रविवार, 30 सितंबर 2012

चंद माह में ही अजमेर से रुखसत कैसे हो गईं पुष्पा सत्यानी?


इसी साल अजमेर नगर सुधार न्यास में सचिव पद पर नियुक्त हुईं श्रीमती पुष्पा सत्यानी चंद माह में ही अजमेर से रुखसत हो गईं। जाहिर है यह सवाल तो उठना ही है कि क्या सरकार को उनका कामकाज पसंद नहीं आया या वे स्वयं यहां नहीं रहना चाहती थीं।
जैसी कि जानकारी है, न्यास सदर नरेन शहाणी भगत अपनी सुविधा के लिए उन्हें यहां ले कर आए थे। उन्हें सुविधा हुई या नहीं, ये तो पता नहीं, मगर पुष्पा सत्यानी को जरूर असुविधा हो गई। अंदरखाने की खबर यही है कि वे खुद ही यहां नहीं रहना चाहती थीं। कार्यभार संभाले दो-तीन माह ही हुए थे कि वे आए दिन की राजनीतिक घोचेबाजी व मीडिया की तीखी नजर के चलते परेशान हो गईं। उन्होंने कहना शुरू कर दिया था कि अजमेर में तो काम करना संभव ही नहीं है। यहां के लोग कुछ करने ही नहीं देना चाहते। केवल हर काम में बाधा डालने लगते हैं। असल में एक ओर तो भाजपा की विधायक श्रीमती अनिता भदेल न्यास को टारगेट पर ले रखा था। सच ये भी है कि इसमें मीडिया का भी पूरा हाथ था। ये मीडिया का ही दबाव था कि स्वायत्त शासन विभाग व नगरीय विकास विकास विभाग के प्रमुख शासन सचिव जी. एस. संधु ने अजमेर नगर सुधार सचिव श्रीमती पुष्पा सत्यानी को नसीहत दे दी कि वे आवासीय योजनाओं में मकानों के व्यावसायिक भू उपयोग परिवर्तन नहीं करें। सीधी सी बात है कि भू उपयोग परिवर्तन के मामलों में आवेदक कुछ ले दे कर अपना काम करवाना चाहता है। यानि कि संधु के निर्देश के बाद खाने-कमाने का यह जरिया तो बंद हो गया। पत्रकार संजय माथुर की रिपोर्ट पर ही भाजपा विधायक श्रीमती अनिता भदेल ने अफोर्डेबल स्कीम के तहत आवास बनाने की योजना में की जा रही नियमों की अनदेखी का मसला सरकार के सामने उठाया और उसे बंद करने के आदेश हो गए। इसमें भी अच्छी खासी आमदमी होने की उम्मीद थी, जिस पर पानी फिर गया। इसके अतिरिक्त श्रीमती अनिता भदेल ने भगवान गंज सैकंडरी विद्यालय के ठीक पीछे स्थित पहाड़ी का गलत नियमन करने पर हंगामा किया, जिसकी जांच करवानी पड़ी और नियमन गलत पाए जाने पर उसे रद्द भी करना पड़ा। इस मामले में न्यास की बड़ी भारी फजीहत हुई।
ये रही उपलब्धियां
जहां तक उनके संक्षिप्त कार्यकाल में हुए कामों का सवाल है कि न्यास की महत्वाकांक्षी डीडी पुरम आवासीय योजना सिलसिले में भूमि के बदले में भूमि के न्यास के प्रस्ताव को राज्य सरकार स्वीकृति प्राप्त हुई है। उनके कार्यकाल में ही चन्दवरदायी नगर में राजस्थान के सर्वश्रेष्ठ हॉकी सिंथेटिक टर्फ स्टेडियम का शुभारंभ हुआ। इसी प्रकार अफोर्डेबल आवासीय नीति 2009 के अंतर्गत आवासहीन आर्थिक दृष्टि से कमजोर एवं अल्प आय वर्ग के लिए आवासों का निर्माण की योजना ने गति पकड़ी। इंडिया मोटर्स से आनासागर स्केप चैनल तक कचहरी रोड पर क्षेत्रपाल आई हॉस्पिटल के सामने नाले को कवर कर पार्किंग स्पेस तैयार हुआ। साथ ही हाथीभाटा गली से ब्रह्मपुरी नाले तक नाले को कवर कर पार्किंग स्पेस भी पूर्ण हुआ। उनकी इच्छा थी कि कचहरी रोड से तोपदड़ा पुलिया तक नाले को कवर किया जाए, किंतु रेलवे ने अभी तक स्वीकृति नहीं दी। इसी प्रकार मुख्य नसीराबाद रोड पर 9 नंबर पेट्रोल पम्प से डी.ए.वी. शताब्दी स्कूल तक, सी.आर.पी. ओवरब्रिज से रोडवेज बस स्टैंड तक तथा नाका मदार से नारेली चौराहा बाईपास की सड़क को फोरलेन में परिवर्तित करने तीनों सड़कों के मध्य डिवाइडर बनाकर स्ट्रीट लाइटें लगाने का कार्य भी आरंभ कराया। उन्हीं के कार्यकाल में माकड़वाली मुख्य मार्ग एवं प्रस्तावित पुष्कर बाईपास के जंक्शन पर आधुनिक सुख-सुविधाओं सहित सीमेंट कन्क्रीट सड़कें, ड्रेनेज, बिजली, पानी, सीवर एवं प्लान्टेशन आदि का प्रावधान कर एन.आर.आई. आवासीय योजना इको फे्रण्डली तर्ज पर बनाने की योजना बनी। जवाहर लाल नेहरू शहरी नवीनीकरण योजना के अंतर्गत गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहे एवं वन भूमि पर अतिक्रमण कर बच्ची बस्ती में रह रहे परिवारों 664 आवासों का निर्माण हो चुका है तथा योजना की क्रियान्विति भी अतिशीघ्र ही की जाएगी। उन्हीं के कार्यकाल में हरिभाऊ उपाध्याय नगर विस्तार में नौसर घाटी प्राइवेट बस स्टेण्ड का शुभारंभ हुआ।
आइये जानें, पुष्पा सत्यानी के निजी जीवन के बारे में
चार भाइयों एवं पांच बहनों में सबसे छोटी पुष्पा सत्यानी का जन्म जोधपुर में पाकिस्तान से निर्वासित होकर आए श्री चांदूमल सत्यानी, जो एक साधारण व्यवसायी थे, के घर हुआ। प्रारंभिक शिक्षा बी.जे.एस. स्कूल जोधपुर प्राप्त करने के बाद बड़े भाई श्री किशनचंद का स्थानान्तरण बीकानेर में हो जाने के कारण सोफिया स्कूल से हायर सेकंडरी उत्तीर्ण कर सोफिया कॉलेज, अजमेर से प्रथम वर्ष की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद ग्रेजुएशन तक की शिक्षा महारानी सुदर्शन कॉलेज, बीकानेर से ली। 1989-91 में रामपुरिया कॉलेज, बीकानेर से एमबीए उत्तीर्ण कर सीधे राजस्थान प्रशासनिक सेवा प्री एंड मेन परीक्षा उत्तीर्ण कर, राजस्थान लोक सेवा आयोग में इन्टरव्यू में राज्य में 13वां रैंक प्राप्त कर राज्य प्रशासनिक सेवा में प्रवेश किया। ओ.टी.एस. जयपुर में प्रशिक्षण के बाद सर्वप्रथम बीकानेर में सहायक आयुक्त कोलोनाइजेशन पद पर कार्य आरंभ कर अनूपगढ़ में सहायक जिला मजिस्टे्रट, जयपुर में एस.डी.ओ. लैंड कन्वर्जन, अजमेर में सहायक जिलाधीश, राजस्थान कर बोर्ड अजमेर में सहायक रजिस्ट्रार, जयपुर में माडा में डिप्टी प्रोजेक्ट अधिकारी, जयपुर में ही जे.डी.ए. के जोन में उप आयुक्त, जयपुर में परिवहन विभाग में उप आयुक्त, जयपुर नगर निगम में आयुक्त तथा बाद में सहायक जिला मजिस्ट्रेट संख्या चार व ओ.टी.एस., जयपुर में कार्य किया। बाद में राजस्थान मेडीकल सर्विसेज कॉरपोरेशन जयपुर में कार्यकारी निदेशक के रूप में मुख्यमंत्री नि:शुल्क दवा योजना में डॉ. सुमित शर्मा के मार्गदर्शन में कार्य किया। इसके बाद इसी साल नगर सुधार न्यास, अजमेर में सचिव पद पर स्थानान्तरण हुआ। श्रीमती सत्यानी के पति अजमेर के जे.एल.एन. अस्पताल में कार्यरत डॉक्टर विजय वसन्दानी हैं। उनके एक पुत्र व एक पुत्री है।
-तेजवानी गिरधर

केजरीवाल की पार्टी बिना आत्मा का शरीर?

श्रीमती कीर्ति पाठक-अंशुल कुमार

लोकपाल व काले धन के मुद्दे पर एक हो कर केन्द्र सरकार हमला बोलने वाले अन्ना हजारे व बाबा रामदेव के समर्थक कल तक गलबहियां करते हुए एक होने का प्रहसन करते थे, आज टीम अन्ना के अहम सदस्य अरविंद केजरीवाल के राजनीतिक पार्टी बनाने की दिशा में कदम उठाने के बाद एक दूसरे का फूटी आंख नहीं सुहाते। इसका मुजाहिरा स्थानीय स्तर पर ही नजर आने लगा है।
हाल ही टीम अन्ना आंदोलन की अजमेर प्रभारी श्रीमती कीर्ति पाठक ने फेसबुक के जरिये यह सूचना जारी की कि अजमेर इंडिया अगेंस्ट करप्शन पार्टी की जिला आन्दोलन कार्यसमिति के गठन हेतु एक मीटिंग रविवार शाम सात बजे पार्टी कार्यालय 566-ए ,जी ब्लाक, माकड़वाली रोड पर रखी गयी है। पार्टी के मेम्बर बनने के इच्छुक व्यक्ति कृपया आ कर अपना नाम रजिस्टर कराएं और देश को भ्रष्टाचार मुक्त कराने में अपना योगदान दें और पार्टी के कार्यों को संपादित करने हेतु प्रभार ग्रहण करें। इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए बाबा रामदेव के भारत स्वाभिमान आंदोलन के अजमेर जिला अध्यक्ष अंशुल कुमार ने यह प्रतिक्रिया दी-  We are sorry but without Anna your party is like a body without soul.
उनकी इस प्रतिक्रिया से यह साफ जाहिर है कि बाबा रामदेव के समर्थकों की नजर में केजरीवाल व उनकी पार्टी के बारे में क्या राय है। वैसे भी केजरीवाल के अलग होने के बाद जिस प्रकार बाबा रामदेव व अन्ना हजारे एक दूसरे के नजदीक आने की कोशिश कर रहे हैं और पिछले दिनों आरएसएस के एक स्वयंसेवक के जरिए गुप्त बैठक कर चुके हैं, यह राय बनना स्वाभाविक ही है।
बहरहाल, जो कुछ भी हो, कीर्ति पाठक की ओर से जारी ताजा सूचना से यह साफ है कि केजरीवाल की पार्टी के गठन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, तभी तो जिला स्तर पर भी कवायद शुरू हो गई है। अब देखना ये होगा कि उसे अजमेर में कितनी कामयाबी मिलती है। देखना ये भी होगा कि आंदोलन से जुड़ कार्यकर्ताओं का कितना रुझान केजरीवाल की ओर होता है।

