बुधवार, 27 जून 2012

क्या सलावत पुष्कर से चुनाव की तैयारी कर रहे हैं?


भाजपा नेता सलावत खां की ओर से मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के बैनर तले तीन दिवसीय प्रशिक्षण शिविर आयोजित करने को जहां संघ की ओर से मुसलमानों को अपने साथ जोडऩे की कवायद माना जा रहा है, वहीं आयोजन के लिए पुष्कर का चयन करने को आयोजन संयोजक सलावत खान की पुष्कर विधानसभा सीट से चुनाव लडऩे की तैयारी के रूप में देखा जा रहा है।
तीर्थराज पुष्कर के होटल न्यू पार्क में आयोजित शिविर की महत्ता इसी से जाहिर हो जाती है कि इसमें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पूर्व सरसंघ चालक कु. सी. सुदर्शन व मंच के मार्गदर्शक इंद्रेश कुमार ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराई, वहीं देशभर से करीब डेढ़ सौ प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इंद्रेश कुमार वे ही हैं, जो कि मुसलमानों को संघ के जोडऩे की कार्ययोजना के थिंक टैंक हैं और जिन पर दरगाह बम ब्लास्ट मामले में शामिल होने के आरोप लग चुके हैं। जाहिर सी बात है शिविर आयोजित करवाने में उनकी अहम भूमिका रही है और सुदर्शन को लाने का श्रेय भी उन्हीं के खाते में जाता है। शिविर के लिए पुष्कर का चयन उन्हीं की सोची समझी रणनीति नजर आती है। मगर चूंकि शिविर के संयोजक की भूमिका सलावत खान ने अदा की, इस कारण राजनीतिक हलकों में यही माना जा रहा है कि वे पुष्कर से चुनाव लडऩे की योजना बना रहे हैं।
आइये, जरा ये समझ लें कि पुष्कर से चुनाव लडऩे की उनकी रणनीति का गणित क्या हो सकता है। उल्लेखनीय है कि सलावत की पुष्कर सीट पर नजर काफी समय से रही है। हिंदुओं के सर्वोच्च तीर्थस्थल को अपने आंचल में समेटे इस सीट से पूर्व में भी पूर्व मंत्री स्वर्गीय रमजान खान विधायक रह चुके हैं। पूर्व में भाजपा रमजान के पुष्कर से जीतने को इस रूप में भुना चुकी है कि मुसलमानों की भाजपा से दूरी की मान्यता गलतफहमी है। अकेले यही गिनाने के लिए कि भाजपा के पास भी अच्छे मुस्लिम नेता हैं, रमजान खां को मंत्री भी बनाया गया। रमजान खान यहां से 1985, 1990 व 1998 में चुनाव जीते थे। 1993 में उन्हें विष्णु मोदी ने और उसके बाद 2003 में डा. श्रीगोपाल बाहेती ने परास्त किया। मोदी से हारने की वजह ये रही कि उनका चुनाव मैनेजमेंट बहुत तगड़ा था। हार जीत का अंतर कुछ अधिक नहीं रहा। मोदी (34,747) ने रमजान खां (31,734) को मात्र 3 हजार 13 मतों से पराजित किया था।
डा. बाहेती से रमजान इस कारण हारे कि भाजपा नेता भंवर सिंह पलाड़ा ने निर्दलीय रूप से मैदान में रह कर तकरीबन तीस हजार वोटों की सेंध मार दी थी। बाहेती (40,833) ने रमजान खां (33,735) को 7 हजार 98 मतों से पराजित किया था, जबकि पलाड़ा ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में 29 हजार 630 वोट लिए थे। स्पष्ट है कि रमजान केवल पलाड़ा के मैदान में रहने के कारण हारे थे। यदि पलाड़ा नहीं होते तो रमजान को हराना कत्तई नामुमकिन था।
कुल मिला कर यह सीट भाजपा मुस्लिम प्रत्याशी के लिए काफी मुफीद रहती है। एक तो उसे मुस्लिमों के पूरे वोट मिलने की उम्मीद होती है, दूसरा भाजपा व हिंदू मानसिकता के वोट भी स्वाभाविक रूप से मिल जाते हैं। इसी गणित के तहत रमजान तीन बार विधायक रहे और दो बार निकटतम प्रतिद्वंद्वी। हालांकि एक फैक्टर ये भी है कि रमजान पुष्कर के लोकप्रिय नेता थे। गांव-गांव ढ़ाणी-ढ़ाणी उनकी जबदस्त पकड़ थी। जहां तक कांग्रेस का सवाल है, उसके मुस्लिम प्रत्याशी के लिए यह सीट उपयुक्त नहीं है, फिर भी पिछली बार श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ (42 हजार 881) ने भाजपा प्रत्याशी पलाड़ा (36 हजार 347) को 6 हजार 534 मतों से हरा दिया। वजह ये रही कि भाजपा के बागी श्रवणसिंह रावत 27 हजार 612 वोट खा गए।
बहरहाल समझा जाता है कि सलावत खान ने बहुत सोची समझी रणनीति के तहत ही मुस्लिम राष्ट्रीय मंच का तीन दिवसीय प्रशिक्षण शिविर आयोजित करवाया। अब उनके लिए भाजपा की टिकट की दावेदारी आसान हो जाएगी। हालांकि पलाड़ा की दावेदारी अब भी मजबूत है, मगर उनके पास केकड़ी व अजमेर का भी विकल्प है। इस विधानसभा क्षेत्र में रावतों की बहुलता के कारण शहर भाजपा अध्यक्ष व पूर्व सांसद प्रो. रासासिंह रावत भी संभावित दावेदारों की गिनती में आते हैं। इसी प्रकार नगर निगम के उप महापौर सोमरत्न आर्य भी यहां अपनी जमीन तलाश रहे हैं।

