गुरुवार, 20 अगस्त 2015

जलवा तो खूब दिखाया कामना पेसवानी ने, मगर मात्र 161 पर सिमटी

वार्ड 21 में कांग्रेस की बागी व निर्दलीय प्रत्याशी कामना पेसवानी ने चुनाव प्रचार के दौरान जिस प्रकार का जलवा दिखाया था, उससे लग रहा था कि वे कांग्रेस या भाजपा में से किसी को तो नुकसान पहुंचाएंगी ही, मगर वोट पडे तो वे केवल 161 ही हासिल कर पाईं।
जब उन्हें टिकट नहीं मिला मैदान में ऐसे उतरीं कि मानों जीत ही जाएंगी। हालांकि उनके जीतने की संभावना तो नहीं थी, मगर वे किसी न किसी को नुकसान जरूर पहुंचाएंगी, ऐसा जरूर आभास उन्होंने दिया। समझा जाता है कि जो वोट उन्होंने हासिल किए हैं, वे सिंधी होने के नाते सिंधियों के होंगे, या फिर उन कांग्रेसियों के जो कि कांग्रेस की रष्मि हिंगोरानी से निजी रूप खफा थे। अर्थात दोनों पार्टियों के कुछ कुछ वोट झटकने की संभावना थी।
अपन ने पहले भी लिखा था कि कामना पेसवानी के बारे में आकलन करना कठिन है कि वे कितने वोट झटकेंगी। वजह ये कि निर्दलीय प्रत्याशी को आसानी से वोट नहीं मिलते। अगर मिलते भी हैं तो खुद के व्यवहार और बलबूते पर। यूं सामाजिक कार्यकर्ता के नाते जमीन पर पकड़ तो है, मगर वह वोटों में कितनी तब्दील होती है, कुछ कहा नहीं जा सकता।
जहां तक भाजपा प्रत्याषी मोहन लालवानी का सवाल है, उनको देवनानी खेमे के कुछ कार्यकर्ताओं से था, मगर बताया जाता है कि वे वार्ड में टिके ही नहीं और वार्ड 18 में जा कर पार्टी का काम करने लगे, इस कारण वे नुकसान नहीं पहुंचा पाए। ज्ञातव्य है कि उनको 1700 वोट मिले, जबकि कांग्रेस की रष्मि हिंगोरानी कडी टक्कर देते हुए 1539 पर आ कर अटक गईं। बात अगर रष्मि हिंगोरानी की करें, तो उनके लिए यह हार दुखद रही। मीडिया उन्हें कांग्रेस की ओर से मेयर पद की दावेदार गिन रहा था, न जाने किस एंगल से। ज्ञातव्य है कि उन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव में टिकट मांगा था। ताजा हार से उनका दावा अगली बार के लिए कमजोर हो जाएगा।

अजमेर का मेयर कौन होगा?

