गुरुवार, 27 जनवरी 2011

क्या भाजपा सहयोग करेगी बाबा रामदेव आहूत रैली को?

योग गुरू बाबा रामदेव महाराज के आह्वान पर आगामी 30 जनवरी को देश के सभी 624 जिला मुख्यालयों पर भ्रष्टाचार के खिलाफ जनयुद्ध अभियान के तहत निकाली जाने वाली जनचेतना रैली को भाजपा और उससे जुड़े लोग सहयोग करेंगे अथवा नहीं, इस बात को लेकर संशय स्थिति बन गई है।
पतंजलि योग समिति एवं भारत स्वाभिमान ट्रस्ट जिला अजमेर के बैनर पर जनचेतना रैली की तैयारियां तो शुरू कर दी हैं, लेकिन इन संगठनों और बाबा रामदेव के प्रति आस्था रखने वाले लोगों में अधिसंख्य कार्यकर्ता किसी न किसी रूप में भाजपा व हिंदूवादी संगठनों से जुड़े हुए हैं, जो कि अभी असमंजस में हैं कि रैली को सहयोग किया जाए या नहीं। रहा आम आदमी का सवाल तो वह योग के मामले में भले ही बाबा के अनुयाई हों, राजनीतिक रूप से बाबा को सहयोग करेंगे ही, यह जरूरी नहीं है। बाबा रामदेव के संबंध चूंकि आर्य समाज से हैं, इस कारण उसका सहयोग तो मिल जाएगा, लेकिन अन्य सामाजिक संगठनों से जुड़े कार्यकर्ताओं को, जो भाजपा से भी संबद्ध हैं, अभी ऊपर के आदेशों का इंतजार कर रहे हैं। यह एक संयोग ही है कि बाबा रामदेव से जुड़े अधिसंख्य लोग हिंदूवादी अथवा धार्मिक संगठनों के ही कार्यकर्ता हैं। उनमें संशय का एक बड़ा कारण है। यह सर्वविदित ही है कि बाबा रामदेव भ्रष्टाचार से मुक्ति, व्यवस्था परिवर्तन और विदेशों में जमा काला धन स्वदेश लाने के लिए यह घोषणा कर चुके हैं अथवा चेतावनी दे चुके हैं कि आगामी लोकसभा चुनाव में वे देश के सभी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों से अपने प्रत्याशी खड़े करेंगे। मौजूदा रैली को उसी संदर्भ में जागृति लाने के मकसद से जुड़ा हुआ देखा जा रहा है। अगर रामदेव के प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरते हैं तो स्वाभाविक रूप से वे मुसलमानों व ईसाइयों की बजाय हिंदू और सात्विक किस्म के मतदाताओं को ज्यादा आकर्षित करेंगे। कम से कम कांग्रेस विचारधारा से जुड़े लोग तो उनका साथ देने वाले हैं नहीं। ऐसे में भाजपा को नुकसान हो सकता है। असल में जब तक बाबा रामदेव योग की बातें कर रहे थे, तब तक कोई दिक्कत नहीं थी, लेकिन जब से उन्होंने देश की चिंता करते हुए सक्रिय राजनीति में भी उतरने के संकेत दिए हैं, भाजपा में खलबली मची हुई है। एक हिसाब से देखा जाए तो रामदेव के प्रत्याशी उनके प्रत्याशियों के समानांतर खड़े हो कर नुकसान पहुंचाएंगे। हालांकि रामदेव के आदमी जीत कर आ ही जाएंगे, इसमें संशय है, लेकिन वोटों का कुछ नुकसान तो कर ही देंगे। यही वजह है कि ताजा रैली पर भाजपा की गहरी नजर है। अगर भाजपा ने अपने कार्यकर्ताओं को अंदर ही अंदर इशारा कर दिया कि इस रैली को सहयोग नहीं करना है तो रैली फीकी पडऩे की आशंका उत्पन्न हो सकती है। सिक्के का दूसरा पहलु ये भी है कि यदि बाबा रामदेव के प्रति आस्था के कारण रैली को सफल बनाने की खातिर कुछ भाजपाई शामिल हो भी गए तो इससे बाबा रामदेव भ्रम में पड़ जाएंगे, क्योंकि चुनाव के समय तो वे भाजपा के साथ बगावत नहीं करेंगे।
हालांकि यह सही है कि फिलहाल जो रैली निकाली जा रही है, वह विशुद्ध रूप से राजनीतिक नहीं है, लेकिन उसका उद्देश्य तो राजनीतिक ही है। कदाचित इस रैली के जरिए बाबा रामदेव अपनी ताकत को मापना चाहते हों। बहरहाल, भाजपा अथवा आरएसएस के सहयोग के बिना रैली कितनी सफल होगी, यह तो 30 जनवरी को उगने वाला सूरज की बताएगा।

