गुरुवार, 31 मार्च 2011

जयपाल यूआईटी अध्यक्ष, भाटी शहर कांग्रेस अध्यक्ष होंगे

डा. बाहेती, रलावता व भगत ने जताया रोष
अजमेर। तकरीबन सवा दो साल बाद आखिरकार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपना पिटारा खोल ही दिया। गुरुवार को अजमेर प्रवास के दौरान उन्होंने मौजूदा शहर अध्यक्ष वरिष्ठ वकील जसराज जयपाल को नगर सुधार न्यास का अध्यक्ष बनाए जाने के संकेत दे दिए। साथ ही पूर्व उप मंत्री ललित भाटी को शहर कांग्रेस की कमान संभालने को तैयार रहने को कहा है।
सर्किट हाउस में गहलोत से मिलने गए कांग्रेसियों के प्रतिनिधिमंडल से वार्ता के दौरान उन्होंने कहा कि जयपाल ने लंबे समय से पार्टी की सेवा की है, अत: सरकार ने उन्हें इनाम के बतौर नगर सुधार न्यास का अध्यक्ष बनाने का निश्चय किया है। इस पर वहां मौजूद जयपाल समर्थकों में खुशी की लहर दौड़ गई। इसी अवसर पर वहां उपस्थित पूर्व उपमंत्री ललित भाटी की ओर मुखातिब होते हुए उन्होंने कहा कि जयपाल की गैर मौजूदगी में उन्हें शहर कांग्रेस का संचालन करना है। हालांकि भाटी ने कोई प्रतिक्रिया तो जाहिर नहीं की मगर वहां उपस्थित कांग्रेसजन में इस बात की खुशी थी कि बड़े दिन बाद संगठन का जयपाल से पिंड छूटा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाटी को फिलहाल पार्टी की ही सेवा करने का मौका दिया गया है, ताकि वे पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी से की गई बगावत का प्रायश्चित कर सकें। उसी के बाद उन्हें कोई सरकारी राजनीतिक पद देने पर विचार किया जाएगा।
गहलोत की ओर से किए गए इस खुलासे से सर्वाधिक निराशा पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती को हुई है। मुख्यमंत्री के सर्वाधिक करीब होने के कारण उन्हें पूरी उम्मीद थी कि उनके पिछले सफल कार्यकाल के मद्देनजर उन्हें फिर से न्यास अध्यक्ष बनाया जाएगा। हालांकि उन्होंने अपने रोष का इजहार गहलोत के सामने तो नहीं किया, लेकिन जैसे ही गहलोत ने जयपाल व भाटी को नई नियुक्तियां देने के संकेत दिए वे पैर पटकते हुए वहां से रवाना हो गए और जाते-जाते गहलोत के पीए के पास अपना एतराज दर्ज करवा गए कि इतने वर्षों तक गहलोत की सेवा करने के बाद अब वे किस मुंह से शहर वासियों के सामने जाएंगे। उन्होंने कहा कि लोग उन्हें गहलोत का खास होने के कारण ही तवज्जो देते थे, लेकिन अब उन्हें कौन पूछेगा। उन्होंने विरोध में बीस सूत्री कार्यक्रम क्रियान्वयन समिति से भी इस्तीफा देने की चेतावनी दी, जिस पद का सरकारी बैठकों में चाय-नाश्ते के अलावा कोई फायदा नहीं है।
