मंगलवार, 31 जनवरी 2012

ये कलेक्टर की लापरवाही नहीं तो क्या है?


महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर कलेक्ट्रेट में आयोजित मौन सभा में जिला कलेक्टर श्रीमती मंजू राजपाल व अतिरिक्त कलेक्टर मोहम्मद हनीफ, अतिरिक्त कलैक्टर शहर जगदीश पुरोहित व एसडीएम निशु अग्निहोत्री उपस्थित नहीं हुए। इससे साफ जाहिर होता है कि सरकार के आदेशों की पालना में अधिकारी आयोजन की औपचारिकता तो निभाते हैं, मगर उसके प्रति गंभीरता नहीं बरतते। और अधिकारियों का तो पता नहीं कि वे नियत समय 11 बजे हुई सभा में क्यों नहीं पहुंचे, मगर जिला कलैक्टर श्रीमती मंजू राजपाल तो अपने चैंबर में ही थीं, फिर भी नहीं पहुंचीं। अतिरिक्त कलैक्टर शहर जगदीश पुरोहित जरूर नियत समय से पहले सभा में पहुंच गए, मगर उन्हें यकायक ख्याल आया श्रीमती राजपाल का, तो वे उन्हें बुलाने गए और इसी दौरान हूटर बज गया, नतीजतन वे सभा में शामिल होने से वंचित रह गए। जैसा कि वे बताते हैं, उन्होंने श्रीमती राजपाल के साथ उनके चैंबर में ही दो मिनट का मौन रखा। सवाल ये उठता है कि जब सरकार के आदेश के तहत हर दफ्तर में मौन सभा होनी थी तो जिले में इस आयोजन के आदेश प्रसारित करने वाली जिला कलैक्टर खुद क्यों नहीं शामिल हुईं? वे चाहे जितनी भी व्यस्त रही हों, मगर कम से कम उन्हें तो समय पर उपस्थित रहना ही चाहिए था। हालांकि अतिरिक्त कलैक्टर जगदीश पुरोहित का तर्क है कि जो जहां हो, वहीं उसे दो मिनट का मौन रखना था, तो सवाल उठता है कि ऐसे में सभा आयोजित करने की जरूरत ही क्या थी? हर कोई अपनी-अपनी सीट पर ही मौन रख लेता। उनके बयान में विरोधाभास साफ झलकता है। यदि उनका तर्क सही है तो वे काहे को जिला कलैक्टर को बुलाने गए? जिला कलेक्टर को उनके चैंबर में ही मौन करने देते, अर्थात उन्हें इस बात का अहसास था कि जिला कलेक्टर को सभा में होना ही चाहिए। इसी कारण वे उन्हें बुलाने गए और उन्हें भी हूटर बज जाने के कारण वहीं पर मौन रखना पड़ा।
ऐसा प्रतीत होता है कि हम सरकारी स्तर पर होने वाले आयोजनों को बेगार समझने लगे हैं और मजबूरी में आयोजन करते हैं, जबकि हमारी उनमें कोई रुचि नहीं होती। ताजा प्रकरण भले ही कोई बहुत गंभीर न हो, मगर यह हमारी प्रवृत्ति को तो उजागर करता ही है। आपको याद होगा कि पिछले साल 26 जनवरी पर गणतंत्र दिवस समारोह महज औपचारिक रूप से मनाने और पर्यटन मंत्री श्रीमती बीना काक की इच्छा के अनुरूप समारोह को शानदार तरीके से अधिकाधिक लोगों के बीच आयोजित न करने पर श्रीमती काक ने नाराजगी जाहिर की थी। इस बार जरूर श्रीमती राजपाल ने पूरा ध्यान रखा और श्रीमती काक ने भी उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की।

