मंगलवार, 23 जुलाई 2013

भगत को टिकट नहीं मिलेगा, ये मान कर सक्रिय हो गए कई सिंधी दावेदार


लैंड फॉर लैंड मामले में आरोपी बनाए जाने के कारण इस्तीफा देने को मजबूर हुए नरेन शहाणी भगत का विधानसभा टिकट भी कटा मान कर यूं तो गैर सिंधी दावेदारों के हौंसले बुलंद हैं, मगर यकायक कई सिंधी दावेदारों ने भी मालिश शुरू कर दी है।
जानकारी के अनुसार नौकरी से इस्तीफा दे कर चुनाव का मानस बनाने से अब तक बच रहे सरकारी चिकित्सक डॉ. लाल थदानी की लार खाली मैदान देख कर सबसे ज्यादा टपक रही है। यूं तो वे पूर्व में भी दावेदारों में शुमार रहे हैं, मगर इस बार संभवत: सर्वाधिक मशक्कत कर रहे हैं। उन्होंने लाइजनिंग के लिए जयपुर के चक्कर काटना शुरू कर दिया है। उन्हें उम्मीद है कि भूतपूर्व राजस्व मंत्री स्वर्गीय किशन मोटवानी के आशीर्वाद से राजस्थान सिंधी अकादमी का अध्यक्ष बन कर कद बनाने के कारण उन पर सर्वाधिक गौर किया जाएगा। इसी प्रकार पिछली बार एडी-चोटी का जोर लगाने वाले युवा नेता नरेश राघानी भी हाथ-पैर मार रहे हैं। इसके लिए वे दिल्ली के एक-दो दमदार सूत्रों की मदद ले रहे हैं। वैसे उन्होंने अभी अपने पत्ते खोले नहीं हैं। इसी प्रकार स्वर्गीय मोटवानी जी के जमाने से टिकट मांग रहे पूर्व पार्षद हरीश मोतियानी ने भी अपना दावा छोड़ा नहीं है। उन पर पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती का वरदहस्त है, मगर डॉ. बाहेती खुद ही दावेदार हैं, ऐसे में वे उनकी कितनी मदद करेंगे, कुछ कहा नहीं जा सकता। रहा सवाल पुराने दावेदार पूर्व पार्षद रमेश सेनानी का तो वे इस बार उन्होंने प्रत्यक्षत: तो दावेदारी नहीं की है। अंदर ही अंदर अपने आका पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल के जरिए कुछ कर रहे हों तो पता नहीं। पूर्व विधायक नानकराम जगतराय के उप चुनाव में टिकट मांगने वाले कर्मचारी नेता हरीश हिंगोरानी  ने पिछली बार तो बाकायदा घोषित रूप से भगत को सहयोग करने के कारण दावा नहीं किया था, मगर इस बार मैदान खाली देख कर वे भी कूद पड़े हैं। वे समझते हैं कि इससे बढिय़ा मौका फिर नही आएगा। दावा करने के लिए दावा करना कितना आसान है, इसका उदाहरण पेश करते नजर आ रहे हैं विन्नी जयसिंघानी, जिन्हें कुछ कांग्रेसी नेताओं ने चने के झाड़ पर चढ़ा दिया है, यह कह कर कि उनके रिश्तेदार पूर्व आईएएस अधिकारी एम. डी. कोरानी चाहें तो उन्हें टिकट दिलवा सकते हैं। एक सुगबुगाहट ये भी है कि कांग्रेस किसी सिंधी महिला पर दाव खेल सकती है। इसी के चलते पार्षद रश्मि हिंगोरानी भी तिकड़म भिड़ा रही हैं। हालांकि उन्होंने घोषित रूप से दावा नहीं किया है। इसी प्रकार एक नाम किन्हीं कंचन खटवानी का भी सामने आ रहा है, जो कि इन दिनों सक्रिय हो गई हैं। एक और नाम भी चर्चा में आता नजर आता है, वो है जाने-माने शराब ठेकेदार जांगीराम की पुत्रवधु का। बताया जाता है कि वे पैसे के दम पर टिकट ला सकती हैं। कुल मिला कर स्थिति ये है कि भगत का टिकट कटने की उम्मीद में एक अनार सौ बीमार वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। हो सकता है कि कुछ ऐसे और भी दावेदार भी बाद में सामने आएं। उनमें वासुदेव माधानी का नाम लिया जा सकता है, जो उस चुनाव में काफी सक्रिय हुए थे, जब भगत टिकट लेकर आए थे। एक नाम और भी है, वो है दीपक हासानी का, मगर वह तो पहले ही झटका खा चुके हैं। ज्ञातव्य है कि एक जमीन प्रकरण में उनकी वजह से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का नाम घसीटे जाने पर उनका न्यास अध्यक्ष पद का दावा खारिज हो गया था।
जहां तक भगत का सवाल है, उन्होंने अभी अपना दावा छोड़ा नहीं है। सुनने में तो यहां तक आ रहा है कि वे लैंड फॉर लैंड मामले से बच कर आ सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो उनका दावा उतना ही स्टैंड करेगा, जितना मामले में उलझने से पहले था।
-तेजवानी गिरधर