परचा छपवाने वालों पर भी नजर है मुख्यमंत्री गहलोत की


शहर कांगे्रस के उपाध्यक्ष डॉ. सुरेश गर्ग की लिखित शिकायत और एक गुमनाम परचे को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने अजमेर की पंचशील कॉलोनी में दीप दर्शन सोसायटी के नाम नगर सुधार न्यास की ओर से आवंटित 63 बीघा जमीन का आवंटन व लीज को रद्द तो कर दिया है, लेकिन परचे का मामला अब भी गरमाया हुआ है।
वस्तुस्थिति ये बताई जा रही है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने डॉ. गर्ग के शिकायती पत्र पर ध्यान दिया हो अथवा नहीं, मगर परचे को जरूर गंभीरता से लिया। इसकी वजह ये है कि उसमें मुख्यमंत्री गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत का जिक्र है। गहलोत भ्रष्टाचार के मामले में विशेष सतर्कता बररते हैं और कभी नहीं चाहते कि उनके अथवा उनके पारिवारिक सदस्य की वजह से वे किसी भी स्तर पर बदनाम हों, इस कारण उन्होंने आवंटन रद्द करने संबंधी कई कानूनी अड़चनों को नजरअंदाज कर एक झटके में ही कड़ा निर्णय लेते हुए आवंटन रद्द कर दिया। ऐसा करके उन्होंने अपने आप को पूरी तरह से पाक साबित कर दिया है, लेकिन सुना है कि जैसे ही यह परचा गहलोत विरोधी लॉबी के हाथ आया है, उसने इस पर खेल करना शुरू कर दिया है। वे इस कोशिश में हैं कि मामला हाईकमान तक पहुंच जाए, ताकि गहलोत को डेमेज किया जा सके। हालांकि जिस तरह से परचे के गुमनाम होने और उसमें लिखे गए आरोप निराधार होने के बावजूद अतिरिक्त सावधानी बरतते हुए गहलोत ने त्वरित कार्यवाही करते हुए अपने आप को बचा लिया है, लेकिन विरोधी फिर भी अपनी मुहिम में लगे हुए हैं।
बताया जाता है कि गहलोत इस प्रकार की हरकत को गंभीरता से ले रहे हैं। इन दिनों वैसे ही जमीन घोटालों को लेकर देशभर में माहौल बना हुआ है और बड़े-बड़ दिग्गज धराशायी हो रहे हैं। गहलोत को तकलीफ इस बात की है कि झगड़ा तो स्थानीय लोगों के बीच में था, जबकि उनके पुत्र को बेवजह घसीटा गया है। अत: उन्होंने विभिन्न सूत्रों से यह पता लगा लिया है कि यह परचा किसने छपवाया और किसने इसे वृहद स्तर पर बंटवाने की व्यवस्था की है। समझा जाता है कि इसमें शामिल लोग कांग्रेस से ही जुड़े हुए हैं और वे कोई न कोई राजनीतिक नियुक्ति पाने की लालसा में हाथ-पैर मार रहे हैं। गहलोत अब उनमें से किसी को भी कोई राजनीतिक लाभ देने वाले नहीं हैं। परचे से जुड़े लोगों को इस बात की तो खुशी है कि उनका असल मकसद कामयाब हो गया, मगर अतिरिक्त उत्साह में गहलोत के पुत्र का नाम भी शामिल करने की गलती का अहसास अब होने लगा है। जैसे ही उन्हें इसकी भनक पड़ी कि गहलोत इस हरकत को गंभीरता से ले रहे हैं, उन्होंने एक-दूसरे का नाम उस परचे से जोडऩे का षड्यंत्र शुरू कर दिया है। इसका परिणाम ये होना है कि काम भले ही किसी एक ने किया हो, मगर एक साथ कई लोग निपट जाएंगे।