सोमवार, 30 जनवरी 2012

न्यास की तोडफ़ोड़ से उठे नेताओं पर कई सवाल

चंद्रवरदाई नगए ए ब्लॉक एवं जवाहर की नाड़ी में न्यास की अतिक्रमियों के विरुद्ध कार्रवाई से उठे बवाल ने अजमेर के नेताओं पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। एक ओर जहां इस मुद्दे ने न्यास अध्यक्ष नरेन शहाणी भगत की भूमिका पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है, वहीं शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता की प्रशासन विरोधी पहल ने सभी को चौंका दिया है। हालांकि न्यास की विशेषाधिकारी प्रिया भार्गव के चैंबर में हुए हंगामे से भौंचक्की रह गईं विधायक श्रीमती अनिता भदेल तनिक परेशानी में आई हैं, लेकिन साथ ही नए साल में उन्हें अपनी बुझती राजनीति को चमकाने का मौका भी मिल गया है। रहा सवाल सांसद व केन्द्रीय संचार राज्य सचिन पायलट का तो भला से कांग्रेसी नेताओं की आपसी फूट के कारण रिंग मास्टर की भूमिका अदा करने से क्यों चूकते?
असल में जैसे ही न्यास के अधिकारियों ने अध्यक्ष भगत की गैर मौजूदगी में अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही की तो सबसे पहला सवाल ये उठा कि क्या यह उनकी जानकारी में हुआ अथवा उन्हें कुछ पता ही नहीं है? अगर उनकी अनुमति से ऐसा हुआ है तो राजनीतिक लिहाज से यह एक आत्मघाती कदम था। वे अभी न्यास की कार्यप्रणाली को ठीक से समझ ही नहीं पाए हैं, विकास की दिशा में एक डग भर नहीं चले हैं कि नए साल की शुरुआत तोडफ़ोड़ से कर रहे हैं तो ये आगे चल कर घाटे का सौदा साबित हो सकता है। जैसा कि स्वयं भगत कह रहे हैं कि कागजी कार्यवाही पहले से ही चल रही थी और अतिक्रमणों को तोडऩे की योजना तो पहले ही बन गई थी तो क्या वजह रही कि जब तक जिला कलेक्टर के पास कार्यभार था, तब उन्होंने अंजाम की दिशा में कदम क्यों नहीं उठाया? भगत के आते ही कार्यवाही की याद कैसे आ गई? कहीं ऐसा तो नहीं कि अधिकारी ये सोच रहे थे कि वे तो भगत की आड़ लेकर जनता के आक्रोष से बच जाएंगे? हालांकि हुआ उलटा। संयोग से गुस्से का शिकार विशेषाधिकारी प्रिया भार्गव को होना पड़ा।
यदि भगत की जानकारी के बिना ही अतिक्रमण हटाए गए तो यह उनके लिए बेहद शर्मनाक है। यह स्थिति नगर निगम में मेयर कमल बाकोलिया व प्रशासन के बीच बिगड़ी ट्यूनिंग की याद दिलाती है। कहीं ऐसा तो नहीं कि प्रशासनिक अधिकारी भगत को भी नहीं गांठ रहे हैं? इससे भगत की प्रशासनिक क्षमता पर सवाल उठते हैं।
उधर मामले की ज्यादा दिलचस्प बनाया शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता ने। उन्होंने अपनी पार्टी की सरकार और कांग्रेस के न्यास अध्यक्ष के रहते तोडफ़ोड़ की जांच के लिए कमेटी बना कर यह साबित कर दिया कि वे भगत को नीचा दिखाना चाहते हैं। यह कह कर कि अतिक्रमण हटाना न्यास के कार्यक्षेत्र में है और वे इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं करेंगे, पिंड छुड़ा सकते थे, मगर उन्होंने जांच की पहल कर यह साबित करने की कोशिश की वे जनता के ज्यादा हमदर्द हैं। अपनी सरकार के खिलाफ ही कदम उठाने की बेवकूफी से यह संदेह भी होता है कि कहीं वे अपने उग्रवादी व अति उत्साही सलाहकारों के चक्कर में तो नहीं आ गए? बहरहाल बताया ये जा रहा है कि जैसे ही बवाल उठा तो पायलट ने उनकी क्लास ले डाली। दरअसल वे भगत व बाकोलिया के साथ दिल्ली गए तो आगामी मेगा हैल्थ कैंप की तैयारियों के सिलसिले में थे, मगर वहां पायलट की डांट खा बैठे। इसका परिणाम ये हुआ कि अजमेर आने के बाद उनका सुर बदल गया और वे भगत के नेतृत्व में पीडि़तों की सुध लेेने की बात करने लगे।
