बुधवार, 11 अप्रैल 2012

पालीवाल साहब, इतना शरीफ भी नहीं है अजमेर

अजमेर रेंज के नए आईजीपी अनिल पालीवाल ऊर्जा से भरे हुए दिखाई देते हैं। हाल ही कार्यभार संभालते ही उन्होंने जिस प्रकार सक्रियता दिखाई, अधिकारियों को बैठक ली, आगामी उर्स के मद्देनजर दरगाह इलाके का दौरा किया, मीडिया से बात करते वक्त जिस बाडी लेंग्वेज में बयान दिया, उससे तो लगता कि वे काफी गंभीर हैं। अजमेर के लिए यह एक सुखद संकेत है, मगर जितनी आसानी से उन्होंने सख्त कदम उठाने की बातें कही हैं, उतने आसान नहीं हैं चैलेंज उनके सामने।
उन्होंने सबसे ज्यादा जोर दरगाह एवं पुष्कर की सुरक्षा पर दिया है क्योंकि ये धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। तस्वीर का दूसरा रुख ये है कि इन इलाकों की सुरक्षा कभी-कभी तो रामभरोसे ही नजर आती है। दरगाह इलाके की बात करें। पिछले दिनों एक अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही के दौरान नगर निगम के सीईओ सी आर मीणा को केवल इसलिए पैर पीछे खींचने पड़े कि पुलिस के आला अफसरों ने मूकदर्शक की भूमिका निभाई। यह विवाद काफी उछला। इसी प्रकार पिछले दिनों बिना आईडी प्रूफ के गेस्ट हाउस में ठहर कर एक युवक द्वारा अपने साथ पत्नी बता कर लाई गई युवती की हत्या कर फरार हो जाना साबित करता है न तो गेस्ट हाउस संचालकों को पुलिस का डर है और न ही पुलिस ने इससे पहले हुए एकाधिक मामलों से सबक लेते हुए अपने आप को मुस्तैद किया है। इससे पहले भी बिना आईडी प्रूफ के होटल में ठहर कर एक दूल्हे ने खुदकशी कर ली थी। इस प्रकार के वाकये होना साबित करता है कि मुंबई ब्लास्ट के मास्टर माइंड व देश में आतंकी हमले करने का षड्यंत्र रचने के आरोपी डेविड कॉलमेन हेडली से गच्चा खाने के बाद भी पुलिस ने सबक नहीं लिया है। पुलिस की लापरवाही का यह आलम तब है, जब कि दरगाह में एक बार बम विस्फोट हो चुका है। बेंगलुरू सीरियल बम ब्लास्ट का मास्टर माइंड व इंडियन मुजाहिद्दीन के आतंकी उमर फारुख सहित कई अन्य संदिग्धों के बिना पहचान पत्र के ठहरने के सनसनीखेज खुलासे हो चुके हैं।
यह सर्वविदित है कि दरगाह और पुष्कर के कारण अजमेर एक अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल है और मेलों के अतिरिक्त भी यहां सालभर जायरीन व श्रद्धालुओं का आना जारी रहता है। जायरीन इतनी बड़ी तादात में आते हैं उन पर निगरानी रखना बेहद मुश्किल काम है। यह बात पहले भी हो चुकी है कि पुलिस के पास पर्याप्त नफरी और संसाधन नहीं हैं और इस बारे में सरकार को लिखा हुआ है, मगर उसका क्या समाधान निकाला गया, आज तक पता नहीं लगा।
