गुरुवार, 12 दिसंबर 2013

यानि कि असली राजनीति अब शुरू करेंगे हेमंत भाटी

कानाफूसी है कि हाल ही संपन्न हुए राज्य विधानसभा चुनाव में अजमेर दक्षिण से कांग्रेस प्रत्याशी रहे प्रमुख समाजसेवी हेमंत भाटी हारने के बाद अब असली राजनीति शुरू करेंगे। कुछ लोग सोच रहे थे कि पहली बार में ही चुनाव हार जाने के बाद संभव है उनका राजनीति से मोह भंग हो गया होगा, क्योंकि समाजसेवा की वजह से उनका रुतबा तो अब भी कायम है, मगर हाल ही उन्होंने अखबारों में एक विज्ञापन दे कर यह जता दिया है कि जिस भाव से वे राजनीति में आए, उसे हारने के बाद भी बरकरार रखते हुए जनसेवा करने को तत्पर हैं। संभवत: वे एक मात्र प्रत्याशी हैं, जिन्होंने हारने के बाद भी मतदाताओं का आभार जताया है, वरना केवल जीते हुए ही आभार व्यक्त किया करते हैं।
उन्होंने लिखा है कि किसी भी दुख व समस्या में  उनसे बेझिझक संपर्क किया जा सकता है और वे सदैव सेवा के लिए तत्पर रहेंगे। उनके इस विज्ञापन से यह आभास होता है कि हारने के बाद अब वे दुगुने जोश के साथ राजनीति में आने वाले हैं। समझा जा सकता है कि इस चुनाव में टिकट दिलवाने के कारण उनकी अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट से करीबी बढ़ी है। कोई पांच माह बाद पायलट को लोकसभा चुनाव लडऩा भी है। ऐसे में जाहिर है कि वे भाटी को मुख्य धारा में बनाए रखना चाहेंगे। इसके लिए संभव है उन्हें पार्टी संगठन में कोई अहम जिम्मदारी दिलवाएं। कुल मिला कर तकरीबन दस साल तक भाजपा विधायक श्रीमती अनिता भदेल के राजनीतिक उत्प्ररेक रहते हुए भले ही उन्होंने सक्रिय राजनीति में भाग नहीं लिया, मगर अब चुनाव हारने के बाद इस दिशा में आगे कदम बढ़एंगे। संकेत ये भी मिल रहे हैं कि चुनाव में जिन लोगों ने उनके साथ बेवफाई की, उनसे भी एक एक करके निपटेंगे।

किस मुंह से मांगा जा रहा है शत्रुघ्न गौतम के लिए मंत्री पद

श्रीमती वसुंधरा राजे ने अभी खुद मुख्यमंत्री पद की शपथ भी नहीं ली है कि अपने चहेते विधायकों को मंत्री बनाए जाने की मांग भी शुरू हो गई है। खबर है कि भारतीय जनता पार्टी व्यापार प्रकोष्ठ, केकड़ी के पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं ने भाजपा की विधायक दल की नेता वसुंधरा राजे को पत्र लिख कर मांग की कि केकड़ी विधानसभा क्षेत्र से विधायक निर्वाचित हुए शत्रुघ्र गौतम को मंत्री बनाया जाये।
पत्र में तर्क दिया गया है कि गौतम ने कांग्रेस के कद्दावर नेता, जो न सिर्फ केकड़ी में, बल्कि पूरे राजस्थान की कांग्रेस में अहम स्थान रखते थे तथा पिछली विधानसभा में सरकारी मुख्य सचेतक भी थे, उन्हें केकड़ी विधानसभा क्षेत्र से हराया है, इसलिये उन्हे मंत्री बनाया जाये। इसमें कोई दोराय नहीं कि रघु शर्मा कांग्रेस के एक दिग्गज नेता हैं और वे हारे भी हैं, मगर उन्हें असल में गौतम ने नहीं, बल्कि कांग्रेस के बागी व एनसीपी के चुनाव चिन्ह पर लड़े पूर्व विधायक बाबूलाल सिंगारियां की वजह से हार का सामना करना पड़ा। अगर सिंगारियां मैदान में नहीं होते तो राज्य भर में चली कांग्रेस विरोधी लहर के बाद भी शर्मा जीत जाते। ज्ञातव्य है कि केकड़ी में हुआ त्रिकोणीय मुकाबला ही कांग्रेस के लिए घातक साबित हुआ। सिंगारियां ने कांग्रेस के परंपरागत अनुसूचित जाति वोट बैंक में सेंध मारी, जिसका सीधा नुकसान रघु को हुआ। रघु 8 हजार 867 वोटों से हारे, जबकि सिंगारियां ने 17 हजार 35 मत झटक लिए। ऐसे में यह कहना कि गौतम ने इस दिग्गज को परास्त किया है, वाजिब नहीं लगता। सच तो ये है कि जिले की एक मात्र केकड़ी ही ऐसी सीट है, जहां गौतम कांग्रेस विरोधी लहर को अपने पक्ष में नहीं भुना पाए। सिंगारियां न होते तो वे जीतने का सपना ही देख रहे होते। वैसे माना ये भी जाता है कि गौतम की जीत में मीडिया का भी योगदान रहा। कई पत्रकार रघु शर्मा से किन्हीं कारणों से खफा थे और गौतम के पक्ष में माहौल बना रहे थे।
बेशक, मंत्री बनाने की मांग करने का सभी को हक है, मगर जब पूरे जिले में सभी आठों सीटें भाजपा ने जीती हैं और उनमें दो-दो व तीन-तीन बार जीते विधायक भी हैं, उनका भी सभी का नंबर नहीं आ पाएगा, ऐसे में पहली बार जीते विधायक का मंत्री बनने का हक ही नहीं बनता। खैर, मांगने वालों ने तो मंत्री पद मांग लिया, उसे पूरा करने का अधिकार वसुंधरा के पास है।