कांग्रेसी नेताओं में तालमेल की कमी का भाजपा विधायक श्रीमती अनिता भदेल ने जम कर फायदा उठाया। उनका निशाना ही ये था कि अगर कार्यवाही जायज थी तो कांग्रेस को जांच कमेटी क्यों बनानी पड़ी? अर्थात गलती का अहसास कांग्रेस को भी है। रहा सवाल विशेषाधिकारी प्रिया भार्गव के साथ बदसलूकी और उसके कारण उनके खिलाफ दर्ज मुकदमे का तो मौके के वीडियो फुटेज साफ दर्शाते हैं कि प्रदर्शन के दौरान उग्र हुए पीडि़त उनके नियंत्रण में ही नहीं रहे। वे हक्की बक्की रह गईं। प्रिया भार्गव के बाल खींचने की कोशिश करने वाली महिला को काबू में करने में उन्हें भारी मशक्कत करनी पड़ी। हकीकत ये है श्रीमती भदेल से कहीं ज्यादा नेतागिरी गणपत सिंह रावत कर रहे थे और उत्तेजना उन्होंने ही फैलाई। मगर जो कुछ हुआ, उसकी नैतिक जिम्मेदारी से वे नहीं बच सकतीं। हां, प्रदर्शन का नेतृत्व करके उन्हें अपनी बुझती राजनीति को चमकाने का मौका जरूर मिल गया। उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज होने के बाद पूरी भाजपा भी उनके समर्थन में आ खड़ी हुई। हालांकि भाजपा नेताओं ने यह कहना पूरी तरह से झूठ ही है कि प्रदर्शन के दौरान न्यास कार्यालय में किसी भी प्रकार की अभद्रता नहीं की गई थी और न्यास प्रशासन ने दुराग्रह पूर्वक यह मुकदमा दर्ज कराया है। सच्चाई ये है कि प्रिया भार्गव के बाल नुचने में चंद लम्हों का फासला रह गया था। उन्हें भद्दी-भद्दी गालियां भी बकी गईं। आशियाना उजडऩे से दु:खी पीडि़तों का गुस्सा जायज भले ही ठहराया जाए, मगर जो कुछ हुआ वह कानून-व्यवस्था के नाम पर सवाल तो खड़ा करता ही है। इसमें पुलिस की निष्क्रियता साफ तौर पर देखी जा सकती है। ऐसे में राजस्थान प्रशासनिक सेवा परिषद (अजमेर इकाई) गुस्सा गलत नहीं माना जा सकता। उधर जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष किशन गुर्जर का मामले में फच्चर डाल कर अनिता भदेल की पैरवी करना जरूरत समझ में नहीं आया कि उन्हें बैठे-बैठे क्या सूझी? ऐसे में अगर राजस्थान प्रदेश कांग्रेस विधि विभाग के प्रदेश महासचिव प्रियदर्शी भटनागर को लंबी गुमनामी के बाद प्रशासन की पैरवी, भदेल के खिलाफ कार्यवाही की मांग व गुर्जर के बयान का विरोध करने की सूझी तो ये उनकी सेहत के लिए ठीक ही है।
हां, इतना जरूर सही है कि न्यास प्रशासन ने कोई वैकल्पिक व्यवस्था किए बिना ही भीषण सर्दी में घर उजाड़ दिए। एक ओर सरकार बड़ी भारी संवेदनशीलता दिखाते हुए गरीबों को बसाने की योजना बनाती है तो दूसरी ओर उन्हें उजाडऩे समय क्रूर क्यों हो जाती है। सवाल ये भी उठता है कि जब अतिक्रमण हो रहा था, तब प्रशासन क्यों घोड़े बेच कर सो रहा था? अब भू माफियाओं के खिलाफ कार्यवाही की बात की जा रही है, मगर उन अधिकारियों व कर्मचारियों का क्या होगा, जिनके रहते सरकारी भूमि का अवैध बेचान हो गया?

