बुधवार, 14 अगस्त 2013

पहले मैदान छोड़ कर भाग चुके हैं जस्टिस इसरानी

हाल ही आगामी विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर सीट के कांग्रेस टिकट के लिए जस्टिस इंद्रसेन इसरानी का नाम उभर कर आया है। कहने की जरूरत नहीं है कि वे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबी हैं और चूंकि पूर्व न्यास अध्यक्ष नरेन शहाणी भगत का टिकट कटा हुआ माना जा रहा है, इस कारण अनेक सिंधी दावेदारों के बीच उनके नाम में तनिक गंभीरता नजर आती है। हालांकि अभी उन्होंने अपनी ओर से दावेदारी की इच्छा जताई है या नहीं, पता नहीं, मगर उनका नाम आने से अन्य सिंधी दावेदारों को सांप सूंघ गया है। उन्हें ये पता नहीं है कि वे इससे पहले एक बार अजमेर से चुनाव लडऩे का मानस बना चुके हैं, मगर अपनी छोटी सी भूल की वजह से उन्हें दावेदारी करने से पहले ही मैदान छोड़ कर भागना पड़ा था।
आपको बता दें कि तत्कालीन राजस्व मंत्री स्वर्गीय श्री किशन मोटवानी के निधन के कारण हो रहे 202 के उपचुनाव में मैदान खाली देख कर उनका मन इस सीट के लिए ललचाया था। इसके लिए उन्होंने अपने करीबी दैनिक हिंदू के संपादक हरीश वरियानी के माध्यम से अजमेर की कुछ सिंधी कॉलोनियों में बैठकें कर जमीन तलाशी थी। उनका स्वागत भी हुआ। यहां तक कि उन्होंने तब स्वर्गीय नानकराम जगतराय से भी मुलाकात की थी। चूंकि तब तक नानकराम को यह कल्पना भी नहीं थी कि उन्हें टिकट मिलेगा, इस कारण उन्होंने अपना समर्थन देने का आश्वासन भी दिया था। ज्ञातव्य है कि उस उपचुनाव में नानकराम को टिकट मिला और वे जीते भी।
बहरहाल, जानकारी के अनुसार अपने अजमेर प्रवास के दौरान उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस भी की। उसमें असावधानी के चलते उनके मुंह से कुछ ऐसा बयान निकल गया, जिसका अर्थ ये निकलता था कि सिंधी तो भाजपा के गुलाम हैं, उस पर बवाल हो गया। भाजपा से जुड़े सिंधी संगठनों ने उनके इस बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया दी। इस पर माहौल बिगड़ता देख कर उन्होंने दावेदारी का मानस ही त्याग दिया। उस दिन के बाद कम से कम इस सिलसिले में तो वे अजमेर नहीं आए। अब जब कि एक बार फिर मैदान खाली है तो उनका नाम फिर उछल रहा है। पता नहीं उन्होंने दावेदारी की इच्छा जताई है या नहीं, मगर उनका नाम उछलने से सहसा पुराना वाकया जिंदा हो गया है।
-तेजवानी गिरधर