता नहीं पाते कि वे उनके स्वागत के लिए हाजिर हुए हैं। यदि मिल भी पाते हैं तो मात्र माला पहनाने जितना वक्त ही मिलता है। अपनी बात कहने अथवा व्यथा सुनाने का मौका नहीं मिलता। जाहिर तौर पर चंद चेहरों को छोड़ कर अधिसंख्य को वे पहचानते ही नहीं। हालांकि एक केन्द्रीय मंत्री के लिए इतना सब संभव नहीं है कि हर छोटे-मोटे नेता या कार्यकर्ता को समय दे सकें, मगर कार्यकर्ता इस बात को समझने को तैयार नहीं हैं। उन्हें तो यही लगता है कि वे मंत्री से पहले उनके सांसद हैं और उनसे नजदीकी कायम किए बिना कोरी नारेबाजी करने या माला पहनाने से क्या फायदा। छोटे नेताओं की छोडिय़े, कुछ ठीक-ठाक नेताओं तक को भी यही पीड़ा है कि तीन साल बाद भी वे उनसे नजदीकी नहीं बना पाए हैं। नजदीकी की छोडि़ए, कई छोटे नेताओं को तो यही तकलीफ है कि वे कईं बार तुनक मिजाजी में झिड़क देते हैं। कुछ एक प्रकरण तो मीडिया में भी आ चुके हैं। और यही वजह है ऐसे अनेक छोटे नेता व कार्यकर्ता यह कहते हुए मिल जाएंगे कि चुनाव के वक्त तो अजमेर ही आएंगे ना, तब हिसाब चुकता कर लेंगे।
जानकारों की मानें तो बड़े व नामी नेताओं तक की हालत ये है कि वे अजमेर आने पर जरूर उनके साथ हो पाते हैं, मगर उनके दिल्ली होने पर वे सीधे उनसे बात नहीं कर पाते। किसी भी मसले पर उनकी बात उनके पीए विकास शर्मा अथवा खटाणा जी या निरंजन से ही हो पाती है। कुछ नेताओं ने इन तीनों के नंबर अपने मोबाइल पर पायलट के नाम से ही फीड कर रखे हैं। जब कभी बात होती है तो अपने साथियों को यही जताते हैं कि पायलट साहब से बात हुई है। इन तीनों के जरिए ही पायलट फीड बैक लेते हैं और इन्हीं के जरिए निर्देश देते हैं। एक केन्द्रीय मंत्री के लिए यह संभव भी नहीं कि वे स्थानीय नेताओं की आए दिन की रामायण व महाभारत को सुनें, मगर यह दूरी स्थानीय नेताओं में कसक तो पैदा करती ही है।
जहां तक जनता का सवाल है, हकीकत ये है कि उसका एक सांसद से सीधे कोई खास काम नहीं होता। उसकी समस्याएं आम तौर पर स्थानीय होती हैं, जिनके समाधान की उम्मीद सांसद करना बेमानी ही है। फिर भी उसकी यह अपेक्षा तो होती ही है कि वे उनकी समस्याओं के समाधान के लिए संबंधितों को कहें। यही वजह है कि यह अपेक्षा की जाती रही है कि पायलट को अजमेर में हर माह कम से कम दो दिन वक्त देना चाहिए और दरबार लगा कर जनसुनवाई करनी चाहिए, तभी उनका जनता से सीधा संवाद कायम हो पाएगा। इसके अतिरिक्त एक मांग यह भी उठती रही है कि वे अजमेर में अपना एक दफ्तर खोलें, जहां जा कर कोई भी अपनी समस्या के बारे में बात कर सके।
असल में अजमेर वासियों को ऐसे सांसद की आदत पड़ गई है, जो कि हर वक्त अजमेर में ही उपलब्ध हो। हर छोटे-मोटे कार्यक्रम में शिरकत करें और उन्हें व्यक्तिगत रूप से जानता हो। फिर भले ही विकास के नाम पर कुछ न कर पाए। ऐसा नहीं कि जनता को इस बात का मलाल नहीं कि उनके पूर्व सांसद प्रो. रासासिंह रावत अजमेर के लिए कुछ खास नहीं कर पाए, मगर उन्हें इस बात की संतुष्टि है कि वे कम से कम हर वक्त उनके पास ही रहते थे। यह कुछ वैसा ही है जैसे एक मां अपने बेटे को बड़े पद व मोटे वेतन के लिए बाहर जाने देने की बजाय अपने पास ही रखना चाहती है, भले ही वह स्थानीय स्तर पर छोटे पद व कम वेतन पर काम करता हो। मां रूपी जनता की इस भावना को कदाचित पायलट समझते हों, मगर उनका सारा ध्यान अजमेर को विकास की राह पर ले जाना है। वे जनता से दूर भले ही हों, मगर अजमेर पर ध्यान नहीं दे रहे, यह आरोप तो कम से कम उन पर नहीं लगाया जा सकता। विपक्षी नेता भले ही राजनीतिक कारणों से उनका विरोध करते हों, मगर मन ही मन वे भी जानते हैं कि पायलट के मंत्री बनने के कारण अजमेर की अहमियत बढ़ी है।
