शनिवार, 28 जून 2014

एडीए चेयरमेन बनने के लिए हो रही है भागदौड़

भाजपा को राज्य व केन्द्र में सत्तारूढ़ करवाने में अहम भूमिका अदा करने वाले अजमेर के भाजपा नेता अब प्रतिष्ठापूर्ण व मलाईदार पदों की चाह में अपने-अपने रसूखात के जरिए हाथ-पैर मार रहे हैं। यूं तो सरकार के पास बांटने के लिए कई तरह के पद हैं, मगर सर्वाधिक महत्व का है अजमेर विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष पद। प्राधिकरण जब नगर सुधार न्यास था, तब भाजपा सरकार में धर्मेश जैन तो कांग्रेस सरकार में नरेन शहाणी भगत को अध्यक्ष बनाया गया, मगर दुर्भाग्य से दोनों ही विवाद की वजह से कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। अब चूंकि अजमेर के साथ पुष्कर व किशनगढ़ को भी जोड़ कर प्राधिकरण बनाया गया है, इस कारण इसका महत्व काफी बढ़ गया है और यही वजह है कि इसका अध्यक्ष बनने के लिए उतनी ही अधिक ताकत की जरूरत है।
जानकारी है कि न्यास के पूर्व अध्यक्ष धर्मेश जैन चाहते हैं कि उन्हें फिर मौका दिया जाए, ताकि वे अपने अधूरे काम पूरे कर सकें, साथ ही नए कार्य भी हाथ में लें। जाहिर तौर पर उनका तर्क ये है कि पिछली बार जिस विवाद की वजह से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा, वह विवाद था ही नहीं। भाजपा की छोडिय़े, कांग्रेस सरकार में ही उन्हें क्लीन चिट दी गई। यानि कि वे पूरी तरह से पाक साफ साबित हो चुके हैं। उनके तर्क में दम भी है, मगर देखना ये है कि वे अपने लिए कितनी तगड़ी लॉबिंग कर पाते हैं।
अजमेर नगर परिषद के पूर्व सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत का नाम प्रबल दावेदारों की गिनती में आता है। उनका तर्क ये है कि विधानसभा चुनाव में वे अजमेर उत्तर से टिकट के प्रबल दावेदार थे, मगर हाईकमान के आश्वासन के बाद उन्होंने सब्र किया, अत: उन्हें अब उचित इनाम मिलना ही चाहिए। बताया जाता है कि मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे से उनके करीबी रिश्ते भी हैं। दिक्कत सिर्फ ये आ रही बताई कि उन्हें वरिष्ठ भाजपा नेता ओम प्रकाश माथुर लॉबी का माना जाता है, जिनकी वसुंधरा राजे से नाइत्तफाकी जगजाहिर है। हालांकि तस्वीर का दूसरा रुख ये है कि माथुर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के करीबी हैं, इस कारण ऊपर की सिफारिश भी रंग ला सकती है।
इसी प्रकार नगर निगम के पहले मेयर धर्मेन्द्र गहलोत को भी प्रबल दावेदार माना जाता है। उन पर अजमेर उत्तर के विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी का वरदहस्त है। वे काफी ऊर्जावान भी हैं। इसी क्षमता के कारण उनका नाम नए शहर भाजपा अध्यक्ष पद के लिए चर्चा में है, मगर उनकी रुचि एडीए चेयरमेन बनने में बताई जा रही है। विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर की टिकट के लिए एडी चोटी का जोर लगाने वाले शिवशंकर हेडा के भी ऊपर अच्छे रसूखात हैं और वैश्य तुष्टिकरण के नाते उनका नंबर आ सकता है, मगर चुनाव के दौरान उनसे जुड़े कुछ कार्यकर्ताओं पर देवनानी विरोधी काम करने का आरोप है। यूं पूर्व शहर भाजपा अध्यक्ष पूर्णाशंकर दशोरा का भी नाम चर्चा में है, मगर उनकी निर्विवाद छवि और निर्गुट शैली की वजह से फिर से शहर भाजपा अध्यक्ष बनाने पर विचार हो रहा बताया। श्रीमती वसुंधरा राजे की चार माह की सुराज संकल्प यात्रा में पूरे समय साथ रहने वाले शहर भाजपा के प्रचार मंत्री व स्वामी समूह के एमडी कंवलप्रकाश किशनानी भी इस पद के हकदार बताए जा रहे हैं। उन्होंने पूरे यात्रा का न केवल गांव-गांव केबल नेटवर्क पर प्रसारण करवाया, अपितु पूरे राजस्थान में यात्रा की खबरें प्रसारित करने में अहम भूमिका निभाई। मगर उनके लिए स्थानीय गुटबाजी कुछ बाधक बन रही है।

