गुरुवार, 27 नवंबर 2014

एक युग का अंत हो गया राव हमीर सिंह मेजा के साथ

प्रतिभा के दम पर सरपंच से रेलवे भर्ती बोर्ड के चेयरमैन तक का सफर तय किया
राजपूत समाज के सर्वांगीण विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की
राजपूत समाज ही नहीं, अपितु अन्यत्र भी एक जाना-पहचाना नाम है राव श्री हमीर सिंह मेजा का। उन्होंने न केवल सरपंच पद पर लगातार 25 वर्ष तक रह कर न केवल राजनीति के जरिए समाज सेवा के जज्बे को जीया, अपितु रेलवे भर्ती बोर्ड जैसे महत्वपूर्ण विभाग के अध्यक्ष पर छह साल तक रह कर अपनी प्रशासनिक क्षमता का भी परिचय कराया। वे क्षत्रिय विकास एवं शोध संस्थान के मुख्य संरक्षक एवं पुष्कर स्थित जयमल ट्रस्ट के संरक्षक जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रहे और विशेष रूप से राजपूत समाज में उनका बहुत ही श्रद्धा के साथ लिया जाता रहा है। वस्तुत: वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। साथ ही सुमधुर व्यवहार की वजह से आकर्षक व्यक्तित्व के धनी थे। जीवन के आखिरी क्षण तक उनके मन में समाजसेवा के जरिए अपने जीवन को सफल बनाने का जूनून बरकरार रहा।
आइये, जरा उनके जीवन में झांक कर देखें कि कैसा था वह विलक्षण व्यक्तित्व:-
मेजा ठिकाने की प्रतिष्ठित पृष्ठभूमि
24 मई, 1935 को जन्मे जिला भीलवाड़ा के मेजा ठिकाने के राव श्री हमीर सिंह से नाका मदार, अजमेर स्थित उनके आवास पर ली गई भेंटवार्ता में वंश परम्परा के बारे में पूछने पर उन्होंने बताया कि मेवाड़ राजघराने में राव चूण्डा जी से चूण्डावतों की शाखा के चार प्रमुख ठिकानों आमेट, देवगढ़, सलूम्बर तथा बेगूं रहे। उनके पूर्वज राव अमरसिंह बेमाली ठिकाने से सम्बद्ध थे। सन् 1860 में ठिकाने आमेट के श्री राव पृथ्वीसिंह के पुत्रविहीन मृत्यु हो जाने पर उनकी धर्मपत्नी द्वारा बेमाली से अमरसिंह को गोद लिया गया था और लगभग 12 वर्ष तक वे आमेट ठिकाने के प्रमुख रहे। किन्तु जिलोला ठिकाने वालों ने राव पृथ्वीसिंह के निकटतम रिश्तेदार होने के कारण इस गोद प्रक्रिया के विरुद्ध वाद दायर किया।
अजमेर स्थित ब्रिटिश सरकार के ए.जी.जी. ने अपने फैसले में जिलोला वालों को सही उत्तराधिकारी स्वीकार कर यह भी लिखा कि चूंकि राव अमरसिंह 12 वर्ष तक शासक रहे हैं, अत: उन्हें नई जागीर दी जानी चाहिए। तत्कालीन महाराणा शम्भूसिंह ने खालसा (खालसा अर्थात् वे ग्राम जो सीधे महाराणा के शासन के अंतर्गत थे) में से मेजा के आसपास 25 गांवों की आमेट के बराबर नई जागीर बनाकर सन् 1871 में राव अमरसिंह को प्रदान की और इस प्रकार मेजा ठिकाने का आरम्भ हुआ।
राव अमरसिंह के बाद उनके पुत्र राव राजसिंह तथा इनके बाद राव जयसिंह एवं इनके बाद इनके पुत्र राव हमीर सिंह मेजा के उत्तराधिकारी बने। मेवाड़ राजघराने से मेजा ठिकाने के प्रभाव और सम्बन्धों के बारे में पूछने पर राव हमीरसिंह ने बताया कि हमारे पूर्वज राव राजसिंह महाराणा द्वारा स्थापित महेन्द्राज सभा, जिसे वर्तमान के उच्च न्यायालय के समकक्ष अधिकार थे, उसके सदस्य रहे थे। महाराणा भगवतसिंह के कार्यकाल में मेवाड़ राजघराने की मेजा ठिकाने पर बहुत कृपा रही। महाराणा साहब उनके जीवनकाल में दो बार मेजा पधारे।
ठिकाने की सेवा का जुनून