अजमेर नगर निगम में हालांकि 60 में से 31 सीटों पर जीत से भाजपा का बोर्ड बनना तय है, मगर अब एक ही सवाल हर अजमेर वासी के जुबान पर है कि अजमेर का मेयर कौन होगा। जहां तक आंकडों का सवाल है शिक्षा राज्य मंत्री वासुदेव देवनानी खेमे के दावेदार धर्मेन्द्र गहलोत ही भारी पड रहे हैं। इसकी वजह ये है कि अजमेर उत्तर में भाजपा को 28 में से 19 सीटें मिली हैं, जो कि देवनानी के खाते में गिनी जा रही हैं। दूसरी ओर महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल की पसंद सुरेन्द्र सिंह शेखावत कमजोर इस कारण पड गए क्योंकि दक्षिण विधानसभा क्षेत्र के 32 वार्डों में से भाजपा को मात्र 12 वार्डों में ही जीत मिली है। अगर दक्षिण में सीटें ज्यादा आतीं तो अनिता षेखावत के लिए अड जातीं, मगर अब वह तो संभव नहीं, इस कारण गहलोत का विरोध इस आधार पर किया जा रहा है कि वे ओबीसी से हैं, जबकि मेयर की सीट सामान्य है। भाजपा के लिए खतरा ये है कि अगर उसने षेखावत को राजी किए बगैर गहलोत का नाम फाइनल कर दिया तो एक बडा खेल हो सकता है। वो ये कि दक्षिण के 12 भाजपा पार्षदों के अतिरिक्त कांग्रेस के सहयोग से षेखावत पर दाव खेल दिया जाए। अजमेर की कई ताकतें इस समीकरण पर माथापच्ची कर रही हैं। कदाचित कांग्रेस इस पर विचार कर भी ले क्योंकि उसका मेयर तो वैसे भी नहीं बन रहा और भाजपा में फूट पडती है तो उसका लाभ क्यों न उठा लिया जाए। वैसे गहलोत को आसानी से मेयर बनाने के लिए निर्दलीय रूप से चुने गए बागियों के अतिरिक्त कांग्रेसियों से भी संपर्क साधा जा रहा है।
भाजपा के बडे नेता पार्टी में फूट की आषंका से भलीभांति वाकिफ हैं, इस कारण सारा जोर एकराय बनाने पर लगाया जा रहा है।
पुष्कर स्थित पुष्कर बाघ पैलेस में हो रही मषक्कत का एक रास्ता ये भी निकाला जा सकता है कि दोनों प्रमुख दावेदारों में किसी एक को मेयर बनाया जाए तो दूसरे को अन्य बडा राजनीतिक लाभ वाला पद देने का वायदा किया जाए। एक रास्ता ये है कि दोनों को ही दरकिनार कर जे.के. शर्मा, ज्ञान सारस्वत, भागीरथ जोशी, नीरज जैन आदि में से किसी एक का नाम तय किया जाए।

जनता चाहती है कि ज्ञान सारस्वत बनें मेयर

हालांकि भाजपा में मेयर को लेकर मूल रूप से पूर्व मेयर धर्मेन्द्र गहलोत व पूर्व नगर परिषद सभापति सुरेन्द्र सिंह षेखावत का नाम ही टॉप पर है और सारी खींचतान इन दोनों को लेकर हो रही है, मगर आम जनता में मेयर की पहली पसंद वार्ड तीन से जीते भाजपा पार्षद ज्ञान सारस्वत ही नजर आ रहे हैं। ये पक्का है कि मेयर किसे बनाना है, यह भाजपा हाईकमान को तय करना है, मगर सोषल मीडिया पर लगातार इसी बात पर जोर दिया जा रहा है कि ज्ञान को मेयर बनाना चाहिए। उसके पीछे उनका सामान्य वर्ग से होना भी बताया जा रहा है। ज्ञातव्य है कि इस बार मेयर का पद सामान्य है।
ज्ञान सारस्वत की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि वे 3481 वोट ले कर जीते हैं, जबकि कांग्रेस के प्रत्याषी राजेष लखवानी मात्र 436 वोट ही हासिल कर पाए हैं। यानि कि ज्ञान रिकार्ड वोटों के अंतर से जीते हैं। उनकी लोकप्रियता एक सच्चे समाजसेवी और ईमानदार राजनीतिक नेता के रूप में है। लोग उनको कितना चाहते हैं, उसकी बानगी आप इस पोस्ट में देख सकते हैं, जो वाट्स ऐप व फेसबुक पर चल रही हैः-
चुनाव के आंकड़े देखें,अजमेर के बड़े  नामी नेताओं का जीत का वोट प्रतिशत नगण्य या कुछ अधिक है। एक शख्स है बड़े ही साधारण और आम परिवार से ताल्लुक रखने वाले श्री ज्ञान जी भाईसाहब , उनकी जीत ने सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हर बार की तरह। ज्ञान जी का काम करने का तरीका बहुत Creative है, निष्ठा पूर्ण उन्होंने अपने वार्ड में कई नए काम कराए, ईमानदारी इनका सबसे बड़ा गुण हैं।  उनकी जीत देख वीर कुमार जी की याद आ गई। मित्रों अजमेर को भी ऐसा ही मेयर चाहिए जो जनता से जुड़ा हुआ हो , उनकी बात सुनता हो। ऐसा में नहीं ज्ञान जी के वार्ड का हर व्यक्ति कह रहा है। अजमेर को ऐसा मेयर नहीं चाहिए जो सिर्फ अपनी संपत्ति बनाए और सत्ता लोलूप हो। मित्रों इस आवाज को इतना उठाओ की भाजपा के शीर्ष तक पहुंच जाए। मित्रों जो भी नेतागण  मेयर पद की दावेदारी कर रहे हैं उन्हें हम पहले परख चुके हैं, उन्होंने कुछ खास प्रयास अजमेर के लिये नहीं किये । मित्रों अजमेर को भ्रष्टाचार से मुक्त करना है। आज अजमेर की सबसे प्रमुख परेशानी निगम का भ्रष्टाचार हैं और हमें एक ईमानदार मेयर चाहिए, जिसके प्रबल दावेदार ज्ञान जी हैं। आपकी आवाज़ इस शहर को एक ईमानदार मेयर दे सकती हैं। आम नागरिक