शनिवार, 28 जनवरी 2012

वेब न्यूज पोर्टल अजमेरनामा लोकार्पित




इंटरनेट पर नए न्यूज पोर्टल अजमेरनामा का लोकार्पण शनिवार को मसाणिया भैरवधाम, राजगढ़ के प्रमुख उपासक श्री चंपालाल जी महाराज ने स्वामी कॉम्पलैक्स में आयोजित एक समारोह में कंप्यूटर का बटन दबा कर किया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि इस पोर्टल के जरिए अजमेर को पूरे विश्व में विशिष्ट पहचान मिलेगी और विदेश में बैठे अजमेर के प्रेमी यहां की खबरों से तुरंत वाकिफ हो सकेंगे।
समारोह के विशिष्टि अतिथि पूर्व सांसद श्री औंकारसिंह लखावत ने कहा कि ऐतिहासिक नगरी की शुरू से अलग पहचान रही है और इस पोर्टल के माध्यम से इसमें और इजाफा होगा। उन्होंने राजनीतिक क्षेत्र में काम करने वालों को चेताया कि उन्हें अब अपने आपको पारदर्शी बना लेना चाहिए, वरना जिस तेज गति से मीडिया अब इलैक्टोनिक संचार माध्यम से आगे बढ़ रहा है और इंटरनेट के जरिए मोबाइल फोन तक पहुंच चुका है, सार्वजनिक जीवन में की गई हर गलती पकड़ ली जाएगी। नगर निगम के मेयर श्री कमल बाकोलिया ने कहा कि इस पोर्टल से अजमेर वासियों में इंटरनेट के बारे जागृति आएगी और अजमेर के विकास में इसका बेशक योगदान रहेगा। नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष श्री नरेन शहाणी भगत ने कहा कि पोर्टल के जरिए दूर विदेश में बैठे अजमेर वासी को यहां की खबरें आसनी से मिल सकेंगी। इससे अजमेर वासी एक दूसरे के और नजदीक आएंगे। विधायक श्रीमती अनिता भदेल ने कहा कि तेजी से बदलती दुनिया के कदम मिलाते हुए आरंभ हुए इस पोर्टल से अजमेर का नाम रौशन होगा। मुख्य वक्ता के रूप में स्वामी समूह के एमडी श्री कंवलप्रकाश ने मीडिया के बदलते स्वरूप पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि यूं तो ख्वाजा साहब की दरगाह व तीर्थराज पुष्कर की बदौलत अजमेर सांप्रदायिक मिसाल के रूप में गिना जाता है, लेकिन अजमेरनामा पोर्टल इंटरनेट की दुनिया में जल्द ही अजमेर को विशेष पहचान दिलाने में कामयाब होगा।
पोर्टल के एडिटोरियल हैड गिरधर तेजवानी ने स्वागत भाषण देते हुए कहा कि अजमेर की राजनीतिक, प्रशासनिक व सामाजिक-सांस्कृतिक गतिविधियों पर केन्द्रित इस पोर्टल में न केवल अजमेर के ताजा-तरीन समाचार होंगे, अपितु विश्व, राष्ट्र व प्रदेश के प्रमुख घटनाक्रम के साथ खेल, व्यापार, मनोरंजन, ज्योतिष, स्वास्थ्य और साइंस एंड टैक्नोलॉजी की नवीनतम जानकारी भी उपलब्ध रहेगी। इस पर प्रमुख समाचारों की वीडियो क्लीपिंग भी देखी जा सकेंगी। जल्द ही इसी पोर्टल के जरिए अजमेर एट ए ग्लांस पुस्तक का पोर्टल भी देखा जा सकेगा। इसके अतिरिक्त फोन कॉल पर विभिन्न प्रकार की सेवाएं शुरू करना भी प्रस्तावित है।
इस मौके पर एनडीटवी के अजमेर रीजन हैड मोइन खान ने पोर्टल के फीचर का लाइव शो किया। श्री चंपालाल जी महाराज ने पोर्टल को डवलप व डिजायन करने वाले टैक्नोक्रेसी के मुबारक खान को माल्यार्पण कर आशीर्वाद दिया। समारोह के आरंभ में सभी अतिथियों ने मां सरस्वती के चित्र पर दीप प्रज्ज्वलित कर माल्यार्पण किया। समारोह का संचालन श्रीमती माधवी स्टीफन ने किया।