खिसकता जा रहा है देवनानी का जनाधार

विधानसभा चुनाव में एकजुट हुए सिंधी समुदाय की बदौलत कांग्रेस के लोकप्रिय व दिग्गज नेता पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती को हरा चुके प्रो. वासुदेव देवनानी जनाधार खोते जा रहे हैं। निगम चुनाव में अन्य वार्डों को छोड़ कर केवल देवनानी के निवास स्थान वाले इलाके की बात करें तो पूरे वार्ड के अधिसंख्य कट्टर भाजपाइयों ने देवनानी को मजा चखाने के लिए भाजपा प्रत्याशी तुलसी सोनी के धोळों में धूल डाल दी। इसका परिणाम ये रहा कि वहां निर्दलीय ज्ञान सारस्वत भारी मतों से जीत गए। पार्टी के लिहाज से कहने को भी भले ही इसे हल्के में लिया जाए कि पूरे विधानसभा क्षेत्र के एक वार्ड में यदि विपरीत परिणाम आ जाएं तो कोई खास बात नहीं है, मगर एक मंत्री रहे और दुबारा जीते विधायक देवनानी के लिए व्यक्तिगत रूप से यह काफी गंभीर नुकसान गिना गया।
हाल ही पंचायत चुनाव में हाथीखेड़ा गांव में संरपंच पद पर भाजपा खेमे के शंकरसिंह रावत की हार का ठीकरा भी देवनानी पर फूट गया है। हालांकि उस गांव और आसपास की कॉलोनियों के लोग जो आरोप लगा रहे हैं कि देवनानी के इशारे पर उनके करीबियों ने रावत को हराने मेंं अहम भूमिका अदा की है, वह सही है या नहीं कुछ कहा नहीं जा सकता, मगर इतना तय है कि जिन लोगों ने रावत को हरवाया, वे कहलाए देवनानी के ही खास जाते हैं। हो सकता है कि उन्होंने अपनी स्थानीय राजनीति के तहत ही रावत को हराया हो, मगर ठीकरा तो देवनानी के सिर फूट गया है। गांव के लोगों को इसका मलाल है कि विधानसभा चुनाव में उन्होंने देवनानी को पूरा समर्थन दिया, मगर उन्होंने ही खिलाफत करवा दी। उन्होंने यहां तक ऐलान कर दिया कि देवनानी को सबक सिखाने के लिए अब उस इलाके में भाजपा नेताओं को नहीं घुसने देंगे। अपने ही इलाके में भाजपा मानसिकता के वोटों का इस प्रकार खराब होना बेशक देवनानी के लिए घातक है। संयोग से सरपंच चुनाव में हारे रावत अजमेर दक्षिण की विधायक श्रीमती अनिता भदेल के करीबी हैं, इस कारण मामला और भी खराब हो गया है। श्रीमती भदेल हाईकमान को शिकायत कर सकती हैं कि देवनानी इस प्रकार व्यक्तिगत दुश्मनी निकालने के लिए पार्टी को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
रावत के हारने का देवनानी को भी भारी मलाल है, इस कारण बताया जाता है कि उन्होंने अपने करीबियों को खूब खरी-खोटी सुनाई कि क्यों ऐसी हरकतें करके उन्हें बदनाम करवा रहे हैं। उन्होंने यहां तक कहा कि अगर ऐसे ही उनकी भद्द पिटवाते रहे तो वे अगला विधानसभा चुनाव लडऩे की स्थिति में ही नहीं रहेंगे।