-तेजवानी गिरधर

गुरुवार, 27 सितंबर 2012

केवल वाहवाही के शौकीन हैं बोर्ड अध्यक्ष डॉ. गर्ग

ऐसा लगता है कि राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. सुभाष गर्ग केवल वाहवाही के शौकीन हैं। इसी वाहवाही के लिए मीडिया कर्मियों के साथ खूब गपशप करते हैं। अपनी तारीफ छपवाने के लिए मीडिया फ्रेंडली बने डॉ. गर्ग तब कन्नी काट लेते हैं, जब बोर्ड में कोई गड़बड़ी होती है।
हाल ही दैनिक भास्कर के युवा पत्रकार गिरीश दाधीच ने जब उत्तर पुस्तिका की जांच में घोर लापरवाही का मामला उजागर किया तो जाहिर तौर पर सभी मीडिया कर्मी उनसे मिल कर पूरी जानकारी लेना चाहते थे, मगर वे पूरे दिन उनसे बचते रहे। उन्होंने उन्हें मामले का खुलासा करने के लिए समय देना उचित नहीं समझा। खबर छापने वाले पत्रकार दाधीच को भी मात्र इतना बता कर इतिश्री कर ली कि उन्होंने सचिव को इस मामले में प्रभावी कदम उठाने के निर्देश दे दिए हैं। सचिव मिरजूराम शर्मा को अधिकृत किया गया है, वे ही इस प्रकरण में जवाब देंगे।
ज्ञातव्य है कि जब बोर्ड में कोई उपलब्धि की बात आती है तो खुद पत्रकारों को बुला कर उसका बखान करते हैं। नया बाजार से बढिय़ा से बढिय़ा मिठाई-नमकीन मंगवा कर खिलाते हैं। लंबी देर तक बतियाते रहते हैं। तब बोर्ड सचिव की कोई पूछ नहीं होती। यहां तक कि बोर्ड की ओर से जारी होने वाले बड़े समाचारों में भी अपना नाम डलवाते हैं, मगर जब भी रुटीन की जानकारी हो अथवा स्पष्टीकरण देना हो तो बोर्ड सचिव को आगे कर देते हैं। डॉ. गर्ग की मिजाजपुर्सी करवाने की आदत से बोर्ड कर्मचारी भी वाकिफ हैं, इस कारण उन्होंने उसी हिसाब से उनसे ट्यूनिंग बैठा रखी है।
ताजा प्रकरण में घोर लापरवाही हुई है, जिससे बोर्ड की वर्षों पुरानी साख पर बट्टा लग गया है। उस पर भी बोर्ड सचिव शर्मा ने मात्र यह कह कर मामला समाप्त कर दिया कि अंकों की पुनर्गणना जांच में प्रक्रिया संबंधी मानवीय भूल हुई है। बेशक यह मानवीय मानवीय भूल है, जानबूझ कर किया गया कृत्य नहीं, मगर इससे यह तो खुलासा तो हुआ ही है कि बोर्ड प्रशासन की व्यवस्थाएं कितनी लुंजपुंज हैं। उसकी वजह से छात्र महावीर बोहरा का एक साल खराब हो गया। सप्लीमेंट्री के कारण वह कॉलेज में प्रवेश भी नहीं ले सका। लापरवाही का आलम ये है कि खुद शर्मा को स्वीकार करना पड़ा कि बोर्ड के कार्मिक ने उतर पुस्तिका के अंकों और अंकतालिका के दर्ज अंकों में भिन्नता के बारे में संबंधित पत्रावली पर लिखा, परन्तु पत्रावलियों की छंटाई में हुई मानवीय त्रुटि से इस परीक्षार्थी को अपरिवर्तित परिणाम रहने की सूचना प्रेषित हो गई। विद्यार्थी ने जब अपनी उतर पुस्तिका की फोटो प्रति चाही तो उसे उक्त त्रुटि का पता चला।
भास्कर ने खुलासा किया है कि बोर्ड की पुनर्गणना व्यवस्था पहले भी सवालिया हो चुकी है। बोर्ड की गलती का खामियाजा हनुमानगढ़ की एक छात्रा भी भुगत चुकी है। इस छात्रा को बोर्ड ने मात्र 5 अंक देकर पुनर्गणना में भी नो-चेंज का परिणाम बताया था। लेकिन जब कोर्ट में उत्तर पुस्तिका मंगाई गई, तो बोर्ड की पोल खुल गई। छात्रा को 35 अंक मिले थे। कोर्ट ने पिछले माह ही बोर्ड पर 50 हजार रुपए का जुर्माना भी किया है।
बोर्ड की इस लापरवाही पर अगर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद बोर्ड अध्यक्ष डॉ. सुभाष गर्ग के इस्तीफे की मांग कर रहा है तो वह वाजिब ही है। यहां ज्ञातव्य है कि बोर्ड में एक के बाद एक भ्रष्टाचार के मामले सामने आ रहे हैं। राजस्थान शिक्षक संघ (सियाराम)की महामंत्री सावित्री शर्मा के मुताबिक बोर्ड में बोहरा के अंक प्रकरण के अलावा भी आरटेट का पेपर परीक्षा से पूर्व बाजार में बिका, डॉ. गर्ग के कार्यकाल में ही रद्दी घोटाला हुआ और सवाई माधोपुर कांड भी हुआ। इन प्रकरणों को देखते हुए उन्होंने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मांग की गई है कि बोर्ड अध्यक्ष को तत्काल हटाया जाए।
-तेजवानी गिरधर

अजमेर में पर्यटन विकास की अपार संभावनाएं


अरावली पर्वतमाला की उपत्यका में बसी ऐतिहासिक अजमेर नगरी की धार्मिक, सामाजिक व सांस्कृतिक दृष्टि से विशिष्ट पहचान है। जगतपिता ब्रह्मा की यज्ञ स्थली तीर्थराज पुष्कर और महान सूफी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती को अपने आंचल में समेटे इस नगरी को पूरे विश्व में सांप्रदायिक सौहाद्र्र की मिसाल के रूप में जाना जाता है। यहां हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, पारसी, बौद्ध और आर्य समाज का अनूठा संगम है। यही वजह है कि इसे राजस्थान की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में भी जाना जाता है। पिछले कुछ सालों में नारेली स्थित ज्ञानोदय दिगम्बर जैन तीर्थ स्थल और साईं बाबा मंदिर के निर्माण के साथ ही इसका सांस्कृतिक वैभव और बढ़ा है।
पर्यटन दिवस के मौके पर यहां कुछ ऐसे प्रमुख स्थलों का विवरण दिया जा रहा है, जिन पर हमारा ध्यान कम ही गया है। इन्हें ठीक से विकसित किया जाए तो देश-विदेश के पर्यटकों को आकर्षित किया जा सकता है।
ख्वाजा साहब का चिल्ला
ख्वाजा साहब 1191 ईस्वी में अजमेर आए और आनासागर के पास एक छोटी सी पहाड़ी पर सबसे पहले जिस स्थान पर ठहरे, उसे चिल्ले के नाम से जाना जाता है। यहां ख्वाजा साहब ने वर्षों तक इबादत की। बताते हैं कि उन्होंने अपने जीवन अधिकतर चमत्कार यहीं पर दिखाए। ख्वाजा साहब और अजयपाल जोगी का विवाद भी इसी स्थान हुआ, जिसके अनेक किस्से चर्चित हैं। हिजरी 1037 में दौलत खान ने चिल्ले की दीवार व मस्जिद बनवाई। 1933 में नवाब गुदड़ी शाह बाबा ने चिल्लागाह के ऊपर गुम्बद बनवाया। इस्लामी शैली में इसे वहदानियत (अद्वैतवाद) का प्रतीक माना जाता है।
अढ़ाई दिन का झौंपड़ा
दरगाह के सिर्फ एक किलोमीटर फासले पर स्थित अढ़ाई दिन का झौंपड़ा मूलत: एक संस्कृत विद्यालय, सरस्वती कंठाभरण था। अजमेर के पूर्ववर्ती राजा अरणोराज के उत्तराधिकारी विग्रहराज तृतीय ने इसका निर्माण करवाया था। सन् 1192 में मोहम्मद गौरी ने इसे गिराकर कर मात्र ढ़ाई दिन में बनवा दिया। बाद में कुतुबुद्दीन ऐबक ने इसे मस्जिद का रूप दे दिया। मराठा काल में यहां पंजाबशाह बाबा का ढ़ाई दिन का उर्स भी लगता था। कदाचित इन दोनों कारणों से इसे अढ़ाई दिन का झौंपड़ा कहा जाता है। दरगाह शरीफ से कुछ ही दूरी पर स्थित यह इमारत हिंदू-मुस्लिम स्थापत्य कला का नायाब नमूना है। सात मेहराबों से युक्त सत्तर स्तम्भों पर खड़े इस झौंपड़े की बारीक कारीगरी बेजोड़ है। छत पर भी बेहतरीन कारीगरी है। यहां बनी दीर्घाओं में खंडित मूर्तियां और मंदिर के अवशेष रखे हैं।
फॉयसागर झील
शहर से करीब छह किलोमीटर दूर बनी यह कृत्रिम झील शहरवासियों का सबसे करीबी और पसंदीदा पिकनिक स्थल है। इसका निर्माण सन् 1891-92 के अकाल राहत कार्यों के दौरान बांडी नदी के भराव क्षेत्र में इंजीनियर फॉय की देखरेख में हुआ था। उस जमाने में इस पर करीब 2 लाख 69 हजार रुपए की लागत आई। झील की गहराई 24 फीट है। बारिश के दिनों में यहां की प्राकृतिक छटा निखर जाती है। इससे पानी ओवर फ्लो हो कर आनासागर में आता है।
चामुंडा माता का मंदिर
यह भारत के 151 शक्तिपीठ में से एक है। फायसागर रोड पर चश्मे की गाल पहाड़ी के पश्चिमी ढ़लान पर यह मंदिर बना हुआ है। चामुंडा माता सम्राट पृथ्वीराज चाहौन की आराध्य देवी थी। यहां नवरात्रि के दौरान बली चढ़ाई जाती है। सावन शुक्ला अष्ठमी को यहां मेला भरता है।
हैप्पी वैली
तारागढ़ के पश्चिम में स्थित गहरी घाटी में मीठे पानी का चश्मा बहता है, इसे हैप्पी वैली के नाम से जाना जाता है। इस घाटी के प्रवेश मार्ग पर बादशाह जहांगीर ने नूर महल बनवाया था। इसे आकर्षक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है।
चश्मा-ए-नूर
तारागढ़ की तलहटी में स्थित यह एक ऐसी प्राकृतिक जगह है, जहां पैदल ही जाया जा सकता है। बादशाह जहांगीर यहां करीब सत्रह मर्तबा गया था। यहां बाग-बगीचे के अतिरिक्त एक कुंड भी था, जिसमें नूरजहां गुलाब की पंखुडिय़ों से स्नान किया करती थी। कहा जाता है कि नूरजहां ने यहीं गुलाब के इत्र का अविष्कार किया था। अंग्रेज इस स्थान को हैप्पी-वैली कहा करते थे।
बादशाही बिल्डिंग
नया बाजार स्थित यह भवन मूलत: किसी हिंदू का था, जिसको अकबर के जमाने में उनके मातहतों के लिए आवास के रूप में उपयोग किया गया। मराठा काल में यहां पर कचहरी थी। वर्तमान में यह उपेक्षा के कारण जुआरियों व नशाखोरों का अड्डा बना हुआ है।
खोबरानाथ भैंरू जी का मंदिर
यह ऋषि घाटी के दाहिनी तरफ व पुष्कर रोड संपर्क सड़क पर स्थित है। मान्यता है कि यहां जल्द शादी के इच्छुक युवक-युवतियां मनौती मांगते हैं। कायस्थ समाज के लोगों में इसकी विशेष मान्यता है। इस समाज के नवविवाहित जोड़े यहां मत्था टेकने जरूर आते हैं। समाज के वरिष्ठ वकील अनिल नाग के प्रयासों से इसकी बेहतर देखभाल की जा रही है। यह एक अच्छा सन सेट पाइंट भी है।
नौसर माता का मंदिर
पुष्कर घाटी में स्थित नौसर माता के मंदिर की काफी मान्यता है। यहां हर साल नवरात्रि के दौरान विशेष पूजा-अर्चना होती है।
बाबा बैजनाथ
भगवान शंकर के इस प्राचीन मंदिर को बैजनाथ ज्योतिर्लिंग की मान्यता है। बारिश के दिनों में यहां लोग पिकनिक को पहुंच जाते हैं।
अजयपाल
पुष्कर में सृष्टि यज्ञ के समय प्रजापिता ब्रह्मा ने भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए जो चार शिवलिंग स्थापित किए थे, उनमें एक अजगंध महादेव यहां प्रतिष्ठित किया था। कदाचित इस अज नाम से ही अजयसर गांव बसा। बारहवीं सदी में चौहान राजा अर्णोराज ने यहां एक शिव मंदिर बनवाया था, जो कि आज भी मौजूद है। इसी कारण यह स्थान अजयपाल बाबा के नाम से जाना जाने लगा। पौराणिक मान्यता के अनुसार अजयसर गांव के पास स्थित इस स्थान पर भगवान शंकर ने बकरे का रूप धारण कर वाष्कलि राक्षस का वध किया था। इसे अजोगंध महादेव भी कहते हैं। माना जाता है कि चौहान राजा अजयपाल ने छठी-सातवीं शताब्दी में इसका निर्माण करवाया। उसने उम्र के आखिरी यहीं पर संन्यास धारण कर बिताये थे। हालांकि कुछ लोग उसे गुर्जर जाति का सिद्ध तांत्रिक मानते हैं, जो कि हिंदुओं की रक्षा करता था। यह स्थान पिकनिक स्पॉट के रूप में भी जाना जाता है। इसके नीचे रूठी रानी का महल है। जहांगीर की बेगम नूरजहां रूठ कर यहां आ गई थी, जिसे मनाने के लिए जहांगीर 27 बार आया।
भिनाय कोठी
इस स्थान पर सन् 1883 में स्वामी दयानंद सरस्वती को उनके निजी रसोइये ने भोजन में जहर मिला कर दे दिया था। स्वामी जी ने यहीं अपना शरीर त्याग दिया था। स्वामीजी का अंतिम संस्कार पहाडग़ंज स्थित श्मशान स्थल पर किया गया था, जिसे दयानंद निर्वाण स्थली के रूप में जाना जाता है। स्वामी जी द्वारा हस्तलिखित लगभग 18 हजार पृष्ठों की पांडुलिपियां केसरगंज स्थित परोपकारिणी सभा भवन में संग्रहित हैं।
दाहरसेन स्मारक
सन् 621 में सिंध (अब पाकिस्तान में) के अंतिम हिंदू सम्राट पराक्रमी सिंधुपति महाराजा दाहरसेन की स्मृति में सन् 1997 में इसका निर्माण पुष्कर रोड पर कोटड़ा आवासीय योजना में हरिभाऊ उपाध्याय नगर (विस्तार) में नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष श्री औंकारसिंह लखावत के विशेष प्रयासों से हुआ। इसका लोकार्पण तत्कालीन उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने किया था। इसमें राजा दाहरसेन,  शहीद हेमू कालानी, विवेकानंद आदि की मूर्तियां हैं। हिंगलाज माता का छोटा मंदिर भी इसी प्रांगण में है। भाजपा शासनकाल में शिक्षा राज्यमंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी, नगर सुधार न्यास अध्यक्ष श्री धर्मेश जैन व सांसद प्रो. रासासिंह रावत के प्रयासों से यहां राजा दाहरसेन की तांबे की विशाल मूर्ति भी स्थापित की गई है।
सावित्री मंदिर
 पुष्कर में रत्नागिरी पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर में बारे तथ्य यह बताया जाता है कि ब्रह्माजी द्वारा गायत्री को पत्नी बना कर यज्ञ करने से रुष्ठ सावित्री ने वहां मौजूद देवी-देवताओं को श्राप देने के बाद इस पहाड़ी पर आ कर बैठ गई, ताकि उन्हें यज्ञ के गाजे-बाजे की आवाज नहीं सुनाई दे। बताते हैं कि वे यहीं समा गईं। मौजूदा मंदिर का निर्माण मारवाड़ के राजा अजीत सिंह के पुरोहित ने 1687-1728 ईस्वी में करवाया था। मंदिर का विस्तार डीडवाना के बांगड़ घराने ने करवाया। सावित्री माता बंगालियों के लिए सुहाग की देवी मानी जाती है। ऐसा इस वजह से कि ब्रह्माजी की पत्नी सावित्री का अंशावतार सत्यवान सावित्री को माना जाता है।
निम्बार्क तीर्थ, सलेमाबाद
रूपनगढ़ के पास किशनगढ़ से लगभग 19 किलोमीटर दूर सलेमाबाद गांव में निम्बार्काचार्य संप्रदाय की पीठ ऐतिहासिक और आध्यात्मिक दृष्टि बहुत महत्वपूर्ण है। यहां भगवान सर्वेश्वर की मूर्ति पूजनीय है। वस्तुत: वैष्णव चतुर्सम्प्रदाय में श्री निम्बार्क सम्प्रदाय का अपना विशिष्ट स्थान है। माना जाता है कि न केवल वैष्णव सम्प्रदाय अपितु शैव सम्प्रदाय प्रवर्तक जगद्गुरु आदि श्री शंकराचार्य से भी यह पूर्ववर्ती है। इस सम्प्रदाय के आद्याचार्य श्री भगवन्निम्बार्काचार्य हैं। आपकी सम्प्रदाय परंपरा चौबीस अवतारों में श्री हंसावतार से शुरू होती है। भगवान श्री निम्बार्काचार्य का प्राकट्य युधिष्ठिर शके 6 में दक्षिण भारत के आंध्रप्रदेश के वैदुर्यपंतनमुंजी में गोदावरी तटवर्ती श्रमणाश्रम में हुआ। अल्प वय में ही वे उत्तर भारत के ब्रज मंडल स्थित गिरिराज गोवर्धन की सुरम्य उपत्यका में आ गए। वहीं उनको देवर्षि नारद मुनि से वैष्णवी दीक्षा के साथ सूक्ष्म दक्षिणवर्ती चक्रांकित शालग्राम स्वरूप श्री सनकादि संसेवित श्री सर्वेश्वर प्रभु की अनुपम सेवा प्राप्त हुई। (यही सेवा अद्यावधि अखिल भारतीय श्री निम्बार्काचार्य पीठ, सलेमाबाद में आचार्य परंपरा से सम्प्रति परिसंवित है। विश्व में इतनी प्राचीन व सूक्ष्म श्री शालग्राम स्वरूप और कहीं भी नहीं है। जब भी आचार्यश्री धर्म प्रचार अथवा भक्तों के आग्रह पर कहीं जाते हैं तो यह सेवा उनके साथ ही रहती है।) एक बार श्री निम्बार्काचार्य ने अपने आश्रम में दिवामोजी दंडी महात्मा के रूप में आए ब्रह्माजी को रात्री हो जाने के कारण भोजन से निषेध करते देख नीम वृक्ष पर अपने तेज तत्त्व श्रीसुदर्शनचक्र को आह्वान कर सूर्य रूप में दर्शन करवा कर भोजन कराया। निम्ब (नीम) पर सूर्य (अर्क) के दर्शन करवाने के कारण ब्रह्माजी ने उन्हें श्री निम्बार्क नाम से संबोधित किया। उन्हीं की आचार्य परंपरा में श्री परशुराम देवाचार्य महाराज ने सलेमाबाद में अखिल भारतीय श्री निम्बार्काचार्य पीठ की स्थापना की।
कल्पवृक्ष, मांगलियावास
अजमेर शहर से करीब पच्चीस किलोमीटर दूर ब्यावर मार्ग पर मांगलियावास गांव में स्थित कल्पवृक्ष की बहुत मान्यता है। बताया जाता है कि यह ऐतिहासिक है। उसके पास हरियाली अमवस्या के दिन विशाल मेला भरता है। यहां कल्पवृक्ष नर, नारी व राजकुमार के रूप में मौजूद है।
वराह मंदिर, बघेरा
अजमेर से लगभग 80 किलोमीटर दूर बघेरा गांव में वराह तालाब पर स्थित वराह मंदिर पुरातात्वि और स्थापत्य की दृष्टि से काफी महत्पपूर्ण है। कहते हैं कि मंदिर में स्थित मूर्ति भीतर से पोली है और कोई वस्तु टकराने पर मूर्ति गूंजती है। मुस्लिम आक्रमणकारियों के हमले के दौरान इसे तालाब में छिपा दिया गया। आक्रमणकारियों ने मंदिर तोड़ दिया। बाद में मूर्ति को वापस बाहर निकाल कर नए मंदिर में उसकी प्रतिष्ठा की गई। हाल के कुछ वर्षों में यहां खुदाई में निकली प्राचीन जैन मूर्तियों से इस गांव का पुरातात्विक महत्व और बढ़ा है। जैन तीर्थङ्करों के अतिरिक्त यहां से विष्णु, शिव, गणेश आदि देवताओं की प्रतिमायें भी प्राप्त हुई हैं, जिनमें से कुछ राजकीय संग्रहालय अजमेर में प्रदर्शित हैं। बघेरा का पुराना नाम व्याघ्ररक है।
मसाणिया भैरवधाम, राजगढ़
अजमेर शहर से दक्षिण दिशा में लगभग 22 किलोमीटर दूर और नसीराबाद से उत्तर-पश्चिम दिशा में 14 किलोमीटर दूर स्थित राजगढ़ गांव में स्थापित श्री मसाणिया भैरवधाम की बड़ी महिमा है। इस गांव का इतिहास काफी पुराना है। गांव के आसपास की पहाडिय़ों में एस्बेसटॉस, क्वार्ट्ज व फेल्सपार के प्रचुर भंडार हैं। कुछ खानों से पन्ना भी निकलता है। करीब पांच सौ साल पुराने इस गांव में चारों ओर परकोटा है और पहाड़ी पर स्थित किया ऐतिहासिकता की झलक देता है। वस्तुत: यह गांव गौड़ राजपूत शासकों की रियासत रही है। करीब 220 गांव इसके अधीन थे। उपलब्ध जानकारी के अनुसार गांव को श्री विट्ठलदास ने अपने प्रपौत्र राजसिंह के नाम पर बसाया था। प्रदेश के कल्याणजी के तीन में एक मंदिर इस गांव में है, जहां हर शरद पूर्णिमा पर मेला भरता है। यह गांव वर्तमान में श्री मसाणिया भैरवधाम और उसके मुख्य उपासक श्री चंपालाल जी महाराज के कारण विख्यात है। वर्तमान में यह गांव यहीं पर मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे श्री चम्पालाल जी महाराज की ओर से की जा रही मानव सेवा के कारण जाना जाता है।
रानीजी का कुंड, सरवाड़
सरवाड़ में तहसील दफ्तर के पास बना खूबसूरत रानीजी का कुंड पांच सौ साल पहले गौड़ राजपूतों के शासनकाल में किसी रानी ने बनवाया था। इसकी शिल्पकला बेहतरीन है। यह काफी गहरा है और सीढिय़ों के नीचे नहाने के लिए चौकियां बनी हुई हैं। यहां बरामदे में खूबसूरत झरोखे, मेहराबदार छज्जे व तोरणद्वार हैं। कुंड के पास ही दो छतरियां बनी हुई हैं, जिनमें से एक ऋषि दत्तात्रेय की बताई जाती है।
खोड़ा गणेशजी का मंदिर
अजमेर से किशनढ़ के बीच एक मार्ग खोड़ा गांव की ओर जाता है। यह मंदिर वहीं पर स्थित है और इसकी बहुत मान्यता है। अजमेर व किशनगढ़ सहित आसपास के लोग यहां अपनी मनौती पूरी होने पर सवा मनी आदि चढ़ाते हैं। कई श्रद्धालु नया वाहन खरीदने पर सबसे पहले यहां आ कर गणेश जी को धोक दिलवाते हैं।

