गुरुवार, 23 मार्च 2017

अजमेर दक्षिण के लिए संघ की ओर लाया गया शख्स हुआ सक्रिय

हालांकि अभी विधानसभा चुनाव दूर हैं और राजनीति वो चौसर है, जिस पर कब कैसे पासे होंगे, कुछ कहा नहीं जा सकता, मगर कानाफूसी है कि संघ देवनानी की ही तरह ऐसे शिक्षा जगत के एक शख्स को उदयपुर से अजमेर ला चुकी है, जिसे चंद लोग, या यूं कहें कि मित्र ही जानते हैं। वे सक्रिय भी हो गए हैं, मगर फिलहाल सामाजिक धरातल मजबूत कर रहे हैं। उनका लक्ष्य है कि पहले अपने कॉलेज छात्र जीवन के साथियों के साथ पुनर्संपर्क किया जाए। वस्तुत: छात्र जीवन में वे यहां राजकीय महाविद्यालय में काफी सक्रिय रहे थे।
बताया जाता है कि उन्हें अभी से ग्राउंड पर अजमेर दक्षिण में गुपचुप तानाबाना बुनने को कहा गया है। संयोग से वे मूलत: अजमेर से और कोली समाज से ही है। इसका ये अर्थ ये निकाला जा सकता है कि संघ श्रीमती भदेल का विकल्प तैयार करना चाहता है।
कानाफूसी है कि चूंकि नगर परिषद चुनाव में अजमेर दक्षिण में भाजपा की करारी हार हो चुकी है और श्रीमती भदेल के कभी दाहिने व बायें हाथ रहे हेमंत भाटी व सुरेन्द्र सिंह शेखावत अब उनके साथ नहीं हैं, इस कारण उनका टिकट काटने का आधार बन गया है। कोई ये तर्क देता है कि लगातार तीन बार जीतेे हुए और वर्तमान में मंत्री की जिम्मेदारी निभाने वालों का टिकट भला कैसे काटा जा सकता है। इस बात में दम भी है, मगर चूंकि अजमेर की दोनों सीटें आरएसएस के खाते की हैं और सब जानते हैं कि संघ में जिस स्तर पर निर्णय होता है, उसको आदेश के रूप में ही पालना होता है। संघ की नजर में व्यक्ति कुछ नहीं होता, उसकी लोकप्रियता कुछ नहीं होती, होता है तो सिर्फ संघ का नेटवर्क व उसका आदेश शिरोधार्य करने वाले भाजपा कार्यकर्ता। खुद देवनानी जी ही उसके सबसे सटीक उदाहरण हैं। जब वे अजमेर लाए गए तो उन्हें कोई नहीं जानता था, फिर भी संघ ने उन्हें जितवा दिया। श्रीमती भदेल भी जिस तरह से उभर कर आईं, वह संघ का ही कमाल है। वैसे भले ही संघ एकजुट व मजबूत संगठन हैं, मगर वहां भी अंदर धड़ेबाजी तो है ही, ऐसे में हो सकता है आखिरी वक्त में जिसका पलड़ा भारी होगा, वह बाजी मार जाएगा। जहां तक राजनीतिक क्षेत्र का सवाल है, उसमें मौजूदा जिला प्रमुख वंदना नोगिया, डॉ. प्रियशील हाड़ा आदि की चर्चा है। बताते हैं कि कांग्रेस से भाजपा में गए पूर्व विधायक बाबूलाल सिंगारियां भी मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे के संपर्क में हैं।

पहले से पता था कि सुरंग नहीं बन सकती, फिर क्यों किए 15 लाख बर्बाद

पुष्कर घाटी में सुरंग का पहला सपना तो लखावत ने देखा था
एक बार यह फिर से खुलासा हो गया है कि पुष्कर घाटी में सुरंग बनाना संभव नहीं है। ज्ञातव्य है कि राजस्थान सरकार के संसदीय सचिव और पुष्कर विधायक सुरेश सिंह रावत ने इसकी कवायद शुरू की और इसके लिए बाकायदा बजट भी उपलब्ध करवा दिया था। उन्हें इसकी जल्दी भी थी कि यह काम पूरा हो जाए, मगर 15 लाख रुपये खर्च होने के बाद जांच में यह तथ्य सामने आया है कि घाटी का पत्थर बेहद कच्चा है, इसलिए इसको तुड़वा कर नीचे इतनी लंबी सुरंग नहीं बनाई जा सकती।
असल में घाटी में सुरंग बनाने का सपना सबसे पहले तत्कालीन नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष औंकार सिंह लखावत ने देखा था। राज्यसभा सदस्य रहते उन्होंने इसके लिए भरपूर कोशिश की। तब भी यही तथ्य सामने आया था कि घाटी में सुरंग बनाना संभव नहीं है। उसी के बाद अजमेर को पुष्कर से रेल मार्ग से जोडऩे का काम हुआ।
सवाल ये उठता है कि घाटी में सुरंग बनाना संभव न होने की रिपोर्ट प्रशासन के पास थी, फिर भी संसदीय सचिव सुरेश रावत के प्रस्ताव को कैसे मान लिया गया? ऐसा प्रतीत होता है कि या तो मौजूदा अधिकारियों को उस पहले वाली रिपोर्ट की जानकारी नहीं थी या फिर वे रावत के दबाव में जानबूझ कर चुप रहे। कदाचित इसके बारे में लखावत को भी जानकारी रही ही होगी, मगर वे क्यों कर चुप रहे, समझ में नहीं आता। मगर इसका परिणाम ये हुआ कि फिर से हुई कवायद के पंद्रह लाख रुपए बर्बाद हो गए। यह बेहद अफसोसनाक बात है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000