जाट लॉबी के दम पर सचिन से भिड़े चौधरी

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव और प्रदेश प्रभारी गुरुदास कामत की मौजूदगी में अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट से जिस प्रकार एक बार फिर अजमेर डेयरी अध्यक्ष व पूर्व देहात जिला कांग्रेस अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी भिड़े, उससे साफ दिखता है कि उनको जाट लॉबी की पूरी शह है। यहां यह बताने की जरूरत नहीं है कि जाटों का पूर्व विधानसभा अध्यक्ष परसराम मदेरणा लॉबी का तबका पूर्व जलदाय मंत्री महिपाल मदेरणा के भंवरी प्रकरण में फंसने के कारण खफा है। इस वजह से कांग्रेस इन दिनों कुछ दबाव में है। चौधरी भी उसी लॉबी से हैं।
असल में परिसीमन के बाद अजमेर संसदीय क्षेत्र जाट बहुल हो गया है। माना जाता है कि अब यहां दो लाख से ज्यादा जाट मतदाता हैं। परिसीमन से पूर्व जब यहां सवा से डेढ़ लाख जाट वोट थे, तब भी जाट यहां दावेदारी करते थे। विशेष रूप से भूतपूर्व केन्द्रीय मंत्री स्वर्गीय श्री रामनिवास मिर्धा का नाम चर्चा में आता था। कांग्रेस ने एक बार जाट नेता जगदीप धनखड़ को भी चुनाव मैदान में उतारा था, मगर वे रावतों की बहुलता व उनका मतदान प्रतिशत अधिक होने के अतिरिक्त अपनी कुछ गलतियों की वजह से हार गए। उल्लेखनीय है कि पूर्व सांसद प्रो. रासासिंह रावत के सामने बदल-बदल कर खेले गए जातीय कार्डों में सबसे बेहतर स्थिति धनखड़ की रही थी। रावत के सामने 1989 में सवा लाख गुर्जरों के दम उतरे बाबा गोविंद सिंह गुर्जर 1 लाख 8 हजार 89 वोटों से, सन् 1991 में डेढ़ लाख जाटों के दम पर उतरे जगदीप धनखड़ 25 हजार 343 वोटों से और सन् 1996 में एक लाख सिंधी मतदाताओं के मद्देनजर उतरे किशन मोटवानी 38 हजार 132 वोटों से पराजित हुए। सन् 1998 के मध्यावधि चुनाव में सोनिया गांधी लहर पर सवार हो कर सियासी शतरंज की नौसिखिया खिलाड़ी प्रभा ठाकुर ने रासासिंह को लगातार चौथी बार लोकसभा  में जाने रोक दिया था, हालांकि इस जीत का अंतर सिर्फ 5 हजार 772 मतों का रहा, लेकिन 1999 में आए बदलाव के साथ रासासिंह ने प्रभा ठाकुर को 87 हजार 674 मतों से पछाड़ कर बदला चुका दिया। इसके बाद 2004 में रासासिंह ने कांग्रेस के बाहरी प्रत्याशी हाजी हबीबुर्रहमान को 1 लाख 27 हजार 976 मतों के भारी अंतर से कुचल दिया। ये आंकड़े इशारा करते हैं कि तुलनात्मक रूप से जाट प्रत्याशी बेहतर रहा। अब जबकि परिसीमन के बाद जाटों की संख्या दो लाख को पार कर गई है, उनका दावा और मजबूत माना जाता है। इस सिलसिले में पिछले चुनाव में भी मांग उठी थी, मगर अपने प्रभाव के कारण करीब सवा लाख गुर्जर मतदाताओं के दम पर सचिन पायलट टिकट लेकर आ गए। इस बार लोकसभा चुनाव से एक साल पहले ही रामचंद्र चौधरी सचिन के खिलाफ झंडा बुलंद करने में लग गए हैं और स्थानीय की मांग पर अड़े हुए हैं। वैसे समझा जाता है कि उनकी रुचि लोकसभा चुनाव से अधिक विधानसभा चुनाव में है। पिछली बार वे मसूदा में निर्दलीय ब्रह्मदेव कुमावत की वजह से हार गए थे। इस बार फिर मसूदा से टिकट मांग रहे हैं। इसके लिए संसदीय क्षेत्र में जाटों की पर्याप्त तादाद को आधार बना कर दबाव डाल रहे हैं। कामत के सामने तो उन्होंने साफ तौर पर कहा कि अगर उन्हें टिकट नहीं दिया गया तो वे लोकसभा चुनाव में सचिन के खिलाफ मैदान में उतर जाएंगे। अर्थात सीधे तौर पर बार्गेनिंग पर उतर आए हैं।
यहां यह बताना भी प्रासंगिक होगा कि जाटों की बहुतलता के आधार पर भाजपा भी इस बार किसी जाट प्रत्याशी को मैदान में उतारने पर विचार कर रही है। भाजपा को यह समझ पिछले चुनाव में भी थी, मगर उसने भी बाहरी प्रत्याशी श्रीमती किरण माहेश्वरी का प्रयोग किया। पिछली बार तत्कालीन जलदाय मंत्री प्रो. सांवरलाल दावेदार के रूप में माने जाते थे। ऐसा लगता है कि उनकी रुचि लोकसभा चुनाव में नहीं है। इस बार कुछ जाट दावेदारों ने  टिकट के लिए मशक्कत शुरू कर दी है।
-तेजवानी गिरधर