जन्म तथा शिक्षा के सम्बन्ध में 24 मई, 1935 को जन्मे मेजा ठिकाना तहसील माण्डल जिला भीलवाड़ा के राव हमीरसिंह ने बताया कि उनकी प्रारम्भिक शिक्षा से आरम्भ होकर इन्टरमीडियेट तक अजमेर स्थित प्रतिष्ठित मेयो कॉलेज से हुइ। मेयो कॉलेज में अपने शैक्षणिक जीवन में शिक्षा के साथ-साथ अनुशासन, डिबेट और सांस्कृतिक गतिविधियों में अग्रणी रहे। हाउस कैप्टिन व मॉनीटर भी रहे।
मेयो कॉलेज की शिक्षा के पश्चात् आपने महाराणा भोपाल कॉलेज से स्नातक तथा एलएल.बी. की परीक्षा में सफलता प्राप्त की। एलएल.बी. में राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर से आपने प्रथम स्थान पर मैडल भी प्राप्त किया। थोड़े समय आपने जोधपुर हाईकोर्ट में वकालत भी की, किन्तु अपने पिता राव जयसिंह के एकमात्र पुत्र होने के कारण 1968 में आपने मेजा ठिकाने का कार्यभार संभाला।
राव हमीरसिंह का विवाह सन् 1954 में राजा साहब देवीसिंह जी की सुपुत्री हंसा कुमारी से हुआ। राजा देवीसिंह जी भाद्राजून ठिकाने के जागीरदार और सन् 1965 से 1977 तक जिला जालोर के जिला प्रमुख रहे। राव हमीरसिंह के साले राजा गोपालसिंह आहोर विधानसभा क्षेत्र से दो बार विधायक और 1977-1978 तक राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष रहे।
उल्लेखनीय है कि वे 1962 से 1987 तक लगातार 25 वर्ष तक ग्राम पंचायत मेजा के सर्वसम्मति से सरपंच चुने गए। जैसी उनकी शिक्षा और व्यक्तित्व था, उसमें सरपंच जैसे पद पर लम्बी अवधि तक बहुत लगन, निष्ठा और ईमानदारी से कार्य करना अपने आप में बेहद चौंकाने वाला है। इसका जवाब उन्होंने अजयमेरु में ही प्रकाशित एक साक्षात्कार में उन्होंने दिया। उनका कहना था कि ग्रामवासियों के ठिकाने के प्रति अगाध प्रेम, समर्पण और विश्वास के कारण तथा अपनी पैतृक सम्पत्ति की रक्षा और गांव की उन्नति की सोच के कारण ही उन्होंने सरपंच बनना स्वीकार किया और अपने कार्यकाल में सभी ग्रामवासियों को कृषिभूमि के पट्टे दिए तथा पक्के मकान बनाने की प्रेरणा दी। उन्होंने बड़े फख्र के साथ बताया था कि उनके गांव में कोई भी व्यक्ति भूमिहीन व मकानविहीन नहीं है।
यूं पहुंचे रेलवे में चेयरमैन पद पर
25 वर्ष तक ग्रामीण परिवेश में रहने के बाद 1987 तक सरपंच जैसे पद पर रहते हुए ही 1987 में रेलवे भर्ती बोर्ड के चेयरमैन के पद पर कैसे पहुंचे, इस पर उनका सीधा सा उत्तर था कि किसी विवाह समारोह में तत्कालीन रेलमंत्री श्री माधवराव सिंधिया से परिचय हुआ। श्री सिंधिया ने विस्तार से जीवन परिचय जानने के बाद उन्हें रेलवे भर्ती बोर्ड के चेयरमैन पद पर कार्य करने की प्रेरणा दी।
अजमेर रेलवे भर्ती बोर्ड के चेयरमैन का एक ही पद रिक्त था और उसके पैनल में कुल 15 व्यक्तियों का नाम था। इनमें पश्चिमी रेलवे के रिटायर्ड जनरल मैनेजर का नाम भी था। राव हमीरसिंह ने बताया कि उन्होंने संघ लोक सेवा आयोग के लिए तैयारी की और चयनकर्ताओं के सभी प्रश्नों के उत्तर दिए। प्रशासनिक अनुभव के बारे में पूछने पर दृढ़तापूर्वक उत्तर दिया कि प्रशासन की क्षमता तो हमारे खून में व वंश परम्परा में विद्यमान है, ऐसे में चयन हो गया। उन्होंने बताया कि उन्होंने 1987 से 1993 लगभग छह वर्ष तक पूर्ण निष्ठा से अजमेर रेलवे भर्ती बोर्ड के चेयरमेन के गरिमामय पद पर सफलतापूर्वक कार्य किया। उन्होंने बताया कि इस अवधि में अजमेर, रतलाम, कोटा व जयपुर के अतिरिक्त जोधपुर तथा बीकानेर मण्डल के रिक्त पदों पर लगभग 10,000 प्रत्याशियों को चयनित किया गया।

