शुक्रवार, 17 अगस्त 2012

आखिर ले ही लिया अंजुमनों ने नजराने का हिस्सा


पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी की ओर से दरगाह जियारत के दौरान पांच करोड़ का नजराना दिए जाने की घोषणा पर अपना हक जता कर विवाद करने वाली खादिमों की दोनों अंजुमनों ने अपना-अपना हिस्सा लेकर खुद ही विवाद को समाप्त कर दिया। न केवल उन्होंने पाकिस्तान के दिल्ली स्थित उच्चायुक्त सलमान बशीर के हाथों नजराने के चैक लिए, अपितु उनका इस्तकबाल भी किया। सलमान बशीर ने दरगाह कमेटी के सदर प्रोफेसर सोहेल अहमद, अंजुमन मोईनिया फकरिया चिश्तिया सैय्यद जादगान के सदर सैय्यद हिसामुद्दीन नियाजी व अंजुमन यादगार चिश्तिया शेख जादगान के सदर शमशाद मोहम्मद चिश्ती को नजराने की राशि चैक के माध्यम से दी। तीनों चैक की राशि 5 करोड़ 47 लाख 48 हजार 905 रुपये है।
बेशक अंजुमनों का विवाद समाप्त करने का यह कदम न केवल दुनिया की कदीमी दरगाह शरीफ व भारत की प्रतिष्ठा के अनुकूल है, अपितु उनकी सदाशयता का प्रतीक भी बन गया है। बेहतर ये होता कि वे इस पर कोई विवाद नहीं करते तो नजराने की राशि के चैक वितरण का समारोह भव्य होता और हमारे देश व पाकिस्तान के अवाम को भी अच्छा संदेश जाता।
ज्ञातव्य है कि नजराने की राशि की घोषणा जब अमलीजामा पहनने जा रही थी तो इसके बंटवारे को लेकर विवाद खड़ा हो गया था। एक ओर जहां दरगाह कमेटी ने दरगाह एक्ट और बायलॉज के हिसाब से स्वयं को नजर का हकदार बताया, वहीं दूसरी ओर खादिमों ने भी कानूनी व शरई तौर पर स्वयं को ही नजर का अधिकारी बताया।
असल में जहां तक धार्मिक परंपरा का सवाल है, बेशक नजराना दिया ही खादिम को जाता है, मगर चूंकि यह रकम काफी बड़ी थी, इस कारण इसको लेकर खींचतान मची। हालांकि भारत स्थित पाक उच्चायोग के काउंसलर अबरार हाशमी ने स्पष्ट कर दिया था कि जरदारी की जियारत के दो दिन पूर्व ही मीडिया में 5 करोड़ रुपए का नजरान देने की बात आ चुकी थी, इस कारण यह कह कर कि घोषणा गुंबद शरीफ के नीचे हुई है, उस पर विवाद बेमानी है। उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि जरदारी ने नजराने की राशि दरगाह में विकास कार्यों के लिए घोषित की गई थी। इसके बावजूद अंजुमनें विवाद करती रहीं। उनका कहना था कि यदि नजराने की राशि का बंटवारा किया गया तो वे अपना हिस्सा नहीं लेंगी।
अंजुमन सचिव सैयद वाहिद अंगारा का कहना था कि जरदारी ने जियारत के बाद नजराने की घोषणा की थी। जरदारी ने दरगाह में गुंबद शरीफ के नीचे घोषणा की गई, वहां केवल खादिमों का अधिकार है। वहां दीवान और दरगाह कमेटी का कोई हक ही नहीं है। जरदारी ने साफ तौर पर नजराने का ऐलान किया है, किसी प्रकार के डवलपमेंट की कोई बात नहीं हुई। इसके अतिरिक्त उनका तर्क ये भी था कि नजर में बंटवारा नहीं हो सकता। इस नजर पर पहला हक संबंधित खादिम का होता है। खादिम अपने परिवार पर यह राशि खर्च करता है। इसके बाद वह कल्याणकारी कार्यों में राशि व्यय करता है। अंजुमन का यह भी कहना था कि चूंकि मामला नजराने का है, इस कारण यह दरगाह स्थित महफिलखाने में होना चाहिए।
जहां तक पाक सरकार का सवाल है, कदाचित उसे यह पता नहीं था कि नजराने पर अंजुमन के हक को लेकर विवाद हो जाएगा, इस कारण बाद में अपना प्रतिनिधि भेज कर विवाद को निपटाने की कवायद की। विवाद के कारण ही चैक वितरण का कार्यक्रम सुरक्षा कारणों के बहाने महफिलखाने की बजाय जवाहर रंगमंच पर करना तय किया गया। लेकिन जब विवाद निपटता नहीं दिखा तो आखिर एक बहुत ही संक्षिप्त कार्यक्रम सर्किट हाउस में किया गया।
अपुन ने पहले ही लिखा था कि यदि विवाद बढ़ता है और अंजुमन बंटवारे का हिस्सा लेने से इंकार करती हैं तो इससे अच्छा संदेश नहीं जाएगा। इससे नजराना देने वाले का दिल भी दुखेगा। भविष्य में कोई राष्ट्राध्यक्ष अथवा वीवीआईपी इस प्रकार नजराना घोषित करने से बचेगा। भला कौन अपनी श्रद्धा को इस प्रकार के विवाद में उलझाना चाहेगा। बेहतर यही होगा कि सभी पक्ष इस मामले में समझदारी का परिचय देते हुए बीच का रास्ता निकालें। हालात को समझते हुए अंजुमनों ने आखिर बीच का रास्ता अख्तियार कर ही लिया, इसके लिए वे बधाई की पात्र हैं।
प्रसंगवश आपको बता दें कि नजराने की राशि का चौथा हिस्सा होने की बात भी उठी थी। दैनिक समाचार पत्र अमर उजाला की खबर के अनुसार दरगाह दीवान जेनुल आबेदीन ने अपने हिस्से को लेकर पाक उच्चायोग को पत्र लिखा था। उसके पीछे सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को आधार बना कर तर्क ये दिया गया होगा कि दरगाह शरीफ के गुबंद के भीतर आने वाले किसी भी चढ़ावे पर सज्जादानशीन का 50 प्रतिशत अधिकार है। अब जब कि पाकिस्तान सरकार ने केवल तीन पक्षों को ही नजराने का बंटवारा कर दिया है, देखना ये होगा कि दीवान इस पर कोई ऐतराज करते हैं अथवा नहीं।
-तेजवानी गिरधर