मंगलवार, 17 जनवरी 2012

जेल में कायम है अपराधियों का राज?


हाल ही अजमेर सेंट्रल जेल में कैदियों ने जब मोबाइल के जरिए फेसबुक पर फोटो लगाए तो एक बार फिर यह स्थापित हो गया कि लाख दावों के बाद भी जेल में अपराधियों के मोबाइल का उपयोग करने पर कोई रोक नहीं लगाई जा सकी है। इससे पूर्व भी यह तथ्य खुल कर सामने आया था कि जेल में कैद अनेक अपराधी वहीं से अपनी गेंग का संचालन करते हुए प्रदेशभर में अपराध कारित करवा रहे हैं। इसके लिए बाकायदा जेल से ही मोबाइल का उपयोग करते हैं। स्वयं जेल राज्य मंत्री रामकिशोर सैनी ने भी स्वीकार किया कि जेल में कैदी मोबाइल का उपयोग कर रहे हैं और उस पर अंकुश के लिए प्रदेश की प्रमुख जेलों में जैमर लगाए जाएंगे, मगर आज तक कोई प्रभावी कार्यवाही नहीं हो पाई है।
अहम सवाल ये है कि आखिर जेलों में कैदियों के पास मोबाइल आ कैसे जाते हैं? क्या जब भी जांच के दौरान किसी कैदी के पास मोबाइल मिला है तो उस मामले में इस बात की जांच की गई है कि आखिर किसी जेल कर्मचारी की लापरवाही या मिलीभगत से मोबाइल कैदी तक पहुंचा है? क्या ऐसे कर्मचारियों को कभी दंडित किया गया है? कदाचित इसका जवाब फौरी विभागीय कार्यवाही करने के रूप में हो सकता है, मगर उसके बाद भी यदि यह गोरखधंधा जारी है तो इसका सीधा सा जवाब ये है कि जेल के कर्मचारियों की मिलीभगत से ही ऐसा हो रहा है। मोबाइल क्या, छोटे मोटे हथियार और मादक पदार्थ तक औचक निरीक्षणों में पाए जा चुके हैं। इससे यह साफ है कि सरकार इस मामले में गंभीर नहीं है। जेल के कर्मचारी अपराधियों से मिलीभगत करते हैं, मगर सरकार उनके खिलाफ कभी प्रभावी कार्यवाही नहीं कर पाई, इसी का परिणाम है कि जेल कर्मचारियों के हौसले इतने बुलंद हैं।
कितना अफसोस की बात है जब पुलिस अधिकारी किसी अपराधी गेंग का कारनामा उजागर करती है तो खुद यह स्वीकार करती है कि जेल में बंद अमुक माफिया के इशारे पर उसकी गेंग ने अपराध कारित किया है। यानि जेल में बंद बड़े अपराधी अपनी गेंग से सीधे संपर्क में हैं और इसके लिए मोबाइल को उपयोग किया जा रहा है। क्या यह कम अफसोसनाक बात नहीं है कि जेल मंत्री यह कहते हैं कि मोबाइल के उपयोग पर अंकुश लगाने के लिए प्रमुख जेलों में जैमर लगाए जा रहे हैं, यानि अपराधियों के पास मोबाइल पहुंचने को रोकने में नाकाम रहने को वे स्वयं स्वीकार कर रहे हैं। उन्हें अपने जेल कर्मचारियों पर भरोसा ही नहीं है। एक अर्थ में तो वे यह स्वीकार कर ही रहे हैं कि जेल कर्मचारी अपराधियों से मिलीभगत करने से बाज नहीं आएंगे। सवाल ये है कि यदि जेल कर्मचारी इतने ही बेखौफ हैं तो सरकार यदि जैमर लगा भी देगी तो क्या वे जरूरत पडऩे पर जैमर निष्क्रिय नहीं कर देंगे। तब जेल मंत्री क्या करेंगे?
जाहिर तौर पर यह अत्यंत शर्मनाक बात है। मोबाइल क्या, अंदर मादक पदार्थ, बीड़ी-सिगरेट और गुटखा इत्यादि तक आसानी से उपलब्ध रहता है। कई बार यह शिकायत तक सामने आई है कि कैदी को जरूरी सामान अंदर तभी पहुंचाया जाता है, जबकि नकद रिश्वत दी जाती है। जेल कर्मचारी रिश्वत के रूप में सिगरेट-गुटखे इत्यादि तक ले लेते हैं।
आइये सिक्के के एक अन्य पहलु पर नजर डालें। सरकारी तंत्र मोबाइलों के जेल में कैदियों तक पहुंचने को तो रोक नहीं पाई, जबकि चुनाव की मतगणना के वक्त चुनाव आयोग के निर्देश पर पत्रकारों को मोबाइल मतगणना स्थल पर नहीं ले जाने देने के लिए सख्ती बरतती है, जबकि उनके पास मोबाइल होने से किसी भी प्रकार का कोई नुकसान होने की आशंका नहीं है। रहा सवाल उनके मोबाइल से चुनाव परिणाम की ताजा सूचना देने का तो जाहिर सी बात ये है कि पत्रकारों को भीतर प्रवेश ही इसलिए दिया जाता है कि वे अपने अखबार के दफ्तर अथवा न्यूज चैनल को तुरंत ताजा जानकारी दे सकें। कितनी हास्यास्पद बात है कि मतगणना स्थल पर तो मोबाइल के प्रवेश पर रोक को कड़ाई से लागू किया जाता है, लेकिन जहां निश्चित रूप से मोबाइल का दुरुपयोग होने का खतरा है, जहां से आपराधिक जगत की गतिविधियों में और इजाफा हो सकता है, जेल के अंदर बैठे-बैठे अपराध कारित किए जा सकते हैं, वहां पर उसके प्रवेश पर रोक के बावजूद नहीं रोक पा रही।
फाइल फोटो:-
अजमेर सेंट्रल जेल में कैदियों से बरामद मोबाइल के साथ पूर्व जेल अधीक्षक श्रीमती प्रीता भार्गव
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सोमवार, 16 जनवरी 2012

