बुधवार, 18 अक्तूबर 2017

सचिन पायलट का तोड़ नहीं है भाजपा के पास

हालांकि अभी पक्के तौर कहना कठिन है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट अजमेर लोकसभा सीट का उपचुनाव लड़ेंगे ही, मगर इसकी प्रबल संभावना के मद्देनजर भाजपा तनिक चिंतित नजर आ रही है। उसके पास उनका तोड़ नहीं है। स्थानीय स्तर पर कोई विकल्प न अब है और न ही उनके पहले चुनाव के समय था। तब भी भाजपा को किरण माहेश्वरी को अजमेर से लड़ाना पड़ा था और वे हार गई थीं। हालांकि दूसरे चुनाव में राज्य किसान आयोग के पूर्व अध्यक्ष व अजमेर के भूतपूर्व सांसद प्रो. सांवरलाल जाट ने जरूर उन्हें हराया था, मगर उसकी एक मात्र वजह थी देशव्यापी मोदी लहर।
वस्तुत: सचिन पायलट इस कारण मजबूत प्रत्याशी नहीं हैं कि प्रदेश  कांग्रेस के अध्यक्ष हैं, अपितु इस वजह से हैं क्योंकि जब वे अजमेर के सांसद और केन्द्र में मंत्री थे, तब उन्होंने अनेक उल्लेखनीय काम कराए थे। अजमेर के वे पहले जनप्रतिनिधि थे, जिन्हें केन्द्रीय मंत्रीमंडल में मौका मिला था। कांग्रेस हाईकमान से नजदीकी के चलते कई महत्वपूर्ण विकास कार्य उन्होंने आसानी से करवा लिए। जनता यह बखूबी जानती है कि जितने काम उन्होंने पांच साल में करवाए, उनका एक प्रतिशत भी यहां से पांच बार सांसद रहे भाजपा के प्रो. रासासिंह रावत नहीं करवा पाए। असल में वे पांच बार जीतने के बाद भी कभी महत्वपूर्ण स्थिति में नहीं रहे।
बहरहाल, आज जब फिर सचिन पायलट के अजमेर से लडऩे की संभावना है, भाजपा उनको टक्कर देने के लिए उपयुक्त प्रत्याशी की तलाश कर रही है। एक तो सचिन पायलट के प्रति जनता का विश्वास है, दूसरा केन्द्र व राज्य सरकार के प्रति एंटीइंकंबेसी फैक्टर भी काम कर रहा है। ऐसे में स्थानीय कोई भी भाजपा नेता उनको टक्कर देने की स्थिति में नहीं है। स्वर्गीय प्रो. सांवरलाल जाट के पुत्र रामस्वरूप लांबा टिकट हासिल करने के लिए पूरा दबाव बनाए हुए हैं, मगर भाजपा हाईकमान उन पर दाव खेलने से पहले दस बार सोचने को मजबूर है। भाजपा की सबसे बड़ी मजबूरी ये है कि उसे किसी भी सूरत में किसी जाट को ही टिकट देना है। अगर किसी गैर जाट को टिकट देती है तो पूरा जाट समुदाय खिलाफ जा सकता है। लांबा के अतिरिक्त भाजपा के पास अजमेर डेयरी के अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी व पूर्व जिला प्रमुख श्रीमती सरिता गेना के श्वसुर सी बी गेना हैं, मगर वे भी सचिन पायलट का मुकाबला कर पाएंगे या नहीं, इस पर भाजपा में गंभीर मंथन चल रहा है। एक संभावना ये भी बताई जा रही है कि भाजपा प्रमुख जाट नेता सतीश पूनिया पर दाव खेल ले। यूं गैर जाटों में देहात जिला भाजपा अध्यक्ष डॉ. बी पी सारस्वत, पूर्व जिला प्रमुख पुखराज पहाडिय़ा, नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष धर्मेश जैन आदि के नाम चर्चा में हैं।
भाजपा को अगर भरोसा है तो केवल इस पर कि वह सत्ता में हैं और सरकारी मशीनरी का आसानी से दुरुपयोग कर सकती है। संभव है कि सत्ता के दम पर वह कांग्रेस में तोडफ़ोड़ करे, हालांकि इसकी संभावना कुछ कम इस कारण है कि आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा का परफोरमेंस बेहतर होने में संदेह है। अगर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कमान संभाली तो यह तय है कि यहां धनबल का भी खूब इस्तेमाल होगा, लेकिन उससे सचिन पायलट को फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि वे भी सक्षम हैं। सचिन पायलट के अजमेर से लडऩे की संभावना के मद्देनजर ही मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अजमेर का तीन दिन का दौरा करने वाली हैं। उनके निर्देश पर अनेक मंत्री यहां दौरा कर प्रशासन को चुस्त कर चुके हैं, मगर पिछले साढ़े तीन साल से विकास को तरस रही जनता का मूड बदलेगा, इसको लेकर संदेह है।
कुल मिला कर सचिन पायलट के यहां से लडऩे के आसार होने के कारण भाजपा तनिक परेशान हैं। इसकी बड़ी वजह ये है कि अगर भाजपा हारती है तो यह संकेत जाएगा कि मोदी का जादू व वसुंधरा का आकर्षण खत्म हो गया है, जिसका आगामी विधानसभा चुनाव में नुकसान उठाना पड़ेगा। सचिन पायलट या कोई अन्य कांग्रेसी प्रत्याशी जीतता है तो कांग्रेस कार्यकर्ता का इकबाल ऊंचा होगा, जो विधानसभा चुनाव में जोश प्रदान करेगा। खैर, देखते हैं, आगे होता है क्या?

