सोमवार, 4 नवंबर 2019

अनिता भदेल आाखिर में अपना पत्ता खोलेंगी?

हालांकि जिस दिन अजमेर नगर निगम के मेयर की लॉटरी अनुसूचित जाति की महिला के नाम पर निकली, अजमेर दक्षिण से मौजूदा विधायक व पूर्व राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल ने उसी दिन साफ कर दिया था कि वे मेयर पद का चुनाव नहीं लड़ेंगी, पार्टी कहेगी तो भी नहीं, मगर कानाफूसी है कि वे आखिरी समय में दावा ठोकेंगी।
राजनीति के जानकारों का मानना है कि श्रीमती भदेल ने एक रणनीति के तहत मेयर पद की दावेदारी से अपने आप को अलग रखा है। अगर वे जरा सी भी रुचि दिखातीं तो उनके विरोधी अभी से कार सेवा में जुट जाते। वैसे भी अभी बहुत टाइम पड़ा है। जानकारों का मानना है कि श्रीमती भदेल के लिए विपक्ष के एक विधायक के तौर पर चार साल टाइम खराब करने की बजाय आगामी पांच साल के लिए मेयर बनना ज्यादा उपयोगी है। अभी वे सिर्फ एक विधानसभा का प्रतिनिधित्व करती हैं, मेयर बनने पर दो विधानसभा क्षेत्रों से भी अधिक इलाके की प्रतिनिधि हो जाएंगी। इसके अतिरिक्त स्मार्ट सिटी के तहत अभी करोड़ों रुपए के काम होने हैं। हालांकि यह तय है कि जब मेयर का चुनाव होगा, तब तक जिला प्रमुख वंदना नोगिया पद मुक्त हो जाएंगी, इस कारण दमदार तरीके से दावेदारी करेंगी, मगर उनसे अधिक दमदार दावेदारी श्रीमती भदेल की रहेगी। वंदना को मौका तो मिला, मगर उन्होंने उसका फायदा उठा कर जाजम नहीं बिछाई। रहा सवाल श्रीमती भदेल का तो अब ये उन पर निर्भर है कि वे किसी वार्ड से चुनाव लड़ कर मेयर पद की दावेदारी में आएंगी, या फिर सीधे मेयर पद की दावेदारी करेंगी। ज्ञातव्य है कि भले ही सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया हो कि मेयर का चुनाव पार्षदों में से ही होगा, मगर सीधे मेयर पद का चुनाव लडऩे की अधिसूचना अब भी वजूद में है। श्रीमती भदेल अभी भले ही अपने स्टैंड पर कायम हों, मगर राजनीति समझने वाले मानते हैं कि वे आखिरी समय में मैदान में आ डटेंगी।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

हेमंत भाटी की पत्नी का दावा सामने आते ही मची हलचल

कांग्रेस नेता हेमंत भाटी ने अजमेर नगर निगम के अनुसूचित जाति की महिला के लिए आरक्षित मेयर पद के लिए अपनी पत्नी श्रीमती सुनीता भाटी  का जैसे ही दावा ठोका है, गुलाबी सर्दी के बीच यकायक सियासत में गरमाहट आ गई है।
ज्ञातव्य है कि अब तक की जानकारी के अनुसार अनुसूचित जाति के पुरुष के सामान्य वर्ग की महिला के साथ शादी होने पर महिला को अनुसूचित जाति के तहत मिलने वाले लाभ नहीं मिला करते, लेकिन भाटी ने एक अधिसूचना का हवाला देते हुए कहा है कि उनकी पत्नी मेयर पद के लिए दावा करने की पात्रता रखती हैं। एक बयान में उन्होंने बताया कि गत 21 अक्टूबर को राज्यपाल ने जो अधिसूचना जारी की है, उसमें यह स्पष्ट है कि सामान्य वर्ग की महिला को अनुसूचित जाति के पुरुष के साथ शादी करने पर उसे भी अनुसूचित जाति के सारे लाभ मिलेंगे। हालांकि अधिसूचना में ये अलग से स्पष्ट नहीं किया गया है कि क्या वह चुनावों में भी आरक्षण के लाभ पर लागू होगी, मगर मोटे तौर पर तो यही माना जा रहा है। राज्यपाल की ओर से जारी अधिसूचना की खबर 22 अक्टूबर की राजस्थान पत्रिका में भी छपी है। उसकी कटिंग इस समाचार के साथ दी जा रही है।
खैर, बात भाटी के दावे की। जैसे ही उन्होंने दावा किया है, उन दावेदारों की पेशानी पर लकीरें खिंच गई हैं, जो कि यह सोच कर निश्चिंत थे कि भाटी की पत्नी चुनाव लडऩे की पात्रता नहीं रखतीं हैं। अनुसूचित जाति के पुरुषों की पत्नियों के साथ-साथ अनुसूचित जाति की महिला पार्षदों को भी तकलीफ होना स्वाभाविक है, जो चुनाव की तैयारियों में जुटी हुई हैं। कहने की आवश्यकता नहीं है कि राजनीतिक रसूखात, जनाधार व साधन संपन्नता के लिहाज से भाटी का दावा अन्य की अपेक्षाकृत भारी पड़ेगा। भले ही वे विधानसभा चुनाव में हार गए हों, मगर नगर निगम के पिछले चुनाव में उन्होंने जिस तरह अपना वर्चस्व साबित किया है, वह सबके सामने है। अकेले उन्हीं के दम पर कई पार्षद जीत कर आए थे। निगम में भाजपा को चुनौती उनके दक्षिण क्षेत्र के पार्षदों के कारण दी जा सकी, वरना उत्तर में तो हालत बहुत खराब थी। बहरहाल, अब देखते हैं कि आगे-आगे होता है क्या?
-तेजवानी गिरधर
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