रविवार, 3 फ़रवरी 2013

भाजपा भी तो जिम्मेदार है बाकोलिया की नाकामी के लिए

लंबे अरसे बाद होने जा रही नगर निगम की साधारण सभा को लेकर शहर की राजनीति गरमा गई है। एक ओर जहां कांग्रेस के मनोनीत पार्षद गुलाम मुस्तफा ने सीधे निगम मेयर कमल बाकोलिया पर हमला बोला है, वहीं भाजपा पार्षद दल भी यकायक जाग गया है। उसे भी शहर की बदहाली की चिंता सताने लगी है। उसे अब याद आ रहा है कि जनता के व्यापक हित में राजस्थान नगर पालिका अधिनियम 2009 के प्रावधानों के तहत साधारण सभा 60 दिवस के भीतर होनी चाहिए, लेकिन निगम मेयर और प्रशासन ने इसका उल्लंघन किया। अधिनियम में यह भी प्रावधान है कि बैठक निगम परिसर या कार्यालय में होनी चाहिए।
सवाल ये है कि भाजपा को मेयर की इस नाकामी का अचानक याद कैसे आ गई? भाजपा की ओर से जारी बयान में लिखा है कि शहर जिला अध्यक्ष रासासिंह रावत, विधायक वासुदेव देवनानी, श्रीमती अनिता भदेल, वरिष्ठ उपाध्यक्ष एवं प्रवक्ता अरविंद यादव, पूर्व सभापति सुरेंद्र सिंह शेखावत, महामंत्री धर्मेंद्र गहलोत, कैलाश कच्छावा, सोमरत्न आर्य ने मेयर बाकोलिया के ढ़ाई वर्ष के कार्यकाल को विफलतम बताते हुए कहा कि इस अवधि में अजमेर सर्वाधिक बदहाली का शिकार हुआ। कांग्रेस की कार्यप्रणाली से जनता सर्वाधिक निराश हुई है। उनके आरोप में दम है, मगर सवाल ये है कि निगम बोर्ड में बराबर की टक्कर जितने पार्षद होने के बाद भी भाजपा मेयर को घेरने में कामयाब क्यों नहीं हो पाई? स्पष्ट है कि शहर भाजपा नेताओं की आपसी फूट, पार्षदों में बिखराव और सशक्त नेतृत्व के अभाव के कारण भाजपा निगम में विपक्ष की भूमिका सशक्त ढंग से नहीं निभा पाई है। सच तो ये है कि मेयर बाकोलिया को अपने ही कांग्रेसी पार्षदों की बजाय भाजपा पार्षदों का निजी तौर पर संबल हासिल है।
भाजपा पार्षद दल की इस हालत पर मलाल खुद भाजपा पार्षदों तक को हो चला है। भाजपा पार्षद दल की बैठक से छन कर आई खबरों से तो यह भी सामने आया है कि तेजतर्रार पार्षद नीरज जैन ने भाजपा पार्षद दल की बैठक में यह कह कर खिन्नता जाहिर की कि भाजपा नेताओं, पार्षदों के बीच तालमेल के अभाव के कारण ही हम आज तक निगम में कांग्रेस के मेयर और निगम प्रशासन की नियम विरुद्ध कार्रवाइयों का मजबूती से विरोध नहीं कर पाए। अगर कोई पार्षद पहल भी करता है, तो पार्टी के अन्य पार्षद यह कहते हुए साथ छोड़ देते हैं कि तुम्हें किसने अधिकृत किया। भाजपा पार्षदों में आपसी टांग खिंचाई का नतीजा यह है कि निगम में भाजपा का बोर्ड होते हुए भी पार्षद जनहित के मुद्दे पुरजोर तरीके से नहीं उठा पाते। इतना ही नहीं, बैठक के दौरान यह भी उजागर हुआ कि कुछ पार्षद अपने ही नेता डिप्टी मेयर अजीत सिंह से संतुष्ट नहीं हैं और अपने आपको नेतृत्वहीन मानते हैं। यह दीगर बात है कि अपनी बेटी की शादी के व्यस्त अजित सिंह बैठक में मौजूद नहीं थे, वरना उनके सामने बोलने की तो आज तक किसी ने हिम्मत नहीं दिखाई।
वैसे यह नेतृत्व की ही खामी है कि पार्षद जे. के. शर्मा बिना किसी का मार्गदर्शन लिए अपने स्तर पर ही तय कर लेते हैं कि वे नियमों के विपरीत बोर्ड की बैठक फॉयसागर पार्क में करने पर धरना देंगे, जिस पर शहर भाजपा अध्यक्ष रासासिंह असमंजस में पड़ जाते हैं कि क्या करें, क्या न करें? वे तो इस कारण ढ़ीले पड़े थे खुद भाजपा बोर्ड के समय भी निगम से बाहर बैठक की जा चुकी है। वो तो पूर्व मेयर धर्मेन्द्र गहलोत ने स्टडी कर ताजा नियमों का खुलासा किया, तब जा कर रणनीति बनाने का रास्ता निकल कर आया। गहलोत ने बताया कि नगर निगम के कंडक्ट ऑफ बिजनेस रूल 1974 में साधारण सभा नगर निगम भवन के साथ ही निगम की अन्य परिसंपत्ति में भी करने के विकल्प दिए गए थे। इसे सन् 2009 के एक्ट में संशोधित कर सभी विकल्प हटाकर जीसी केवल नगर निगम कार्यालय में कराने की अनिवार्यता रखी गई है।
पार्टी कितनी दिशाविहीन है, इसका अंदाजा इसी बात से हो जाता है कि तकरीबन ढ़ाई साल बाद उसे खयाल आता है कि उसे मुख्य सचेतक नियुक्त करना चाहिए और बोर्ड बैठक में कांग्रेस को टक्कर देने के लिए भागीरथ जोशी की नियुक्ति की जाती है।
खैर, अब जब कि पार्टी नेताओं ने पार्षदों को पुरानी बातों और विवादों को भुलाकर एकजुट होकर जनहित के मामले सभा में उठाने पर जोर दिया है, देखते हैं यह अपील कितना असरकारक होती है।
-तेजवानी गिरधर