शुक्रवार, 14 अगस्त 2015

त्रिपाठी की बगावत का फायदा सुदर्शन जैन को

आसन्न नगर निगम चुनाव में वार्ड 53 में भाजपा के योगेश शर्मा के लिए बागी के. के. त्रिपाठी मुसीबत बने हुए हैं। वे भाजपा संगठन में पदाधिकारी रहे हैं और टिकट न मिलने से नाराज हो कर मैदान में आ डटे हैं। हालांकि उन्हें मनाने के लिए उच्च स्तर पर खूब प्रयास हुए, मगर पार्टी को सफलता हासिल नहीं हुई। हालांकि अब भी उन्हें रिटायर होने के लिए प्रलोभन दिए जा रहे बताए, मगर वे टस से मस नहीं हो रहे। जाहिर तौर पर इससे भाजपा मानसिकता के वोटों का बंटवारा होगा और उसका फायदा कांग्रेस प्रत्याशी सुदर्शन जैन को मिलेगा।

भाजपा की सतर्कता रुचि श्रीवास्तव के सेंध मारने के संकेत

अजमेर नगर निगम के वार्ड 12 में चुनावी घमासान बढ़ गया है। जैसे ही भाजपा पार्षद भारती श्रीवास्तव की पुत्री रुचि श्रीवास्वत का प्रभाव बढ़ता दिखा, धमकियों के दौर शुरू हो गए हैं। रुचि का कहना है कि पुलिस, प्रशासन का इस्तेमाल करते हुए धमकाया जा रहा है कि अगर उनको वोट दिया तो वार्ड का विकास ठप्प कर दिया जाएगा। झूठे मुकदमे दर्ज करवाने व लाइट आदि कटवाने का आदि की धमकियां मतदाताओं को दी जा रही है। रुचि ने वार्ड वासियों ने अपील की है कि वे बेखौफ हो कर मतदान करें।  वे स्थानीय कॉन्वेंट स्कूल से पढऩे के बाद एमबीए की हुई अजमेर की सबसे कम उम्र की प्रत्याशी हैं और वार्ड वासियों व उनकी माता भारती श्रीवास्तव के स्वाभिमान की रक्षा के लिए चुनाव मैदान में उतरी हैं।
दूसरी ओर भाजपा की उम्मीदवार सलोनी जैन के चुनाव अभिकर्ता हेमेन्द्र जैन ने वाट्स एप पर जारी संदेश में शिकायत की है कि वे ऊसरी गेट पर कुछ भाजपा कार्यकर्ताओं से चर्चा कर रहे थे, उसी समय भारती श्रीवास्तव अपने साथियों के साथ आईं और धमकी भरे शब्दों में कहने लगीं कि आप इस क्षेत्र में क्यों आए हो। इस पर हमारा हमने उन्हें चिल्लाते हुए कहा की आप कौन होती हो हमें बताने वाली कि हम कहां जाएं, कहां नहीं। हमारी इच्छा होगी जहां घूमेंगे और जिससे चाहेंगे भाजपा उम्मीदवार की चुनावी चर्चा करेंगे। इसी दौरान भाजपा के चालीस पचास समर्थक आ गए, इस पर वे भील बस्ती से दूसरी गली में चली गईं। अपने आप को सभ्य व संस्कारवान कहने वाली भारती श्रीवास्तव को क्या आप सभ्य कहेंगे, जो सरे आम गुंडागर्दी की बात करती है।
दोनों पक्षों के आरोपों में कितनी सच्चाई है, ये तो प्रत्यक्षदर्शी ही जानें, मगर इस वाकये यह तो साफ है कि भाजपा राज में भी यदि भारती बेखौफ  हो कर चुनौती दे रही हैं और उनका लहजा धमकी भरा है, तो इसका मतलब उनका दिल खुला हुआ है, हौसला बुलंद है, जो कि बिना जनसमर्थन के नहीं आ सकता। और दूसरा ये कि भाजपा राज में ही भाजपा अभिकर्ता को शिकायती लहजे में बात कहनी पड़े तो यह भाजपा खेमे में रुचि के सेंध मारने आशंका जताता है।
एक अहम बात और। ये तो आगामी बीस तारीख को ही पता लगेगा कि रुचि की परफोरमेंस कैसी रहती है, मगर भाजपा खेमा उनके प्रति कितना अधिक सतर्क है, यह शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी के ताजा बयान से लगता है। उन्होंने सलोनी जैन के समर्थन में लाल कोठी क्षेत्र में जनसम्पर्क करते हुए कहा कि वे भाजपा से बागी होकर खड़े निर्दलीय प्रत्याशी से सावधान रहें। जो पार्टी के नहीं हो सके, वो क्षेत्रवासियों का क्या ध्यान रख सकेंगे। देवनानी ने कहा कि संगठन के साथ विश्वासघात करने वालों का कभी भी साथ नहीं देना चाहिए। पूरे चुनाव प्रचार के दौरान संभवत: यह पहला मौका था कि उन्हें बागियों के प्रति इस तरह की भाषा का इस्तेमाल करना पड़ा। हालांकि दिखने में यह बयान सामान्य सा लगता है और भाजपा के प्रचारक के रूप में जरूरी भी, मगर यह रुचि के बढ़ते प्रभाव के प्रति भाजपा का सतर्कता का द्योतक है। इसी से जुड़ी एक बात और कि देवनानी ने बागियों के लिए इन शब्दों का इस्तेमाल जरूर इस कारण किया होगा ताकि कहीं उन पर भारती के प्रति नर्म रुख अपनाने का आरोप न लगे। ज्ञातव्य है कि भारती श्रीवास्तव टिकट वितरण से पहले देवनानी के काफी करीब मानी जाती थीं। दिलचस्प बात ये कि टिकट न मिलने के बाद भारती की पुत्री के बागी बन कर आने पर देवनानी को उनसे सावधान रहने को कहना पड़ रहा है।
वैसे अपना मानना है कि अगर रुचि जीती तो मेयर बनाने केलिए निश्चित रूप से देवनानी खेमे में ही जाएंगी। कहने की आवश्यकता नहीं है कि इस वार्ड में भारती अथवा उनकी पुत्री का ही दावा था, मगर पूर्व सांसद प्रो. रासासिंह रावत के दबाव में सलोनी को टिकट दिया गया। यही वजह रही कि भारती ने टिकट न मिलने पर रावत के प्रति ही गुस्से का इजहार किया।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

