रविवार, 27 अप्रैल 2014

ऐन उर्स के मौके पर तोगडिय़ा ने उगली आग

विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. प्रवीण भाई तोगडिय़ा ने एक बार फिर हंगामा खड़ा करने के लिए सांप्रदायिक सौहार्द्र की नगरी अजमेर को चुना है। इससे पहले कांग्रेस शासन काल में भी उन्होंने त्रिशूल दीक्षा  के जरिए पूरे राजस्थान में भगवाकरण का बिगुल बजाने की कोशिश की थी, मगर तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उन्हें गिरफ्तार करवा कर उस पर अंकुश लगा दिया था। बाद में कम से कम इस किस्म की मुहिम के लिए तो तोगडिय़ा ने अजमेर का रुख नहीं किया।
ताजा मामले में उन्होंने सीधे-सीधे ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के सालाना उर्स को निशाने पर लेते हुए कहा है कि पिछले दिनों में जो गोवंश पकड़ा गया, वह उर्स में कटने के लिए लाया जा रहा था। चूंकि गो हत्या निषेध कानून देश में लागू है, अत: उस स्थान पर रिलीजियस गेदरिंग की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, जहां गोवंश की हत्या हो रही हो। सरकार को चाहिए कि वह उर्स की परमिशन देने वालों व व्यवस्था में जुटे लोगों पर गोहत्या कानून के तहत मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तार करे। अर्थात उन्होंने साफ तौर पर जिला कलेक्टर व जिला पुलिस अधीक्षक कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की है। प्रशासन ही क्यों, एक तरह से उन्होंने प्रदेश की भाजपा सरकार को भी अप्रत्यक्ष रूप से घेरा है। अगर गोवंश की हत्या उर्स मेले में आने वाले जायरीन के लिए की जा रही है तो इसके लिए मुसलमानों की बजाय सरकारी मशीनरी ही जिम्मेदार है। ऐन उर्स के मौके पर उनके इस बयान का मकसद समझा जा सकता है। ये तो गनीमत है कि अजमेर की आबोहवा ही ऐसी है कि यहां इस प्रकार की सांप्रदायिक गंध यकायक कुछ खास असर नहीं करती, वरना कोशिश तो यही प्रतीत होती है कि हंगामा खड़ा हो जाए। इस बार चूंकि प्रदेश में भाजपा सरकार है, अत: इस बात की कोई भी संभावना नहीं है कि वह तोगडिय़ा के इस बयान को कार्यवाही के लिहाज से गंभीरता से लेगी। कार्यवाही करती है तो भी दिक्कत होगी। अलबत्ता पुलिस ने जरूर त्वरित प्रतिक्रिया देते ठंडे छींटे डालने की कोशिश की है। अजमेर के जिला पुलिस अधीक्षक महेन्द्र सिंह चौधरी ने साफ तौर पर कहा है कि डॉ. तोगडिय़ा ने जो बयान दिया है, वह बेबुनियाद है। अजमेर में कभी भी, किसी भी अनुसंधान में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ऐसी कोई बात या किसी मुल्जिम का ऐसा कोई बयान नहीं आया कि अजमेर में या उर्स के दौरान कटने के लिए गोवंश लाया जा रहा था। स्पष्ट है कि तोगडिय़ा का बयान हवा में तीर छोडऩे जैसा है, जो तथ्य की कसौटी पर खरा नहीं ठहरता। रहा सवाल पुलिस की प्रतिक्रिया का तो स्वाभाविक सी बात है कि चौधरी पर उर्स शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न करवाने की जिम्मेदारी है, इस कारण उन्हें तो आगे आना ही था। अगर खुदानखास्ता तोगडिय़ा के बयान से विवाद पैदा होता है तो सरकार उनका ही गला पकड़ेगी।
वैसे तोगडिय़ा का ताजा बयान लोकसभा चुनाव के दौरान सांप्रदायिक धु्रवीकरण पैदा करने की मुहिम का एक हिस्सा माना जा रहा है। हालांकि अब राजस्थान की सभी पच्चीस सीटों के चुनाव हो चुके हैं, इस कारण यहां तो इसका असर चुनावी लिहाज से कुछ नहीं पडऩा, मगर उन राज्यों में तो बयान की तपिश पहुंचाई ही जा सकती है, जहां अभी मतदान होना बाकी है। ज्ञातव्य है कि उर्स मेले में गुजरात, आंध्रप्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिमी बंगाल से बड़ी संख्या में मुस्लिम आते हैं और इन राज्यों में 30 अप्रैल, 7 मई और 12 मई को मतदान होना है।
बात अगर भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की बनाई गई लहर के संदर्भ में करें तो इस बयान से मोदी को दिक्कत आ सकती है, क्योंकि वे यह जताने की कोशिश कर रहे हैं कि उनकी सरकार आई तो मुसलमानों के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। ऐसे में तोगडिय़ा के बयान से विरोधी दलों को यह कहने का मौका मिल जाएगा कि मोदी का मुखौटा भले ही एक विकास पुरुष के रूप में प्रोजेक्ट किया गया है, मगर भाजपा के हार्डलाइनर तो मुसलमानों के खिलाफ ही हैं। ज्ञातव्य है कि हाल ही मोदी ने एक और भड़काऊ बयान दिया था, जिसे मोदी ने गलत ठहराया था। यहां यह अंडरस्टुड है कि तोगडिय़ा को मोदी विरोधी माना जाता है।
बहरहाल, उम्मीद यही की जानी चाहिए कि तोगडिय़ा के ताजा बयान पर कम से कम अजमेर में तो कोई खास प्रतिक्रिया नहीं होगी।
-तेजवानी गिरधर

बारहदरी का ताला तोड़ा गया, जिम्मेदार कौन?

