वार्ड 21 में कांग्रेस की बागी व निर्दलीय प्रत्याशी कामना पेसवानी ने चुनाव प्रचार के दौरान जिस प्रकार का जलवा दिखाया था, उससे लग रहा था कि वे कांग्रेस या भाजपा में से किसी को तो नुकसान पहुंचाएंगी ही, मगर वोट पडे तो वे केवल 161 ही हासिल कर पाईं।
जब उन्हें टिकट नहीं मिला मैदान में ऐसे उतरीं कि मानों जीत ही जाएंगी। हालांकि उनके जीतने की संभावना तो नहीं थी, मगर वे किसी न किसी को नुकसान जरूर पहुंचाएंगी, ऐसा जरूर आभास उन्होंने दिया। समझा जाता है कि जो वोट उन्होंने हासिल किए हैं, वे सिंधी होने के नाते सिंधियों के होंगे, या फिर उन कांग्रेसियों के जो कि कांग्रेस की रष्मि हिंगोरानी से निजी रूप खफा थे। अर्थात दोनों पार्टियों के कुछ कुछ वोट झटकने की संभावना थी।
अपन ने पहले भी लिखा था कि कामना पेसवानी के बारे में आकलन करना कठिन है कि वे कितने वोट झटकेंगी। वजह ये कि निर्दलीय प्रत्याशी को आसानी से वोट नहीं मिलते। अगर मिलते भी हैं तो खुद के व्यवहार और बलबूते पर। यूं सामाजिक कार्यकर्ता के नाते जमीन पर पकड़ तो है, मगर वह वोटों में कितनी तब्दील होती है, कुछ कहा नहीं जा सकता।
जहां तक भाजपा प्रत्याषी मोहन लालवानी का सवाल है, उनको देवनानी खेमे के कुछ कार्यकर्ताओं से था, मगर बताया जाता है कि वे वार्ड में टिके ही नहीं और वार्ड 18 में जा कर पार्टी का काम करने लगे, इस कारण वे नुकसान नहीं पहुंचा पाए। ज्ञातव्य है कि उनको 1700 वोट मिले, जबकि कांग्रेस की रष्मि हिंगोरानी कडी टक्कर देते हुए 1539 पर आ कर अटक गईं। बात अगर रष्मि हिंगोरानी की करें, तो उनके लिए यह हार दुखद रही। मीडिया उन्हें कांग्रेस की ओर से मेयर पद की दावेदार गिन रहा था, न जाने किस एंगल से। ज्ञातव्य है कि उन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव में टिकट मांगा था। ताजा हार से उनका दावा अगली बार के लिए कमजोर हो जाएगा।
जब उन्हें टिकट नहीं मिला मैदान में ऐसे उतरीं कि मानों जीत ही जाएंगी। हालांकि उनके जीतने की संभावना तो नहीं थी, मगर वे किसी न किसी को नुकसान जरूर पहुंचाएंगी, ऐसा जरूर आभास उन्होंने दिया। समझा जाता है कि जो वोट उन्होंने हासिल किए हैं, वे सिंधी होने के नाते सिंधियों के होंगे, या फिर उन कांग्रेसियों के जो कि कांग्रेस की रष्मि हिंगोरानी से निजी रूप खफा थे। अर्थात दोनों पार्टियों के कुछ कुछ वोट झटकने की संभावना थी।
अपन ने पहले भी लिखा था कि कामना पेसवानी के बारे में आकलन करना कठिन है कि वे कितने वोट झटकेंगी। वजह ये कि निर्दलीय प्रत्याशी को आसानी से वोट नहीं मिलते। अगर मिलते भी हैं तो खुद के व्यवहार और बलबूते पर। यूं सामाजिक कार्यकर्ता के नाते जमीन पर पकड़ तो है, मगर वह वोटों में कितनी तब्दील होती है, कुछ कहा नहीं जा सकता।
जहां तक भाजपा प्रत्याषी मोहन लालवानी का सवाल है, उनको देवनानी खेमे के कुछ कार्यकर्ताओं से था, मगर बताया जाता है कि वे वार्ड में टिके ही नहीं और वार्ड 18 में जा कर पार्टी का काम करने लगे, इस कारण वे नुकसान नहीं पहुंचा पाए। ज्ञातव्य है कि उनको 1700 वोट मिले, जबकि कांग्रेस की रष्मि हिंगोरानी कडी टक्कर देते हुए 1539 पर आ कर अटक गईं। बात अगर रष्मि हिंगोरानी की करें, तो उनके लिए यह हार दुखद रही। मीडिया उन्हें कांग्रेस की ओर से मेयर पद की दावेदार गिन रहा था, न जाने किस एंगल से। ज्ञातव्य है कि उन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव में टिकट मांगा था। ताजा हार से उनका दावा अगली बार के लिए कमजोर हो जाएगा।