कप्तान साहब, आपकी पुलिस निकम्मी कैसे होने लगी?

पुलिस अधीक्षक राजेश मीना

इन दिनों आए दिन इस प्रकार की खबरें सुनाई पड़ती हैं कि अजमेर की पुलिस पूरी तरह से असंवेदनशील होने लगी है। जब भी कोई शिकायतकर्ता किसी थाने पर अपनी पीड़ा लेकर जाता है तो उसकी सुनवाई आसानी से नहीं होती। जब उच्चाधिकारियों को शिकायत की जाती है अथवा किसी जनप्रतिनिधि की मदद ली जाती है, तब जा कर मामला दर्ज किया जाता है।
हाल ही इस प्रकार दो घटनाएं सामने आई हैं, जिनमें निचले स्तर पर पुलिस ने सुनवाई नहीं की और पीडि़तों की समस्या का समाधान करने की बजाय उन्हें भगा दिया और बाद में दबाव डालने पर मुकदमा दर्ज हुआ। आपकी पेश एक नजर एक मामला तो ऐसा है, जिसमें पुलिस के निकम्मेपन की वजह से एक महिला ने आत्म ग्लानि में खुदकशी ही कर ली। मामला रामगंज में रहने वाली एक विवाहिता का है, जिसने 14 हजार रुपए का एक मल्टीमिडिया मोबाइल केसरगंज की एक दुकान से खरीदा। दुकान पर काम करने वाले वरुण ने विवाहित को घर जाकर मोबाइल की एप्लीकेशन्स सिखाने के दौरान उससे ज्यादती की कोशिश की। पीडि़ता ने रामगंज पुलिस को शिकायत की तो पुलिस ने बात को गंभीर नहीं माना और पीडि़ता को लौटा दिया। आखिर एएसपी लोकेश सोनवाल से पीडि़ता मिली, तब कहीं जाकर रामगंज थाने में शिकायत दर्ज की गयी। इसी बीच गुरूवार दोपहर विवाहिता ने फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली।
इसी प्रकार एक दलित परिवार के घूघरा गांव निवासी सागर भोपा ने बताया कि 25 सितम्बर को चार मोटर साइकिल सवार युवक उस के सात साल के मासूम बेटे विष्णु को बहला फुसला कर अपनी मोटर साइकिल पर बैठा कर ले गए। इस वारदात को देख रहे उसके दूसरे पुत्र हंसराज ने जब उसे इस बात की जानकारी दी तो उसने तुरंत ही सिविल लाइन पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करवाना चाही, लेकिन वहां मौजूद पुलिस कर्मियों ने उसे वहां से भगा दिया।इस मामले में घूघरा सरपंच लखपत राम गुर्जर के नेतृत्व में ग्रामीणों के शिष्टमंडल ने पुलिस अधीक्षक राजेश मीना से मुलाकात की और मुकदमा दर्ज कर अपहृत बालक को बरामद करने की मांग की। मीना के निर्देश पर सिविल लाइन पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू की।
सवाल ये उठता है कि आखिर पुलिस में इस प्रकार की टालमटोल की प्रवृत्ति क्यों पैदा हो रही है? एक समय था जब ज्ञान प्रकाश पिलानिया पुलिस थानों को मंदिर का रूप देना चाहते थे। उनका मानना था कि जिस प्रकार मनुष्य अपना दुखड़ा रोने के लिए भगवान के मंदिर में जाता है, ठीक उसी प्रकार पुलिस थाने पर भी पीडि़त ही दस्तक देता है। उसकी सुनवाई पूरी सहानुभूति के साथ होनी चाहिए, ताकि आम लोगों में पुलिस के प्रति विश्वास कायम हो और पुलिस की बर्बर छवि मिटे। तब वाकई इस दिशा में काम भी हुआ। बाद में पुलिस की अनेकानेक कार्यशालाओं में भी इसी प्रकार सीख पुलिस कर्मियों को देने की बातें होती रही हैं, मगर वे कोरी बातें ही होती प्रतीत होती हैं। धरातल का सच कुछ और ही है।
असल में टालमटोल व लापरवाही की प्रवृत्ति तभी समाप्त होगी, जबकि पीडि़तों को भगाने वालों के खिलाफ कार्यवाही की जाएगी।
-तेजवानी गिरधर