सोमवार, 16 जून 2014

फिर कैसे उठा अजमेर-पुष्कर के बीच सुरंग का मसला?

हाल ही अजमेर आए सार्वजनिक निर्माण मंत्री युनूस खान ने बताया कि अजमेर-पुष्कर घाटी के बीच सुरंग यानि टनल बनेगी और इसका लाभ शहरवासियों के साथ यहां आने वाले पर्यटकों को भी मिलेगा। हालांकि वे यह नहीं बता पाए कि सुरंग का काम कब शुरू होगा, मगर इसके लिए प्रयास करने की बात उन्होंने जरूर कही। बेशक अगर ऐसा होता है तो यह बहुत ही सुविधाजनक होगा, मगर इस सुरंग की बात यकायक आई कहां से ये पता नहीं लगा।
अब तक की जानकारी यही है कि इस सुरंग की बात पहले भी कोई चौदह साल पहले आई थी। सन् 1990 में तत्कालीन पुष्कर विधायक व भेड़ ऊन राज्यमंत्री रमजान खान ने सुरंग की मांग उठाई थी। इसके बाद 1998 से 2003 तक भी यहां के विधायक रहते उन्होंने फिर दबाव बनाया। भाजपा के वरिष्ठ नेता औंकार सिंह लखावत ने भी भरपूर कोशिश की। इस पर वन विभाग, सार्वजनिक निर्माण विभाग और राजस्व विभाग ने सर्वे किया। सर्वे में नौसर स्थित माता मंदिर से पुष्कर रोड स्थित चमत्कारी बालाजी मंदिर तक के मार्ग का सुरंग बनाने के लिए चयन किया गया। इसमें नौसर से बालाजी के मंदिर तक पहाड़ी को काटते हुए सुरंग बनाने का प्रस्ताव तैयार किया गया। इस मार्ग की कुल लंबाई महज आधा किलोमीटर आई, जबकि घाटी से चलने पर यह रास्ता करीब ढाई किलोमीटर का होता है। मगर जानकारी यही है कि सर्वे में यह निकल कर आया कि ऐसी सुरंग बनाना संभव नहीं होगा। इसकी वजह ये बताई गई थी कि अजमेर व पुष्कर को अलग करने वाली पहाड़ी इतनी मजबूत व सख्त नहीं है कि वहां सुरंग खोदी जा सके। अगर सुरंग खोदी गई तो कभी भी ढ़ह सकती है। सुरंग के व्यावहारिक धरातल पर संभव न होने की वजह से ही अजमेर को पुष्कर से जोडऩे के लिए रेल लाइन के प्रस्ताव पर काम किया गया, जिसमें लखावत ने अहम भूमिका निभाई। ऐसे में जाहिर तौर पर सुरंग का प्रस्ताव ठंडे बस्ते में चला गया। अब जब कि सार्वजनिक निर्माण मंत्री युनूस खान ने इसका जिक्र किया है तो संदेह होता है कि कहीं उन्हें अधिकारी वास्तविक जानकारी नहीं दे कर गुमराह तो नहीं कर रहे। कहीं अधिकारी उस वक्त छूटे किसी व्यावहारिक विकल्प की तो बात नहीं कर रहे? जो कुछ भी हो, बात उठी है तो आगे भी चलेगी। देखते हैं होता क्या है?

सोमवार, 2 जून 2014

इस बार जाट का नंबर आयेगा या नहीं?