-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

क्यों नहीं हो रहा कृषि उपज मंडी के अध्यक्ष का चुनाव?

अजमेर की कृषि उपज मंडी समिति के अध्यक्ष श्री सिरोनारायण मीणा के निधन को सात माह से भी ज्यादा का वक्त बीत चुका है, मगर उनके स्थान पर नए अध्यक्ष का चुनाव नहीं कराया जा रहा है। समिति की उपाध्यक्ष श्रीमती शहनाज ही कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में काबिज हैं।
नियमानुसार किसी भी सदस्य अथवा पदाधिकारी का निधन होने पर उपचुनाव छह माह के भीतर हो जाना चाहिए। वह समयावधि भी बीत चुकी है, मगर कृषि विपणन निदेशालय ने चुप्पी साध रखी है। कायदे से मीणा के स्थान पर नए अध्यक्ष का चुनाव कराने से पहले उस वार्ड नंबर का उपचुनाव कराया जाना जरूरी है, जहां से कि पूर्व अध्यक्ष सिरोनारायण निर्वाचित हुए थे। यह वार्ड अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है और अध्यक्ष का पद भी अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है।
ज्ञातव्य है कि मीणा ने गत 29 सितंबर 2011 को अध्यक्ष पद संभाला था, मगर दुर्भाग्य से 6 नवंबर 2011 को उनका निधन हो गया। इस पर 18 नवंबर को उनके स्थान पर उपाध्यक्ष श्रीमती शहनाज ने कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में पदभार संभाल लिया। मंडी प्रशासन ने 1 दिसंबर 2011 को निदेशालय को पत्र लिख कर अध्यक्ष मीणा के निधन की जानकारी देते हुए मार्गदर्शन मांगा। इस पर 13 दिसंबर को संयुक्त निदेशक ने मंडी सचिव को पत्र लिख कर कहा कि कृषक निर्वाचन क्षेत्र के रिक्त हुए पद का उपचुनाव संपन्न होने के बाद ही अध्यक्ष का चुनाव किया जाएगा। अत: उक्त पद के उपचुनाव का प्रस्ताव बना कर भेजा जाए। मंडी प्रशासन ने इस पर कोई कार्यवाही नहीं की। इस पर मंडी समिति की 17 जनवरी 2012 को हुई आम बैठक में बाकायदा प्रस्ताव पारित किया गया कि वार्ड संख्या दो के उपचुनाव के लिए प्रस्ताव निदेशलय को भेजा जाए। इसके बाद भी जब प्रस्ताव नहीं भेजा गया तो यही समझा जा रहा था कि कार्यवाहक अध्यक्ष श्रीमती शहनाज के दबाव की वजह से मंडी सचिव इसमें रुचि नहीं ले रहे हैं। रुचि न लेने की वजह ये बताई जा रही थी कि अगर चुनाव हुए तो स्वाभाविक रूप से दुबारा जो अध्यक्ष बनेगा वह अनुसूचित जनजाति का ही होगा, वह चाहे वार्ड दो से चुना गया सदस्य हो अथवा अनुसूचित जनजाति की हगामी देवी। उल्लेखनीय है कि अनुसूचित जनजाति के लिए एक ही वार्ड नंबर दो आरक्षित है, जबकि हगामी सामान्य वार्ड से जीत कर आई हैं। चुनाव होने पर शहनाज को अध्यक्ष पद छोडऩा पड़ता, इस कारण यही माना गया कि उनकी प्रस्ताव भेजने में रुचि नहीं है, लेकिन बाद में प्रस्ताव भेज दिया गया तो यह संशय समाप्त हो गया। अब स्थिति ये है कि उस प्रस्ताव को निदेशालय ने दबा रखा है। इसमें शहनाज का कोई दबाव है अथवा राज्य स्तरीय राजनीति की दखलंदाजी, कुछ नहीं कहा जा सकता। कुल मिला कर उप चुनाव समय पर न होने से जहां नियम की अवहेलना हो रही है, वहीं मंडी का कामकाज भी प्रभावित हो रहा है। 

-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com