शुक्रवार, 14 जुलाई 2017

शरीर मात्र विलीन हुआ है, आनंदपाल अब भी जिंदा है

हालांकि भारी जद्दोजहद के बाद भड़की हिंसा के बीच पुलिस के हस्तक्षेप से कुख्यात आनंदपाल की अंत्येष्टि हो गई और उसका शरीर पंच तत्त्व में विलीन हो गया, मगर आनंदपाल अब भी जिंदा है। पूरे राजपूत समाज के समर्थन में खड़े होने से उसकी आत्मा का साया अब भी मंडरा रहा है। बेशक अंत्येष्टि से सरकार ने राहत की सांस ली है, मगर एनकाउंटर की सीबीआई जांच पर अड़ा राजपूत समाज शांत होता नहीं दिख रहा।
विशेष रूप से सोशल मीडिया में समाज को और लामबंद करने और सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले रखने की मुहिम जारी है। क्राइम के दायरे को लांघ कर पूरी तरह से राजनीतिक हो गई इस समस्या से सरकार कैसे निपटेगी, ये तो आने वाला समय ही बताएगा, मगर चुनाव से तकरीबन डेढ़ साल पहले उपजे इस जिन्न को शांत करने के लिए कई जतन करने होंगे।
वस्तुत: आंदोलन के चलते हुए हिंसा के कारण यह मामला और पेचीदा हो गया है। अनेक नेताओं की धरपकड़ की गई है तो कई पर मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं। अब जो लोग फंसे हैं, उन्हें बचाने के लिए समाज का दबाव नेताओं पर होगा। एनकाउंटर की सीबीआई जांच की मांग तो अपनी जगह है ही, मगर आंदोलन के चलते मुकदमों में फंसे लोगों का साथ देने के के लिए एक और मुहिम शुरू होगी। सच तो ये है कि मुहिम शुरू हो ही गई है। सोशल मीडिया पर मुख्यमंत्री को राजपूत विरोधी करार देकर आने वाले चुनाव में निपटाने की कसमें खाई जा रही हैं। बीजेपी के झंडे वाले चिन्ह पर क्रॉस बना कर बहिष्कार की अपील की जा रही है। राजस्थान के हर राजपूत परिवार के पास मोबाइल में यह सब पहुंच रहा है। समाज के हित में निर्णय लेने की कसम खिलाई जा रही है।
वाट्स ऐप पर एक अपील चल रही है कि अगर आप आनन्दपाल को न्याय दिलवाना चाहते हो तो  प्रधानमन्त्री कार्यालय के टोल फ्री नंबर 18001204411 पर कॉल करके पीएम मोदीजी को अपनी आवाज में वॉइस सन्देश दें कि इस फर्जी एनकाउंटर की सीबीआई जांच करवा कर वसुंधरा को हटायें नहीं तो आगामी चुनाव में परिणाम भुगतना होगा। ध्यान रहे 1 मिनट होते ही आपकी काल कट जायेगी और आपका सन्देश पहुंचते ही आपको वापस मेसेज मिलेगा। अब एक कॉल तो घुमा दो राजपूत होने के नाते। अभी नही तो कभी नहीं। इतने कॉल करो कि मोदीजी सोचने पर मजबूर हो जाएं।
इसी प्रकार लोकेन्द्र सिंह कालवी, गिरिराज सिंह लाटवाड़ा, महिपाल सिंह मकराना व सुखदेव सिंह गोगामेड़ी के नाम से एक अपील जारी की गई है, जिसके तहत 21 जुलाई को राजस्थान चक्का जाम, 22 जुलाई को जयपुर बंद का अह्वान किया गया है।
इतना जरूर है कि सरकार अपनी पावर का उपयोग कर इस आंदोलन से निपट ही लेगी, मगर सत्तारूढ़ भाजपा के लिए बड़ी समस्या ये है कि जो समाज वर्षों तक उसका वोट बैंक रहा है, उसे छिटकने से कैसे बचाया जाए? हालांकि जातीय मुहिमों में दरार डालने के कई उपाय सरकार के पास होते हैं, मगर जिस तरह से इस आंदोलन ने रूप अख्तियार किया है, उसे देखते हुए लगता है कि सरकार भले ही समाज को संतुष्ट करने के अनेक जतन कर ले, मगर जो  एक बड़ा तबका छिटकेगा, उसका रुख फिर भाजपा की ओर करना बेहद कठिन होगा।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