जैसी की संभावना है, जून की दूसरे-तीसरे हफ्ते में केन्द्रीय मंत्रीमंडल का विस्तार होगा, एक बार फिर राज्य के जलदाय मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट को इसमें शामिल किए जाने की आशा जाग उठी है। हालांकि ये पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि उनका नंबर आएगा या नहीं, मगर उनका हक तो पक्का बनता ही है, क्योंकि उन्हें राज्य के केबीनेट मंत्री पद को तिलांजलि दे कर लोकसभा का चुनाव लड़ाया गया है। इतना ही नहीं उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता व प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट को हराने का श्रेय भी हासिल किया है।
हालांकि उम्मीद तो यही की जा रही है कि मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे जाट को मंत्री बनाने की पैरवी करेंगी, नैतिकता का भी यही तकाजा है, मगर दूसरी ओर कुछ राजनीतिक जानकारों का मानना है कि उनकी प्राथमिकता अपने बेटे व झालावाड़ सांसद दुष्यंत सिंह को मंत्री बनाने की रहेगी, जो कि लगातार तीसरी बार जीते हैं। दुष्यंत सिंह जाट कोटे को भी पूरा करते हैं। समझा जा सकता है कि अपने बेटे को ऊंचे ओहदे पर स्थापित करने का वसुंधरा के लिए यह स्वर्णिम मौका है। पांच साल बाद क्या होगा, कौन क्या कह सकता है? चाहे केन्द्र में, चाहे राज्य में। यदि इस बार राज्य मंत्री भी बनते हैं तो कम से कम उनका एक कद तो बनेगा, जिससे आगे की यात्रा बाद में की जा सकती है। एक अदद सांसद बने रहने पर तो केरियर के लिए अगली बार फिर से आरंभिक मशक्कत करनी होगी। वैसे दुष्यंत के मंत्री बनने पर संदेह इस कारण जाहिर किया जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वंशवाद के विरुद्ध अपना मन्तव्य जाहिर कर चुके हैं। मगर दूसरी ओर वसुंधरा का मिजाज जानने वाले यह मानते हैं कि वे अपनी जिद को पूरा करवाने में माहिर हैं। पिछली बार जिस प्रकार उन्होंने हाईकमान को झुकने को मजबूर किया, वह जगजाहिर है, मगर जिस प्रचंड बहुमत से मोदी प्रधानमंत्री बने हैं, उनको झुकाना आसान नहीं होगा। संघ ही बीच में पड़ जाए तो बात अलग है।
दुष्यंत सिंह को छोड़ भी दें तो राज्य के अन्य भाजपा सांसदों में और भी कई दिग्गज हैं। वे भी अपनी-अपनी ताकत लगा रहे हैं। न केवल वसुंधरा के जरिए, अपितु केन्द्रीय नेताओं के माध्यम से भी। जहां तक राज्य से बनाए गए एक राज्य मंत्री निहाल चंद मेघवाल का सवाल है, उन्हें जिस तरह से मौका दिया गया है, उससे तो यह साफ लगता है कि वे कम से कम वसुंधरा की प्राथमिकता तो नहीं थे। सच तो ये है कि सूची में तो राजस्थान का नाम ही नहीं था, मेघवाल का नाम भी आखिर में जोड़ा गया।
बहरहाल, जैसे ही मंत्रीमंडल विस्तार की चर्चा शुरू हुई है, यह माना जा रहा है कि राजस्थान को कम से कम एक केबीनेट और एक राज्य मंत्री  मिलेगा ही। अब उसमें प्रो. जाट का नंबर आएगा या नहीं, शर्तिया तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। अगर प्रो. जाट को मौका नहीं मिलता है तो यह उनके साथ तो धोखा होगा ही, अजमेर की जनता भी ठगी जाएगी।
-तेजवानी गिरधर