भाजपा पार्षद पढऩे गए नमाज, गले पड़ गए रोजे

सामुदायिक भवनों के व्यावसायिक दुरुपयोग के खिलाफ जैसे ही नगर निगम महापौर कमल बाकोलिया नजरे टेढ़ी की हैं, भाजपा पार्षद उबल पड़े हैं। वे एकजुट हो कर गए तो थे महापौर पर दबाव बनाने, मगर उसमें कामयाब होने की बजाय उलटे दलाली का आरोप लेकर लौटे।
अजयनगर स्थित डीजे गार्डन को सील किए जाने के बाद जैसे ही पार्वती उद्यान का नंबर आया वहां के निवासी लामबंद हो गए। नगर निगम चुनाव में उस इलाके के दो वार्ड गंवा चुकी और विपक्ष में होने के बाद भी लंबे समय से चुप भाजपा को भी अपनी हैसियत व अपने परंपरागत वोट बैंक का ख्याल आया। और आव देखा न ताव, केवल ये एजेंडा ले कर बाकोलिया पर चढ़ गए कि उन्होंने यह कार्यवाही शुरू करने से पहले उनको विश्वास में क्यों नहीं लिया। वे यह तो कहने की स्थिति में थे कि नहीं कि सामुदायिक भवन को सील कैसे कर दिया, लेकिन चूंकि तकलीफ हुई तो बहाना बनाया विश्वास में न लेने का। असल में इसमें विश्वास में लेने जैसा कुछ था ही नहीं। यदि सामुदायिक भवनों का दुरुपयोग हो रहा था तो वह गैर कानूनी ही था। इस मामले में कार्यवाही जायज ही थी। इसमें किसी को जानकारी देने या फिर विश्वास में लेने जैसी कोई बात थी ही नहीं। सीधी कार्यवाही की ही दरकार थी। और यही वजह रही कि बाकोलिया ने भी बड़ी ही चतुराई से जवाब दिया कि चोरी होने पर सामने खड़े चोर को पहले पकड़ें या पुलिस को बुलाने जाएं। इस जवाब पर भाजपा पार्षदों की बोलती बंद हो गई।
यहां तक भी ठीक था कि वे अपनी बात रखने के लिए ज्ञापन देने गए थे और ज्ञापन दे भी दिया, मगर तकलीफ तब ज्यादा हुई, जब वहां पहले से मौजूद कांग्रेसी पार्षद भी उनके सामने हो गए। इस भिड़ंत में कांग्रेसियों ने जम कर खरी-खोटी सुनाई। उन्होंने तो जो आरोप लगाए, उससे भाजपाइयों की हालत रोजे गले पडऩे जैसी हो गई। कांग्रेस पार्षद नौरत गुर्जर ने तो खुल्लम खुल्ला आरोप लगाया कि सामुदायिक भवनों के मामले में भाजपा से जुड़े लोगों व पार्षदों ने दलाली खाई है। इसी कारण सामुदायिक भवनों के मामले में कार्यवाही करने पर पैरवी करने आ गए हैं। उन्होंने तो यहां तक कहा कि भाजपाइयों ने अब तक जो दलाली खाई है, उसकी वसूली होनी चाहिए।
बहरहाल, भाजपा के इस दबाव से बाकोलिया और सख्त हो गए हैं। कांग्रेस पार्षदों का भी कहना है कि मिशन अनुपम के तहत जो सामुदायिक भवन या पार्क दे रखे हैं, उन्हें वापस ले लिया जाए और उन्हें किराये पर देने की नीति बनाई जाए। अब देखना ये है कि इस मामले में मुंह की खाए भाजपाई अगला कदम क्या उठाते हंै।