न्यास सदर बनने को सर्वाधिक आतुर महेन्द्र सिंह रलावता ने तो मुख्यमंत्री के सामने ही अपना विरोध दर्ज करवाया कि पहले उनका अजमेर उत्तर का टिकट यह कह कर काटा गया कि बाद में सरकार आने पर उन्हें कोई पद दे दिया जाएगा, लेकिन मौका आने पर ऐसे व्यक्ति को अध्यक्ष बनाया जा रहा है, जो कि वर्षों से सत्ता का सुख भोग रहे हैं। उन्होंने वहीं मौजूद केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट को भी उलाहना दिया कि पूरा शहर उन्हें पायलट का खास होने के कारण यही मान रहा था कि वे ही न्यास सदर बनेंगे, मगर अब लोग यह कहने से नहीं चूकेंगे कि पायलट से उनकी नजदीकी अफवाह मात्र थी। रलावता ने कहा कि एक तो अजमेर की एक सीट पहले से ही एससी केलिए रिजर्व है, दूसरी पर सिंधियों ने कब्जा जमा रखा है। नगर निगम महापौर भी एससी के लिए रिजर्व हो गया। बाकी बचा न्यास सदर का पद, वह भी एससी को ही देंगे तो ऐसे में वे क्या झक मारने के लिए राजनीति कर रहे हैं। उन्होंने अपने आका मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के जरिए हाईकमान को शिकायत दर्ज करवाने की भी चेतावनी दी।
इसी प्रकार पिछले चुनाव में टिकट कटने के बाद खफा चल रहे नरेन शहाणी भगत ने भी रोष जताया कि उन्हें लगातार बेवकूफ बनाया जा रहा है। पहले टिकट काट कर डॉ. बाहेती को दे दिया गया और अब न्यास सदर पद से भी वंचित किया जा रहा है। उन्होंने दु:ख भरे लहजे में कहा कि वे वर्षों से पार्टी के लिए पैसा पानी की तरह बहा रहे हैं, मगर पार्टी ने आखिरकार ठेंगा दिखा दिया। ऐसे में वे राजनीति से संन्यास ले लेंगे और अपने बे्रड-बिस्किट का धंधा संभालेंगे। बाद में मीडिया कर्मियों से चर्चा करते हुए उन्होंने आशंका जाहिर की कि पार्टी की बगावत कर चुके एडवोकेट अशोक मटाई की झूठी शिकायतों की वजह से ही उनका नाम काटा गया है। वे इसकी शिकायत अपने आका पूर्व सांसद सुरेश केसवानी के जरिए सोनिया गांधी से करेंगे। उन्होंने कहा कि यदि पार्टी ने इसी प्रकार सिंधियों को नजरअंदाज करना जारी रखा तो उसे उसका खामियाजा भुगतना होगा।
पत्रकारों ने न्यास सदर पद के लिए एडी-चोटी का जोर लगा रहे अन्य दावेदारों से उनकी प्रतिक्रिया जानने की कोशिश की तो उनमें से दीपक हासानी ने कहा कि उन्हें गहलोत के पुत्र वैभव से दोस्ती का खामियाजा भुगतना पड़ गया। न जाने किस नासपिटे ने झूठा पर्चा छपवा कर बंटवा दिया और गहलोत ने खुद पर आंच न आने की खातिर उनको वंचित रख दिया। इसी प्रकार शहर कांग्रेस उपाध्यक्ष डॉ. सुरेश गर्ग ने कहा कि वे तो केवल इसी कारण न्यास सदर पद की दावेदारी कर रहे थे, ताकि नेगोसिएशन में उन्हें कोई और पद मिल जाए। वैसे उन्होंने उम्मीद जाहिर की कि पूर्व केन्द्रीय मंत्री शशि थरूर मित्रता के नाते उन्हें जरूर कोई न कोई पद दिलवा ही देंगे। अप्रैल फूल

केवल मंजू राजपाल के झाडू लगाने से कुछ नहीं होगा