भाजपा में नहीं थम रहे विवाद


दो विधायकों प्रो. वासुदेव देवनानी व श्रीमती अनिता भदेल के गुटों में बंटी अजमेर शहर भाजपा के अध्यक्ष पद का विवाद तो जैसे तैसे निपटा कर पूर्व सांसद प्रो. रासासिंह रावत पर सहमति बना ली गई, मगर संगठन के मोर्चों को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। पहले शहर भाजपा युवा मोर्चा का अध्यक्ष देवेन्द्र सिंह शेखावत को बनाने पर विवाद हुआ। फिर शहर भाजपा महिला मोर्चा की अध्यक्ष को लेकर हुई खींचतान के बाद जयंती तिवारी को नियुक्त किया गया और अब किसान मोर्चा के जिला अध्यक्ष पद विवाद हो गया है।
किसान मोर्चा का विवाद मूलत: देहात भाजपा में प्रो. जाट और उनके विरोधियों के बीच वर्चस्व को लेकर है। जाट जिले में अपना दबदबा बनाए रखना चाहते हैं। स्वाभाविक भी है। वे जिस मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष हैं, भला उसमें कम से कम अपने जिले में तो मन मुताबिक ही नियुक्ति करना चाहेंगे। हुआ असल में यूं कि एक ओर जहां प्रो. सांवरलाल जाट ने पूर्व जिला उप प्रमुख पवन अजमेरा को कार्यवाहक अध्यक्ष बनाया, वहीं भाजपा देहात जिला अध्यक्ष नवीन शर्मा ने जिला परिषद सदस्य ओम प्रकाश भडाणा को अध्यक्ष घोषित कर दिया। दरअसल जाट कुछ असमंजस में थे, इस कारण नियुक्ति को टालते हुए अजमेरा को कार्यवाहक की जिम्मेदारी दे दी। उधर उनकी इस ढि़लाई का फायदा उठाते हुए दूसरे गुट ने पैनल में शामिल भडाणा को अध्यक्ष घोषित करवा दिया। ऐसा होते ही बवाल हो गया। प्रो.जाट के आपत्ति करने पर मोर्चा के प्रदेश महामंत्री नंद लाल बैरवा ने भडाणा की नियुक्ति को निरस्त कर दिया। इस सिलसिले में देहात जिला अध्यक्ष शर्मा का कहना है कि भडाणा की नियुक्ति सही है और मोर्चा के किसी पदाधिकारी को नियुक्ति निरस्त करने का कोई अधिकार नहीं है।
यहां उल्लेखनीय है कि शहर भाजपा युवा मोर्चा के मामले में देवनानी गुट के नितेष आत्रे व भदेल गुट के गौरव टांक को हाशिये पर रख कर देवेन्द्र सिंह शेखावत को अध्यक्ष बना दिया गया। इस पर देवनानी गुट ने खूब हंगामा मचाया। आज भी मोर्चा दो गुटों में ही बंटा हुआ है। महिला मोर्चा के मामले में गुटबाजी उभरी, इस पर देवनानी गुट की पार्षद श्रीमती भारती श्रीवास्तव और भदेल गुट की श्रीमती हेमलता शर्मा को दरकिनार कर जयंती तिवारी के नाम पर ठप्पा लगा दिया गया है। हालांकि इसको लेकर कोई बड़ा विवाद नहीं हुआ, मगर वहां भी आग तो अंदर ही अंदर सुलग रही है। कुल मिला कर भाजपा गुटबाजी से त्रस्त है और आगामी विधानसभा चुनाव के नजदीक आने पर और बढ़ सकती है।

रविवार, 15 जनवरी 2012

पुलिस को केवल मंथली की चिंता?

अजमेर के हितों के लिए गठित अजमेर फोरम की पहल पर बाजार के व्यापारियों ने एकजुटता से एक ओर जहां शहर के सबसे व्यस्ततम बाजार मदारगेट की बिगड़ी यातायात व्यवस्था को सुधारने का बरसों पुराना सपना साकार रूप ले रहा है, वहीं पुलिस की अरुचि के चलते नो वेंडर जोन घोषित इस इलाके से ठेलों को हटाने में पुलिस कोई रुचि नहीं ले रही है।
