शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

राजस्व मंडल के मामले में अंधेरे में रख रही है सरकार


विखंडन का नाम लिए बिना की गई है विखंडन की तैयारी
संभागीय आयुक्तों को राजस्व मंडल का सदस्य बना कर उसका विखंडन करने के प्रस्ताव के विरोध में एक ओर जहां अजमेर आंदोलित है, वहीं राज्य सरकार इसे हल्के में ले रही है और स्थिति स्पष्ट करने की बजाय उलझाए जा रही है। अजमेर वासियों के लिए आशा की किरण कहलाने वाले केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट तक की हालत ये है उन्हें राज्य सरकार साफ-साफ कुछ नहीं बता रही। वे भी राजस्व मंत्री हेमाराम चौधरी की भाषा ही बोल रहे हैं कि मंडल के विखंडन जैसा कोई प्रस्ताव सरकार के पास विचाराधीन नहीं है। अफसोसनाक बात ये है कि एक ओर बार के वकील पिछले 24 दिन से आंदोलनरत हैं और मंडल में कामकाज ठप है, जिससे काश्तकारों व पक्षकारों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, वहीं राजस्व मंत्री हेमाराम चौधरी साफ तौर पर यह कहने की बजाय कि मंडल का विखंडन नहीं किया जाएगा, यह कह कर अपना पिंड छुड़वा रहे हैं कि उनके पास इस प्रकार की कोई भी फाइल नहीं आई है। साफ नजर आ रहा है कि वे जान-समझ सब रहे हैं, मगर जानबूझ कर अनजान बने हुए हैं। उनकी लापरवाही और हठधर्मिता का नमूना देखिए कि एक ओर राजस्व मंडल का कामकाज बंद पड़ा है और वे कह रहे हैं कि यदि इस प्रकार की कोई फाइल है भी तो वे क्यों मंगवाएं, अपने आप आ जाएगी। अर्थात उन्हें अजमेर के वजूद के साथ हो रहे छेड़छाड़ व उसकी वजह से हो रहे आंदोलन से कोई सरोकार नहीं है।
आइये जरा समझें कि माजरा क्या है? वस्तुत: विवाद शुरू ही इस बात से हुआ कि राजस्व महकमे के शासन उप सचिव ने संभागीय आयुक्तों को राजस्व मंडल के सदस्य की शक्तियां प्रदत्त करने संबंधी पत्र मंडल के निबंधक को लिखा है। पत्र की भाषा से ही स्पष्ट है कि सरकार मंडल को संभाग स्तर पर बांटने का निर्णय कर चुकी है, बस उसे विखंडन का नाम देने से बच रही है। शासन उपसचिव के पत्र से ही स्पष्ट है कि गत 1 अप्रैल 2011 को अतिरिक्त मुख्य सचिव विकास की अध्यक्षता में हुई बैठक में ही निर्णय कर यह निर्देश जारी कर दिए थे कि संभागीय आयुक्तों को मंडल सदस्य के अधिकार दे दिए जाएं। तभी तो शासन उपसचिव ने निबंधक को साफ तौर निर्णय की नोट शीट भेज कर आवश्यक कार्यवाही करके सूचना तुरंत राजस्व विभाग को देने के लिए कहा है। ऐसे में राजस्व मंत्री चौधरी का यह बयान बेमानी हो जाता है कि उनके पास तो ऐसी कोई फाइल नहीं आई है। सवाल ये उठता है कि क्या राजस्व मंत्री की जानकारी में लाए बिना ही अतिरिक्त मुख्य सचिव विकास की अध्यक्षता में निर्णय कर लिया गया? उससे भी बड़ा सवाल ये कि अगर अधिकारियों के स्तर पर निर्णय ले भी लिया था तो उसे कार्यान्वित किए जाने के लिए उनके अधीन विभाग के शासन उप सचिव ने राजस्व मंत्री को जानकारी दिए बिना ही मंडल के निबंधक को पत्र कैसे लिख दिया? माजरा साफ है कि या तो वाकई मंत्री महोदय को जानकारी दिए बिना ही पत्र व्यवहार चल रहा है, या फिर वे झूठ बोल रहे हैं। यदि झूठ नहीं बोल रहे हैं तो इसका अर्थ ये है कि विभाग पर मंत्री महोदय का कोई नियंत्रण ही नहीं है, तभी तो पत्र व्यवहार होने के बाद भी वे अभी तक अनभिज्ञ हैं।
मंत्री महोदय की दयनीय हालत देखिए कि वे कह रहे हैं कि उनके पास ऐसी कोई फाइल नहीं आई है, उनके पास आएगी तो उस पर विचार करेंगे। दूसरी ओर स्थिति ये है कि अधिकारी स्तर पर निर्णय किया जा चुका है और उसे क्रियान्वित करने की बात हो रही है। कितने अफसोस की बात है कि मंत्री महोदय अभी इसी भुलावे में हैं कि पहले फाइल उनके पास आएगी, वे सीएस से बात करेंगे, फिर फाइल मुख्यमंत्री के पास जाएगी, कानून में संशोधन के लिए विधानसभा में रखा जाएगा और राज्यपाल की भी मंजूरी लेनी होगी। यदि इस मामले में इतनी लंबी प्रक्रिया से गुजरना होता तो शासन उप सचिव के पत्र में इतना स्पष्ट कैसे लिखा हुआ होता कि अतिरिक्त मुख्य सचिव विकास के निर्देशों पर आवश्यक कार्यवाही की जाए? यानि कि मंत्री महोदय को ये गलतफहमी है कि इसके लिए कानून पारित करना होगा, जबकि अधिकारी अपने स्तर पर व्यवस्था को अंजाम देने जा रहे हैं।
इसका एक मतलब ये भी है कि अजमेर के वकील, बुद्धिजीवी व प्रबुद्ध नागरिक जिस व्यवस्था को विखंडन मान कर आंदोलित हैं, सरकार की नजर में वह एक सामान्य प्रक्रिया मात्र है। और यही वजह है कि जैसे ही सरकार से ये पूछा जाता है कि क्या राजस्व मंडल का विखंडन किया जा रहा है तो वह साफ कह देती है कि ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है। यानि कि बाकायदा विखंडन तो किया जा रहा है, मगर उसे विखंडन का नाम देने से बचा जा रहा। इसी शाब्दिक चतुराई के बीच मामला उलझा हुआ है। अजमेर वासी चाहते हैं कि सरकार साफ तौर पर कह दे कि विखंडन नहीं किया जाएगा, जबकि वह यह कह कर कि उसके पास विखंडन का कोई प्रस्ताव ही विचाराधीन नहीं है, अपना पिंड छुड़वाना चाहती है।
यहां उल्लेखनीय है कि अजमेर वासियों को स्थानीय सांसद व केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट से बड़ी उम्मीदें हैं, मगर वे भी सरकार से यह स्पष्ट जवाब लेने में अब असफल रहे हैं कि अजमेर-मेरवाड़ा राज्य के राजस्थान में विलय के वक्त अजमेर के वजूद के मद्देनजर राव कमीशन की सिफारिश के आधार पर स्थापित राजस्व मंडल का विखंडन नहीं किया जाएगा।
-तेजवानी गिरधर, अजमेर