रविवार, 20 फ़रवरी 2011

हंगामा मास्टर की उपाधि दे दीजिए देवनानी को


बीते दिनों जब जनगणना संदेश रैली में भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी और मेयर कमल बाकोलिया के बीच गाली-गलौच हुई तो अपुन ने तभी कह दिया था कि जहां देवनानी हों, वहां विवाद न हो, हंगामा न हो तो सभी को अटपटा सा लगता है। अब तो इसकी पुष्टि खुद देवनानी ने ही कर दी है। हाल ही नगर निगम की साधारण में जो हंगामा हुआ, उसके लिए निगम की ओर से जारी प्रोसिडिंग में साफ तौर पर कहा गया है कि सभा में बैठने के स्थान को लेकर मामूली सा विवाद हुआ तो देवनानी के नेतृत्व में ही भाजपा पार्षदों ने हंगामा कर दिया। यानि कि हंगामे का सारा श्रेय ही देवनानी के खाते में दर्ज कर दिया गया है। ऐसे में अगर मास्टर रहे देवनानी को हंगामा मास्टर की उपाधि दे दी जाए तो गलत नहीं होगा। भले ही ऐसा कहना देवनानी को अटपटा लगे, या फिर उनकी ऐसी हरकत निगम की मर्यादाओं के विपरीत लगे, मगर विपक्ष की भूमिका के नजरिये से यह उनकी उपलब्धि ही कही जाएगी।
असल में देवनानी को संघ और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में ट्रेनिंग ही ऐसी मिली हुई है। तभी तो कहा जाता है कि लंबे समय तक विपक्ष में रहने के कारण भाजपाइयों को विपक्ष की भूमिका निभाने में, हंगामा करने में महारत हासिल है। इस लिहाज से देवनानी अपनी ट्रेनिंग का पूरा-पूरा उपयोग कर रहे हैं। क्या यह उस ट्रेनिंग का जीता-जागता उदाहरण नहीं है कि जिनके नेतृत्व में निगम की साधारण सभा में हंगामा हुआ, लोकतंत्र की मर्यादाएं भंग हुई, वे ही विधानसभा में पॉइंट आफ इन्फोरमेशन के तहत कहते हैं कि निगम की साधारण सभा में जो कुछ हुआ वह लोकतंत्र को शर्मसार करने वाला है। यानि की लोकतंत्र को शर्मसार तो खुद करते हैं और उसके लिए जिम्मेदार कांग्रेस को ठहराते हैं। इसमें कोई दोराय नहीं कि निगम की साधारण सभा में गैर पार्षदों का दखल देना और हंगामा करना किसी भी लिहाज से सही नहीं ठहराया जा सकता, मगर उसकी शुरुआत तो देवनानी ने ही की थी। और वह भी बैठने के स्थान को लेकर, जो कि एक मामूली सा विवाद था।
ऐसा प्रतीत होता है कि पिछले दिनों जब जनगणना संदेश रैली में बाकोलिया व देवनानी के बीच भिड़ंत हुई, तभी देवनानी ने यह तय कर लिया था कि जैसे ही निगम की साधारण सभा होगी, वे बाकोलिया को मजा चखाएंगे। शायद बाकोलिया को भी अंदेशा था कि देवनानी कोई न कोई हंगामा खड़ा करेंगे ही, इस कारण उन्होंने भी स्थिति से निपटने के लिए बाहुबलियों को बुलवा रखा था।
दरअसल नगर निगम सीमा के विधायक होने के नाते निगम की बैठकों में वे सम्मानित सदस्य के रूप में मौजूद रह सकते हैं। यह व्यवस्था इसलिए की हुई है ताकि जब निगम की साधारण सभा हो तो वे एक विधायक होने के नाते शहर के विकास के लिए अपने अनुभव का लाभ दे सकें। किसी विधायक की साधारण सभा में मौजूदगी काफी मर्यादापूर्ण होती है। इससे पहले भी साधारण सभाओं में विधायक मौजूद रह चुके हैं, मगर सभी ने अपनी गरिमा का ख्याल रखा है। यदि उनकी पार्टी के पार्षदों ने हंगामा किया भी है तो वे भी उनके साथ शामिल हो कर हंगामा करने नहीं लग जाते थे। मगर देवनानी ने तो विधायक का दर्जा त्याग कर भाजपा पार्षद दल के नेता की भूमिका ही अदा कर दी। अब निगम भले ही उन्हें हंगामे का दोषी ठहराए, मगर उनके खिलाफ कोई कार्यवाही तो कर नहीं सकता। जाहिर तौर पर उनका साथ देने वाले चार भाजपा पार्षदों पर गाज गिरने की नौबत आ सकती है। यह तो वक्त ही बताएगा कि नीरज जैन, विजय खंडेलवाल, वासुदेव कुंदनानी व जे. के. शर्मा के खिलाफ कार्यवाही की जाती है या नहीं, मगर प्रोसिडिंग में जिस प्रकार कार्यवाही में बाधा डालने के लिए उन्हें जिम्मेदार माना गया है, उनकी सदस्यता पर तलवार तो लटक ही गई है।