शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2011

हंसना, न हंसना भी बन गया मंजू राजपाल की योग्यता होने का मापदंड ?


कैसी विडंबना है कि अजमेर की जिला कलेक्टर श्रीमती मंजू राजपाल की रिजर्व नेचर और उनका हंसना अथवा न हंसना भी उनकी योग्यता का मापदंड बन गया है। अखबारों में चर्चा है कि अजमेर गणतंत्र दिवस समारोह के नीरस होने पर नाराजगी जता चुकी पर्यटन मंत्री श्रीमती बीना काक ने जयपुर जा कर इस बात पर भी अफसोस जताया कि श्रीमती राजपाल हंसती नहीं हैं। कदाचित ऐसा इसलिए हुआ प्रतीत होता है कि जब श्रीमती काक ने सार्वजनिक रूप से समारोह के आकर्षक न होने की शिकायत की तो भी श्रीमती राजपाल ने अपने निवास पर आयोजित गेट-टूगेदर में उनकी अतिरिक्त मिजाजपुर्सी नहीं की। यदि वे खीसें निपोर कर खड़ी रहतीं तो कदाचित श्रीमती काक उन्हें माफ कर देतीं, मगर शायद वे उनके व्यवहार की वजह से असहज हो गई थीं। इसके अतिरिक्त स्थानीय नेताओं ने ही श्रीमती काक को इतना घेर रखा था कि श्रीमती राजपाल उनसे दूर-दूर होती रहीं। इसकी एक वजह ये भी रही कि श्रीमती काक के इर्द-गिर्द बैठे नेताओं में से एक ने भी श्रीमती राजपाल को कुर्सी ऑफर नहीं की और कुछ देर खड़े रहने के बाद वे दूर जा कर अन्य अधिकारियों से बात करने लग गर्इं। कदाचित उन्हें ये लगा हो कि कांग्रेसी मौका देख कर अपनी आदत के मुताबिक मंत्री महोदया के सामने जलील न कर बैठें।
खैर, बात चल रही थी श्रीमती राजपाल के न हंसने की, तो यह और भी दिलचस्प बात है कि इसी मुद्दे पर जिले के तीन विधायक उनकी ढाल बनने की कोशिश करते हुए तरफदारी कर बैठे। उनका मजेदार तर्क देखिए कि श्रीमती राजपाल एक संजीदा महिला हैं और जरूरत होने पर ही हंसती हैं। वाकई ये खुशी की बात है कि जिले के विधायक कितने जागरूक हैं कि उन्हें चंद दिनों में ही मैडम राजपाल के मिजाज का पता लग गया है। मगर अपुन कुछ और ही राय रखते हैं। अपना तो यही कहना है कि यह विडंबना ही कही जाएगी कि जिला कलेक्टर जैसे महत्वपूर्ण और जिम्मेदारी वाले पद पर बैठी अफसर का हंसना या न हंसना भी राजनेताओं के बीच बहस का मुद्दा बन गया है।

लो बंटने लग गईं रेवडिय़ां, कांगे्रसियों में जोश

दो साल के इंतजार के बाद आखिरकार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी रेवडिय़ों की पोटली आखिर खोल ही दी। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. सी. पी. जोशी सहित कुछ नेताओं की सार्वजनिक रूप से जाहिर की गई नाराजगी और कार्यकर्ताओं के मन में बढ़ते जा रहे गुबार को देखते हुए आखिरकार गहलोत ने रेवडिय़ां बांटने का सिलसिला शुरू कर दिया है। हालांकि बीस सूत्री कार्यक्रम क्रियान्वयन समिति के उपाध्यक्ष पद पर पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती की नियुक्ति काफी पहले ही हो गई थी, मगर उस समिति में कुछ और कार्यकर्ताओं के नाम जोड़ कर उसे फिर नए सिरे से जारी कर दिया गया है। इसी प्रकार जन अभियोग व सतर्कता समिति में बिंदास नेत्री प्रमिला कौशिक सहित मदनलाल जाजोरिया व गोपाल मीणा का मनोनयन किया गया है। ऐसा माना जा रहा है कि अब एक के बाद एक समितियों और पदों की घोषणा होती जाएगी।
जैसे ही गहलोत ने लॉलीपॉप का पिटारा खोलना शुरू किया है, विभिन्न पदों के लिए लालायित कांग्रेस नेताओं में यकायक सक्रियता बढ़ गई है और वे अपने-अपने सूत्रों को पकड़ कर अपना नाम जुड़वाने के लिए जोर डालने लगे हैं। कई नेताओं ने तो जयपुर में ही डेरा डाल दिया है। हालांकि यह तय है कि जितनी भी नियुक्तियां होनी हैं, उनके नाम पहले से ही लगभग फाइनल किए जा चुके थे और उनमें अब कोई बड़ा फेरबदल नहीं होना है, मगर कोई भी नेता आखिरी वक्त तक चांस को खोना नहीं चाहता। क्या पता भागते भूत की लंगोटी ही पकड़ में आ जाए। कांग्रेसी मान रहे हैं कि आगामी 15 से 20 फरवरी तक अधिसंख्य नियुक्तियां कर दी जाएंगी, इस कारण भागदौड़ के आखिरी दौर में कोई भी नहीं चूकना चाहता। अजमेर के लिए सबसे महत्वपूर्ण पद न्यास सदर के लिए भी दावेदारों ने अपने-अपने आकाओं को हॉट लाइन से जोड़ लिया है। मजे की बात ये है कि प्रत्येक दावेदार को अन्य दावेदारों ने निपटाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है, मगर हर दावेदार अब भी पूरी तरह से आश्वस्त है। न्यासी के पदों के लिए भी कवायद तेज हो गई है। किसी को सीधे गहलोत का भरोसा है तो किसी को जोशी की सिफारिश का। देखना ये है कि किसे इनाम मिलता है और कौन वंचित रह जाता है।