बनते बनते बिगड़ी बात, लॉ एंड ऑर्डर फेल

राजस्थान पुलिस के हाथों एनकाउंटर में मारा गया कुख्यात गैंगस्टर आनंदपाल सिंह मौत के बाद भी सरकार और पुलिस के लिए सिर दर्द बना हुआ है। पूरा राजपूत समाज उसके साथ खड़ा है। किसी अपराधी के साथ पूरा समाज एकजुट है तो इसका सीधा सा अर्थ है कि यह मसला अकेला कानून व्यवस्था का नहीं, बल्कि इसके राजनीतिक निहितार्थ भी हैं। उधर सरकार का सीबीआई जांच के लिए राजी न होना संकेत देता है कि वह किसी आशंका से घिरी हुई है।
चलो, पहले कानून व्यवस्था की बात। मुठभेड़ से पहले समस्या ये थी कि जब भी सरकार कानून व्यवस्था की उपलब्धियों का बखान करती तो आनंदपाल का नाम उस पर कालिख पोत देता और अब मौत के बाद हुआ आंदोलन जब पूर्णाहुति के करीब था तो कानून व्यवस्था की विफलता ने ही पानी फेर दिया। पहले गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया आनंदपाल का नाम सुनते ही झल्ला जाते थे और और बोल पड़ते थे कि वह मेरी जेब में तो बैठा नहीं है। अब भी उनकी स्थिति ये है कि सांवराद में सुलह सिरे पर पहुंचती, इससे पहले ही हिंसा भड़क उठी और डीजी जेल अजीत सिंह शेखावत की सारी मेहनत जाया हो गई, ऐसे में उनसे जवाब देते नहीं बन रहा। समस्या वहीं की वहीं है। कानून व्यवस्था संभाले नहीं संभल रही। इसकी जड़ें मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे व संघ पृष्ठभूमि के गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया के बीच खिंची अदृश्य रेखा की तह में तो नहीं है, इसका केवल कयास ही लगाया जा सकता है।
असल में सरकार ऐसे पेचीदा मसले में भी सीबीआई जांच की मांग तुरंत मानने की बजाय आगामी चुनाव को ही ध्यान में रख रही है। दैनिक भास्कर ने तो साफ लिखा है कि सुलह के लिए डीजी जेल अजीत सिंह शेखावत को भेजने का मकसद ही ये था कि राजपूत समाज में संदेश जाए कि वे ही राज्य के नए डीजीपी बनाए जा रहे हैं। अगर सफलता मिलती तो सरकार में एक दमदार राजपूत चेहरा उभरता। प्राप्त सूचनाओं के अनुसार सुलह लगभग हो भी चुकी थी, मगर इस बीच अचानक हिंसा भड़क उठी और सब कुछ बिखर गया। स्पष्ट है कि जब अजीत सिंह बातचीत में व्यस्त थे तो वहां की कानून व्यवस्था संभाले हुए अफसर गच्चा खा गए। अब लाख तर्क दिए जाएं कि पुलिस की कोई गलती नहीं है, आंदोलनकारियों ने हिंसा की, मगर इस बात का जवाब क्या है कि आपसे भीड़ हैंडल क्यों नहीं हो पाई? भीड़ अनुमान से ज्यादा पहुंचने का तर्क भी पुलिस के ही गले पड़ा हुआ है कि आपका सूचना तंत्र फेल कैसे हो गया? खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक 15 से 20 हजार लोगों के ही आने की संभावना थी, मगर आ गए तीन गुना ज्यादा, जबकि जवान तैनात थे 2 हजार 500। इसका सीधा सा अर्थ है कि आपने भीड़ को रोकने के इंतजामात के तहत 16 स्थानों पर जो नाकेबंदी की थी, वह भी गड़बड़ा गई।
बात अगर राजनीतिक कोण की करें तो इस आंदोलन से परंपरागत रूप से भाजपा मानसिकता से जुड़े राजपूत समाज के छिटकने का खतरा है।  अब अगर सरकार सीबीआई जांच की मांग मान भी लेती है तो भी जो नुकसान हो चुका है, उसकी भरपाई पूरी तो नहीं हो पाएगी।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

क्या आनंदपाल की अंत्येष्टि की 13 तारीख में भी कोई राज है?