बेटी को जितवा ही दिया भारती श्रीवास्तव ने

जिद पर अडी भाजपा पार्षद भारती श्रीवास्तव ने आखिर सारे दाव पेच खेल कर अपनी बेटी रूचि श्रीवास्तव को जितवा कर दिखा ही दिया।
ज्ञातव्य है कि षिक्षा राज्य मंत्री प्रो वासुदेव देवनानी की पहली पसंद भारती श्रीवास्तव का टिकट ऐन वक्त पर पूर्व सांसद रासासिंह रावत की जिद के कारण काट कर सलोनी जैन को दे दिया गया। इस पर भारती ने बागी हो कर निर्दलीय के रूप में नामांकन पत्र भरा, मगर वह तकनीकी खामी की वजह ये रद्द हो गया। कदाचित इस बात का भान भारती को था, इस कारण उन्होंने ये चतुराई की कि अपनी बेटी रुचि का भी निर्दलीय का नामांकन पत्र भरवा दिया। उसके बाद भारती ने बेटी को जितवाने के लिए पूरा जोर लगा दिया। वस्तुतः भाभी जी के नाम से प्रसिद्ध भारती ने इलाके में काम भी खूब काम करवाया था। इस कारण उनकी जमीन पर अच्छी पकड़ थी। भारती ने कुल 2019 वोट हासिल कर जता दिया कि वाकई वे इलाके में लोकप्रिय हैं, जबकि सलोनी मात्र 883 वोट ही हासिल कर पाई। कांग्रेस की रितु गोयल 691 वोटों पर ही सिमट गई।
अपन ने पहले ही बता दिया था कि सलोनी की पारिवारिक पृष्ठभूमि राजनीतिक थी, मगर जमीन पर पकड़ कुछ कमजोर थी। हालांकि उसके लिए पूरा जैन समाज लामबंद हो गया, मगर जितवा नहीं पाया। रहा सवाल रितु गोयल का तो उन्हें तो टिकट ही भारी विवाद के बीच मिला। पहले निर्मला खंडेलवाल का टिकट फाइनल था, ऐन वक्त पर रितु को दिया गया, जिससे निर्मला खेमा बुरी तरह से नाराज हो गया। उसने तो आसमान सिर पर उठा लिया। यहां तक की प्रदेष कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट का पुतला तक फूंका। बाद में बडी मुष्किल से उन्हें मनाया तो गया, मगर आखिर तक उनका रवैया नहीं सुधरा। इसका नुकसान रितु को उठाना ही पडा। कदाचित निर्मला खेमे ने रूचि श्रीवास्तव का साथ दिया। कुल मिला कर भारती अपनी जिद पूरी करने में कामयाब हो गई।