भाजपा के पास है केवल स्मार्ट सिटी का पुराना झुनझुना

नगर निगम चुनाव के लिए आगामी 17 अगस्त को मतदान होगा। वोट देने के प्रति लोगों में उत्साह भी भरपूर नजर आ रहा है। मगर अफसोस कि मतदाता को यह तक पता नहीं कि दोनों दलों के पास अजमेर के लिए ठोस एजेंडा क्या है? भाजपा जहां पहले से घोषित स्मार्ट सिटी का पुराना झुनझुना पकड़ा रही है, वहीं कांग्रेस के पास केन्द्र व राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा कोसने का अलावा कोई ठोस ब्लू प्रिंट नहीं है। ऐसे में मतदाता को ये पता ही नहीं कि वह शहर के कैसे विकास के लिए वोट डालने जा रहा है?
जहां तक स्मार्ट सिटी का सवाल है, उसकी तो काफी पहले ही घोषणा हो चुकी है। उसका प्रारूप क्या होगा, ये अभी तक ठीक से पता भी नहीं है, फिर भी भाजपा नेता उसी स्मार्ट सिटी की बांसुरी बजा कर मतदाता को रिझाने की कोशिश कर रहे हैं। जबकि हकीकत ये है कि स्मार्ट सिटी बनाने में नगर निगम की अपनी ओर से कोई भूमिका नहीं है। जो भी होना है वह स्मार्ट सिटी के मानकों के अनुरूप और अमेरिकी मदद से होना है। फंडिग से भी उसका कोई लेना देना नहीं है। यानि कि ऐसा सपना बेचा जा रहा है, जो खुद भाजपा नेताओं तक ने नहीं देखा है। कितनी अफसोसनाक बात है कि केन्द्र व राज्य में भाजपा की ही सरकार होने के बावजूद भाजपा के पास शहर के लिए अपनी कोई सोच नहीं है। न तो शहर को अतिक्रमण से मुक्त करने की कोई ठोस योजना है और न ही बेहद पीड़ादायक यातायात को सुगम बनाने का एजेंडा। ढ़ांचागत विकास का तो कोई विजन ही नहीं है। राज्य के दोनों मंत्रियों तक के मुंह से ये नहीं निकल रहा कि यदि जनता भाजपा का बोर्ड बनवा देगी तो वे अजमेर के लिए कौन सी योजना लाएंगे, क्या करवाएंगे या फिर राज्य व केन्द्र से क्या अतिरिक्त दिलवाएंगे?
इसी प्रकार कांग्रेस नेता भी ये नहीं बता पा रहे कि आखिर उनका बोर्ड बना तो करेंगे क्या? कितनी खेदपूर्ण बात है कि दोनों पार्टियों ने अपनी बैठकें कर शहर के विकास का कोई घोषणा पत्र जारी नहीं किया है। हालांकि अलग अलग वार्डों में चुनाव लड़ रहे सभी प्रत्याशियों ने विकास करवाने का वादा तो किया है, मगर यह एक व्यापक शब्द है, किसी ने भी यह नहीं बताया कि वह विकास के नाम पर शहर में क्या-क्या करेगा? हो सकता है, प्रत्याशियों ने अलग-अलग मतदाता समूहों के बीच उनकी समस्याओं के समाधान का वादा किया हो, मगर किसी ने भी लिपिबद्ध घोषणा पत्र जारी नहीं किया। जो कुछ भी वादा किया वह मौखिक है, जो अखबारों में कुछ छपा और कुछ नहीं छपा। लिखित घोषणा पत्र जारी