शनिवार, 16 अगस्त 2014

मात्र दस दिन में तय करने होंगे प्रत्याशी

हालांकि पहले यह जानकारी आई थी कि विधानसभा चुनाव सितम्बर-अक्टूबर में होंगे, मगर यकायक इसका कार्यक्रम अगस्त-सितंबर में कर दिए जाने से सभी अचंभित हैं। हालांकि प्रशासन को शायद पहले से अनुमान था, इस कारण उसने अपनी तैयारी शुरू कर दी थी, मगर विशेष रूप से कांग्रेस व भाजपा के नेता अचंभित हैं, जिन्होंने अभी कोई खास कवायद शुरू नहीं की थी।
ज्ञातव्य है कि नई सूचना के अनुसार निर्वाचन आयोग ने उपचुनाव 13 सितबर को कराने का कार्यक्रम जारी किया है। 16 सितंबर को मतगणना होगी। उपचुनाव की अधिसूचना 20 अगस्त को जारी होगी। अधिसूचना जारी होने के पश्चात नामांकन पत्र भरने का काम शुरू हो जाएगा, जिसकी अन्तिम तिथि 27 अगस्त होगी, 28 अगस्त को नामांकन पत्रों की जांच होगी तथा 30 अगस्त को नामांकन पत्र वापस लिए जा सकेंगे। यानि कि अब मात्र दस दिन ही रह गए हैं प्रत्याशी घोषित होने में। दूसरी ओर राजनीतिक दलों ने अभी तक प्रत्याशी चयन की कवायद आरंभ नहीं की है। अंदर ही अंदर भले ही विचार चल रहा हो।
जहां तक कांग्रेस का सवाल है, वह विधानसभा चुनाव में नसीराबाद सहित अजमेर जिले की सभी सीटों पर हारने और अजमेर संसदीय क्षेत्र में मौजूदा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के बुरी तरह से पराजित होने के बाद हतोत्साहित है मगर नसीराबाद में को लेकर हताशा में नहीं है। कांग्रेसी थोड़े से आश्वस्त इस वजह से हैं कि लोकसभा चुनाव में उसका प्रदर्शन विधानसभा चुनाव से बेहतर रहा। वो ये कि वह सिर्फ 10 हजार 999 मतों से ही पिछड़ी, जबकि विधानसभा चुनाव में सांवर लाल जाट 28 हजार 900 मतों से जीते थे। अपने ही विधानसभा क्षेत्र में जाट का पिछडऩा तनिक सोचने को विवश करता है, मगर इसकी वजह ये आंकी जाती है कि लोकसभा चुनाव में खुद सचिन पायलट के होने के कारण गुर्जर मत एकजुट हो गए थे। जो भी हो, मगर अंतर कम होना कांग्रेस की हताशा को कम तो करता है। एक और फैक्टर भी कांग्रेसी अपने पक्ष में गिन कर चल रहे हैं कि महंगाई का हल्ला मचा कर जिस प्रकार भाजपा केन्द्र व राज्य में सत्ता में आई और उसके बाद महंगाई और बढ़ गई है, इस कारण आम जनता में अंदर ही अंदर प्रतिक्रिया पनप रही है। राज्य में भाजपा सरकार का अब तक कोई खास परफोरमेंस भी नहीं रहा है, इस कारण कांग्रेसी मानते हैं कि आम जन का भाजपा से मोह भंग हुआ होगा। जहां प्रत्याशी का सवाल है, माना जाता है कि कांग्रेस किसी गुर्जर को ही मैदान में उतारेगी। वैसे विधानसभा चुनाव में हारे महेंद्र सिंह गुर्जर, श्रीनगर प्रधान रामनारायण गुर्जर, सुनील गुर्जर, पूर्व संसदीय सचिव ब्रह्मदेव कुमावत, पार्षद नौरत गुर्जर, पूर्व मनोनीत पार्षद सुनील चौधरी आदि लाइन में हैं। कुछ नेताओं की ओर से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट पर दबाव बनाया जा रहा है कि वे नसीराबाद सीट से चुनाव लड़ें।
भाजपा की बात करें तो नसीराबाद से जीतने के बाद इस्तीफा देकर लोकसभा चुनाव लडऩे वाले प्रो. सांवर लाल जाट अपने बेटे रामस्वरूप लांबा के लिए टिकट का प्रयास करेंगे। पूर्व में तीन बार स्वर्गीय गोविंद सिंह गुर्जर से हार चुके मदन सिंह रावत, जिला परिषद सदस्य ओमप्रकाश भडाणा, राजेंद्र सिंह रावत, केसरपुरा के पूर्व सरपंच शक्ति सिंह रावत के नाम भी चर्चा में हैं। उनके अतिरिक्त पूर्व जिला प्रमुख पुखराज पहाडिय़ा व अनिरुद्ध खंडेलवाल भी हाथ मारने की फिराक में हैं। देहात जिला भाजपा अध्यक्ष बनाए गए प्रो. बी. पी. सारस्वत का चांस अब कम है। जिले से बाहर के नेता भी नजरें गड़ाए हुए हैं, जिनमें पूर्व मंत्री दिगंबर सिंह, आरपीएससी के पूर्व सदस्य ब्रह्मदेव गुर्जर, गुर्जर नेता अतर सिंह भडाणा आदि शामिल हैं।

यादव व किरण की बदोलत अजमेर का बढ़ा मान

भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में राज्यसभा सदस्य भूपेन्द्र सिंह यादव को महामंत्री और अजमेर से लोकसभा चुनाव लड़ चुकीं विधायक श्रीमती किरण माहेश्वरी को उपाध्यक्ष बनाए जाने से अजमेर का मान बढ़ा है। ऐसी उम्मीद की जा रही है कि केन्द्र व राज्य में भाजपा की सरकार होने और भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में अजमेर के दो दमदार नेताओं के महत्वपूर्ण पदों पर पहुंचने से अजमेर को लाभ होगा। वे यहां के विकास के लिए भरपूर दबाव बनाएंगे। हालांकि उनकी नियुक्ति के साथ ही यह लगभग तय माना जा सकता है कि अजमेर को केन्द्रीय मंत्रीमंडल में स्थान नहीं मिल पाएगा।
आपको ज्ञात होगा कि यादव अपनी कॉलेज लाइफ अजमेर में बिता चुके हैं और उनकी अजमेर में खासी रुचि है। इसी कारण यदाकदा अजमेर आते भी रहते हैं। अजमेर उनकी नजर कितना महत्वपूर्ण है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने अपने खासमखास अरविंद यादव को शहर भाजपा का अध्यक्ष बनवाया है, ताकि संगठन पर यहां उनकी पकड़ रहे। यहां उनके चहेतों में पूर्व नगर परिषद सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत व पार्षद जे. के. शर्मा की गिनती होती है। जाहिर है वे भी अब प्रभावशाली भूमिका में होंगे।

जहां तक श्रीमती किरण माहेश्वरी का सवाल है, हालांकि वे अभी अजमेर जिले से विधायक नहीं है, मगर अजमेर संभाग की होने और अजमेर से लोकसभा चुनाव लड़ चुकने के कारण उनका अजमेर से लगाव है। लोकसभा चुनाव हार जाने के बाद भी वे यहां कई बार आती रही हैं। वे कह भी चुकी हैं कि भले ही वे अजमेर से हार गईं, मगर यहां का सदैव ध्यान रखेंगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि वे अपने वादे पर कायम रहेंगी। अजमेर में उनकी कितनी प्रतिष्ठा है, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि शहर भाजपा की ओर से जारी बधाई संदेश में उनका भी नाम है।