मंगलवार, 25 सितंबर 2012

कान पक गए दरगाह एक्ट में संशोधन की बातें सुनते सुनते

सर्किट हाउस में अधिकारियों से चर्चा करते बहुरिया

जानकारी है कि केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलात मंत्रालय के नवनियुक्त सचिव डॉ. सुतानु बेहुरिया ने दरगाह ख्वाजा साहब एक्ट में संशोधन किए जाने का इशारा दिया है। उसी के मुतल्लिक उन्होंने जिला कलेक्टर वैभव गालरिया और एसपी राजेश मीणा से चर्चा की और दरगाह की सुरक्षा व्यवस्था और इसमें आ रही समस्याओं के बारे में विस्तार से जानकारी ली। उन्होंने अधिकारियों से दरगाह के अंदरूनी हिस्से में सुरक्षा के इंतजाम, क्लोज सर्किट टीवी की आवश्यकता और जायरीन की बढ़ती भीड़ को देखते हुए परिसर में सुगम आवाजाही सुनिश्चित करने के संबंध में तथ्यों को विस्तार से समझा। उन्होंने दरगाह के बारे में बारीक जानकारी रखने वाले पूर्व नाजिम अशफाक हुसैन से गहन चर्चा की। उन्होंने जाना कि दरगाह से जुड़े संबद्ध पक्षों के क्षेत्राधिकार, उनका योगदान और उनमें टकराव के कारण होने वाली समस्याओं की जानकारी भी जुटाई।
बाद में उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा कि मंत्रालय चाहता है कि सूफी संत हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में आने वाला प्रत्येक जायरीन सुकून महसूस करे, ऐसी व्यवस्था हो। मंत्रालय इसके लिए हरसंभव उपाय करेगा।
वस्तुत: लगता ये है कि चूंकि वे हाल ही इस पद पर आए हैं और पहली बार यहां का दौरा किया है, लिहाजा उनको कुछ न कुछ तो ऐसा कहना ही था, जिससे लगे कि वे वाकई पैबंद लगी पूरी चादर को ही बदलने आए हैं। ऐसा होता है। जब भी कोई बड़ा अफसर आता है तो वह ढर्ऱे से हट कर आदर्शपूर्ण व नई बातें करता है। और बाद में जब उसकी जाजम जम जाती है तो फिर वह भी ढर्ऱे पर चल कर महज नौकरी को ही अंजाम देता है। चूंकि बेहुरिया का यह दौरा विशेष रूप से दरगाह ख्वाजा साहब एक्ट के सिलसिले में था नहीं, वे तो कटसी विजिट पर आए थे, इस कारण सहसा यकीन होता नहीं कि वे वाकई गंभीर हैं। यह निराशावादी दृष्टिकोण इस कारण कायम हुआ है, क्योंकि अब तक न जाने कितने बड़े अधिकारी ऐसी बातें कर चुके हैं और नतीजा ढ़ाक के तीन पात ही रहा है। ऐसा नहीं कि दरगाह ख्वाजा साहब एक्ट के सुधार पर चर्चाएं नहीं हुई हों, मगर आज तक सरकार की हिम्मत नहीं हुई है कि वह बर्र के छत्ते में हाथ डाले।
दरगाह ख्वाजा साहब एक्ट में संशोधन तो बहुत बड़ी बात हो गई, दरगाह से सीधे जुड़े तीन पक्षों खुद्दाम साहेबान, दरगाह दीवान व दरगाह नाजिम और दरगाह के बाहर की व्यवस्थाओं के लिए जिम्मेदार जिला प्रशासन के बीच ही छोटी-छोटी बातों पर सहमति नहीं हो पाती। आए दिन टकराव होता है और उसकी सुर्खियां प्रिंट व इलैक्ट्रॉनिक मीडिया पर चमकती हैं। जिला प्रशासन अंदर के मामलों पर सीधे दखल कर नहीं पाता और नाजिम को इतने अधिकार हैं नहीं कि वह सख्ती बरत पाए। इसी कारण एक्ट में संशोधन की बातें उठती हैं, मगर फिर चादर ओढ़ कर सो जाती हैं।
आपको याद होगा कि दरगाह ख्वाजा साहब के खादिमों के लिए लाइसेंस लेना जरूरी करने के मामले में दरगाह नाजिम की कथित सिफारिश ने ही जबरदस्त तूल पकड़ लिया था। हालांकि नाजिम अहमद रजा ने अपनी सफाई में साफ कर दिया कि उन्होंने न तो लाइसेंस जरूरी करने सिफारिश की है और न ही ऐसा करने का उनका मानस है, लेकिन खादिम इससे राजी नहीं हुए। वे मामले की सीआईडी जांच करवाना चाहते थे ताकि यह पता लग सके कि यह खुराफात किसने की है। दरअसल दरगाह एक्ट की धारा 11(एफ) पर एक राय नहीं बनने तक दरगाह कमेटी ने पहले ही इस मामले को टाल दिया था। उसके बाद नाजिम का सिफारिश करने का कोई मतलब ही नहीं था। इसके बावजूद ऐसा पत्र फैक्स के जरिए मीडिया के पास पहुंचा तो विवाद हो गया। इस पर खादिम शेखजादा जुल्फिकार चिश्ती का कहना था कि जो खादिम पिछले तकरीबन आठ सौ साल से दरगाह ख्वाजा साहब की खिदमत कर रहे हैं, उन्हें लाइसेंस लेना जरूरी करने की बात ही बेमानी है। खिदमत करने अथवा जियारत करवाने का हक खादिमों का जन्मजात हक है। इसके लिए उन्हें किसी सल्तनत या सरकार का मुंह ताकने की भला क्या जरूरत है? लाइसेंस का मतलब ही ये होता है कि किसी काम करने का हक सरकार की ओर से मुहैया करवाया जाए। दरगाह में कौन जियारत करवाएगा, इससे सरकार का कोई लेना-देना ही नहीं है।
यहां उल्लेखनीय है कि लाइसेंस का मुद्दा पहले भी उठता रहा है। इसके पीछे खादिमों को काबू में रखने का नजरिया रहा है।
एक मुद्दा खादिमों को आइडेंटिटी कार्ड जारी करने का भी रहा है। इसको लेकर भी खादिमों को ऐतराज रहा है। उन्हें ऐसा प्रतीत होता है कि ऐसा करके सरकार उनके हक-हकूक को छीनना चाहती है। इस बारे में प्रगतिशील विचारधारा के मुस्लिमों का मानना है कि अंजुमन को कुछ खुले दिमाग से सोचना चाहिए। आइडेंटिटी कार्ड होने से एक तो भीड़ भरी दरगाह शरीफ में खादिमों की पहचान आसान हो जाएगी, कोई सरकारी मुलाजिम उनसे सलीके से पेश आएगा और दूसरा आइडेंटिटी कार्ड लगाए हुए कोई खादिम गलत हरकत करने से बचेगा। अंजुमन और दरगाह कमेटी को मिल कर ऐसे आइडेंटिटी कार्ड जारी करने चाहिए।
जिस आम जायरीन की सहूलियत की बात बहुरिया करके गए हैं, उस सिलसिले में पहले भी खूब कवायद होती रही है, मगर आज तक दरगाह से जुड़े पक्षों में आम सहमति नहीं बन पाई है। ऐसे में एक्ट में सुधार बेहद जरूरी है। बहुरिया इशारा भी कर गए हैं। देखते हैं क्या होता है?
-तेजवानी गिरधर

स्कूलों पर तालाबंदी : अराजकता का आगाज


पिछले कुछ माह से जिस प्रकार गांवों में शिक्षकों की कमी अथवा शिक्षकों की अनुपस्थिति को लेकर आए दिन तालाबंदी की घटनाएं हो रही हैं, वह सीधे-सीधे अराजकता का नमूना है। बेशक समस्या अपनी जगह है, मगर धरातल का सच ये है कि गांवों में इस प्रकार की घटनाएं या तो असामाजिक तत्वों की करतूत हैं या फिर स्थानीय गंदी राजनीति का परिणाम। कहीं न कहीं यह अन्ना व बाबा रामदेव द्वारा जगाई गई अलख का बिगड़ा हुआ रूप भी है, जो कि शहरों से चल कर गांवों की ओर पहुंचने लगा है।
ऐसा नहीं है कि इस प्रकार की तालाबंदी इन दिनों ही हो रही हो। पिछले कई वर्षों से, चाहे कांग्रेस सरकार हो या भाजपा सरकार, शिक्षकों की कमी के चलते तालाबंदियां होती रही हैं। एक ओर जहां सरकार की अपनी मजबूरियां हैं, वहीं शिक्षकों की गांवों में नहीं जाने की प्रवृत्ति भी इसकी वजह है। राजनीतिक अप्रोच से कई शिक्षक शहरी क्षेत्रों में ही रह रहे हैं। विशेष रूप से दूरदराज के गांवों की हालत ज्यादा खराब है। या तो वहां पर्याप्त शिक्षक नियुक्त ही नहीं हैं, या फिर शिक्षक आए दिन गोत मारते हैं। इस कारण जाहिर तौर पर बच्चों की पढ़ाई नहीं हो पाती। इसी कारण आखिरकार तंग आ कर ग्रामीण तालाबंदी करते हैं। मगर पिछले कुछ समय से ऐसी घटनाएं लगातार बढ़ती ही जा रही हैं। अब तो मानों ये फैशन सा होने लगा है। छोटी-मोटी बात पर ही तालाबंदी की जाने लगी है। इसका लाभ असामाजिक तत्व भी उठा रहे हैं। अब जब कि पानी सिर से ऊपर बहने लगा है तो प्रशासन व सरकार को होश आया है। अतिरिक्त कलेक्टर मोहम्मद हनीफ ने तो बाकायदा आदेश दे दिया है कि स्कूलों में नाजायज तौर पर तालाबंदी कराने वाले असामाजिक तत्वों के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही की जाएगी। मोहम्मद हनीफ ने स्वीकार किया है कि निश्चित रूप से स्कूलों में शिक्षकों की कमी है, लेकिन उसका तत्काल समाधान संभव नहीं होगा। आने वाले समय में जैसे ही शिक्षक प्राप्त होंगे ऐसी स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति तत्काल की जाएगी। उनके इस आदेश से स्पष्ट है कि फिलहाल कोई समाधान नहीं है। यह बात ग्रामीणों को भी समझनी होगी। अगर वाकई कोई बड़ी भारी गड़बड़ी हो रही है तो विरोध होना ही चाहिए, ताकि प्रशासन की आंख खुले, मगर तालाबंदी करके बच्चों की पढ़ाई का और नुकसान नहीं करना चाहिए। ग्रामीणों को यह भी समझना होगा कि अगर हम अपने बच्चों को अभी से इस प्रकार की प्रवृत्ति की ओर ले जाएंगे तो उनमें अराजकता के अवगुण विकसित होंगे, जो कि भविष्य के लिए ठीक नहीं है। बेशक शिक्षा हमारा अधिकार है, सरकार का अहम दायित्व भी, मगर इसके साथ ही हमारे कर्तव्य भी हैं। अगर वाकई सरकार के पास फिलहाल संसाधन नहीं हैं तो उपलब्ध संसाधनों के साथ सहयोग करना चाहिए। महज राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए इस प्रकार की हरकतें करना ठीक नहीं है। हम भी जानते हैं कि पिछले दिनों शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया में हो रहे विलंब के कारण स्कूलों में शिक्षक नहीं लगाए जा सके। संभव है कि नियुक्तियां होने पर कुछ समाधान हो। तब तक सब्र करना ही चाहिए।
-तेजवानी गिरधर

सोमवार, 24 सितंबर 2012

रासासिंह को छोड़ देवनानी के नेतृत्व में कैसे गए रावत समाज के लोग?

रासासिंह रावत

हाल ही अजमेर की राजनीति में एक रोचक घटना हुई। रावत समाज के लोग भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी के नेतृत्व में विशेष पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष इंद्रसेन इसरानी से मिले। हालांकि समाज का नेतृत्व तो पूर्व उप जिला प्रमुख एवं रावत समाज आरक्षण संघर्ष समिति के अगुवा मदन सिंह रावत कर रहे थे, मगर उन सहित समाज के अन्य लोगों ने देवनानी को आगे रख कर रावत समाज को विशेष कोटे में शामिल कर आरक्षण का लाभ देने की मांग की। ऐसे में एक सवाल राजनीतिकों व राजनीति के पंडितों के दिमाग में कौंध रहा है कि रावत समाज के लोगों की अपने ही समाज के पूर्व सांसद प्रो. रासासिंह रावत को छोड़ कर देवनानी के नेतृत्व में इतनी अहम मांग करने की वजह क्या हो सकती है? समाज विशेष की मांग के लिए किसी दूसरे समाज के नेता के साथ जाना तो सवाल खड़े करेगा ही। कहीं ऐसा तो नहीं कि चूंकि इसरानी सिंधी हैं तो उन्हें उनकी भाषा में समझाने के लिए देवनानी का साथ लिया हो? हालांकि ये बात कुछ जमती नहीं है।
यहां उल्लेखनीय है कि मदन सिंह रावत वही हैं, जो नसीराबाद से तीन बार विधानसभा चुनाव हार चुके हैं और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने उन्हें अपने कार्यकाल के आखिरी दिनों में मगरा विकास बोर्ड का अध्यक्ष बनाया था। अर्थात वे समाज के कोई छोटे मोटे नेता नहीं हैं। वे अगर देवनानी का नेतृत्व स्वीकार करते हैं, इसका एक ही अर्थ है कि या तो उनका समाज के प्रमुख नेता पूर्व सांसद व मौजूदा शहर जिला भाजपा अध्यक्ष प्रो. रासासिंह रावत के नेतृत्व में विश्वास नहीं रहा या फिर जानबूझ कर उन्हें चिढ़ाने के लिए उन्होंने ऐसी हरकत की है। इससे रावत समाज में फूट के भी संकेत मिल रहे हैं। इस प्रकार की फूट पहले भी उजागर होती रही है। पूर्व में भी जब भी रासासिंह रावत के टिकट की बारी आती थी तो एक बार समाज में विरोध के स्वर उठते थे, ये बात दीगर है कि टिकट मिलने के बाद सभी एक हो जाते थे। रहा सवाल देवनानी का तो कदाचित उनका उद्देश्य जरूर रावत को चिढ़ाने का रहा होगा। जिस प्रकार देवनानी इन दिनों में शहर जिला भाजपा में आइसोलेटेड होते जा रहे हैं, ताजा घटना को पलट वार के रूप में देखा जा सकता है। यूं प्रतिनिधिमंडल में बोराज के रावत नेता तारासिंह रावत के साथ होने से यह भी कयास लगाया जा सकता है कि उन्हीं के कहने से देवनानी को आगे करने का विचार बना होगा। ज्ञातव्य है कि बोराज देवनानी के विधानसभा क्षेत्र में ही आता है और इन दिनों तारासिंह की देवनानी से ठीक ट्यूनिंग है। खैर, जो कुछ भी हो, ताजा घटना कई सवाल खड़े करती है। साथ ही कोई नया समीकरण बनने की ओर भी इशारा करती है।
प्रसंगवश बता दें कि प्रतिनिधिमंडल ने जस्टिस इसरानी को बताया कि आजादी से पहले सन् 1881 से 1931 तक देश में पांच बार जनगणना हुई। पिछड़ेपन के चलते अंग्रेज हुकूमत ने भी समाज को एसटी वर्ग में शामिल किया हुआ था। आजादी के बाद समाज को इस वर्ग से बाहर कर दिया गया। इन्होंने कहा कि सन् 1999 में कांग्रेस सरकार के दौरान न्यायमूर्ति रणवीर सहाय वर्मा की अध्यक्षता में राजस्थान राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया गया। आयोग द्वारा सन् 2001 में जो रिपोर्ट सौंपी गई है, उसमें पिछड़ा वर्ग की जातियों को ए,बी, सी तीन वर्ग में विभाजित किया गया है । रावत समाज को आयोग ने बी श्रेणी की अति पिछड़ा वर्ग की जातियों में शामिल किया है। आयोग ने ए वर्ग में 15 तथा सी वर्ग में 38 जातियों को शामिल किया है। समाज लोगों ने दावा किया है कि उनके लोग अजमेर-मेरवाड़ा के अलावा, पाली, राजसमंद, उदयपुर, भीलवाड़ा समेत अन्य जिलों के अलावा अरावली पर्वत शृंखला की तलहटी में बसे हैं। जिनकी आर्थिक स्थिति काफी कमजोर है। हकीकत में समाज के लोगों की स्थिति गुर्जर समाज से भी पिछड़ी हुई है। सामाजिक, आर्थिक तथा शैक्षणिक दृष्टि से समाज अभी काफी सहयोग की आवश्यकता है। प्रतिनिधिमंडल में तारा सिंह रावत बोराज, कालू सिंह रावत, ज्ञान सिंह पंवार, बाबू सिंह बनेवड़ा समेत अन्य लोग शामिल थे।
-तेजवानी गिरधर