प्रतिभाओं को उभारने का जज्बा
राजपूत समाज की सर्वांगीण उन्नति में उनके योगदान को वर्षों तक याद किया जाता रहेगा। 1999 में प्रदेश के राजपूत युवक एवं युवतियों को प्रोत्साहन देने के लिए क्षत्रिय प्रतिभा विकास एवं शोध संस्थान की अजमेर में स्थापना हुई, जिसमें उन्हें सर्वसम्मति से मुख्य संरक्षक चुना गया। संस्थान द्वारा अनेक प्रतिभावान युवक-युवतियों को प्रोत्साहित करने के लिए सम्मानस्वरूप मैडल और प्रशंसा प्रमाण-पत्र दिए जा चुके हैं। प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले समारोह में समाज की अति विशिष्ट हस्तियों की अध्यक्षता रही है, जिनमें श्रीमती प्रतिभा पाटिल, श्री विलासराव देशमुख, श्री दिग्विजय सिंह, श्री अरविन्दसिंह मेवाड़, श्री गजसिंह जोधपुर तथा महारावल श्री रघुवीरसिंह सिरोही के नाम उल्लेखनीय हैं।
उनका कहना था कि समाज के प्रतिभावान युवक-युवतियों को प्रशासनिक सेवाओं के लिए प्रेरित करने और इसके लिए अपेक्षित प्रशिक्षण देने के मकसद से 'राजपूत प्रशासनिक प्रशिक्षण एकेडमीÓ की स्थापना का विचार है और इस बारे में समाज के प्रमुख व प्रभावशाली व्यक्तियों से सलाह मश्विरा कर इसे क्रियान्वित करवाने की उनकी हार्दिक इच्छा है।
राव साहब समाज सेवा के क्षेत्र में विशेष रुचि लेकर कार्य कर रहे रहे और पुष्कर स्थित जयमल ट्रस्ट व राजपूत बोर्डिंग तथा राजपूत समाज वैवाहिक समिति, पुष्कर के भी संरक्षक थे।
जीवन के आखिरी क्षण तक उन्होंने समाज सेवा की। छह मई 2011 को अपने विवाह की 57वीं सालगिरह के अवसर पर मेजा में स्थायी नि:शुल्क चिकित्सा सुविधा की व्यवस्था की।
उनके एकमात्र पुत्र जितेन्द्र सिंह आर.ए.एस. वर्तमान में आरटीओ के पद पर उदयपुर में कार्यरत हैं, जबकि उनके एकमात्र पौत्र विक्रमादित्य जोधपुर में होटल व्यवसाय का संचालन कर रहे हैं। पुत्र और पौत्र दोनों ही मेयो कॉलेज से शिक्षित हैं।

पायलट की एवज में मिले जाट से कितनी होंगी उम्मीदें पूरी?

जैसे फिल्मी दुनिया और गैंबलिंग में स्टार्स की अहम भूमिका होती है, कुछ ऐसा ही राजनीति में भी होता है। कौन कब सैंचुरी बना ले और कौन कब जीरो पर आउट हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। कुछ ऐसा ही अजमेर की राजनीति में हुआ। जिन प्रो. सांवरलाल जाट को पिछले से पिछले लोकसभा चुनाव में अजमेर से लडऩे के योग्य नहीं मान कर किरण माहेश्वरी को उतारा गया, उन्हीं को पिछले चुनाव में राज्य सरकार के केबीनेट मंत्री पद का मोह त्याग कर जबरन उतारा गया और उनका सितारा इतना बुलंद था कि वे न केवल शानदार वोटों से जीते, अपितु जिन सचिन पायलट को हराया, उन्हीं के कद के बराबर राज्य मंत्री पद भी हासिल कर लिया। बेशक कुछ लोगों को सचिन जैसे दमदार मंत्री को खोने का मलाल हो सकता है, मगर अजमेर के लिए यह संतोषजनक बात है कि उसे मंत्री के रूप में सचिन की जगह जाट मिल गए हैं। अब सवाल ये उठता है कि क्या उनकी परफोरमेंस भी वैसी ही रहेगी, जैसी कि सचिन की रही थी?