पालीवाल ने कहा कि नशे के कारोबार पर अंकुश लगाना पुलिस कार्ययोजना का ही हिस्सा है। पुलिस तस्करों के नेटवर्क खंगाल कर लगातार कार्रवाई करेगी। माना कि जब वे जयपुर में एडीशनल कमिश्नर क्राइम के पद पर थे, उस दौरान अजमेर-जयपुर के कई कुख्यात अपराधियों के गठजोड़ों के खुलासे किए थे। मगर अजमेर के हालात बेहद गंभीर हैं। सच तो ये है कि अजमेर का दरगाह इलाका व पुष्कर नशीले पदार्थों की तस्करी का ट्रांजिट सेंटर बना हुआ है। हालांकि बरामदगी भी होती रहती है, लेकिन हरियाणा मार्का की शराब का लगातार अजमेर में आना साबित करता है कि कहीं न कहीं मिलीभगत है। पिछले दिनों एक हिस्ट्रीशीटर ने तो मदहोशी में खुलासा ही कर दिया कि मंथली न बढ़ाए जाने के कारण पुलिस परेशान कर रही है। जिले में अवैध कच्ची शराब को बनाने और उसकी बिक्री की क्या हालत है और इसमें पुलिस की भी मिलीभगत होने का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि शराब तस्करों को छापों से पूर्व जानकारी देने की शिकायत के आधार पर दो पुलिस कर्मियों को लाइन हाजिर करना पड़ा।
इसके अतिरिक्त अजमेर की पुलिस कितनी मुस्तैद है, इसका सबसे बड़ा सबूत है कि पिछले कुछ सालों में हुए कई सनसनीखेज हत्याकांडों का आज तक राजफाश नहीं हो पाया है। अपराधियों के हौसले इतने बुलंद हैं कि जेल में बंद होने के बाद भी वे अपनी गेंगें संचालित करते हैं। पूर्व एसपी हरिप्रसाद शर्मा ने तो यह तक स्वीकार किया कि जेल में कैद अनेक अपराधी वहीं से अपनी गेंग का संचालन करते हुए प्रदेशभर में अपराध कारित करवा रहे हैं और इसके लिए बाकायदा जेल से ही मोबाइल का उपयोग करते हैं। न्यायाधीश कमल कुमार बागची ने जेल में व्याप्त अनियमितताओं पर तो टिप्पणी ही कर दी कि अजमेर सेंट्रल जेल का नाम बदल कर केन्द्रीय अपराध षड्यंत्रालय रख दिया जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
पिछले कुछ सालों में चैन स्नेचिंग के मामले तो इस कदर बढ़े हैं, महिलाएं अपने आपको पूरी तरह से असुरक्षित महसूस करने लगी हैं। वाहन चोरी की वारदातें भी लगातार बढ़ती जा रही हैं। रहा सवाल जुए-सट्टे का तो वह पुलिस थानों की नाक के नीचे धड़ल्ले से चल रहा है।
पुलिस की लापरवाही का आलम ये है कि अजमेर के हितों के लिए गठित अजमेर फोरम की पहल पर व्यापारियों के सहयोग से सबसे व्यस्ततम बाजार मदारगेट की बिगड़ी यातायात व्यवस्था को सुधारने का बरसों पुराना सपना साकार रूप ले रहा था, वहीं पुलिस कप्तान राजेश मीणा के रवैये के कारण नो वेंडर जोन घोषित इस इलाके को ठेलों से मुक्त नहीं किया जा पा रहा है। उन्होंने जिस प्रकार के तर्क दिए, उससे तो यही लग रहा था कि वे खुद ठेले वालों की पैरवी कर रहे हैं। कहने वाले तो यह तक कहते हैं कि पुलिस के सिपाही ठेलों से मंथली वसूल करते हैं। यदि वे ठेलों को हटाते हैं तो उसकी मंथली मारी जाती है। ऐसे में पालीवाल का ये कहना कि शहर की सबसे बड़ी यातायात समस्या के समाधान के लिए वे प्रयास करेंगे, हंसी ही आती है कि वे कैसी फौज के दम पर ऐसा कह रहे हैं।
बहरहाल, पालीवाल के उत्साह भले बयानों से शहर वासियों में आशा का संचार हुआ है। देखते हैं वे कितने कामयाब होते हैं।
-तेजवानी गिरधर
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