रविवार, 23 सितंबर 2012

लगी कांग्रेस पर कालिख में एनर्जी, बच गया भाजयुमो सम्मेलन

भारतीय जनता युवा मोर्चा के चलाए जा रहे कांग्रेस हटाओ, देश बचाओ आंदोलन के तहत जवाहर रंगमंच पर आयोजित शहर जिला इकाई का सम्मेलन अभूतपूर्व कामयाब रहा। बताते हैं कि कार्यकर्ताओं की इतनी संख्या तो कभी भाजपा के सम्मेलन में भी नजर नहीं आई। तभी तो भा.ज.पा. के राष्ट्रीय महामंत्री और प्रभारी कप्तान सिंह सोलंकी ने कहा कि यहां सभी आयु वर्ग के लोग हैं, ऐसा लग रहा है कि मानो यह कार्यक्रम युवा मोर्चा का न हो कर संगठन का है। वे सच ही कह गए। वाकई शहर भाजपा जिला इकाई ने भी अपनी ताकत झोंकी थी। सम्मेलन पर प्रत्यक्ष रूप से शहर भाजपा इकाई का आशीर्वाद रहा तो परोक्ष रूप से लाला बन्ना सुरेन्द्र सिंह शेखावत का।
बेशक सम्मेलन की कामयाबी का पूरा श्रेय इकाई अध्यक्ष देवेन्द्र सिंह शेखावत को जाता है। यह सम्मेलन उनके कैरियर में एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में जुड़ गया है। नियुक्ति से लेकर अब तक उन पर दबाव था कि एक बार अपनी ताकत दिखा दें, वह उन्होंने पूरी कर दी। उल्लेखनीय बात यही रही कि सभी आशंकाएं निराधार साबित हो गईं और किसी भी प्रकार का व्यवधान नहीं आया। न तो युवा कांग्रेसियों ने उधर झांका और न ही असंतुष्ट भाजयुमो कार्यकर्ताओं ने।
हुआ असल में ये कि इस सम्मेलन में पंगा होने की आशंका को लेकर कप्तान सिंह सोलंकी को बार-बार रिपोर्टिंग की जा रही थी कि वे नहीं आएं तो ही बेहतर रहेगा। हालांकि इस प्रकार की रिपोर्टिंग करने वाले सम्मेलन के फेल हो जाने तक की दुहाई दे रहे थे, मगर गड़बड़ की आशंका बेबुनियाद भी नहीं थी। विधायक वासुदेव देवनानी से जुड़ा नितेश आत्रेय गुट गड़बड़ कर सकता था। मगर संयोग से दो दिन पहले ही अजमेर बंद के दौरान इस गुट ने अति उत्साह में कांग्रेस कार्यालय के बोर्ड पर कालिख पोत दी और उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज हो गया। जाहिर सी बात है कि वे पहले अपने को बचाएं या जवाहर रंगमंच पर जा कर हंगामा करें। यानि यह देवेन्द्र सिंह शेखावत की खुशकिस्मत ही रही कि दो दिन पहले इस प्रकार का वाकया हो गया।
इस सम्मेलन से देवनानी गुट का नदारद रहना भी रेखांकित हो गया है। हालांकि देवनानी वैष्णोदेवी यात्रा पर हैं, मगर विरोधियों का मानना है कि वे जानबूझ कर यहां से चले गए। इसी प्रकार नगर निगम के पूर्व मेयर धर्मेन्द्र गहलोत और मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नीरज जैन की गैर मौजूदगी भी काउंट की जा रही है। कुल मिला का यह स्पष्ट है कि भाजपा के दिग्गजों के अजमेर आने पर भी वे मोर्चा को लेकर चल रही गुटबाजी को खत्म नहीं करवा पाए।
यहां यह भी गौरतलब है कि कांग्रेस कार्यालय में भाजपा युवा मोर्चा पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं द्वारा कालिख पोतने की घटना के बाद कांग्रेस के लोक सभा क्षेत्र के यूथ कांग्रेस उपाध्यक्ष मोहम्मद शब्बीर खान ने धमकी दी थी कि भाजयुमो के 23 सितंबर को प्रस्तावित संकल्प दिवस कार्यक्रम में यूथ कांग्रेस विरोध प्रदर्शन व धरना आयोजन करेगी। मगर कालिख पोतले को लेकर कांग्रेस के अंदर ही सिर फुटव्वल चल रही है। पार्टी से निष्कासित पार्षद मोहन लाल शर्मा तो यह आरोप लगा चुके हैं कि इसमें शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता व मेयर कमल बाकोलिया का हाथ है।
खैर, राजनीतिक दलों में उपजे इस तनाव को देखते हुए पुलिस प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता बंदोबस्त किए। कार्यक्रम शुरू होने से पहले समारोह स्थल के बाहर आरएसी के जवानों और पुलिस लाइन से अतिरिक्त जाब्ता तैनात किया गया। जवाहर रंगमंच की ओर आने वाले प्रमुख चौराहों पर आने जाने वालों पर विशेष नजर रखी जा रही थी। शहर के सभी थाना प्रभारियों एवं दक्षिण, दरगाह व यातायात उप अधीक्षक को किसी भी अप्रिय घटना से निपटने के लिए तैनात किया गया था। इसी तरह समारोह स्थल के बाहर व अंदर सादा वर्दी में पुलिसकर्मी तैनात किए गए थे। यहां तक कि स्थानीय प्रमुख भाजपा नेताओं के साथ कांग्रेसी कोई हरकत न करें, इसलिए उन्हें पुलिस संरक्षण में घर से जवाहर रंगमंच लाया गया था।
कुल मिला कर सारी आशंकाएं टल गईं और सम्मेलन ऐतिहासिक रूप से कामयाब हो गया। 
-तेजवानी गिरधर

रलावता ने दिखाए पहली बार कड़े तेवर

शहर जिला कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता ने पद संभालने के बाद पहली बार कड़े तेवर दिखाए हैं। उन्होंने अनुशासनहीनता के मामले में पार्षद मोहन लाल शर्मा को पार्टी से छह साल के लिए निष्कासित कर कांग्रेस कार्यकर्ताओं, विशेषकर आए दिन पार्टी विरोधी अथवा रलावता विरोधी बयान जारी करने वालों को यह संदेश दिया है कि उन्हें कमजोर न समझा जाए।
वस्तुत: पार्टी के वरिष्ठ नेता शर्मा ने हरकत ही ऐसी की थी, जिसके कारण पार्टी की थू थू हो रही थी और अनुशासन तो तार तार ही होने लगा था। खुद रलावता का कहना है कि मोहनलाल शर्मा ने नरेश सत्यावना को नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष मानने से इनकार करते हुए खुद को नेता प्रतिपक्ष घोषित कर दिया था। माला पहने हुए उनके फोटो अखबारों में छपे भी हैं। उन्हें 8 सितंबर को नोटिस देकर जवाब मांगा गया था। इस पर उन्होंने 13 सितंबर को अपना जवाब दिया जिसमें अखबारों में छपे अपने बयानों को गलत बताया था, लेकिन उनके फोटो सच्चाई बयान कर रहे थे। उनके जवाब, समाचार पत्रों की कटिंग्स आदि प्रदेशाध्यक्ष को भेज दिए गए थे। शर्मा अपनी गलती मानने को तैयार नहीं थे, लिहाजा उन्हें अनुशासनहीनता का दोषी मानते हुए पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। रलावता ने बताया कि मोहनलाल शर्मा के साथ जो अन्य पार्षद तस्वीरों में थे, उनके जवाब पार्टी को लिखित-मौखिक मिल गए हैं, जिसमें उन्होंने खेद जताया है, लिहाजा उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं हो रही है।
असल में केवल शर्मा ही नहीं, अन्य कई नेता व कार्यकर्ता पिछले दिनों लगातार अनुशासन तोडऩे लगे थे। शर्मा की तरह अन्य भी उसी राह पर चल कर आए दिन सार्वजनिक बयान जारी कर रहे थे। कई बार उनकी कार्यकारिणी को लेकर सार्वजनिक बयानबाजी हो चुकी थी। ऐसे में लगने यह लगा था कि रलावता से संगठन संभल नहीं रहा है। इस धारणा के साथ उनके आका केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट की छवि पर आंच आ रही थी। लोग इसी सीधे तौर पर पायलट की खिलाफत के रूप में ले रहे थे। जाहिर ऐसे में जैसे ही उन्हें मौका मिला अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर लिया। हालांकि उनके इस कदम से आने वाले दिनों में उन्हें कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि शर्मा कांग्रेस के खांटी नेता हैं, मगर कम से कम इतना तो हुआ कि रलावता ढ़ीलेपन के आरोप से मुक्त तो हुए।
जैसे ही शर्मा के खिलाफ कार्यवाही की गई, वे बौखला गए। असल में उन्हें उम्मीद नहीं थी कि इस प्रकार एक झटके में ही उन्हें पाटी से बाहर कर दिया जाएगा। बौखलाहट में उन्होंने रलावता पर पलटवार करते हुए कहा कि अजमेर बंद के दौरान कांग्रेस कार्यालय पर भाजपा कार्यकर्ताओं ने जो घटना की उसके पीछे रलावता का ही हाथ है। स्वर्गीय राजेश पायलट की तस्वीर पर कालिख पोते जाने की घटना रलावता की सदारत में ही हुई। उनके आरोप में दम कम और बौखलाहट ज्यादा नजर आती है। शर्मा ने इस आरोप का खंडन किया कि भारतीय जनता युवा मोर्चा के कोटा संभाग प्रभारी नीतेश आत्रेय के जरिए उन्होंने कांग्रेस कार्यालय पर वारदात करवाई। ज्ञातव्य है कि आत्रेय मोहनलाल शर्मा के रिश्ते में दामाद लगते हैं।
शर्मा के आरोप को सिरे से नकारते हुए रलावता ने कहा कि आत्रेय शर्मा के दामाद हैं। वे अलग राजनीतिक दल के हैं। ऐसे में मेरे कहने पर कोई काम क्यों करेंगे। यदि शर्मा का रिश्तेदार मेरे कहने पर कोई काम कर रहा है तो इसका एक ही अर्थ है कि शर्मा के रिश्तेदार उनके कहने में नहीं हैं।
जहां तक शर्मा को पार्टी से निकालने पर होने वाले प्रभाव का सवाल है, सीधे तौर पर नगर निगम में पार्टी को इससे कोई नुकसान होने वाला नहीं है, मगर पार्टी में माहौल खराब होने की शुरुआत तो हो ही गई है। देखना केवल ये है कि रलावता की इस सख्ती से संगठन सुधरता है या बगावत और नया रूप लेती है।
-तेजवानी गिरधर