यह एक सच्चाई है कि भले ही सचिन पर ये आरोप लगाया जाता रहा कि वे सिर्फ हवाई दौरे करते थे व स्थानीय नेताओं को खास तवज्जो नहीं देते थे, मगर साथ ही आम धारणा ये भी है कि उन्होंने अजमेर के लिए पहली बार कुछ किया जबकि पांच बार भाजपा के सांसद रहे प्रो. रासासिंह रावत कुछ नहीं कर पाए। एक मात्र यही वजह थी कि मोदी लहर के बाद भी कई लोग मानते थे कि उन्होंने जो काम किए हैं, उसकी एवज में जनता उनको नवाज सकती है। कदाचित इसी बात का गुमान खुद सचिन को भी था। वे खुद सभाओं में कहते नजर आए कि उन्हें काम के आधार पर वोट दिया जाए, अगर ऐसा नहीं हुआ तो राजनेताओं का यह विश्वास टूट जाएगा कि जनता की सेवा करने पर वह मेवा देती है। खैर, सचिन का विश्वास तो मोदी की आंधी में धराशायी हो गया, मगर आज भी लोग सचिन को याद तो करते ही हैं। अब सवाल ये उठता है कि क्या उनकी एवज में मिले प्रो. जाट अजमेर के लिए कुछ कर पाएंगे?
जहां तक हालात का सवाल है, दोनों में कुछ समानता है। सचिन की तरह ही जाट के कार्यकाल में राजस्थान में खुद की पार्टी की सरकार है। यानि कि यदि वे कोई ऐसी योजना लाते हैं, जिसमें कि राज्य की भी भागीदारी जरूरी है तो उन्हें दिक्कत पेश नहीं आएगी। जिस प्रकार सचिन कांग्रेस हाईकमान के खासमखास हैं, उसी तरह जाट का भी जितनी जद्दोजहद के बाद मनोनयन हुआ है, उससे लगता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सोच समझ कर ही उन्हें मंत्री पद दिया है। दो मामलों में जाट सचिन से आगे हैं। एक ये कि सचिन कांग्रेस हाईकमान की राय से चलने वाले तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की टीम में थे, जब कि जाट को एक ऐसे प्रधानमंत्री के साथ काम करने का मौका मिला है, जिन्होंने जनता की उम्मीदें बहुद ज्यादा जगा रखी हैं। कम से कम फिलहाल तो यही माना जा रहा है कि वे कुछ नया व युगांतरकारी कर दिखाने वाले हैं। दूसरा ये कि सचिन की तो फिर भी तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से कोई खास ट्यूनिंग नहीं थी, मगर जाट की तो मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे से जबरदस्त घनिष्ठता रही है। वे वसुंधरा के संकट मोचक के रूप में जाने जाते रहे हैं। इसके अतिरिक्त एक केबीनेट मंत्री के रूप में भी उन्हें यहां काम करने का अनुभव हासिल है, इस कारण यहां के प्रशासनिक तंत्र के मिजाज से भी अच्छी तरह से वाकिफ हैं। राज्य सरकार के कामकाज की बारीकी से भी वे अच्छी तरह से परिचित हैं। इसके अतिरिक्त उनका साथ देने को दो राज्यमंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी व अनिता भदेल सहित जिले के सात विधायक तैयार हैं। जाट अजमेर में ही जन्मे हैं, इस कारण सचिन की तुलना में न केवल उनके स्थानीय संपर्क बेहतर हैं, अपितु यहां की जरूरतों को भी अच्छी तरह से जानते हैं। ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिए कि वे सचिन से कहीं बेहतर काम करके दिखा सकते हैं। बस जरूरत है तो इस बात की उनमें कुछ कर दिखाने का शिद्दत कितनी है। सब जानते हैं कि जब पहली बार सचिन अजमेर आए थे तो स्थानीय कांग्रेसियों को बड़ी तकलीफ हुई थी। बड़ी मुश्किल से जा कर वे अपनी जाजम बिछा पाए थे, मगर अजमेर को ही अपनी कर्मभूमि बनाने की खातिर उन्होंने जम कर काम किया। दूसरी ओर जाट स्थानीय होने के कारण नए सिरे से जाजम बिछाने की जरूरत नहीं समझते होंगे, मगर इतना तय है कि उन पर कुछ कर दिखाने का दबाव ज्यादा रहेगा, वरना अगली बार दिक्कत पेश आ सकती है।
जाट कैसा काम कर पाएंगे, इसका अनुमान फिलहाल इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने विचारधीन व निर्माणाधीन योजनाओं को पूरा करने के प्रति अपनी रुचि दिखाना शुरू कर दिया है। ये उनका सौभाग्य है कि उनके कार्यकाल में ही अजमेर को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए अमेरिका से दो सौ करोड़ मिलने जा रहे हैं। ये काम भले ही केन्द्र की पहल पर शुरू हो रहा है, जिसमें फिलवक्त जाट की कोई भूमिका नहीं है, मगर इसके पूरा होने का सारा श्रेय वे हासिल कर सकते हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000