मंगलवार, 5 मार्च 2013

हमला रलावता पर, मगर निशाना सचिन पायलट

sachin thumb 29.4.12कांग्रेस की संभागीय समीक्षा बैठक में भले ही अजमेर शहर के कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने सीधे तौर पर असंतोष जाहिर करते हुए शहर अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता पर हमला किया हो, मगर कहीं न कहीं निशाना अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट भी बनाए जा रहे थे। कुछ ने सचिन का नाम लिए बिना सीधा विरोध जताया तो कुछ ने रलावता की कार्यशैली पर अंगुली उठाते हुए परोक्ष रूप से सचिन के सरंक्षण में ऐसा होने के संकेत दे दिए। कुछ ने तो बाकायदा आगामी लोकसभा चुनाव में अजमेर संसदीय क्षेत्र से स्थानीय नेता को ही उम्मीदवार बनाने पर बल दिया गया। उनमें अजमेर डेयरी अध्यक्ष व पूर्व देहात जिला कांग्रेस अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी भी शामिल हैं, जिन्होंने सचिन का नाम लिए बिना प्रदेशाध्यक्ष डॉ.चंद्रभान से कहा कि बाहरी नेतृत्व के बजाय स्थानीय नेता को ही उम्मीदवार बनाया जाए, ताकि आवश्यकता पडऩे पर छोटे से छोटा कार्यकर्ता उनसे मिल सके।
कुछ इसी प्रकार का भाव धरना देने वाले असंतुष्ट कार्यकर्ताओं ने धरना दे कर अभिव्यक्त किया। संगठन में सक्रिय कार्यकर्ताओं को महत्व नहीं दिए जाने एवं शहर कार्यकारिणी में ऊपर से ही नामों की घोषणा के विरोध में असंतुष्ट गुट ने अजमेर को केंद्र शासित जिला मानते हुए अपना विरोध जताया। केंद्र शासित अजमेर कांग्रेस वरिष्ठ, युवा एवं सभी कांग्रेसजन के बैनर तले धरने पर हरीश मोतियानी, अशोक मटाई, दिनेश शर्मा, शम्सुद्दीन, महेंद्र सिंह आदि बैठे। पायलट का नाम लिए बगैर असंतुष्ट गुट के नेताओं ने कहा कि जिले को दिल्ली के इशारे पर चलाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि कार्यकर्ताओं की उपेक्षा कांग्रेस को चुनावों में भारी पड़ सकती है।
कमोबेश इसी प्रकार की शिकायत पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती की रही और उन्होंने कहा कि जो नए लोग पार्टी से जुड़े हैं, उनकी ताजपोशी की जा रही है, जबकि पुराने कांग्रेसियों को पूछा भी नहीं जा रहा। बूथ लेवल कमेटियों का गठन शहर कांग्रेस अपने स्तर पर कर रही है। हमारे क्षेत्रों में किसे बूथ अध्यक्ष बनाया गया? हमें जानकारी तक नहीं है। विजय जैन बोले कि ब्लॉकों में बूथ लेवल कमेटियां गठित कर दी गईं लेकिन हमसे इस बारे में चर्चा तक नहीं की गई। ब्लॉक में कितने बूथ हैं? उनकी कमेटियों में कौन-कौन हैं? इसकी जानकारी नहीं दी गई। ब्लॉक अध्यक्ष अशोक बिंदल को तो यह तक पता नहीं था कि उनके ब्लॉक में बूथ लेवल कमेटियों का गठन भी हुआ है या नहीं। विजय नागौरा ने कहा कि बूथ कमेटियों के लिए लोगों के नाम व फोटो हमसे मांगे जा रहे हैं लेकिन हमारी कोई राय नहीं ली जा रही है। इतना अविश्वास ठीक नहीं है, फिर हमसे काम की अपेक्षा कैसे की जा सकती है।
कुल मिला कर यह साफ है कि भले ही सचिन का नाम लेने से कार्यकर्ता परहेज कर रहे थे, मगर उनका सीधा सा कहना ये था कि सचिन के संरक्षण में शहर कांग्रेस को चला रहे रलावता के कार्यकाल में पुराने व सक्रिय कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की जा रही है। इससे भले ही रलावता की सेहत पर कोई फर्क न पड़ रहा हो, मगर सचिन के लिए तो यह सोचनीय है कि निचले स्तर पर चल रहा असंतोष बाद में उन्हें दिक्कत पेश कर सकता है। भले ही उनके टिकट को लेकर कोई किंतु-परंतु न हो, मगर टिकट मिलने के बाद उन्हें असंतुष्टों को मनाने में एडी-चोटी का जोर आ जाएगा। कहने की जरूरत नहीं है कि पूर्व शहर अध्यक्ष जसराज जयपाल व उनके पुत्र डॉ. राजकुमार जयपाल व पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती की अगुवाई वाला एक बड़ा धड़ा आरंभ से ही सचिन से टेढ़ा-टेढ़ा चल रहा है।
-तेजवानी गिरधर