करने की किसी भी प्रत्याशी या पार्टी को सुध नहीं रही। पार्टियां बाकायादा लिखित घोषणा पत्र जारी करती तो एक तो वे उसे पूरा करने को प्रतिबद्ध होतीं और मतदाता को भी पता होता कि वह किस घोषणा पत्र को पसंद करके वोट डाल रहा है। अब जब लिखित वादा किया ही नहीं तो उसे पूरा करने का सवाल ही पैदा नहीं होता। कल कोई गला तो नहीं पकड़ पाएगा कि यह वादा क्यों नहीं पूरा किया? समझा जाता है कि इसी डर से लिखित घोषणाएं नहीं कीं कि उन्हें पूरा नहीं करवा पाने पर वे असफल करार दे दिए जाएंगे। वादा किया तो उसे पूरा करने का दायित्व भी आएगा, इस कारण वादा करो ही नहीं। न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी।
यानि कि स्थानीय स्तर के इस चुनाव में मतदाता के मस्तिष्क में यह नहीं है कि वह कैसे शहर के लिए मतदान करने जा रहा है। वह केवल राजनीतिक विचारधारा के आधार पर वोट डालने को मजबूर है। धरातल की सच्चाई ये भी है कि वह अकेले राजनीतिक आधार पर ही नहीं, अपितु जातिगत आधार पर भी वोट डालेगा। शहर का विकास जाए भाड़ में।
मगर यह स्थिति पूरे उत्तर भारत में सर्वप्रथम घोषित पूर्ण साक्षर अजमेर के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है। माना जाता है कि यहां का मतदाता काफी समझदार और पढ़ा-लिखा है, मगर वह समझदारी तभी तो काम में आती जब उसके पास मौजूद विकल्पों में बेहतर-कमतर तय करने का पैमाना होता। अब उसके पास कोई चारा नहीं है। महज दो ही विकल्प हैं, पार्टी और जाति। सूचीबद्ध विकास भविष्य के अंधेरे में छिपा है।
लिपिबद्ध घोषणा पत्र की बात छोड़ भी दें, किसी भी प्रत्याशी ने मीडिया के सामने आने की जरूरत तक नहीं समझी। बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस करने पर ध्यान ही नहीं दिया। यह सुस्पष्ट है कि मीडिया एक सशक्त माध्यम है। उसके जरिए अधिकाधिक लोगों तक संदेश जाता है। मीडिया के सामने कही गई बात की अकाउंटेबिलिटी होती है। यदि वह बात पूरी नहीं होती तो कल मीडिया उसे याद दिलवा सकती है। समझा जाता है कि केवल घबराहट की वजह से प्रत्याशी मीडिया का सामना करने को तैयार नहीं हुए। दोनों प्रमुख प्रत्याशियों को धुकधुकी है कि न जाने कैसे सवालों की फायरिंग होगी और वे उसका जवाब दे भी पाएंगे या नहीं।
कुल मिला कर दोनों पार्टियों ने मीडिया से दूरी रखते हुए बिना घोषणा पत्र के वोट मांगे हैं। जनता तो किसी न किसी हिसाब से वोट डालेगी ही। अब यह भविष्य ही तय करेगा कि कौन जीतता है और जीतने वाला कैसे सुंदर अजमेर का सपना संजोये हुए है।
तेजवानी गिरधर
7742067000