कुछ इस तरह देखा दरगाह व पुष्कर को एक पत्रकार ने


दयानंद पांडेय

दिन के कोई ११-३० बजे अजमेर पहुंचा। स्टेशन पर आटो और रिक्शा वालों ने वही अफ़रा-तफ़री दिखाई जो सभी शहरों में टूरिस्टों के साथ वह दिखाते हैं। होटल ले जाने की उन्हें बडी़ जल्दी होती है। किराए से ज़्यादा उन्हें होटल से मिलने वा्ले कमीशन की परवाह होती है। प्रदीप जी ने यहां भास्कर के संपादक जय रमेश अग्रवाल से बात कर ली थी। अग्रवाल जी ने रिपोर्टर निर्मल जी से कह कर डाक बंगला में एक कमरा दिलवा दिया। जैसे डाक बंगले होते हैं, वैसा ही था यह भी। अव्यवस्था और बदमगजी के शिकार। कदम-कदम पर लापरवाही। शिकायत करने पर चौकीदार और बाबू ने तज़वीज़ दी की फिर तो मैं सर्किट हाऊस ही चला जाऊं। वहां साफ-सफाई भी है और सारी सहूलियत भी। खैर एक्सीयन से फ़ोन पर कह कर साफ-सुथरा ए.सी. कमरा किसी तरह मिल गया। सामान रख कर, एक रेस्टोरेंट में खाना खा कर मैं पुष्कर के लिए निकल पडा़। अजमेर से थोडी़ देर का सफ़र है पुष्कर। बिलकुल सुहाना सफ़र। पहाड़ियों को चीरती हुई बस ने अपनी ऊंचाई से पूरे अजमेर शहर को दिखाना शुरु कर दिया। आना सरोवर की सुंदरता और निखर गई। बस ने जल्दी ही पुष्कर पहुंचा दिया।
पुष्कर में मनमोहक सरोवर पर
पुष्कर ने पुश-पाश की तरह बांध लिया। जैसे किसी बागीचे के सुंदर फूल आप को बांध लें। पहाड़ियों से घिरे सरोवर की सुंदरता और सफाई ने मन मोह लिया। विदेशी जोड़ों को देख कर अपने बनारस की याद आ गई। पंडों की कपट भरी बातों ने, उन की पैसा खींचने की अदा ने वृंदावन और विंध्याचल की याद दिला दी। हालां कि सीज़न न होने के चलते बहुत भीड़-भाड़ नहीं थी तो भी पंडा लोगों ने कोई कोर-कसर छोडी़ नहीं। पूजन की दक्षिणा के बाद ज़बरिया रसीद कटवाने की बात भी आई। हां यह बदलाव भी ज़रुर था कि जींस पहने भी कुछ पंडा लोग मिले। नहाने की तैयारी से मैं गया भी नहीं था सो आचमन कर के ब्रह्मा जी के मंदिर दर्शन के लिए चल पडा़। सड़क पर छुट्टा गाय और सांड़, जगह-जगह गोबर और सजी धजी दुकानें किसी गांव के से मेले का भान करा रही थीं। पर यह कोई गांव तो नहीं था। पुष्कर था। ज़्यादातर कपडों की दुकानें। और झोले आदि की। राजस्थानी महक कम, चीनी महक ज़्यादा। मतलब चीनी स्टाइल के कपडे़ ज़्यादा। क्या जेंट्स, क्या लेडीज़ सभी कपड़ों पर चीनी तलवार लटकी हुई थी। हां, वैसे यहां राजस्थानी पगड़ी, राजस्थानी तलवार और ढाल भी कुछ जगह बिकती देखी। मंदिर और धार्मिक स्थल पर तलवार और ढाल की भला क्या ज़रुरत? पर सोच कर ही चुप रह गया। किस से और भला क्या पूछता? वैसे भी सीज़न न होने के कारण दुकानों पर गहमागहमी की जगह सन्नाटा सा था। एक नींद सी तारी थी भरी दोपहर में पूरे पुष्कर में। बनारस में काशी विश्वनाथ मंदिर सा नज़ारा यहां भी था मंदिर के बाहर का। कि अगर जूता-चप्पल, मोबाइल आदि सुरक्षित रखना है तो प्रसाद और फूल संबंधित दुकान से लेना अनिवार्य है। प्रसाद दस रुपए से लगायत पचास रुपए तक के थे। खैर विश्वनाथ मंदिर की तरह न तो यहां भारी भीड़ थी न अफरा-तफरी। न ही पुलिस की ज़्यादतियां, बेवकूफियां और न बूटों की तानाशाही। आराम से दर्शन हुए। मंदिर की तमाम सीढ़ियों पर तमाम नाम दर्ज़ थे। उन नामों को कुचलते हुए सीढ़ियों पर से गुज़रना तकलीफ़देह था। इन सीढ़ियों के पत्थरों पर अपना या अपने परिजनों का नाम लिखवाने वालों ने क्या कभी यह भी सोचा होगा कि उन के नामों पर लोगों के अनगिनत पैर पड़ेंगे? या कि ताजमहल फ़िल्म के लिए साहिर के लिखे गीत की याद रही होगी कि पांव छू लेने दो, फूलों को इनायत हो्गी/ हम को डर है कि ये तौहीने मोहब्बत होगी। क्या पता? खैर, ज़्यादातर श्रद्धालु हर जगह की तरह यहां भी निम्न वर्ग के ही लोग थे। कुछ मध्यम वर्ग के भी। पर पूरी श्रद्धा में नत। मंदिर परिसर में फ़ोटो खींचने पर एक सुरक्षाकर्मी आया और बडे़ प्यार से बोला, ‘आप का कैमरा जमा करवा लिया जाएगा। फ़ोटो मत खींचिए।’ कैमरा हम ने अपनी ज़ेब में रख लिया। फिर बाहर आ कर फ़ोटो खिंची।
पुष्कर के एक और मंदिर पर
मंदिर परिसर से बाहर आते समय सीढ़ियों से सटी एक दुकान के लोग अपनी दुकान में आने का विनयवत निमंत्रण दे रहे थे। इस दुकान में किसिम-किसिम की मूर्तियां थीं। छोटी-बड़ी सभी आकार की। विभिन्न धातुओं की। राजस्थानी कला से जुड़ी और तमाम चीज़ें। कपड़े, जयपुरिया रजाई आदि। पर इतने मंहगे कि बस पूछिए मत। तीन हज़ार से शुरु पचास हज़ार, लाख तक की मूर्तियां। छोटी-बड़ी। हर तरह की। खैर आगे बढे़। कहा जाता है कि पूरी दुनिया में ब्रह्मा और गायत्री का यही इकलौता मंदिर है। खैर यहां भगवान नरसिंह का भी मंदिर है खूब ऊंचा। पर जाने क्यों यहां लोग बहुत नहीं जाते। मैं जब गया इस मंदिर में तो जाते-आते अकेला ही रहा। पुष्कर की समूची सड़क लगभग बाज़ार है। सड़क भी बड़ी है और बाज़ार भी। बनारस की तरह तमाम घाट भी हैं यहां। वृद्ध लोग सीढ़ियां चढ़ते उतरते थक जाते हैं। यही हाल बाज़ार का भी है। समूचा बाज़ार घूमना वृद्धों के वश का है नहीं। और तीर्थ, मंदिर ज़्यादातर वृद्धों और स्त्रियों से ही गुलज़ार रहते हैं। उन की मिज़ाज़पुर्सी में ही युवा उन के साथ होते हैं। सो वृद्ध लोग बाज़ार के बाहर वाले रास्ते से आटो से आते-जाते हैं, जिन की सामर्थ्य होती है। यहां मैं ने देखा कि फूलों की खेती भी अच्छी है। एक दुकान पर देखा कि एक व्यक्ति अपने साथ की स्त्रियों के साथ साड़ियां खरीदने में लगा था। वह ठेंठ गंवई राजस्थानी ही था। मोल-तोल कर ढाई-ढाई सौ की कुछ साड़ियां खरीदने के बाद वह दुकानदार से पक्की रसीद मांगने लगा। तो दुकानदार ने उसे समझाया कि रसीद लोगो तो पैसा बढ़ जाएगा। टैक्स लग जाएगा। तो वह खरीददार बोला कि मैं जानता हूं कि टैक्स एक साथ जहां से सामान आता है, वहीं लग जाता है। तो दुकानदार भी एक घाघ था। बोला कि टैक्स तो लग जाता है पर वैट और सर्विस टैक्स यहीं लगता है। बोलो दोगे? दूं रसीद? वह बिना रसीद के चला गया। ज़ाहिर है कि साड़ियों में शिकायत की गुंज़ाइश थी और वह आदमी लोकल लग रहा था, वापस आ सकता था शिकायत ले कर। बाहरी तो था नहीं कि वापस नहीं आ सकता था। सो रसीद होती तो विवाद बढ़ सकता था। सो उस ने रसीद नहीं दी। आखिर ढाई सौ में चमकीली साड़ी निकलेगी भी कैसी? आसानी से जाना जा सकता है। बनारस की तरह यहां भी दुकानदारों द्वारा विदेशी जोड़ों को भरमाने की कवायद बदस्तूर दिखी। यहां एक हलवाई की दुकान पर रबड़ी का मालपुआ देशी घी में लिखा देख मुह में पानी आ गया। पर उस का सब कुछ खुला-खुला देख कर हिम्मत नहीं हुई। बीमार पड़ने का खतरा था। मन को काबू करना पड़ा।
शाम हो चली थी। एक और मंदिर दिखा। यहां भी भीड़ मिली। यहां भगवान जी को घुमाया जा रहा था। बाकायदा पुजारी लोग पालकी में ले कर घुमा रहे थे। आरती का दिया भी घूम रहा था। चढ़ावा लेने के लिए। आरती ली, फ़ोटो खिंची और चल दिए। बस स्टैंड के ठीक पहले एक जगह एक स्त्री घास बेचती मिली। वहीं कुछ गाय झुंड में घास खा रही थी। वह स्त्री आते-जाते लोगों से गुहार लगाती रहती थी कि गाय को घास खिलाते जाइए। पांच रुपए में, दस रुपए में। कुछ लोग उस स्त्री की सुन लेते थे, कुछ नहीं। इसी तरह पुष्कर झील के किनारे भी एक जगह गऊ घाट भी दिखा था। वहां शायद गऊ दान होता हो। मैं देखते हुए ही चला आया था। गया नहीं। वापसी के लिए बस स्टैंड पर आ गया। एक बस सवारियों से भर चुकी थी। दूसरी के इंतज़ार में बैठ गया। थोड़ी देर में दूसरी बस भी आ गई। और तुरंत भर गई। पर अभी चली भी नहीं थी कि पता चला कि पंक्चर हो गई। हार कर उस पहली ही बस में आना पड़ा।
ब्रह्मा-गायत्री मंदिर पर
जब अजमेर शहर करीब आ गया तो कंडक्टर से मैं ने कहा कि, ‘ दरगाह जाना है सो वहां जाने के लिए जो करीब का स्टापेज़ हो बता दीजिएगा उतरने के लिए।’ उस ने बता दिया कि, ‘आगरा गेट पर उतर जाइएगा।’ मैं ने कहा कि, ‘यह भी आप को बताना पड़ेगा कि आगरा गेट कहां है?’ कंडक्टर शरीफ़ आदमी था। उस ने हामी भर दी। पर मेरी सीट के पीछे बैठे एक दो लोग मेरी पड़ताल में लग गए। यह कहते हुए कि, ‘आ रहे हो पुष्कर से और जा रहे हो दरगाह?’ उन्हों ने नाम पूछा। और बोले, ‘पंडत हो कर भी दरगाह?’ मैं ने कहा कि, ‘हां।’ फिर, ‘कहां से आए हो?’ पूछा। मैं ने बताया कि, ‘लखनऊ से। ‘ तो वह बोले, ‘तब तो तुम्हें जाना ही है। यह तुम्हारा दोष नहीं लखनऊ का है। पर क्यों पुष्कर का सारा पुण्य दरगाह में जा कर भस्म कर देना चाहते हो?’ इस के बाद वह और उस का एक साथी नान स्टाप फ़ुल वाल्यूम में जितना और जैसा भी ऊल-जलूल बक सकते थे बकते रहे। पहले तो मैं ने टाला। पर जब ज़्यादा हो गया तो मैं कुछ प्रतिवाद करने के लिए मुंह खोल ही रहा था कि बगल में बैठे व्यक्ति ने मेरा हाथ पकड़ कर दबाया और कुछ न बोलने का संकेत किया। मुझे भी लगा कि प्रतिवाद में बात बढ़ सकती है सो चुप लगा गया। बस में उस व्यक्ति की बात के समर्थन में कुछ और लोग भी बोलने लगे। अंट-शंट। आपत्तिजनक। खैर तभी आना सरोवर के पास से बस गुज़री तो मुझे गौहाटी में ब्रह्मपुत्र की याद आ गई। पर बात को बदलने की गरज़ से मैं ने उस लगातार बोलते जा रहे आदमी से पूछा कि, ‘यह आना सरोवर है ना !’
‘हां है तो।’ वह ज़रा रुका और बोला, ‘नहाओगे क्या?’ वह ज़रा देर रुका और बोला, ‘अरे शहर का सारा लीवर-सीवर यहीं गिरता है।’ फिर वह एक श्मशान घाट की प्रशंसा में लग गया और कहने लगा कि कुछ मांगने जाना ही है तो वहां जाओ। कोई निराश नहीं लौटता। आदि-आदि। और वह फिर मुझे समझाने में लग गया कि, ‘पंडत पुष्कर का पुण्य दरगाह में जा कर मत नष्ट करो ।’ कि तभी कंडक्टर ने बताया कि, ‘आगरा गेट आने वाला है, गेट पर चले जाइए।’
मैं आगरा गेट पर उतर गया।
अजमेर में ख्वाज़ा साहब की दरगाह पर
चला पैदल ही दरगाह की ओर। लोगों से रास्ता पूछते हुए। पहले दिल्ली गेट और फिर थोडी़ देर में दरगाह की मुख्य सड़क पर आ गया। एक मौलाना से पूछ भर लिया। कि, ‘क्या यही दरगाह है?’
‘जी जनाब !’ कह कर वह भी शुरु हो गए। नान स्टाप। वहा की बदइंतज़ामी पर, सड़कों में जगह-जगह गड्ढे दिखाते हुए। गंदगी दिखाते हुए। कहने लगे कि, ‘लूट मचा रखी है !’
‘किस ने?’ मैं ने पूछा।
‘अफ़सरान ने !’ वह बोले, ‘कलक्टर से लगायत सब के सब। नहीं कितना पैसा गवर्नमेंट देती है, बाहर से फ़ंड आता है, पर सब लूट कर खा जाते हैं यह सब ! आप जाइए पुष्कर ! फिर देखिए कि वहां क्या चमाचम सड़कें है। क्या इंतजामात हैं, सफाई है। पर यहां तो अंधेरगर्दी है लूट है।’ मौलाना जैसे फटे पड़ रहे थे। उन की शिकायतों का कोई अंत नहीं था।
थोडी देर बाद मैं ने बात बदलने के लिहाज़ से कहा कि, ‘यहां सवारी नहीं आती?’
‘बादशाह अकबर यहां पैदल आए थे !’ वह बड़े नाज़ से बोले, ‘चलिए पैदल ! हर्ज़ क्या है?’ और वह फिर शुरु हो गए। जल्दी ही हम दरगाह के मुख्य दरवाज़े पर आ गए। यहां भी काशी में विश्वनाथ मंदिर की तरह और पुष्कर में ब्रह्मा-गायत्री मंदिर की तरह जूते-चप्पल रखने के लिए फूल, प्रसाद, चढ़ाने के लिए चद्दर आदि लेना अनिवार्य था। लेकिन चढ़ाने के लिए चद्दर, अगरबत्ती और प्रसाद मैं पहले ही ले चुका था। अब यहां सिर्फ़ फूल लेना बाकी था। खैर मुख्य दरवाज़े के बगल में जूता-चप्पल जमा करने की एक जगह थी। पांच रुपए जोड़ा की दर से। मैं ने वहीं जमा किया। अंदर भी जा कर सब सामान मिल रहे थे। तो मैं ने फिर एक टोकरी फूल लिया। और चला मत्था टेकने ख्वाज़ा साहब की दर पर। पर भीतर जाते ही गुमान यहां भी टूटा। पंडे यहां भी थे, खादिम के रुप में। रसीद कटवाने के लिए फ़रेब और दादागिरी यहां भी थी। पैसे चढ़ाने की पुकार यहां भी थी और लाज़िम तौर पर। चिल्ला-चिल्ला कर। एक खादिम तो बाकायदा चिल्लाते हुए कह रहे थे गल्ले का पैसा यहां जमा करो। और हाथ से चादर, फूल सब झपट कर खुद पीछे की तरफ़ फेंक देते थे। और लोगों को भेड़-बकरी की मानिंद हांक देते थे कि, ‘उधर चलो !’ ज़बरदस्ती। हमारे लखनऊ में खम्मन पीर बाबा की मज़ार पर तो ऐसा कुछ भी नहीं होता। भीड़ वहां भी खूब होती है। खैर यहां मैं ने ऐतराज़ किया और कहा भी उन से कि, ‘ पुलिस वालों जैसा सुलूक तो मत करिए।’ और ज़रा तेज़ आवाज़ में ऐतराज़ दर्ज़ करवाया। तो वह थोडे़ नरम पड़े। और जब मैं ने कहा कि, ‘देखिए उस तरफ़ तो लोग खुद फूल और चादर चढ़ा रहे हैं। और यहां आप ने हम जैसों को खुद फूल और चादर चढ़ाने नहीं दिया।’ तो वह हिकारत से बोले, ‘ध्यान से देखो, वह भी खादिम लोग ही हैं।’ कह कर वह फिर भेंड़-बकरी की तरह सब को हांकने में लग गए। भीड़ हालां कि ज़्यादा नहीं थी आफ़ सीज़न के चलते। पर कम भी नहीं थी। कोई आधा घंटा से ज़्यादा लग गया दो कदम की दूरी चल कर मत्था टेकने में। वी. आई.पी. ट्रीटमेंट होता है हर जगह । हर मंदिर, हर दरगाह में। यहां भी था। उसी दिन पूर्व मंत्री और भाजपा नेता शाहनवाज़ भी चादर चढ़ाने गए थे। और भी बहुतों की फ़ोटो देखी थी मैं ने वहां चादर चढा़ते हुए। पर हमारी चादर और फूल चढाई नहीं गई बस पीछे फेंक दी गई खादिम के द्वारा। और सब की ही तरह। पर मत्था टेकने और सिर झुकाने का सुख मिला, सवाब मिला, इसी से संतोष किया। बाहर आ कर फ़ोटो भी खिंची। फ़ोटो खींचने पर किसी को ऐतराज़ भी नहीं हुआ। बस एक आदमी ने सलाह दी और ज़रा डपट कर दी कि पीठ ख्वाज़ा साहब की तरफ़ कर के खडे़ हो कर फ़ोटो मत खिंचवाइए। यह खादिम नहीं, हमारी तरह श्रद्धालु थे। तो भी मुझे हंसी आई और वह शेर याद आ गया कि:
जाहिद शराब पीने दे मस्ज़िद में बैठ कर
या वो जगह बता जहां खुदा न हो !
पूरे परिसर में खूब रोशनी और चहल-पहल है। लोग-बाग भी खूब हैं। औरत-मर्द, बूढे-बच्चे सभी। श्रद्धा में नत और तर-बतर। कोई नमाज़ पढ़ता, कोई आराम करता और परिवारीजनों से बतियाता हुआ। हाथ पैर धोता सुस्ताता हुआरास्ते में एक रेस्टोरेंट में खाना खा कर लौट रहा हूं बरास्ता दिल्ली गेट, आगरा गेट डाकबंगला। आ कर सो जाता हूं। सवाब और सुख से भरा-भरा। सुबह ११ बजे लखनऊ वापसी की ट्रेन है। गरीब-नवाज़ है। कूपे में अजमेर से अकेला हूं। अजमेर छूट रहा है। जयपुर से बाटनी के प्रोफ़ेसर स्वर्णकार श्रीमती स्वर्णकार के साथ आ गए हैं हैं। इधर-उधर की बातचीत है। बबूल की चुभन की उन से बात करता हूं। वह कहते हैं कि हां बहुत सारा डेज़र्ट है तो। बात जयपुर के गुलाबीपन की होती है। बात ही बात में वह बताते हैं कि राजस्थान के बाकी हिस्से तो कंगाल हैं। खास कर मेवाड़ वगैरह। लड़-भिंड़ कर खजाना खाली कर दिया। वह जैसे तंज़ पर आ जाते हैं और कहते हैं कि पर जयपुर के राजा लोग लड़ने-भिड़ने में कभी यकीन नहीं किए। चाहे जय सिंह रहे हों या मान सिंह। मुगल पीरियड रहा हो या ब्रिटिश पीरियड। सो खज़ाना हमेशा भरा रहा। वह हंसते हैं। उन के बच्चे सेटिल्ड हो गए हैं और वह हरिद्वार जा रहे हैं। शाम को हरकी पैड़ी पर आरती का आनंद लेने की योजना बना रहे हैं। राजस्थान छूट रहा है धीरे-धीरे। हरियाणा आ रहा है। हरियाणा छूट रहा है। दिल्ली आ रहा है। प्रोफ़ेसर स्वर्णकार को दिल्ली में ट्रेन बदलनी है। वह उतर जाते हैं। एक जैन साहब आ जाते हैं। व्यापारी हैं। खाना हम दोनों खा रहे हैं। वह घर का लाया खाना खा रहे हैं। बता रहे हैं कि बाहर का खाना नहीं खाते वह। लहसुन प्याज वाली दिक्कत है। अमरीका तक में वह महीने भर रहे पर बचा गए। देशी घी वाला खाना है, बताना नहीं भूलते वह। अब दिल्ली छूट रही है। जाते वक्त ट्रेन आगरा के रास्ते राजस्थान ले गई थी, भरतपुर, बांदीकुई वगैरह होती हुई जयपुर, अजमेर, भीलवाड़ा। अब की राजस्थान छूटा अलवर होते हुए, हरियाणा, दिल्ली के रास्ते। सोते हुए। गए थे जागते हुए। भरतपुर में तब नींद टूटी थी। अब की वापसी में शाहजहांपुर में टूटी है। कुछ परिवार हैं जो अजमेर से लौटे हैं सबाब ले कर। उतरते वक्त खामोशी के बजाय हलचल मचाते हुए उतर रहे हैं। भोर के पौने तीन बजे हैं। लोग उतर रहे हैं। सोए हुए बच्चों और सामान को हाथ में लिए हुए। सवाब का सुकुन चेहरे पर है ज़रुर पर बोल रहे हैं कि अपना मुल्क ही अपना मुल्क होता है। अपने मुल्क की बात ही कुछ और है। तो क्या अजमेर उन का दूसरा मुल्क था? क्या रघुवीर सहाय इसी लिए, इसी तलाश और तनाव में लिख गए हैं दिल्ली मेरा परदेस ! याद आता है कि साक्षी के कार्यक्रम में रोमिला ने स्त्रियों के संदर्भ में एक वाकया सुनाया था। कि एक कुम्हार घड़ा बना रहा था। घडा़ बनाते-बनाते वह किन्हीं खयालों में खो गया। कि तभी मिट्टी बोली कुम्हार-कुम्हार यह क्या कर रहे हो? घड़े की जगह मुझे सुराही क्यों बना रहे हो? कुम्हार ने कहा कि माफ़ करना मेरा विचार बदल गया। मिट्टी तकलीफ़ से भर कर बोली तुम्हारा तो सिर्फ़ विचार बदला, पर मेरी तो दुनिया बदल गई।
तो यहां अजमेर से शाहजहांपुर की यात्रा में इन लोगों का मुल्क बदल गया। अपने मुल्क आने की खुशी में वह लोग भूल गए कि हमारे जैसे लोगों की नींद भी टूट गई है। बशीर बद्र याद आ गए हैं :
वही ताज है, वही तख़्त है, वही ज़हर है, वही जाम है
ये वही ख़ुदा की ज़मीन है, ये वही बुतों का निज़ाम है