जहां तक पायलट की मजबूरी का सवाल है, यह साफ है कि उनके लिए एक सांसद की तरह अधिकतर समय अजमेर में ही देना संभव नहीं है, चूंकि उनके पास बड़ी जिम्मेदारी है। दूसरा ये कि अजमेर की कांग्रेस में इतने फिरके हैं और इतने विवाद हैं कि उन पर आए दिन माथापच्ची करना खुद कीचड़ में फंसना है। कदाचित इसी वजह से वे दूरी रखते हैं। मगर जानकारों का मानना है कि यही दूरी आगे चल कर उनके लिए दिक्कत बन जाएगी। माना कि उनकी ओर से कराया गया विकास काउंट होगा, मगर यदि अपनी मजबूत टीम नहीं बना पाए तो वह आगामी चुनाव में परेशानी बन सकती है। 

-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

प्रदेश भाजपा में घमासान, अजमेर के नेता किंकर्तव्यविमूढ़

मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे के कोपभवन में बैठने से प्रदेश भाजपा में घमासान मचा हुआ है और उसकी धमक से दिल्ली हाइकमान भी हिला हुआ है, अजमेर के भाजपाई किंकर्तव्यविमूढ़ हैं। वे समझ ही नहीं पा रहे हैं कि क्या करें, क्या न करें, किधर जाएं, किधर नहीं?
असल में अजमेर भाजपा के मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का गढ़ रहा है। अधिसंख्य नेता या तो संघ पृष्ठभूमि से हैं अथवा किसी न किसी रूप में संघ से जुड़े हुए हैं। कुछ एक नेताओं को छोड़ कर सीधे तौर पर उनका जुड़ाव वसुंधरा राजे से नहीं है। बड़े नेताओं में अकेले पूर्व जलदाय मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट हैं, जो कि मुखर हो कर सामने आए हैं और उन्होंने बाकायदा किसान मोर्चा के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया है। यहां उल्लेखनीय है कि जाट संघ पृष्ठभूमि से नहीं हैं और उनकी गिनती वसुंधरा राजे के खास सिपहसालारों में होती है। रहा सवाल विधायकों का तो अजमेर जिले में तीन भाजपा विधायक हैं। सर्वविदित है कि प्रो. वासुदेव देवनानी व श्रीमती अनिता भदेल संघ पृष्ठभूमि से हैं, इस कारण उनके खुल कर वसुंधरा राजे के साथ आने की उम्मीद भी नहीं है। हालांकि कुछ समाचार पत्रों में यह जानकारी आई है कि अनिता भदेल व शंकर सिंह रावत इस्तीफा सौंपने वालों में शामिल हैं, मगर इसकी पुष्टि नहीं हो पा रही। उलटे भाजपाई तो चौंक रहे हैं कि अनिता भदेल ने कैसे इस्तीफा दे दिया। देवनानी के बारे में भी कुछ पता नहीं है। जयपुर से आ रही साठ विधायकों के इस्तीफा देने की खबरों से अंदेशा होता है कि कदाचित वसुंधरा का पलड़ा भारी होने के चलते अजमेर के विधायकों ने भी गुपचुप साइन कर दिए हों, क्योंकि बाद में अगर वसुंधरा को फ्री हैंड मिल गया तो उनको टिकट लेने में दिक्कत आएगी। जहां तक ब्यावर के विधायक शंकरसिंह रावत का सवाल है, उनके यह कहने पर कि उनसे वसुंधरा जी ने इस्तीफा मांगा नहीं है, मांगेंगी तो दे देंगे, साफ है कि वे किंकर्तव्यविमूढ़ हैं। अगर इस्तीफा दे भी दिया है तो खुल कर नहीं बोल रहे।
