रविवार, 16 जून 2013

यातायात का सर्वे तो हुआ, मगर लागू नहीं हुआ, दोषी कौन?

हाल ही पुलिस अधिकारियों की एक बैठक में एडीजी मनोज भट्ट ने कहा कि अजमेर के ट्रेफिक सिस्टम में सुधार का प्रयास जरूरी है। शहर संकरा है और पुरानी बसावट के कारण ट्रेफिक व्यवस्था गड़बड़ाई हुई है। उन्होंने खुलासा किया कि जिला प्रशासन के अनुसार वर्ष 2005-06 में आरयूआइडीपी की ओर से अजमेर की ट्रेफिक व्यवस्था को लेकर एक सर्वे किया गया था, जिसमें व्यवस्था सुधारने के लिए रास्तों की चौड़ाई, अतिक्रमण हटाने और वैकल्पिक मार्ग के कई उपाय सुझाए गए थे, लेकिन इस पर कार्रवाई नहीं हुई। ऐसे में सवाल ये उठता है कि कार्यवाही आखिर क्यों नहीं हुई? इसका सीधा सा जवाब है कि न तो अफसरशाही में कोई इच्छा शक्ति है और न ही स्थानीय राजनीतिकों को कोई रुचि। आम जनता भी सोयी हुई है। उसमें सिविक सेंस का तो नितांत अभाव ही है। रहा सवाल अतिक्रमण का तो वह तो हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है। जैसे कुत्ते की पूंछ लाख सीधी करने की कोशिश करो, टेढ़ी की टेढ़ी रहती है, वैसे ही चाहे जितनी बार अतिक्रमण हटाओ, हम उतनी ही बार फिर करने के आदतन शिकार हैं।
वस्तुत: एक ओर जहां अजमेर शहर के मुख्य मार्ग सीमित और पहले से ही कम चौड़े हैं, ऐसे में लगातार बढ़ती आबादी और प्रतिदिन सड़कों पर उतरते वाहनों ने यातायात व्यवस्था को पूरी तरह से चौपट कर दिया है। हालांकि यूं तो पूर्व जिला कलेक्टर श्रीमती अदिति मेहता के कार्यकाल में ही प्रशासन ने समझ लिया था कि यातयात व्यवस्था को सुधारना है तो मुख्य मार्गों से अतिक्रमण हटाने होंगे और इस दिशा में बड़े पैमाने पर काम भी हुआ। सख्ती के साथ अतिक्रमण हटाए जाने के कारण श्रीमती मेहता को स्टील लेडी की उपमा तक दी गई। उनके कदमों से एकबारगी यातायात काफी सुगम हो गया था, लेकिन बाद में प्रशासन चौड़े मार्गों को कायम नहीं रख पाया। दुकानदारों ने फिर से अतिक्रमण कर लिए। परिणामस्वरूप स्थिति जस की तस हो गई। इसी बीच सड़कों पर लगातार आ रहे नए वाहनों ने हालात और भी बेकाबू कर दिए हैं।
निवर्तमान संभागीय आयुक्त अतुल शर्मा ने भी बिगड़ती यातायात व्यवस्था को सुधारने के भरपूर कोशिश की, मगर कभी राजनीति आड़े आ गई तो कभी जनता का अहसहयोग।
हालांकि यह बात सही है कि पिछले बीस साल में आबादी बढऩे के साथ ही अजमेर शहर का काफी विस्तार भी हुआ है और शहर में रहने वालों का रुझान भी बाहरी कॉलोनियों की ओर बढ़ा है। इसके बावजूद मुख्य शहर में आवाजाही लगातार बढ़ती ही जा रही है। रोजाना बढ़ते जा रहे वाहनों ने शहर के इतनी रेलमपेल कर दी है, कि मुख्य मार्गों से गुजरना दूभर हो गया है। जयपुर रोड, कचहरी रोड, पृथ्वीराज मार्ग, नला बाजार, नया बाजार, दरगाह बाजार, केसरगंज और स्टेशन रोड की हालत तो बेहद खराब हो चुकी है। कहीं पर भी वाहनों की पार्किंग के लिए पर्याप्त जगह नहीं है। इसका परिणाम ये है कि रोड और संकड़े हो गए हैं और छोटी-मोटी दुर्घटनाओं में भी भारी इजाफा हुआ है।
ऐसे में यह बेहद जरूरी है कि यातायात व्यवस्थित करने केलिए समग्र मास्टर प्लान बनाया जाए। उसके लिए छोटे-मोटे सुधारात्मक कदमों से आगे बढ़ कर बड़े कदम उठाने की दरकार है। मौजूदा हालात में स्टेशन रोड से जीसीए तक ओवर ब्रिज और मार्टिंडल ब्रिज से जयपुर रोड तक एलिवेटेड रोड जल्द नहीं बनाया गया तो आने वाले दिनों में स्टेशन रोड को एकतरफा मार्ग करने के अलावा कोई चारा नहीं रहेगा। रेलवे स्टेशन के बाहर तो हालत बेहद खराब है। हालांकि जल्द ही ओवर ब्रिज शुरू होने से कुछ राहत मिली है, लेकिन रेलवे स्टेशन का प्लेट फार्म तोपदड़ा की ओर भी बना दिया जाए तो काफी लाभ हो सकता है।
इसी प्रकार कचहरी रोड पर खादी बोर्ड के पास रेलवे के बंगलों के स्थान पर, गांधी भवन के सामने, नया बाजार में पशु चिकित्सालय भवन और मोइनिया इस्लामिया स्कूल के पास मल्टीलेवल पार्किंग प्लेस बनाने की जरूरत है। इसी प्रकार आनासागर चौपाटी से विश्राम स्थली या सिने वल्र्ड तक फ्लाई ओवर का निर्माण किया जाना चाहिए, जो कि न केवल झील की सुंदरता में चार चांद लगा देगा, अपितु यातायात भी सुगम हो जाएगा।
कुल मिला कर जब तक बड़े कदम नहीं उठाए जाते सुधार के लिए उठाए जा रहे कदम ऊंट के मुंह में जीरे के समान ही रहेंगे।
-तेजवानी गिरधर