दयानंद पांडेय ,लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. अपनी कहानियों और उपन्यासों के मार्फ़त लगातार चर्चा में रहने वाले दयानंद पांडेय का जन्म 30 जनवरी, 1958 को गोरखपुर ज़िले के एक गांव बैदौली में हुआ। हिंदी में एम.ए. करने के पहले ही से वह पत्रकारिता में आ गए। 33 साल हो गए
हैं पत्रकारिता करते हुए। उन के उपन्यास और कहानियों आदि की कोई डेढ़ दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हैं। लोक कवि अब गाते नही पर प्रेमचंद सम्मान तथा कहानी संग्रह ‘एक जीनियस की विवादास्पद मौत’ पर यशपाल सम्मान। बांसगांव की मुनमुन, वे जो हारे हुए, हारमोनियम के हजार टुकड़े, लोक कवि अब गाते नहीं, अपने-अपने युद्ध, दरकते दरवाज़े, जाने-अनजाने पुल (उपन्यास), प्रतिनिधि कहानियां, बर्फ में फंसी मछली, सुमि का स्पेस, एक जीनियस की विवादास्पद मौत, सुंदर लड़कियों वाला शहर, बड़की दी का यक्ष प्रश्न, संवाद (कहानी संग्रह), हमन इश्क मस्ताना बहुतेरे (संस्मरण), सूरज का शिकारी (बच्चों की कहानियां), प्रेमचंद व्यक्तित्व और रचना दृष्टि (संपादित) तथा सुनील गावस्कर की प्रसिद्ध किताब ‘माई आइडल्स’ का हिंदी अनुवाद ‘मेरे प्रिय खिलाड़ी’ नाम से प्रकाशित। उनका ब्लाग है- सरोकारनामा

शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

मरते दम तक क्रांति की ज्वाला थी क्रांतिदेवी में



श्रीमती क्रांति देवी
अजमेर लोकसभा क्षेत्र के प्रथम सांसद, नगर पालिका के पहले अध्यक्ष स्वाधीनता सेनानी स्वर्गीय पं. ज्वालाप्रसाद शर्मा की पत्नी स्वाधीनता सेनानी श्रीमती क्रांति देवी के निधन के साथ एक युग का अंत हो गया। तकरीबन 84 क्रांतिदेवी में उम्र के आखिरी पड़ाव पर भी क्रांति की ज्वाला धधकती रही। ज्ञातव्य है शुक्रवार, 21 सितंबर 12 को उनका निधन हो गया। वे कुछ दिन से अस्वस्थ थीं।
श्रीमती क्रांतिदेवी ने आजादी के आंदोलन में पति के साथ कंधे से कंधा मिला कर भाग लिया। उस वक्त वे जन प्रबल प्रचार समिति की अध्यक्ष रहीं। क्रांति देवी ने स्वतंत्रता आंदोलन में क्रांतिकारियों के बीच चि_ियों का आदान-प्रदान कर सहयोग किया। उन्होंने अजमेर की महिलाओं के विकास एवं उन्हें शिक्षित करने के मद्देनजर महिला जागृति केंद्र की स्थापना की। आजादी के बाद वे प्रदेश कांगे्रस की उपाध्यक्ष रहीं और हाल तक अखिल भारतीय स्वतंत्रता सेनानी संघ महिला विंग की अध्यक्ष भी थीं। क्रांति देवी ने इंदिरा जन प्रबलक प्रचार समिति का गठन कर इंदिरा गांधी के जेल भरो आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। उन्हें राज्य सरकार से स्वतंत्रता आंदोलन में खास भूमिका निभाने पर ताम्र-पत्र भी प्रदान किया गया था। वे शहर कांग्रेस कमेटी में उपाध्यक्ष पद पर भी रहीं। स्वर्गीय श्री कन्हैयालाल झा के घर जन्मी श्रीमती क्रांतिदेवी ने एम.ए. हिंदी तक शिक्षा अर्जित की और लेखन कार्य करती थीं। उम्र के आखिरी पड़ाव पर भी वे देश की ज्वलंत समस्याओं पर चिंता करती रहीं। साहित्य में उनकी गहरी रुचि थी और गाहे-बगाहे चंद बुद्धिजीवियों के साथा गाष्ठियां करती रहती थीं।
स्वर्गीय पं. ज्वालाप्रसाद शर्मा 
श्रीमती नीलिमा कृष्णा शर्मा
यहां उल्लेखनीय है कि उनके पति पं. ज्वाला प्रसाद शर्मा केंद्र शासित प्रदेश अजमेर-मेरवाड़ा के काल में अजमेर के विधायक रहे। वर्ष 1951-52 और 1957-58 में नगर पालिका के अध्यक्ष रहे थे। वे राजस्थान रोडवेज के पहले अध्यक्ष भी रहे। अजमेर में रोडवेज वर्कशॉप उन्हीं के प्रयासों से स्थापित हुआ था। उनका विवाह क्रांति देवी के साथ सन् 1946 में हुआ। स्वाधीनता संग्राम में अजमेर के उग्रवादी आंदोलनकारियों में पंडित श्री ज्वाला प्रसाद शर्मा का नाम शीर्ष पर गिना जाता है। आपने डी.ए.वी. हाई स्कूल में पढ़ाई के दौरान ही सन् 1930 में सहपाठियों के साथ क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया। सन् 1931 में क्रांतिकारी श्री मदन गोपाल के नेतृत्व में रेलवे कारखाना लूटने की योजना बनाई, लेकिन वह सफल नहीं हो पाई। आप श्री विजय सिंह पथिक व श्री अर्जुन लाल सेठी के सम्पर्क में भी आए। आपने हटूंडी में गांधी आश्रम में बाबा नृसिंहदास से बंदूक चलाना सीखा। एक सरकारी गुप्तचर ने आपको फंसाने के लिए सीकर के एक महाजन के घर डाका डालने के मकसद से रिवाल्वर दिया, मगर वे उसके चक्कर में नहीं आए और श्रीनगर के पास जंगल में उसी रिवाल्वर से उसको मार कर शव जमीन में दफन कर दिया। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान सन् 1942 में जेल में रहने के दौरान युक्ति लगा कर भागने में सफल हो गए। 20 मई, 1974 को जयपुर से अजमेर आते वक्त दूदू के पास कार दुर्घटना में उनका निधन हो गया।
यहां यह भी ज्ञातव्य है कि ज्वाला प्रसाद शर्मा की पुत्री श्रीमती नीलिमा कृष्णा शर्मा भी माता-पिता की तरह राजनीति में सक्रिय रहीं। वे 1985 के चुनाव में जिले के भिनाय विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस विधायक निर्वाचित हुईं। वे समाज कल्याण बोर्ड की अध्यक्ष भी रही हैं। पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री राजीव गांधी से नजदीकी के कारण उन्हें राजस्थान का सलाहकार बनाया गया था। एक बार अजमेर पश्चिम से कांग्रेस का टिकट मांगा लेकिन न मिलने पर वे निर्दलीय चुनाव लड़ीं, मगर हार गईं। सन् 1953 में जन्मी श्रीमती नीलिमा वर्तमान में अहमदाबाद में एक कॉलेज की प्रिंसिपल हैं।
अजमेरनामा श्रीमती क्रांतिदेवी के निधन पर शत-शत नमन करते हुए उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करता है।
-तेजवानी गिरधर

