गुरुवार, 14 मार्च 2013

इब्राहिम फखर ने खुद ही किया अपने आपको दावेदारी से अलग

सैयद इब्राहिम फखर

पुष्कर विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिम जमात से भाजपा के प्रबल दावेदार सैयद इब्राहिम फखर ने खुद अपने आपको दोवदारी से अलग कर लिया है। तीर्थराज पुष्कर में भाजपा के तीन मुस्लिम दावेदार शीर्षक से इसी कॉलम में प्रकाशित आइटम पर प्रतिक्रिया करते हुए जनाब फखर ने कहा है कि न वे पहले कभी दावेदार थे और न ही आज हैं। साथ यकीन दिलाया है कि वे कभी खुद टिकट मांगने नहीं जाएंगे। इतना ही नहीं उन्होंने दरियादिली दिखाते हुए यह तक लिखा है कि दूसरे जो लोग कोशिश कर रहे हैं तो उन्हें भी उनकी वजह से हतोत्साहित नहीं होना चाहिए। वे पार्टी के साथ बंधे हैं और पार्टी जो निर्णय करेगी, उसका पालन करेंगे।
जनाब फखर साहब इतनी साफगोई के लिए धन्यवाद के पात्र हैं। राजनीति में कभी कोई इस तरह से अपने आपको दावेदारी से अलग नहीं करता, जिसे कि अन्य लोग ही दावेदार मान रहे हों। वैसे अपना मानना है कि जहां कई लोग इस कोशिश में रहते हैं कि उनको मीडिया में दावेदार माना जाए तो कई ऐसे भी होते हैं जो दावेदार तो होते हैं, मगर उसे जताना नहीं चाहते क्योंकि पहले से दावेदारी उजागर हो जाने पर कारसेवा का खतरा रहता है। जहां तक फखर साहब का सवाल है, हालांकि वे खुद की ओर से दावेदारी नहीं करने की बात कह जरूर रहे हैं, जो कि सही ही मानी जानी चाहिए, मगर अपनी जानकारी यही है कि वे पुष्कर विधानसभा क्षेत्र में दावेदारी के लिए ही सक्रिय रहे हैं और डिजर्स भी करते हैं। खैर, जहां तक फखर साहब ने टिकट की कोशिश करने वाले अन्य को हतोत्साहित न होने का संदेश दिया है, अपना मानना है कि यह आईएनजी लाइफ इंश्योरेंस कंपनी में ग्रुप सेल्स मैनेजर के रूप में काम कर रहे मुंसिफ अली के लिए सुखद हो सकता है, जो कि जमीन पर पूरी तैयारी कर रहे हैं।
जनाब इब्राहिम फखर ने अपनी प्रतिक्रिया कितनी संजीदगी और कूल मांइड से दी है, जरा आप भी पढ़ लीजिए:-
tejwani ji,
shukriya app ka ki app bande ko is layak mante ho lekin bhai sahib na me pehle ticket ka davedar tha aur na hi ajj hu ,mujhe party ne jimmedari di jise me imandari se pura karna chahta hu vishwas rakhiye me kabhi swaym ticket mangne nahi jaunga aur meri vajag se dusre log jo koshish kar rahe ho unhe bhi hatossahit nahi hona chahiye me puri tarah se bjp ke sath hu aur voh jo bhi nirnay karegi akhshartaya uski palna karunga phir party chahe jo nirnay kare ,ek bar phir app ka dhanyewad tejwani ji lekin mujhe is race se door hi rakhe to meharbani hogi .
अब आप समझ सकते हैं कि उन्होंने न्यूज आइटम को कितने सकारात्मक रूप से लिया है, जो कि एक सुलझे हुए राजनीतिज्ञ की निशानी है।
-तेजवानी गिरधर

बार-बार निशाने पर आ जाते हैं बार अध्यक्ष टंडन


अजमेर बार के अध्यक्ष राजेश टंडन का पिछला अध्यक्षीय काल भले ही अपेक्षाकृत चमकदार रहा हो, मगर इस बार तो वे बार-बार अपने ही वकील साथियों के निशाने पर आ रहे हैं। और दिलचस्प बात ये है कि जिस बार अध्यक्ष पद की बदौलत उन्होंने कांग्रेस में अहमियत पाई थी, उसी पार्टी का नेता होने के कारण ही उन्हें बार की नेतागिरी में दिक्कत आ जाती है।
हाल ही जब उन्होंने सरकार को सद्बुद्धि देने के लिए ख्वाजा साहब की दरगाह की जियारत करने का निर्णय किया तो कुछ वकीलों ने विरोध कर दिया। वकील संजीव टंडन, राजेश ईनाणी, प्रदीप कुमार, जितेंद्र खेतावत व विनोद शर्मा समेत अन्य वकीलों ने इस संबंध में टंडन को पत्र लिख कर जियारत को स्वार्थ से प्रेरित बताया और यात्रा के मुद्दे पर साधारण सभा बुलाने की मांग की। कुछ ऐसा ही विरोध पाक प्रधानमंत्री राजा परवेज अशरफ की यात्रा का विरोध करने के दौरान भी हुआ, जब कुछ कांग्रेसी विचारधारा के वकीलों ने इस पर ऐतराज जताया। असल में दिक्कत ये है कि बार अध्यक्ष होने के साथ-साथ वे राजनीतिक दल के नेता भी हैं। अगर कभी बार अध्यक्ष होने के नाते निष्पक्ष हो कर वकीलों की पैरवी करते हैं तो कांग्रेस से बुरे बन जाते हैं और अपनी कांग्रेसी छवि बचाने की कोशिश करते हैं तो अन्य विचारधारा के वकीलों के निशाने पर आ जाते हैं।
आपको याद होगा कि एक बार जब शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता ने वकीलों के बारे में कुछ आपत्तिजनक टिप्पणी की तो टंडन को बार अध्यक्ष होने के नाते उनसे भिडऩा पड़ा, जिसका नतीजा ये हुआ कि उनकी फोकट में ही रलावता से टशल हो गई। रलावता के शागिर्दों ने टंडन को कड़ा जवाब देने की कोशिश की। इसी प्रकार बार अध्यक्ष के नाते शहर के हित में उर्स की बदइंतजामियों पर उग्र रुख अपनाया तो कांग्रेसियों ने उनके कपड़े फाडऩा शुरू कर दिया। उन्होंने एक दिन का उपवास किया तो उस पर प्रदेश कांग्रेस के महासचिव सुशील शर्मा ने यह कह विवाद किया कि टंडन को व्यक्तिगत रूप से आंदोलन करने का अधिकार है, लेकिन पार्टी के पूर्व सचिव की हैसियत से इस तरह के आंदोलन का अधिकार नहीं है। शर्मा ने टंडन के इस उपवास को सस्ती लोकप्रियता करार दिया। कुल मिला कर टंडन पर कांग्रेसी होने के बावजूद कांग्रेस सरकार को घेरने का आरोप झेलना पड़ा।
वैसे भी उनका मौजूदा कार्यकाल कुछ कमजोर साबित होता जा रहा है। अध्यक्ष भले ही वे हैं, मगर एंटी लॉबी के सचिव उनसे कहीं अधिक पावरफुल प्रतीत होते हैं। पावरफुल न भी हों, तो भी वे उन्हें चैक तो करते ही हैं। इसी के चलते एक बार प्रशासन से समझौता वार्ता करने के बाद विरोध का सामना करना पड़ा। अब वे समझौतावादी रुख रख कर ही अध्यक्ष पद को निभा रहे हैं।
-तेजवानी गिरधर