एनकाउंटर में मारे गए कुख्यात आनंदपाल की अंत्येष्टि को लेकर बहुत जद्दोजहद हुई और आखिरकार 13 जुलाई को उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया। क्या इस 13 तारीख में कोई राज है? इस बारे में वरिष्ठ एडवोकेट व पूर्व अजमेर बार अध्यक्ष राजेश टंडन की अपनी स्टडी है। उन्होंने फेसबुक पर 10 जुलाई को ही लिख दिया था कि आनंदपाल का अंतिम संस्कार 13 तारीख को निश्चित रूप से हो जाएगा। उन्होंने इसका संदर्भ मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा से जोड़ा था। उनका कहना है कि श्रीमती वसुंधरा के लिए 13 तारीख बहुत महत्वपूर्ण है। उनकी जन्म दिनांक 13 है, बंगले का नंबर भी 13 ही है। इसके अतिरिक्त वे हर शुभ व महत्वपूर्ण कार्य 13 तारीख को ही करती हैं। इसी तारीख को उन्होंने आनंदपाल की अंत्येष्टि से जोड़ा था। यानि कि यदि आनंदपाल की अंत्येष्टि 13 को होती है तो यह मुख्यमंत्री के लिए मुफीद है। संयोग देखिए कि आनंदपाल की अंत्येष्टि 13 तारीख को ही हुई। हालांकि यह एक संयोग हो सकता है, मगर टंडन का तीन दिन पहले ही कहना कि अंत्येष्टि 13 को ही होगी, चौंकाने वाला है।

बुधवार, 12 जुलाई 2017

क्या आनासागर में स्नान भी पवित्र है पुष्कर की तरह?

तत्कालीन यूआईटी अध्यक्ष डॉ. श्रीगोपाल बाहेती के कार्यकाल में आनासागर के पास ऋषि घाटी वैकल्पिक मार्ग बनाने के साथ गरीब जायरीन के नहाने के लिए जो रामप्रसाद घाट बनाया गया था, वह इतिहास का हिस्सा बनने जा रहा है। सौंदर्यीकरण के तहत वहां पाथ वे बनाया जा रहा है। साथ ही वहां नहाने पर भी रोक लगा दी गई है, ताकि झील का पानी दूषित न हो।  ऐसे में यह सवाल मुंह बाये खड़ा है कि दरगाह ख्वाजा साहब की जियारत करने से पूर्व प्रतिदिन हजारों गरीब जायरीन के वजू अथवा नहाने की परंपरा का क्या होगा? इस बारे में न तो जिला प्रशासन ने कोई व्यवस्था दी है और न ही नगर निगम ने कुछ विचार किया है। न तो दरगाह में जियारत करवाने वाले खादिमों की संस्था अंजुमन ने कोई राय दी है और न ही दरगाह दीवान का मन्तव्य सामने आया है। आखिरकार शहर की कुछ सामाजिक संस्थाओं ने इस मसले को उठाया है। उनका कहना है कि जायरीन की भावनाओं की कद्र करते हुए उनके लिए नहाने की व्यवस्था आनासागर पर की जाए। उनका तर्क है कि जिस प्रकार प्रशासन ने पुष्कर में श्रद्धालुओं के नहाने के लिए कुंंड बना कर व्यवस्था की है, उसी के अनुरूप आनासागर में भी कुंड की व्यवस्था की जाए, ताकि जायरीन की भावनाओं की कद्र हो सके।
ऐसे यह सवाल मौजूं है कि क्या जिस प्रकार तीर्थराज पुष्कर में नहाना धार्मिक लिहाज से पवित्र माना जाता है, क्या उसी प्रकार आनासागर में जायरीन का नहाना भी एक पवित्र कृत्य है? इस मुद्दे पर जरा गहराई से विचार करें तो तीर्थराज पुष्कर में स्नान की तो महिमा शास्त्रों में भरी पड़ी है और वहां श्रद्धालु मुख्य रूप से नहाने ही आते हैं। दूसरी ओर यह सच है कि दरगाह में जियारत करने वाले गरीब जायरीन अनेक वर्षों से परंपरागत रूप से आनासागर में नहाते हैं, मगर उसकी कोई धार्मिक महत्ता है, इस बारे में अब तक कोई जानकारी उभर कर नहीं आई है। हां, यह तर्क जरूर दिया जाता है कि किसी जमाने में स्वयं ख्वाजा साहब इसी आनासागर में वजू किया करते थे, इस कारण यहां नहाना पवित्र कृत्य है। इसमें कोई दो राय नहीं कि गरीब जायरीन आनासागर में ही नहाने के बाद जियारत करने जाते हैं, मगर इसकी कोई धार्मिक महत्ता भी है या फिर यह महज एक सामान्य स्नान ही है, यह विवाद का विषय हो सकता है। एक तर्क ये भी है कि यदि वाकई इसका धार्मिक महत्व होता तो जियारत करने के लिए आने वाले हर आम ओ खास जायरीन यहा स्नान करते। केवल गरीब जायरीन ही क्यों स्नान करते हैं?
खैर, आनासागर में स्नान भी तीर्थराज पुष्कर की तरह पवित्र है या नहीं, इस विषय से हट कर विचार करें तो यह मुद्दा तो है ही कि यदि प्रशासन आनासागर में नहाने की व्यवस्था पूरी तरह से समाप्त करने जा रहा है तो उसने यहां नहाने को प्रतिदिन आने हजारों गरीब जायरीन के नहाने की वैकल्पिक व्यवस्था पर विचार क्यों नहीं किया? क्या वह यह तर्क दे कर बच सकता है कि गरीब जायरीन कहां नहाएंगे, इसकी उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं है, वे चाहें तो आसपास बने सुलभ कॉम्पलैक्स में नहा सकते हैं। इसमें विचारणीय ये है कि क्या गरीब जायरीन पर नहाने के लिए पैसे देने का बोझ डालना उचित है? और अगर इसे नजरअंदाज भी किया जाए तो क्या हजारों जायरीन के अनुपात में सुलभ कॉम्पलैक्स बनाने पर विचार किया गया है? क्या यह जिम्मेदारी प्रशासन की नहीं है कि वह कोई व्यवस्था लागू करने के साथ ही उसकी वैकल्पिक व्यवस्था भी करे। माना कि आनासागर में नहाने का धार्मिक महत्व होने की कोई लिपिबद्ध जानकारी कहीं नहीं भी मिल रही, तो भी अगर गरीब जायरीन के लिए आनासागर में नहाना आस्था का मामला है तो प्रशासन को जरूर उनकी आस्था का ख्याल रखना ही चाहिए।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