डॉ. श्रीगोपाल बाहेती का दर्द वाजिब है


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कांग्रेस की संभागीय समीक्षा बैठक में पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती ने जब संगठन की हालत पर प्रकाश डाला तो उनका निजी दर्द भी उभर आया। उन्होंने कहा कि केवल 600 वोट से चुनाव हारे हैं, इसका मतलब यह तो नहीं है कि हम कांग्रेसी ही नहीं रहे हैं। उन्होंने कहा कि जो नए लोग पार्टी से जुड़े हैं, उनकी ताजपोशी की जा रही है, जबकि पुराने कांग्रेसियों को पूछा भी नहीं जा रहा। बूथ लेवल कमेटियों का गठन शहर कांग्रेस अपने स्तर पर कर रही है। हमारे क्षेत्रों में किसे बूथ अध्यक्ष बनाया गया? हमें जानकारी तक नहीं है। उन्होंने पूर्व मेयर धर्मेन्द्र गहलोत द्वारा पार्टी कार्यकर्ता सुकरिया को थप्पड़ माने जाने की घटना का जिक्र करते हुए उस पर कायम मुकदमा वापस लेने की मांग भी की।
असल में डॉ. बाहेती का दर्द वाजिब है। वे उस जमाने से पार्टी को सींच रहे हैं, जब मौजूदा अनेक पदाधिकारी कार्यकर्ता मात्र हुआ करते थे। मौजूदा अनेक पदाधिकारी उन दिनों डॉ. बाहेती की जाफरी में रोजाना हाजिरी भरा करते थे। वहीं से उन्होंने राजनीति का कक्का सीखा और आज बाहेती को मुंह चिढ़ा रहे हैं। उनमें से एक शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ के पति हाजी इंसाफ अली भी हैं। तब बाहेती की जाफरी शहर का प्रमुख राजनीतिक केन्द्र बनी हुई थी और मीडिया को भी वहीं से फीडबैक मिला करता था। डॉ. बाहेती काफी समय तक स्वर्गीय माणक चंद सोगानी की कार्यकारिणी में महामंत्री रहे और अहम भूमिका अदा की। बाद में सोगानी जी का स्वास्थ्य अनुकूल न होने पर उन्हें कार्यवाहक अध्यक्ष भी बनाया गया। फिर नगर सुधार न्यास सदर व पुष्कर विधायक भी बने। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से नजदीकी के कारण उन्हें अजमेर का मिनी चीफ मिनिस्टर कहा जाता था। बेशक राजनीति में उतार-चढ़ाव चलता रहता है, मगर आज जिस तरह से उन्हें हाशिये पर रखा हुआ है, उससे पीड़ा होना स्वाभाविक है।
उनकी इस बात में भी दम है कि वे भाजपा के वासुदेव देवनानी से मात्र छह सौ वोटों से ही तो हारे हैं। ज्ञातव्य है कि भाजपा के प्रो.वासुदेव देवनानी ने कांग्रेस डॉ.श्रीगोपाल बाहेती को 688 मतों से पराजित किया। देवनानी को 41 हजार 9 सौ 7 व बाहेती को 41 हजार 219 मत मिले। तब कांग्रेस विचारधारा के हनुमान प्रसाद कच्छावा ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के बैनर पर चुनाव लड़ कर बाहेती को 1 हजार 489 मतों का नुकसान पहुंचाया। वरना डॉ. बाहेती तकरीबन साढ़े छह मतों से जीत जाते। इतना ही नहीं, मंत्री भी बनते।
खैर, हारने के बाद भी वे लगातार सक्रिय बने हुए हैं। उनकी अपनी फेन्स फॉलोइंग है। वे अब भी कांग्रेस टिकट के प्रबल दावेदारों में शुमार हैं। आज भी उनके यहां कार्यकर्ताओं का मजमा लगता है, मगर सांगठनिक तौर पर काबिज हुए लोगों ने उन्हें किनारे किया हुआ है। लब्बोलुआब, बाहेती की पीड़ा वाजिब है। अब देखना ये है कि प्रदेश संगठन आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर उन्हें कितनी अहमियत देता है।
-तेजवानी गिरधर