सब जानते हैं कि अजमेर शहर में विस्फोटक स्थिति तक पहुंच चुकी यातायात समस्या पर अनेक बार सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर चिन्ता जाहिर की जाती रही है। प्रयास भी होते रहे हैं, मगर इस दिशा में एक भी ठोस कदम नहीं उठाया जा सका। जब भी कोशिश की गई, कोई न कोई बाधा उत्पन्न हो गई। ऐसे में सुव्यवस्थित यातायात व पार्किंग को लेकर शहर के नागरिक, नेता और सरकार तीनों के बीच समन्वय सेतु बनाने की दृष्टि से अजमेर फोरम ने फिर एक बार पहल की और व्यापारियों और नगर प्रशासन के बीच संवाद स्थापित किया। इसी सिलसिले में एक मीटिंग का भी आयोजन किया गया, जिसमें मदारगेट के चारों व्यापारिक संघों के प्रतिनिधि, नगर निगम के महापौर कमल बाकोलिया व सीईओ सी. आर. मीणा, नगर सुधार न्यास अध्यक्ष नरेन शहानी भगत, भाजपा विधायक श्रीमती अनिता भदेल, शहर जिला भाजपा अध्यक्ष प्रो. रासासिंह रावत, पुलिस अधीक्षक राजेश मीणा, टै्रफिक के पुलिस उप अधीक्षक जयसिंह राठौड़ सहित प्रमुख राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि की मौजूदगी में निर्णय किया गया कि व्यापारी स्वयं अपने अस्थाई अतिक्रमण हटाने और दायरे में रहने को तैयार हैं। व्यापारिक संगठनों के प्रतिनिधियों भगवानदास चंदीराम, चिमनदास, देवेश गुप्ता, मोती जेठानी व शैलेन्द्र अग्रवाल ने यातायात संबंधी परेशानियों का उल्लेख करते हुए कहा कि प्रशासन नो वेंडर जोन घोषित मदारगेट से हाथ ठेलों को अन्यत्र स्थानांतरित करे। सभी का कहना था कि वे तो पहल करके प्रशासन का सहयोग करने को तैयार हैं, मगर यह तभी कामयाब होगा, जबकि प्रशासन भी इच्छा शक्ति दिखाए। शहर भाजपा अध्यक्ष प्रो. रासासिंह रावत, शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता, नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष नरेन शहाणी भगत व नगर निगम के महापौर कमल बाकोलिया ने इस पर सहमति प्रकट की। पुलिस अधीक्षक राजेश मीणा व यातायात पुलिस उप अधीक्षक जयसिंह राठौड़ और नगर निगम के सीईओ सी. आर. मीणा ने इस पहल को अनूठा बताते हुए अपनी ओर से हरसंभव सहयोग का आश्वासन दिया।
मीटिंग के बाद व्यापारियों ने पहल कर अपने अतिक्रमण हटा लिए और नए निर्धारित पार्किंग स्थलों पर अपने वाहन खड़े करना शुरू कर दिया। मदार गेट चौक पर फल बेचने वाली महिलाओं को अपने निर्धारित स्थान पर बैठाने के लिए नगर निगम ने लोहे का जंगला लगाया दिया है। बीएसएनएल ने भी अपने पोल हटा लिए हैं। डिस्कॉम ने भी पोल हटाने की कार्यवाही शुरू कर दी है। इससे पूरा मार्केट खुला-खुला दिखने लगा है। यातायात भी काफी सुगम हो गया है। मगर पुलिस अपनी भूमिका निभाने में आनाकानी सी कर रही है। वह नो वेंडर जोन घोषित इस क्षेत्र से ठेलों को हटाने की दिशा में कोई कदम नहीं उठा रही।
सवाल उठता है कि जब व्यापारी मदारगेट की यातायात व्यवस्था को सुधारने की पहल कर चुके हैं, जनप्रतिनिधि भी सहयोग करने को तैयार हैं तो आखिर क्या वजह है कि पुलिस इसमें कोई रुचि नहीं ले रही? असल में यातायात सलाहकार समिति के निर्णय के मुताबिक पुलिस को खुद ही ठेलों को हटाना चाहिए, मगर वह व्यापारियों की अच्छी पहल के बाद भी हाथ पर हाथ धरे बैठी है। कुछ सूत्रों का कहना है कि पुलिस के सिपाही ठेलों से मंथली वसूल करती है। यदि वह ठेलों को हटाती है तो उसकी मंथली मारी जाती है। देखना ये है कि पुलिस कप्तान राजेश मीणा की मौजूदगी में हुए निर्णय पर अमल में बाधक बन रहे पुलिस कर्मियों को सख्ती का आदेश देते हैं या फिर वे भी चुप्पी साध लेते हैं।