मंगलवार, 11 जुलाई 2017

टंडन वाकई राजनीतिक व प्रशासनिक पंडित हैं

अजमेर के जाने-माने वकील व जिला बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष राजेश टंडन वाकई राजनीतिक व प्रशानिक पंडित हैं। हाल ही उन्होंने अपनी एक फेसबुक पोस्ट में लिखा था कि आईएएस के पूर्व अधिकारी डॉ. ललित के. पंवार राजस्थान लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष पद से सेवानिवृत्ति के बाद राजस्थान आईएलडी स्किल्स विश्वविद्यालय जयपुर के प्रथम कुलपति नियुक्त होंगे। उन्होंने उन कयासों को भी पूरी तरह से नकारा था कि पंवार राजनीति में जाएंगे। उन्होंने लिखा था कि उनके चोहटन से चुनाव लडऩे की संभावना इस कारण नहीं है क्योंकि वे वहां जातीय समीकरण में फिट नहीं बैठते। वहां मेघवाल समाज का बाहुल्य है। ये बात स्वयं पंवार भी जानते हैं। उनके लिए कोई और विधानसभा क्षेत्र भी उपयुक्त नहीं है। राज्यसभा में भी उनके जाने की संभावना नहीं है।
उनकी यह पोस्ट उन अफवाहों के बाद आई थी, जब कुछ लोग ये कयास लगा रहे थे कि पंवार राजनीति में जाने वाले हैं।
ज्ञातव्य है कि इससे पूर्व भी एक बार अजमेर नगर निगम के मेयर धर्मेन्द्र गहलोत व तत्कालीन अजमेर नगर परिषद के पूर्व सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत के विवाद पर भविष्यवाणी की थी कि उनकी सुलह राजगढ़ मसाणियां धाम में चंपालाल जी के दरबार में ही होगी। हुआ भी यही। उन दोनों ने कुछ दिन बाद महाराज के सामने अपने गिले-शिकवे भुला दिए थे।
असल में टंडन राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं। उनके अनेक राजनेताओं और आईएएस व आईपीएस अधिकारियों के साथ घनिष्ठ संबंध हैं। इसी कारण उनका सूचना तंत्र इतना मजबूत है।