पार्टी नेताओं की बात करें तो प्रदेश उपाध्यक्ष औंकारसिंह लखावत प्रदेशाध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी खेमे के माने जाते हैं, इस कारण उन्होंने चुप्पी साध ली है। शहर भाजपा अध्यक्ष प्रो. रासासिंह रावत की ढुलमुल नीति से सभी वाकिफ हैं। खुद का पल्लू झाडऩे के लिए उन्होंने यह कह दिया कि पार्टी के वरिष्ठ नेता मंथन कर रहे हैं। अलबत्ता उन्होंने वसुंधरा की महत्ता को जरूर स्वीकार किया है, जो कि साबित करता है कि वे ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर वाली नीति पर चल रहे हैं। इसी प्रकार विहिप से जुड़े प्रदेश भाजपा शिक्षा प्रकोष्ठ के अध्यक्ष प्रो. बी.पी. सारस्वत ने भले ही यह कह दिया हो कि वे मेडम के साथ खड़े हैं, मगर वे कितने साथ हैं, इसका अनुमान उनके यह कहने से लगता है कि पार्टी नेताओं को इस्तीफा देने की आवश्यकता नहीं है। उधर देहात भाजपा अध्यक्ष नवीन शर्मा ने जरूर खुल कर कह दिया कि उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया है और पार्टी के अंदर समस्या का हल निकाला जा रहा है। ज्ञातव्य है कि उनका प्रो. जाट से छत्तीस का आंकड़ा है, इस कारण वसुंधरा के साथ जाने की संभावना बनती ही नहीं है। नगर निगम पार्षद व भाजयुमो के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नीरज जैन भी देवनानी के करीबी और संघ के निकट हैं, इस कारण उन्होंने भी यह कह कर कि वे राजस्थान से बाहर हैं, खुद को बचाने की कोशिश की है। मौजूदा संचार प्रचार युग में कोई यह कहे कि उन्हें कुछ पता नहीं है, अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे कोई टिप्पणी करने से क्यों बच रहे हैं। निचले स्तर पर जरूर कुछ वसुंधरा के साथ तो कुछ संघ के साथ हैं, मगर वे किसी विवाद में नहीं पडऩा चाहते। पता नहीं ऊंट किस करवट बैठे या काहे को आइटेंटिफाइड हों, पार्टी के साथ तो हैं ही।
ताजा घमासान में उन नेताओं को परेशानी ज्यादा है, जो कि आगामी विधानसभा चुनाव में दावेदारी करना चाहते हैं। वे जानते हैं कि अगर किसी एक पक्ष के साथ रहे तो बाद में दिक्कत आएगी, इस कारण वे टकटकी लगा कर देख रहे हैं कि देखें क्या होता है। रहा आम कार्यकर्ता सवाल, तो वह बेहद दुखी है कि पार्टी में ये क्या हो रहा है? आम जनता से वोट मांगने तो उन्हें ही जाना पड़ता है, मतदाता को क्या मुंह दिखाएंगे? उन्हें तो पार्टी के साथ रहना है, फिर चाहे वसुंधरा के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाए या पार्टी के बैनर पर।

-तेजवानी गिरधर
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किरण और कटारिया की जंग काफी पुरानी है

लोकसभा चुनाव में किरण को निपटाने के लिए आया था एक परचा
हाल ही सुर्खियों में आई भाजपा की राष्ट्रीय महासचिव व राजसमंद विधायक श्रीमती किरण माहेश्वरी व पूर्व गृह मंत्री गुलाब चंद कटारिया की जंग काफी पुरानी है। जब किरण माहेश्वरी अजमेर से लोकसभा का चुनाव लडऩे आई थीं, तब एक पर्चा किरण को निपटाने को अजमेर में बंटा था। जिले के गिने-चुने भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं को ही बारे में पता था। हालांकि यह परचा दबा दिया गया, लेकिन यह दैनिक न्याय सबके लिए के हाथ आ गया था। चर्चा ये थी कि इस परचे के पीछे पूर्व गृह मंत्री गुलाब चंद कटारिया का हाथ था। तब भी यही बताया गया था कि उदयपुर में भाजपा कटारिया व किरण की लॉबियों में बंटी हुई है। दोनों नेताओं में छत्तीस का आंकड़ा है। ऐसे में किरण के चुनाव लडऩे को अजमेर आने पर कटारिया अथवा उनकी लॉबी के कोई नेता स्थानीय भाजपा नेताओं को यह बताना चाहते थे कि किरण की असलियत क्या है।
