मंगलवार, 18 नवंबर 2014

मंत्रियों के टकराव से विकास तो बाधित नहीं होगा?

मंत्रीमंडल विस्तार के दौरान जैसे ही अजमेर दक्षिण की विधायक श्रीमती अनिता भदेल को राज्य मंत्री बनाए जाने की बात लीक हुई तो सभी को आश्चर्य हो रहा था कि ये कैसे हो सकता है, मंत्री बनना तो अजमेर उत्तर के विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी का तय था। ज्ञातव्य है कि श्रीमती भदेल का नाम किसी जानकार ने उजागर किया था, तब सारे मंत्रियों की आधिकारिक घोषणा नहीं हुई थी, इस कारण अचानक संदेह उत्पन्न हुआ कि कहीं देवनानी को मंत्री बनने से वंचित तो नहीं कर दिया गया, मगर बाद में जब अनिता भदेल के साथ उनका भी नाम घोषित हुआ तो देवनानी समर्थकों को राहत मिली।
बताया जाता है कि देवनानी का नाम काफी पहले से तय था। संघ का पूरा दबाव था कि उन्हें मंत्री बनाया जाए। मुख्यमंत्री वसुंधरा न चाहते हुए भी मजबूर थीं। ऐसे में उन्होंने बैलेंस करने के लिए वीटो का इस्तेमाल करते हुए अनिता को भी उनके बराबर ला कर खड़ा कर दिया। बताया जाता है कि देवनानी को केबीनेट मंत्री बनाया जाना था, मगर चूंकि वसुंधरा अनिता को भी चांस देना चाहती थीं, इस कारण देवनानी को केबीनेट की बजाय राज्य मंत्री बना दिया। अब दोनों ही बराबर की हैसियत के मंत्री हैं। बेशक देवनानी के पास शिक्षा विभाग जैसा महत्वपूर्ण विभाग है, जबकि अनिता के पास महिला व बाल विकास विभाग जैसा तुच्छ विभाग, मगर जानकार लोग समझते हैं कि अनिता कहीं अधिक पावरफुल हैं। इसकी वजह ये है कि सब को पता लग गया है कि वे वसुंधरा की पहली पसंद हैं। जाहिर तौर पर इसका राजनीतिक हलकों व प्रशासनिक खेमे में असर होगा। वे अनिता भदेल को ज्यादा तवज्जो दे सकते हैं। मिसाल के तौर पर अजमेर के किसी मसले पर यदि दोनों मंत्रियों में कोई मतभेद होता है तो विवाद स्थानीय प्रशासन तो निपटा नहीं पाएगा और वह मामला मुख्यमंत्री के पास भेज देगा, ऐसे में समझा जाता है कि वे अनिता का पक्ष लेकर देवनानी को नीचा दिखा सकती हैं। इस लिहाज से देवनानी के लिए काफी कठिन वक्त है। हालांकि वे मंत्री तो बन गए हैं, मगर उनके दिन का चैन व रात की नींद हराम ही रहेगी। कहने की जरूरत नहीं है कि पिछले ग्यारह साल से दोनों की बीच छत्तीस का आंकड़ा है। दोनों में टकराव की अनेक घटनाएं सामने आ चुकी हैं। हाल ही जयपुर से अजमेर लौटते वक्त जब जुलूस भी निकले तो अलग-अलग, जो कि गुटबाजी का पक्का सबूत है। इस गुटबाजी में भाजपा का एक बड़ा धड़ा देवनानी के खिलाफ है। वह हर वक्त देवनानी को नीचा दिखाने की कोशिश करता रहता है। अब उसे अनिता का संबल मिल गया है। ऐसे में हर छोटे-मोटे मसले पर देवनानी को परेशानी आ सकती है। अनिता की वजह से उन्हें केबीनेट मंत्री पद से वंचित रहना पड़ा और साथ ही उन पर हर वक्त अनिता का चैक लगा रहेगा। समझा जाता है कि देवनानी के राजनीतिक जीवन में इससे कठिन समय कभी नहीं आया।
जहां तक दोनों मंत्रियों के टकराव के असर का सवाल है, इससे सबसे ज्यादा परेशान स्थानीय अधिकारी रहेंगे। उनके लिए एक ओर कुआं तो दूसरी ओर खाई है। किसी भी छोटे विवादित मुद्दे पर वे किस की मानें, यह असमंजस बना रहेगा। माना पुलिस थाने में कोई केस आता है और एक पक्ष के साथ अनिता होती हैं और दूसरे पक्ष का साथ देवनानी देते हैं तो संबंधित पुलिस अधिकारी किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाएगा। किसकी माने और किसकी नहीं। यानि कि दोनों की लड़ाई में अधिकारी पिस जाएंगे। अलबत्ता, शातिर अफसर इस फूट का लाभ भी उठा सकते हैं।
हालांकि उम्मीद तो यही की जा रही है कि अजमेर शहर को एक साथ दो राज्यमंत्री मिलने के कारण ज्यादा विकास होगा, मगर इसके विपरीत दोनों के टकराव का अजमेर के विकास पर भी असर पड़ सकता है। विकास के किसी काम पर अगर दोनों की राय भिन्न हुई तो वह लंबित हो सकता है।
दोनों के टकराव का सबसे अहम पहलु ये है कि सबसे अनुशासित पार्टी कहलानी वाली भाजपा के मंत्री इस प्रकार अपनी गुटबाजी को सार्वजनिक किए हुए हैं। कैसी विडंबना है कि केन्द्र और राज्य में भाजपा प्रचंड बहुमत से सत्ता पर काबिज हैं, मगर उसके दो मंत्री मनमानी पर उतारू हैं और दोनों ने अपना स्वागत जुलूस अलग अलग निकलवाया। उन्हें न तो संघ हिदायत दे कर एक कर पाया और न ही मुख्यमंत्री। जानकारी के अनुसार शहर भाजपा अध्यक्ष अरविंद यादव ने दोनों से आग्रह किया कि एक ही जुलूस निकाला जाए, मगर वे नहीं माने। ऐसे में जनता के पास क्या संदेश गया, ये आसानी से समझा जा सकता है। इसका आगामी निगम चुनाव पर असर पड़ता साफ दिखाई दे रहा है। अगर दोनों के बीच खींचतान बड़ी तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा कि निगम पर कब्जा करने से भाजपा वंचित रह जाए।
-तेजवानी गिरधर