अजमेर की जिला कलेक्टर श्रीमती मंजू राजपाल की पहल पर जिला प्रशासन ने राजस्थान दिवस पर सफाई का एक अनूठे तरीके से संदेश दिया। न केवल मंजू राजपाल ने झाडू लगाई, अपितु उनके साथी अफसरों, नगर निगम के महापौर कमल बाकोलिया ने भी उनका साथ दिया। जाहिर तौर पर इस अनूठी पहल की खबरें सुर्खियों में छपीं, मगर यह संदेश आमजन ने कितना आत्मसात किया, वह इसी आइटम के साथ छपे फोटो से पता लग रहा है, जिसमें मंजू राजपाल तो झाडू लगा रही हैं, जबकि उनके ठीक ऊपर दुकान को आगे बढ़ा कर अस्थाई अतिक्रमण किए दुकानदार बेशर्मी से बैठे हुएं हैं। उन्हें तनिक भी अहसास नहीं कि जिले की हाकिम खुद झाडू हाथ में लेकर खड़ी हैं, और वे आराम से हाथ पर हाथ धरे बैठे ताक रहे हैं, मानो कोई सफाई कर्मचारी सफाई कर्मचारी सफाई करने को आई है। उन्हें ये भी ख्याल नहीं कि झाडू लगाना कलेक्टर का काम नहीं है। वे तो संदेश दे रही हैं। आज अजमेर में हैं, कल कहीं और चली जाएंगी। वे तो इसी शहर में रहने वाले हैं। अव्वल तो दुकानदारों को खुद को उतर कर हाथ बंटाना चाहिए था। यदि इसमें उन्हें शर्म आ रही थी तो कम से कम दुकान से उतर कर एक महिला अफसर का आदर तो कर ही सकते थे। असल में यह अकेला फोटो ही काफी है, यह बताने को कि मंजू राजपाल का संदेश आम नागरिक तक कितना पहुंचा होगा।
वस्तुत: हमारी मानसिकता यही है कि हमने सफाई के काम को नगर निगम के जिम्मे, सफाई कर्मियों के जिम्मे छोड़ रखा है। माना कि सफाई करना आम आदमी का काम नहीं है, मगर शहर साफ-सुथरा रहे, इसमें मदद करना तो हमारा फर्ज है ही। यह सही है कि निगम में संसाधनों की कमी अथवा चंद निकम्मों के कारण शहर साफ-सुथरा नहीं रहता, मगर इसे इतना गंदा भी तो हम ही कर रहे हैं। अगर हम कूड़ा-कचरा सड़क पर अथवा नाली में न डालें तो कदाचित सफाई का आधे से ज्यादा काम खुद-ब-खुद हो जाए।
आम नागरिक ही क्यों, हमारे जनप्रतिनिधि भी सफाई के प्रति कितने जागरूक हैं, यह इसी से साबित हो जाता है कि जिला कलेक्टर ने नगर निगम के सभी पार्षदों को भी इस अभियान की शुरुआत में साथ देने का न्यौता दिया था, मगर शहर वासियों की सेवा करने के नाम पर वोट मांगने वाले अधिसंख्य पार्षद इसमें शरीक नहीं हुए। क्या कांग्रेस के, क्या भाजपा के। इसी से साबित हो रहा है कि महापौर बाकोलिया की पार्षदों पर कितनी पकड़ है। अरे, कम से कम अपनी पार्टी के पार्षदों को तो पाबंद कर ही सकते थे। उधर शहर के विकास में कंधे से कंधा मिला कर चलने की वादा करने वाले उप महापौर अजित सिंह राठौड़ भी नदारद रहे। ऐसे में एक क्या हजार मंजू राजपालें आ जाएं, हमें कोई नहीं सुधार सकता।
बहरहाल, जिला प्रशासन ने तो निगम के हिस्से का काम अपने हाथ में लेकर निगम की नाकामी को लानत दी है, ताकि उसे थोड़ी तो शर्म आए, मगर इस कार्यक्रम में शरीक न होने वालों ने तो सरासर आम जनता की अपेक्षाओं पर ही थप्पड़ जड़ दिया है। जब वे सफाई जैसा संदेश देने मात्र के कार्यक्रम में हिस्सा नहीं ले सकते तो उनसे इस अभागे शहर के विकास की क्या उम्मीद की जा सकती है? शेम, शेम, शेम।