बुधवार, 15 जनवरी 2014

सांप सूंघ गया सचिन पायलट विरोधियों को

अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट के जो विरोधी यह सोच कर मूछों को ताव दे रहे थे कि अब जब लोकसभा चुनाव आएंगे तो वे उन्हें निपटाएंगे, अब सचिन के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बन जाने के बाद चुप हो गए हैं। उन्हें सांप सूंघ गया है। वे यह सोच कर बैठे थे कि जैसे ही सचिन टिकट लाएंगे, वे अपनी औकात दिखाएंगे। यानि कि चुनाव जीतना है तो सचिन को उन्हें राजी करना ही होगा। हालांकि यह स्पष्ट होना अभी बाकी है कि सचिन चुनाव भी लड़ेंगे या नहीं, मगर अब जब कि सचिन को पूरे प्रदेश की कमान सौंप दी गई है, जो भी टकराव भरा रुख अपनाएगा, उसका पत्ता साफ हो जाएगा। जो भी पार्टी या सचिन विरोधी रुख रखेगा, उसे बाहर का रास्ता दिखाने का फैसला करने में सचिन को देर नहीं लगेगी। हालांकि पार्टी नेताओं को एकजुट रखने की जिम्मेदारी सचिन की ही है, इस कारण बनती कोशिश वे अपने हाथ से बेहतर ही करने की कोशिश करेंगे, मगर जो भी एक सीमा से ज्यादा नखरे दिखाएगा, उसका इलाज करने के लिए सचिन को किसी से पूछने की जरूरत नहीं होगी।
आपको ख्याल होगा कि पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के दम पर अजमेर उत्तर से कांग्रेस का टिकट लाए पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती सचिन के धुर विरोधी हैं, मगर चूंकि प्रदेश अध्यक्ष बनवाने में गहलोत का सहयोग रहा है, इस कारण उन्हें रुख बदलना होगा। इसे यूं भी कहा जा सकता है कि उन्हें गहलोत के कहने से एडजस्ट भी किया जा सकता है। बात अगर पूर्व उप मंत्री ललित भाटी की करें तो वे तो हार के लिए सचिन को जिम्मेदार बता कर खुले में खिलाफत कर चुके हैं। उन्हें फिर से सुर बदलने के रास्ते तलाशने होंगे या फिर पार्टी हित में सचिन को भाटी को राजी करने की युक्ति ढ़ंढऩी होगी। इसी प्रकार पुराने कांग्रेसी ललित भटनागर व दिनेश शर्मा को भी सुलह का रास्ता अख्तियार करना होगा, जो कि खुलेआम सचिन का विरोध कर चुके हैं। विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण के दौरान सचिन से नाराज हो चुके अन्य नेताओं को भी अपने रवैये में परिवर्तन लाना होगा।
सर्वाधिक दिलचस्प होगा अजमेर डेयरी अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी का रुख। हालांकि सचिन के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद उनकी कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है, लेकिन यह सब जानते हैं कि वे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी तक के सामने सचिन का विरोध कर चुके हैं। उन्होंने तो यहां तक चुनौती दे दी थी कि अगर उन्हें विधानसभा चुनाव का टिकट नहीं दिया गया तो वे लोकसभा चुनाव में सचिन के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे। विधानसभा चुनाव तो वे बागी बन कर लड़े ही। यह जानते हुए भी अजमेर लोकसभा सीट पर पहला दावा सचिन का ही है, वे हाल ही अजमेर डेयरी के एक जलसे के दौरान कह चुके हैं कि वे लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। अब देखना ये होगा कि नए हालात में उनको राजी करने के लिए उनकी जाट लॉबी के आका क्या प्रयास करते हैं। नगर सुधार न्यास के पूर्व सदर नरेन शहाणी भगत की सचिन से नाइत्तफाकी भी जग जाहिर है, उन्हें भी पार्टी में रहने के लिए रुख बदलना होगा। हां, पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल जरूर विधानसभा चुनाव से पहले सुलह कर चुके थे और चुनाव में उन्होंने काम भी किया, इस कारण उन्हें दिक्कत नहीं आएगी। कुल मिला कर यदि सचिन चुनाव लड़ते हैं तो उन्हें अपने विरोधियों को सैट करने में पहले जितनी दिक्कत नहीं आएगी।