आइये, देखते हैं कि उस परचे में लिखा क्या था-छह माह पहले ही किरण माहेश्वरी ने राजसमंद विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं के सामने पांच साल तक नेक सेवा करने की वचनबद्धता के साथ सौगंध खाकर व करोड़ों रुपए खर्च कर चुनाव जीता था, लेकिन छह माह बाद ही उन्हें धोखा दे दिया।
इसमें अजमेर के भाजपा नेताओं को ललकारते हुए लिखा गया है कि क्या अजमेर में लोकसभा सदस्य बनने की क्षमता किसी भी भाजपा कार्यकर्ता में नहीं है, लेकिन केन्द्र की नजर तो आप पर है, यानि किरण पर है, सब कार्यकर्ताओं का हक मार दिया। अजमेर का मतदाता शिक्षित है। वह पैसे से नहीं बिकेगा। पैसा हजम-वोट नहीं। चलो बेईमानी से एकत्र बीस-पच्चीस करोड़ जनता तक तो पहुंचेंगे।
परचे में लिखा है कि विधायक बनने के बाद राजसमंद से किरण ने जिला परिषद के प्रमुख के उपचुनाव में जीवनभर जनसंघ व भाजपा के लिए खपने वाले नंदलाल सिंघली को अनदेखा करके आपने विश्वस्त वोटों को कांग्रेस के उम्मीदवार को दिला कर कांगे्रसी जिला प्रमुख बना दिया और भाजपा के साथ गद्दारी की। इसमें लिखा है कि जब किरण माहेश्वरी तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष गुलाबचंद कटारिया की मेहरबानी से भाजपा के महिला मोर्चे की अध्यक्ष बनीं तो जयपुर के स्विन एंड स्माइल रेस्टोरेंट की मालकिन मिन्नी सिद्धू उनकी खास महामंत्री थी। किरण का अधिकांश समय रेस्टोरेंट पर ही बीतता था। यहां महिलाओं को राजनीति में आगे बढ़ाने की पाठशाला चलाई गई थी। इस पाठशाला के प्रमोटर एस.एन. गुप्ता थे। परचे में लिखा है कि तरणताल में जल क्रीड़ा की जाती थी। मिन्नी सिद्धू पर दलाली के आरोप में मुकदमा चल रहा है। उसने उस पाठशाला में आने वाले स्त्री-पुरुषों के नाम उजागर किए हैं, यहां लिखेंगे तो भाजपा में भूचाल आ जाएगा। उदयपुर में कार्यकर्ता जानते हैं कि किरण नई-नई सखियां बना कर रखती हैं। इसमें लिखा था कि पिछले चार साल में किरण ने फर्जी दस्तखतों से भाई साहब कटारिया जी की छवि बिगाडऩे के लिए मनगढ़ंत आक्षेप वाले पत्र प्रदेश व देश के नेताओं को भेजने का रिकार्ड बनाया है। उसी शैली में यह पत्र आपको भिजवाया जा रहा है, ताकि आपकी बॉडी लैंग्वेज के पीछे छिपे निहायत खतरनाक षड्यंत्रकारी फेस की वास्तविकता सब जान सकें।
इसमें लिखा है कि किरण को राजनीति में जमीन मुहैया कराने की भूल तो भाई साहब ने ही किया था। उन्होंने जनसंघ काल से ही सक्रिय रही सारी महिलाओं की वरिष्ठता दरकिनार कर आपकी खूबसूरती की योग्यता को पैमाना बना कर नगर परिषद का सभापति बनवाया था। सभापति बनने से पहले आपकी माली हालत खस्ता थी और सभापति बनते ही माली हालत ठीक करने के एजेंडे पर चलना चालू कर दिया। सभापति बनने से पहले आपके पति एक उद्योगपति के यहां नौकरी करते थे और आर्थिक अभावों में गबन कर बैठे, उसका पुलिस केस भी बना। यह तो अच्छा हुआ कि आप सभापति बन गईं और अपने प्रभाव से उस केस का रफा-दफा करवा दिया, नहीं जेल जाने की नौबत आ जाती। उसके बाद भी आपके पति ने सीए के रूप में व्यावसायिक बेईमानी की, उसका भी केस बना ओर हिरासत में जाना पड़ा।