बुधवार, 11 जनवरी 2012

कब लगेगी नेहरू अस्पताल में सीटी स्केन मशीन?

अजमेर के हितों के लिए गठित अजमेर फोरम की पहल और सभी जनप्रतिनिधियों के सहयोग संभाग के सबसे बड़े अस्पताल जवाहर लाल नेहरू चिकित्सालय में सीटी स्केन मशीन लगाने को लेकर आ रही अड़चन तो दूर कर ली गई, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि अस्पताल प्रशासन इसमें रुचि नहीं ले रहा है। सच्चाई क्या है ये तो भगवान ही जाने, मगर चर्चा है कि ऐसा कमीशन मारे जाने की वजह से हो रहा है। ऐसे में यह सवाल खड़ा होता है कि आखिर कब लगेगी नेहरू अस्पताल में सीटी स्केन मशीन? और लगेगी भी या नहीं?
ज्ञातव्य है कि पिछले दो साल से इस मसले पर कई अड़चनें आ चुकी हैं। दरअसल पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत जवाहर लाल नेहरू अस्पताल में दो साल पहले सीटी स्केन और एमआरआई मशीनें लगाने का निर्णय हुआ था। इस पर मेडिकल कॉलेज की ओर से टेंडर निकाले गए थे। चार फर्मों में से कम दरों के आधार पर जोधपुर के सत्यम सेंटर का चयन हुआ, लेकिन मशीनें लगने से पहले ही कुछ तकनीकी कारणों से मेडिकल कॉलेज प्रबंधन की ओर से अचानक टेंडर को निरस्त कर दिया गया। इस निर्णय के खिलाफ सत्यम सेंटर कोर्ट में चला गया। नतीजतन मरीजों को भारी परेशानी होती रही। इस पर अजमेर फोरम की पहल पर दो माह पहले राज्य मंत्री नसीम अख्तर इंसाफ, कांग्रेस शहर अध्यक्ष महेंद्रसिंह रलावता, भाजपा शहर अध्यक्ष रासासिंह रावत, विधायक द्वय वासुदेव देवनानी और श्रीमती अनिता भदेल, नगर निगम महापौर कमल बाकोलिया, फोरम कार्यकर्ता रणजीत मलिक व पूर्व पार्षद समीर शर्मा सहित अन्य जनप्रतिनिधियों ने इस गतिरोध को दूर करने के लिए राजनीति मतभेदों से ऊपर उठकर प्रयास किया। सत्यम सेंटर को कोर्ट से मुकदमा वापस लेने के लिए तैयार किया गया। संभागीय आयुक्त अतुल शर्मा की पहल पर मेडिकल रिलीफ सोसायटी की बैठक में तय हुआ कि मेडिकल कॉलेज की ओर से ट्रोमा सेंटर में 16 स्लाइस की सीटी स्केन मशीन लगाई जाएगी। वहीं सत्यम सेंटर नेहरू अस्पताल में 16 स्लाइस की मशीन लगाएगा। सत्यम सेंटर को मशीनें लगाने के लिए अस्पताल में स्थान और विद्युत कनैक्शन उपलब्ध कराएगा।
इस मामले में विवाद उस वक्त फिर उठा गया, जब सत्यम सेंटर की ओर से मुकदमा वापस ले लिया गया, लेकिन इधर अस्पताल प्रशासन ने कुछ तकनीकी अड़चनों का हवाला देते हुए सत्यम सेंटर को वर्क ऑर्डर देने में असमर्थता जताई। इस पर फोरम की ओर से शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ और उप शासन सचिव(चिकित्सा) से संपर्क किया गया। उन्होंने हस्तक्षेप करते हुए मामला निपटाने की दिशा में अहम भूमिका निभाई। उपशासन सचिव चिकित्सा ने मेडिकल कॉलेज प्राचार्य को पत्र लिखकर अग्रिम कार्रवाई करने के निर्देश जारी कर दिए हैं। जाहिर है कि अब मामला पूरी तरह से सुलझ गया है मगर जानकारी यही है कि अस्पताल प्रशासन अब भी रुचि नहीं ले रहा है।
उल्लेखनीय है कि सीटी स्केन मशीन के अभाव में मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों की ओर भागना पड़ता है अथवा भारी परेशानी उठा कर जयपुर कूच करना पड़ता है। पिछले दिनों जब अजमेर के पुलिस कप्तान राजेश मीणा दुर्घटना का शिकार हुए थे तो उन्हें भी यहां सीटी स्केन मशीन सहित अन्य सुपर स्पेशियलिटी सुविधाओं के अभाव में जयपुर रैफर करना पड़ा था। अफसोस की एक आईएएस अधिकारी को इतनी परेशानी हुई, उसके बाद भी न तो प्रशासन हरकत में आया और न ही सरकार। ऐसे में यही कहा जा सकता है कि नेहरू अस्पताल भगवान भरोसे ही चल रहा है।

रविवार, 1 जनवरी 2012

आधी अधूरी है यूआईटी की वेबसाइट



अजमेरनगर सुधार न्यास की वेबसाइट लंबे समय से आधी-अधूरी पड़ी है। इस ओर न तो न्यास के जिम्मेदार अधिकारियों ने ध्यान दिया है और न ही नए सदर नरेन शहाणी भगत की नजर पड़ी है
देखिए उनकी बानगी:-
1. न्यास का वार्षिक बजट: वर्ष 2007-08 का तो उपलब्ध है, आगे का नहीं।
2. नियमन के सम्बन्ध में नवीनतम सक्र्यूलर, रेट, नियमन शुल्क, विकास शुल्क, एकमुश्त लीज मनी आदि के जो प्रस्ताव न्यास की बैठक में पारित किए गए, उनका विवरण उपलब्ध नहीं है।
3. वेबसाइट पर गत दो तीन वर्ष की प्रोसीडिंग उपलब्ध होनी चाहिए, परन्तु किसी भी मीटिंग की प्रोसीडिंग उपलब्ध नहीं है।
4. न्यास की विभिन्न शाखाओं में कार्यरत अधिकारी व कर्मचारियों का विवरण: न्यास की विभिन्न शाखाओं में कार्यरत अधिकारी व कर्मचारियों के नाम मय फोन व मोबाइल नम्बर उपलब्ध होने चाहिए, मगर कुछ के उपलब्ध नहीं हैं। यहां तक कि शाखाओं की सूची तक अधूरी है। जनता को यह मालूम होना चाहिए कि किस विभाग में कितने व कौन- कौन कर्मचारी कार्य कर रहे हैं, यह भी जानकारी दी जानी चाहिए कि कौंनसा कर्मचारी किस शाखा में कब से कार्यरत है।
5. ट्रस्ट एवं ट्रस्टी बाबत कॉलम के अन्तर्गत सूचना दी गई है कि वर्तमान में इस कॉलम हेतु कोई सूचना नहीं है।
6. वेबसाइट पर यह जानकारी नहीं दी गई है कि न्यास ने अब तक किन-किन योजनाओं पर कार्य किया है तथा वे कब पूरी हुईं। उन योजनाओं में से किन योजनाओं को नगर निगम को हस्तांंतरित कर दिया गया।