कांग्रेस थोडी भी अतिरिक्त सावधानी बरतती तो बन सकता था उसका बोर्ड

अजमेर नगर निगम के चुनाव में अगर थोडी भी अतिरिक्त सावधानी कांग्रेस बरतती तो वह अपना बोर्ड बनाने में कामयाब हो सकती थी। ज्ञातव्य है कि ऐसे माहौल में जबकि भाजपा कांग्रेस मुक्त अजमेर की बातें कर रही थी यानि कि कांग्रेस के लिए कुछ भी अनुकूल नहीं था, उसके बावजूद वह 60 में से 22 वार्डों में जीत हासिल करने में कामयाब हो गई। यह अपने आप में काफी चौंकाने वाले परिणाम हैं। न केवल सट्टा बाजार, अपितु पूरा मीडिया भी यही मान कर चल रहा था कि भाजपा 35 या 40 से भी ज्यादा सीटें हासिल करेगी। कहीं भी इसके संकेत नहीं थे कि कांग्रेस की परफोरमेंस इतनी अच्छी हो जाएगी। ऐसे नकारात्मक माहौल में कांग्रेस ने जो कर दिखाया, वह वाकई उल्लेखनीय है।
इस बार प्रदेष कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ने थोडी सी तो सावधानी बरती, वो ये कि सभी नेताओं को राजी करके टिकट बांटे, इस कारण सिर फुटव्वल नहीं हुई, मगर अजमेर उत्तर में जिन नेताओं ने अपनी जिम्मेदारी पर टिकट दिलवाए, वे जीत नहीं दिलवा पाए। टिकट वितरण में कुछ लापरवाही यूं मानी जा सकती है कि या तो उपयुक्त दावेदार नहीं थे, या फिर वे परफोरमेंस नहीं दे पाए। वैसे भी अजमेर उत्तर में भाजपा की स्थिति कुछ बेहतर ही थी, इस कारण कांग्रेस को यहां दिक्कत आई। एक वजह ये भी रही कि टिकट वितरण के बाद किसी ने अपने अपने प्रत्याषी पर ठीक से ध्यान नहीं दिया। उधर दक्षिण में हेमंत भाटी ने अपनी पसंद के तकरीबन 25 टिकट लिए, जिनमें से उन्हें 20 पर जीत की पूरी उम्मीद थी और 17 में जीत दिलवा दी। कुल मिला कर इस परिणाम से हताषा में पडी कांग्रेस की जान में जान आई है।

हेमंत भाटी ने किया कांग्रेस का इकबाल उंचा

अजमेर दक्षिण से कांग्रेस प्रत्याषी हेमंत भाटी ने अजमेर नगर निगम चुनाव में अपने इलाके में अच्छा परफोरमेंस दे कर षहर में कांग्रेस का इकबाल उंचा किया है। उनकी ही बदौलत आज कांग्रेस भाजपा के मुकाबले खडे होने में कामयाब हो पाई है। कांग्रेस को मिली 22 सीटों में से अधिसंख्य उनके दक्षिण इलाके की हैं और उनमें उन्होंने कडी मेहनत की थी।
असल में विधानसभा चुनाव में हारने के बाद से वे विरक्त होने की बजाय और अधिक सक्रिय हो गए थे। निगम चुनाव से काफी पहले ही उन्होंने वार्डवार काम करना षुरू कर दिया था। यहां तक कि वहां से चुनाव लडाने के लिए प्रत्याषियों को चिन्हित भी कर दिया था। पूरी रणनीति तैयार थी। प्रदेष कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट उनकी ताकत को समझते थे, इस कारण उनकी पसंद से ही टिकट वितरण किया गया। टिकट बंटने के बाद उन्होंने पूरी तैयारी के साथ चुनाव लडवाया। कांग्रेस व भाजपा में संभवतः वे इकलोते ऐसे नेता हैं, जिन्होंने धरातल पर अपने प्रत्याषियों के साथ तन मन धन से जुड कर काम किया। उसका परिणाम भी आया। आज कांग्रेस भाजपा के मुकाबले खडी हो गई है। एक काम उन्होंने और किया है। उन्होंने महिला व बाल अधिकार राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल से अपनी हार का बदला भी ले लिया है। यह इस बात का भी इषारा है कि अगर पिछली बार मोदी लहर नहीं होती तो उनकी हार नहीं होती।