देवनानी एक तरफ, भाजपा दूसरी तरफ


एक लंबे अरसे से शहर के भाजपा विधायक द्वय प्रो. वासुदेव देवनानी व श्रीमती अनिता भदेल में बंटी भाजपा अब शनै: शनै: देवनानी बनाम एंटी देवनानी होती जा रही है। अर्थात एक तरफ पूरी भाजपा है तो दूसरी ओर देवनानी। हालांकि जब शहर भाजपा अध्यक्ष का विवाद आया था तो निर्गुट अध्यक्ष के रूप में पूर्व सांसद प्रो. रासासिंह रावत को विराजमान किया गया था और दोनों गुटों के पदाधिकारियों को स्थान दिया गया था, मगर ताजा स्थिति ये है कि सक्रिय पदाधिकारियों की एक बड़ी लॉबी पूरी तरह से देवनानी के खिलाफ चल रही है, जो कि हर वक्त उन्हें नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ती। माना जाता है कि इस लॉबी को प्रदेश भाजपा उपाध्यक्ष औंकार सिंह लखावत का वरदहस्त है। विधायक श्रीमती अनिता भदेल स्वाभाविक रूप से इस लॉबी में शामिल हैं ही।
दो भागों में बंटी पार्टी की हालत ये है कि पार्टी बैनर पर आए दिन आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में यह लॉबी अलग ही चलती है और देवनानी अपने बलबूते पर अलग। यदि किसी कार्यक्रम में संयुक्त रूप से मौजूद भी रहते हैं तो भी इनकी खींचतान साफ देखी जा सकती है। यूं तो इस फूट के अनेकानेक उदाहरण मौजूद हैं, मगर सबसे ताजा प्रकरण अजमेर बंद से एक दिन पूर्व का है। तब भाजपा की ओर से कलेक्ट्रेट पर प्रदर्शन कर केन्द्र सरकार का पुतला फूंका गया तो देवनानी साफ तौर अलग थलग दिखाई दिए। दैनिक भास्कर में तो बाकायदा इस घटना का ब्यौरा तक दिया गया है। उसमें लिखा है कि कलेक्ट्रेट पर विधायक देवनानी पुलिस से उलझते नजर आए। देवनानी ने कलेक्ट्रेट के बंद मुख्यद्वार को खोलने का प्रयास करते हुए यातायात उपअधीक्षक जयसिंह राठौड़ व सिविल लाइन थाना प्रभारी रविंद्र सिंह से धक्का मुक्की हो गई। देवनानी चाहते थे कि वह कार्यकर्ताओं के साथ कलेक्ट्रेट के भीतर प्रवेश करें। जैसे तैसे कर देवनानी ने मुख्य द्वार को खुलवा लिया लेकिन उनके साथ कोई भी कार्यकर्ता भीतर नहीं गया। इसी बीच मुख्य द्वार से कुछ दूरी पर खड़े शहर भाजपा अध्यक्ष रासासिंह रावत ने सभी कार्यकर्ताओं को अपने पास बुला लिया और देवनानी अलग थलग नजर आए। बंद वाले दिन भी देवनानी अपने समर्थकों के साथ अलग ही चल रहे थे।
इसका परिणाम ये है कि एक ही मुद्दे पर भाजपा की अधिकृत विज्ञप्ति अलग जारी होती है और देवनानी की अलग। हालांकि भाजपा की विज्ञप्ति में देवनानी का नाम भी जोड़ा जाता है, मगर उसके बावजूद देवनानी अलग से विज्ञप्ति जारी कर देते हैं। इनकी प्रतिस्पद्र्धा भी लगातार बढ़ती जा रही है। कई तटस्थ नेता इस स्थिति का तमाशबीन की तरह मजा ले रहे हैं।
पार्टी की ताजा स्थिति के चलते यह संदेह होता है कि क्या देवनानी विरोधी लॉबी उन्हें आगामी विधानसभा चुनाव का टिकट लेने भी देगी? और टिकट ले आए तो जीतने भी देगी? तस्वीर का दूसरा रुख ये है कि टिकट तो पिछली बार भी कट ही गया था, वो तो वे अकेले अपने दम पर टिकट ले कर आए थे। चुनाव के दौरान भी भाजपा का पूरा एक बड़ा गुट उनके खिलाफ था। सिंधी-वैश्यवाद के चलते वैश्य समाज के भाजपा नेता भी कारसेवा कर रहे थे। उसके बावजूद वे जीत गए। हालांकि इस जीत में ऐन वक्त पर संघ के महानगर प्रमुख सुनील जैन का खुल कर सामने आने और सिंधी समाज की एकजुटता की भी भूमिका रही थी। बहरहाल, अकेला यही तथ्य उनके पक्ष में जाता है कि वे विपरीत परिस्थिति में भी जीत कर आ गए। कदाचित यही तथ्य उनके आत्मविश्वास का कारण है। इसके अतिरिक्त विपक्षी विधायक के नाते पूरी सक्रियता और सार्वजनिक छवि बेदाग होना भी उनके पक्ष में जाता है। मगर ऐसा प्रतीत होता है कि इस बार हालात पहले से भी ज्यादा विपरीत हैं। उसे देवनानी कैसे फेस करते हैं, यह देखना दिलचस्प रहेगा।
-तेजवानी गिरधर

गुरुवार, 20 सितंबर 2012

वजूद बरकरार है डॉ. राजकुमार जयपाल का


अजमेर के सांसद व केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट के आशीर्वाद से शहर जिला कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर महेन्द्र सिंह रलावता के काबिज होने के बाद भले ही पूर्व उपाध्यक्ष व अजमेर क्लब के अध्यक्ष डॉ. राजकुमार जयपाल फिलहाल हाशिये पर आ गए हैं, मगर कोई यह समझे कि उनका वजूद समाप्त हो गया है, तो यह उसकी भूल ही होगी। हाल ही जिस प्रकार उनके नेतृत्व में निगम के दस पार्षदों ने कांग्रेस पार्षद दल के नेता प्रतिपक्ष नरेश सत्यावना के चयन को गलत करार देते हुए पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष डॉ. चंद्रभान को इस्तीफे की पेशकश की है, वह इस बात का प्रमाण है कि आज भी एक धड़ा उनके नेतृत्व में विश्वास रखता है और उसे इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि इससे सचिन पायलट नाराज हो जाएंगे। वैसे भी  असंतुष्ट पार्षदों के पास एलएलए लेवल के नेता के रूप में डॉ. जयपाल को आगे रखने के अलावा कोई चारा नहीं था।
हालांकि विरोधी पार्षदों में सबसे मुखर विजय नागौरा नगर सुधार न्यास के सदर नरेन शहाणी भगत के खासमखास हैं और भगत को पायलट खेमे का माना जाता है, मगर इस मामले में नागौरा का फ्रंट फुट पर आना तनिक संदेह उत्पन्न करता है। इससे इस बात के संकेत भी मिलते हैं कि भले ही निगम मेयर कमल बाकोलिया, शहर कांगे्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता व न्यास सदर भगत पायलट लॉबी के हैं, मगर इनमें स्थानीय मुद्दों को लेकर एकजुटता नहीं है।  जाहिर सी बात है कि केवल भगत की वजह से नागौरा अपनी खुद की राजनीति को अलमारी में बंद करके थोड़े ही रख देंगे। आखिरकार वे आगामी विधानसभा चुनाव में अजमेर दक्षिण से टिकट की दावेदारी करने के मूड में है, तो अपनी राजनीतिक तलवार की धार भी तेज करेंगे ही।
नेता प्रतिपक्ष सत्यावना की लॉबी डॉ. जयपाल पर तो हमला कर नहीं सकती और उसका कोई तुक भी नहीं बनता, इस कारण असंतुष्ट पार्षदों की अगुवाई कर रहे नागौरा उनके निशाने पर आ गए हैं। नेता प्रतिपक्ष नरेश सत्यावना समर्थकों ने नागौरा पर निशाना साधते हुए उनके ब्लॉक अध्यक्ष पद पर भी काबिज होने को पार्टी संविधान का उल्लंघन बताया है। गौरतलब है कि नागौरा पार्षद होने के साथ वर्तमान में ब्लॉक अध्यक्ष तथा कांग्रेस सेवादल में प्रदेश संगठक भी हैं। कांग्रेस पार्टी चुनाव प्राधिकरण के अध्यक्ष आस्कर फर्नांडिस को भेजे पत्र में कहा गया है कि पार्टी संविधान की व्यवस्था के उलट नागौरा लगातार तीसरी बार ब्लॉक अध्यक्ष बने हैं, जबकि संविधान की धारा 6 की उप धारा 3 के अनुसार ब्लॉक, जिला और प्रदेश स्तर पर पार्टी का कोई भी पदाधिकारी लगातार दो कार्यकाल से अधिक अपने पद पर नहीं रहेगा। नागौरा की खिलाफत और सत्यावना के समर्थन में कोली समाज ने भी मोर्चा खोल दिया है।
यहां यह भी गौर करने लायक बात है कि असंतुष्ट खेमा शुरू से ही सत्यावना के चुनाव को गलत ठहरा रहा है। यह बात पहले ही प्रदेश नेतृत्व तक पहुंची लेकिन मेयर व अध्यक्ष के खेमे ने कुछ दिन पहले प्रदेश नेतृत्व के सामने सुलह होने की बात कही थी। मगर ताजा गतिविधि से यह साफ हो गया है कि सुलह की बात झूठी थी। गतिरोध अब भी बरकरार है।
वैसे एक बात तो है। असंतुष्ट पार्षदों की बात में दम तो हैै। इन पार्षदों का कहना है कि शहर में दो विधानसभा क्षेत्र है, जिनमें से अजमेर दक्षिण एसी वर्ग के लिए आरक्षित है। इसी के साथ नगर निगम में मेयर पद भी एससी वर्ग के लिए ही आरक्षित है। लिहाजा नेता प्रतिपक्ष पद किसी अन्य जाति वर्ग के व्यक्ति को दिया जाना चाहिए, जिससे सभी वर्ग का लाभ पार्टी को मिल सके। ऐसा नहीं होने के कारण शहर की जनता में गलत संदेश गया है। जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ सकता है।
-तेजवानी गिरधर

माफी मांगने से काम नहीं चलेगा रासासिंह जी

अजमेर बंद के दौरान कुछ युवा भाजपा कार्यकर्ताओं की ओर से कांग्रेस कार्यालय पर लगे बोर्ड और कांग्रेस कार्यालय सचिव गोपाल सिंह पर कालिख पोतने के मामले में भले ही शहर भाजपा अध्यक्ष रासासिंह रावत ने माफी मांग ली हो, मगर यह स्थिति शहर में पार्टी की जिस हालत की ओर इशारा कर रही है, उसे उन्हें गंभीरता से समझना होगा, वरना आगे चल कर उन्हें और भी ज्यादा परेशानी से गुजरना होगा।
असल में बंद के दौरान हुई घटना की जड़ में पार्टी की गुटबाजी है। एक गुट मुख्य धारा से अलग चल रहा है और उस पर रासासिंह रावत का कोई नियंत्रण नहीं है। सच तो ये है कि उसे अलग-थलग करने में स्वयं रासासिंह रावत की मौन स्वीकृति है। और उसी कारण वह अब उग्र होता जा रहा है। ये हालात पैदा ही इस कारण हुए हैं कि रासासिंह भले ही पार्टी के वरिष्ठतम नेता हों, मगर उनका अपना अलग से कोई वर्चस्व नहीं है। वे अध्यक्ष भी इस कारण नहीं बने हैं कि उनका कोई विकल्प नहीं था, बल्कि इस कारण क्यों कि दो धड़ों में बंटी पार्टी को तीसरे विकल्प के रूप में उन पर सहमति देनी पड़ी। वैसे यह उनका सौभाग्य है कि पार्टी के पिछले ज्ञात इतिहास में यह पहली कार्यकारिणी है, जो कि सबसे मजबूत है। इसमें शहर के सभी दिग्गज नेता उनके साथ जोड़े गए हैं। शहर के प्रथम नागरिक रहे धर्मेन्द्र गहलोत सरीखे व्यक्तित्व का कार्यकारिणी का महामंत्री बनने को राजी होना साबित करता है कि मौजूदा संगठन कितना मजबूत है। उससे भी अधिक सौभाग्य की बात ये है कि यह पहली कार्यकारिणी है, जो कि सर्वाधिक सक्रिय है। इससे पहले जयंती-पुण्यतिथी अथवा विरोध प्रदर्शन की औपचारिकताएं ही निभाई जाती थीं, जबकि अब शायद ही कोई ऐसा दिन बीतता हो, जबकि पार्टी कोई न कोई कार्यक्रम नहीं करती हो। मगर सिक्के का दूसरा पहलु ये है कि लाख प्रयासों के बाद भी पार्टी की गुटबाजी खत्म होने के बजाय बढ़ती ही जा रही है। उसमें रासासिंह तटस्थ रहने की बजाय एक पक्ष का पलड़ा भारी होने के कारण उस ओर झुकते जा रहे हैं। यदि ये कहा जाए कि वे अब उसी के हाथों खेले रहे हैं तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। इसका परिणाम ये है कि कमजोर किया गया गुट उग्र होता जा रहा है। यदि समय रहते उन्होंने सामंजस्य न बैठाया अथवा कोई रास्ता न निकाला तो कोई आश्चर्य नहीं उन्हीं के कार्यकाल में पार्टी सबसे खराब स्थिति में भी पहुंच जाए। विशेष रूप से आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर यह स्थिति ज्यादा घातक हो जाएगी।
माना कि यह उनकी सदाशयता है कि कुछ उग्र कार्यकर्ताओं के कृत्य के लिए उन्होंने माफी मांग ली, मगर साथ ही यह इस ओर भी इशारा करता है कि ऐसा करके उन्होंने उन कार्यकर्ताओं को पार्टी हाईकमान के सामने रेखांकित करने की भी कोशिश की है। दूसरे शब्दों में स्वीकार भी कर लिया है कि उनका उन कार्यकर्ताओं पर कोई जोर नहीं है, इसी कारण पार्टी के मुखिया होने के नाते माफी मांग ली। मगर इस प्रकार माफी मांग लेने मात्र से समस्या का समाधान नहीं होगा। यदि वे अपने संगठन को दुरुस्त नहीं रख पाएंगे तो पूर्व उप मंत्री ललित भाटी सरीखों को यह कहने का मौका मिलता ही रहेगा कि भारतीय संस्कृति की पैराकार पार्टी को अपने गिरेबां में झांकना ही होगा कि वह किस संस्कृति की ओर जा रही है।
-तेजवानी गिरधर