तेजवानी गिरधर
7742067000

किशनगढ़ एयरपोर्ट का श्रेय किसके खाते में?

यह एक अत्यंत सुखद बात है कि अजमेर जिले के वासियों की वर्षों पुरानी एयरपोर्ट की मांग आखिरकार पूरी हो गई, मगर इसके श्रेय को लेकर जो राजनीतिक विवाद हुआ, उसने मानो रंग में भंग सा कर दिया।
इसमें कोई दोराय नहीं है कि किशनगढ़ में एयरपोर्ट के लिए आरंभिक कवायद के साथ समस्त बाधाओं को दूर करने में कांग्रेस की तत्कालीन केन्द्र व राज्य सरकारों के साथ विशेष रूप से अजमेर के पूर्व सांसद व तत्कालीन केन्द्रीय राज्य मंत्री सचिन पायलट की अहम भूमिका है। इसे कोई झुठला नहीं सकता। बेशक पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के चलते पायलट हार गए, मगर अजमेर जिले की आम जनता के जेहन में यह तथ्य बैठ चुका है कि पायलट की बदोलत ही जिले में एयरपोर्ट का मार्ग प्रशस्त हुआ है। जनता के मन यह बात भी स्थापित है कि जो काम पांच बार सांसद रहने पर प्रो. रासासिंह रावत ने नहीं किया, वह मात्र पांच साल में ही सचिन ने कर दिखाया। जानकार लोगों को पता है कि एयरपोर्ट को लेकर आ रही तकनीकी व कानूनी बाधाओं को दूर करने में पायलट ने अपने प्रभाव का किस प्रकार इस्तेमाल किया। केवल कांग्रेसी ही नहीं, बल्कि भाजपाई भी इस बात को स्वीकार करते रहे हैं कि एयरपोर्ट पायलट की देन है। अगर कोई सिर्फ दावे पर यकीन करता है तो उसके लिए यह तनिक विचारणीय है कि क्या बिना नक्शा पास हुए व वित्तीय स्वीकृतियों के बगैर कोई निर्माण हवा में करना संभव है?
बहरहाल, साथ ही यह धरातलीय सच्चाई भी नहीं नकारी जा सकती कि एयरपोर्ट की योजना भाजपा के शासनकाल में पूरी हुई है, मगर जब इसका पूरा का पूरा श्रेय मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने लेने की कोशिश की तो विवाद होना ही था। मुख्यमंत्री जैसे गरिमापूर्ण पद पर होने के बावजूद उदारतापूर्वक पायलट के योगदान को स्वीकार करने की बजाय कांग्रेस पर हमला बोला कि वह तो केवल शिलान्यास के पत्थर ही रखती है, विकास तो भाजपा कराती है। ऐसे में कांग्रेस नेताओं का पलटवार करना स्वाभाविक था। वे चाहतीं तो एयरपोर्ट का काम पूरा करवाने में अपनी सरकार की उपलब्धि का हवाला देते हुए पायटल की भूमिका का भी जिक्र कर सकती थीं, जिससे उनका बड़प्पन झलकता, मगर वह अवसर उन्होंने खो दिया। राजनीति में वह सदाशयता अब बची भी कहां है।
वस्तुत: यह सपाट सत्य है कि विकास की योजनाएं बनती हैं और पूरी होती हैं, इस दरम्यान सरकारें बदल जाती हैं। ऐसे में जिस सरकार के कार्यकाल में वे पूरी होती हैं, वह इसका श्रेय लेने की कोशिश करती है, मगर जनता सब जानती है। दावा चाहे कोई भी करे, मगर जन-जन में जो तथ्य बैठ चुका है, उसे कोई दावा साफ नहीं कर सकता। किशनगढ़ एयरपोर्ट के मामले में भी यही हुआ। जनता तो समझ ही रही थी कि यह पायलट की ही देन है, यहां तक कि वसुंधरा राजे भी जानती थी कि जनमानस में यह बैठा हुआ है कि एयरपोर्ट पायलट की मेहनत का परिणाम है, बावजूद इसके उन्होंने पूरा श्रेय लेने की कोशिश की। श्रेय लेने की इच्छा का सबसे बड़ा सूबत ये है कि नियमित उड़ानें शुरू होने में अभी भी समय है, मगर आचार संहिता लागू हो जाने के डर से जल्दबाजी में इसका उद्घाटन कर दिया गया। समझा जा सकता है कि लोकसभा उपचुनाव में वे इसका लाभ लेना चाहती हैं।
जाहिर सी बात है कि जैसे ही दावे-प्रतिदावे हुए तो मीडिया भी उसमें कूद पड़ा। अमूमन कांग्रेस के खिलाफ लिखने वाले कलमकारों भी स्वीकार किया कि वसुंधरा ने राजनीतिक चतुराई का इस्तेमाल किया है। वे भी इस तथ्य को सहज भाव से स्वीकार कर रहे हैं कि पायलट की महत्वपूर्ण भूमिका है। एक वरिष्ठ एवं स्वतंत्र लेखक ने तो लिखा है कि सबसे पहले पायलट ने ही किशनगढ़ के पास हवाई अड्डा होने का सपना देखा था।
खैर, राजनीति में दावेबाजी चलती रहती है, उसे रोका भी नहीं जा सकता, मगर किसका दावा स्वीकार करना है, यह तो जनता ही तय करेगी।
-तेजवानी गिरधर