भगत फिर हुए सार्वजनिक जीवन में सक्रिय

पृथ्वीराज स्मारक पर धर्मेश जैन की पीछे हैं भगत
लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस छोडऩे वाले अजमेर नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष नरेन शहाणी भगत सार्वजनिक जीवन में फिर सक्रिय हो गए हैं। हाल ही जब पृथ्वीराज चौहान स्मारक पर आयोजित समारोह में उन्हें देखा गया तो सभी चौंके। वजह ये कि यह कार्यक्रम पूर्ण रूप से भाजपाइयों का था। हालांकि औपचारिकता निभाने के लिए नगर निगम के महापौर कमल बाकोलिया भी मौजूद थे, मगर उनके अतिरिक्त एक भी कांग्रेसी नेता वहां नहीं था। यद्यपि भगत ने कांग्रेस छोड़ दी है, इस कारण यह सवाल बिलकुल बेमानी है कि वे भाजपाई कार्यक्रम में कैसे गए, वे पूर्णत: स्वतंत्र हैं, मगर इससे उनकी भाजपाइयों से नजदीकी का आभास तो होता ही है। वैसे यह भी सच है कि उन्होंने कांग्रेस छोड़ी है, मगर भाजपा ज्वाइन नहीं की है। हालांकि चुनाव के दौरान यही कयास लगाया जा रहा था, मगर वह कोरी अफवाह ही साबित हुई।
समझा जाता है कि भगत की भाजपाइयों से नजदीकी बनाना उनकी राजनीतिक मजबूरी है। नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष रहते कथित रूप से कांग्रसियों ने ही उन्हें लैंड फॉर लैंड मामले में फंसाया और बाद में मदद भी नहीं की। यदि सरकार चाहती तो मामले की जांच त्वरित करवा कर वास्तविकता तक पहुंच सकती थी, मगर उनकी अजमेर उत्तर से टिकट की पक्की दावेदारी को कमजोर बनाए रखने के लिए मामले को जानबूझ कर लटकाए रखा। आखिरकार उनका टिकट कट गया। बावजूद इसके उन्होंने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कहने पर कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. श्रीगोपाल बाहेती के लिए खुल कर काम किया। जब भाजपा की सरकार आ गई तो उन पर शिकंजा कसा जाने लगा। लोकसभा चुनाव में वे अगर कांग्रेस प्रत्याशी सचिन पायलट के लिए काम करते तो शर्तिया सरकार का कोप भाजन बनते।
जानकार सूत्रों के अनुसार पर उन पर दबाव था कि एक तो सचिन के लिए काम न करें और कांग्रेस भी छोड़ें तो सचिन पर आरोप लगा कर। मरता क्या न करता, उन्होंने वही किया। परिणामस्वरूप पार्टी की पूरे पंद्रह साल की सेवा पर पानी फिर गया। हां, मगर अब वे मानसिक तनाव से मुक्त हो चुके हैं। जानकारी के अनुसार अब वे नए सिरे से राजनीतिक जीवन को आरंभ करने के लिए ऊर्जा जुटा रहे हैं। भाजपाई कार्यक्रम में जाने से भले ही उनकी भाजपाइयों से नजदीकी झलकती है, मगर इससे ये संकेत कहीं नहीं मिलते कि वे भाजपा ज्वाइन कर रहे हैं। अपुन ने पहले ही लिखा कि उनके अब किसी भी राजनीतिक पार्टी के कार्यक्रम में जाने पर सवाल उठाना बेमानी है, क्योंकि वे फिलहाल किसी भी पार्टी में नहीं हैं, मगर पृथ्वीराज चौहान स्मारक पर आयोजित कार्यक्रम में उनकी मौजूदगी इस बात का तो संकेत है ही कि वे जल्द ही सार्वजनिक जीवन में खुल कर काम करने जा रहे हैं। जहां तक सामाजिक जीवन का सवाल है, वे कांग्रेस में आने से पहले से ही समाज सेवा करते रहे हैं और वह फील्ड उनके लिए अब भी खुला हुआ है।
चलते-चलते एक बात और। उनके कांग्रेस छोडऩे से कांग्रेस में सिंधी लीडरशिप का अभाव हो गया है। वे पूर्व मंत्री स्वर्गीय किशन मोटवानी की कमी पूरी करने की ओर अग्रसर थे, मगर अब एक बार फिर वैक्यूम हो गया है। हालांकि मुख्यमंत्री गहलोत को डॉ. बाहेती को ही टिकट देना था, मगर इसके लिए उन्होंने बहाना यही बनाया कि कांग्रेस में कोई उपयुक्त सिंधी दावेदार नहीं है।