आपके सभापति काल में भ्रष्टाचारों की फेहरिस्त बहुत लंबी है। आपने निर्माण कार्यों हेतु परंपरागत रूप से सभापति को मिलने वाले डेढ़ प्रतिशत को बढ़ा कर दो से तीन प्रतिशत कर दिया। परिषद में खड़े दर्जनों जंगी पेड़ों कटवा कर वन कानून का उल्लंघन किया। देबारी द्वार के निर्माण हेतु आबंटित कुलियां राशि आठ लाख छासठ हजार रुपयों को नींव भरने में खर्च करवा कर बहुत भारी कमीशन खाया। इस मामले की जांच हुई, लेकिन आपने दबवा दिया। हिरण मगरी स्थिति विद्या निकेतन परिसर में गड्ढों को भरवाने के लिए मलबा डलवाया। उसमें ट्रक के 175 ट्रिप्स अध्यापक गिने, आपने रिश्वत खा कर 230 ट्रिप्स का चुकारा करवा दिया। आपने अपनी मां के नाम पर बंपर खरीद कर परिषद में ही ठेके पर लगा दिए। जांच में गड़बडिय़ां सामने आर्इं। स्वायत्त शासन विभाग के एक सेवानिवृत्त भ्रष्ट अधिकारी गुलाबसिंह को विभाग की स्वीकृति के बिना ही विशेष अधिकारी बना दिया। उस पर कई आरोप लगे तो उसको भगा दिया। आपके भ्रष्टाचार के विरुद्ध पार्षद अजय कुशवाहा आमरण अनशन पर बैठे। इस फाइलें जयपुर मंगवा ली गर्इं। आप सौभाग्यशाली रहीं कि इसके बाद कांग्रेस शासन में स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल बने, जो स्वभाव से महिलाओं के प्रति बड़े उदार हैं। आपकी बॉडी लैंग्वेज से सभी फाइलों को निपटारा हो गया।
आपने विदेश यात्रा के लाखों रुपए नगर परिषद से उठाए, जबकि सारी यात्रा का खर्च अमरीका में आमंत्रित करने वाले मेजबानों ने उठाया था। जांच में मेजबानों का सहयोग न मिलने पर जांच बंद कर दी गई। दी महिला समृद्धि अरबन को-ऑपरेटिव बैंक की आप अध्यक्ष थीं। उसमें गड़बडिय़ों की जांच अपने ही पति को ऑडिट की जिम्मेदारी दे दी। आपके पांच साल के सभापति कार्यकाल में दौरान किए कारनामों से उदयपुर के अखबार भरे रहे। इस पर आपको पद से हटाने पर विचार भी हुआ। शहर भाजपा अध्यक्ष मदनलाल मूंदड़ा की ओर बुलाई गई बैठक में बाईस पार्षदों ने आपकी कड़ी आलोचना की। केवल पांच पार्षद ही आपके पक्ष में रहे। इस पर बड़े नेताओं ने आपको फटकार लगाई। आप फूट-फूट कर रो पड़ीं। आपके खिलाफ पच्चीस पार्षदों ने प्रदेश अध्यक्ष रघुवीर सिंह कौशल को ज्ञापन दिया था। विधायक शिवकिशोर सनाढ्य ने आपका बचाव किया। उद्योगपतियों ने भी आपके खिलाफ उप मुख्यमंत्री हरिशंकर भाभड़ा को ज्ञापन दिया था।
आपका असली रूप तो पिछले चुनाव में ही सामने आ गया था। विधानसभा टिकट वितरण के दौर में आपने स्व. प्रमोद महाजन के जरिए सभी तौर तरीकों से कोशिश की कि भाई साहब बड़ी सादड़ी से चुनाव लड़ें। आप उदयपुर से चुनाव लडऩा चाहती थीं। आपने वसुंधरा राजे की परिवर्तन यात्रा के दौरान समय व स्थान के अनुरूप वस्त्र भी तैयार करवाए, ताकि बाद में आपको मंत्री पद मिल जाए, लेकिन भई साहब की संघ में मजबूत पकड़ के कारण आपकी पार नहीं पड़ी।
इस परचे से ही स्पष्ट है कि यह किरण के विरोधी और कटारिया के चहेते ने लिखा है। कानाफूसी है कि भिजवाया कटारिया जी ने ही था। कटारिया जी के ही किसी चेले ने यह करतूत की थी, क्योंकि इसमें साफ तौर पर कटारिया जी की पैरवी की गई है और किरण को निपटाया गया है।

-तेजवानी गिरधर
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