युवक कांग्रेस के पदाधिकारियों ने आखिरकार दौलतबाग और बारहदरी को जोडने वाले रास्ते पर लगे गेट का ताला तोड़ दिया। बेशक इसे कानून हाथ में लेना ही कहा जाएगा, जो कि गलत कृत्य है, मगर सवाल ये उठता है कि आखिर यह नौबत क्यों आई? और इसके लिए वास्तविक जिम्मेदार कौन है?
ज्ञातव्य है कि ताला लगा देने के कारण जायरीन व मॉर्निंग वॉक करने वालों को परेशानी हो रही थी। इस ओर समाचार पत्रों ने नगर निगम व पुरातत्व विभाग का ध्यान आकर्षित भी किया, मगर एक भी अधिकारी के कान पर जूं नहीं रेंगी। दोनों एक-दूसरे पर टालते रहे। अगर दोनों महकमों के अधिकारियों में तालमेल का अभाव तो इसकी जिम्मेदारी जिला कलेक्टर की थी कि वे हस्तक्षेप करते, मगर उन्होंने भी कोई ध्यान नहीं दिया।
उल्लेखनीय है कि ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का 802 वां सालाना उर्स शुरू होने वाला है और जाहिर तौर पर बाहर से आने वाले जायरीन बारहदरी देखना चाहेंगे, मगर ताला जड़ा होने के कारण उन्हें परेशानी होती। यह भी अखबारों के माध्यम से जिला प्रशासन के संज्ञान में थी। जिला कलेक्टर भवानी सिंह देथा ने उर्स की व्यवस्थाओं के लिए मेराथन बैठक ली और विश्राम स्थली व दरगाह का दौरा भी किया, मगर इस ओर ध्यान नहीं दिया। वे चाहते तो दोनों महकमों के अधिकारियों को साथ बैठा कर उचित रास्ता निकाल सकते थे।
अब जबकि युवक कांग्रेस के पदाधिकारियों ने ताला तोड़ कर कानून का उल्लंघन किया है, उन्हें दोषी ठहराया जा सकता है, मगर प्रश्न सिर्फ ये है कि प्रशासन ने खुद क्यों नहीं इस जनसमस्या पर ध्यान दिया? अगर हम ये कहते हैं कि आज की पीढ़ी अराजक होने लगी है तो साथ ही यह भी विचार करना होगा कि इसके लिए जिम्मेदार भी तो हम ही हैं।

ज्योतिर्विद कैलाश दाधीच को है मोदी की चिंता

तीर्थराज पुष्कर के जाने-माने ज्योतिर्विद पंडित कैलाश दाधीच को भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की बड़ी चिंता है। उनका मानना है कि गुरुवार को भद्रा नक्षत्र में वाराणसी में नामांकन पत्र भरना अशुभ है। पंडित दाधीच ने ज्योतिष शास्त्र का हवाला देते हुए समाचार पत्रों में यह खबर छपवायी है कि मोदी की राशि वृश्चिक है। गुरुवार को चौथा चंद्रमा अशांति का सूचक है तथा साथ में भद्रा का भी योग है। यही नहीं, पंचक का भी प्रभाव बन रहा है। गुरू आठवां होना एवं गुरुवार को ही नामांकन भरना मोदी के लिए नामांकन भरना अशुभ सूचक का संकेत दे रहा है। अपनी ओर से किसी बड़ी हस्ती के शुभाशुभ का फलित निकालना तो फिर भी सामान्य बात है, मगर मोदी की ओर से उसका उपाय पूछे बिना दाधीच ने तोड़ भी बताया है। दाधीच ने मोदी को नामांकन पत्र दाखिल करने से पहले रुद्राभिषेक, महामृत्यंजय का जाप, गुरु ग्रह के लिए दान-पुण्य करने की सलाह दी है। ऐसा करने से सभी दोष से मुक्ति मिलने के साथ-साथ मोदी को अक्षय फल की प्राप्ति हो सकती है।
सवाल ये उठता है कि क्या मोदी को बिना पूछे सलाह दे कर पंडित दाधीच ने खुद को भाजपाई साबित नहीं कर दिया है? वरना उन्हें मोदी की इतनी चिंता क्यों है? मोदी जी जानें, उनका कर्म जानें, पंडित दाधीच का क्या लेना-देना? सच तो ये है कि अशुभ भद्रा योग की जानकारी देने वाले पंडित दाधीच पहले ज्योतिषी नहीं हैं। तीन दिन पहले ही यह जानकारी अखबारों में छप चुकी है। सवाल ये कि अगर उन्हें मोदी की इतनी ही चिंता थी तो क्या उन्हें तिथी तय होने से पहले मोदी को सलाह नहीं देनी चाहिए थी, ताकि वे कोई और तिथी तय करते। तिथी घोषित हुए भी कुछ दिन बीत गए हैं, अब जा कर गुरुवार को नामांकन भरने वाले दिन सलाह देने से क्या फायदा? यह खबर कौन सी मोदी के पास पहुंच ही जाएगी? हां, अलबत्ता अजमेर के लोगों को जरूर पता लग गया है कि पंडित दाधीच को मोदी की बड़ी चिंता है। साफ नजर आता है कि हमारे ज्योतिषी भी वीआईपी-वीवीआईपी के बारे में भविष्यवाणी करते चर्चित होना चाहते हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि अपने ज्योतिषीय ज्ञान से पंडित दाधीच को पता लग गया है कि मोदी प्रधानमंत्री बनने वाले हैं, इस कारण उनके बारे में फलित निकाला व उपाय सुझाया है, ताकि बाद में मोदी की कुछ अनुकंपा हासिल कर सकें?