मंगलवार, 15 जनवरी 2019

यातायात की सुगमता के लिए दो नए वैकल्पिक मार्ग जरूरी

इन दिनों अजमेर को स्मार्ट सिटी बनाए जाने का कार्य किया जा रहा है। इसमें अन्य विकास कार्यों के अतिरिक्त वर्षों पुरानी ट्रैफिक जाम की समस्या से निजात दिलाने के लिए एलिवेटेड रोड पर काम शुरू हो गया है। हालांकि इसमें थोड़ा समय लगेगा, मगर जब यह पूरा हो जाएगा, तो इसके फायदे से हर व्यक्ति रूबरू होगा। इसी के साथ स्मार्ट सिटी योजना में अगर दो वैकल्पिक मार्गों को भी बनाया जाए तो शहर में यातायात का दबाव काफी हद तक कम किया जा सकता है।
एक वैकल्पिक मार्ग नाका मदार से जयपुर रोड तक वाया रसूलपुरा हो सकता है। इसकी कल्पना कई साल पहले तत्कालीन यूआईटी चेयरमैन औंकारसिंह के कार्यकाल में की गई थी। इसके लिए बाकायदा सर्वे का प्रस्ताव भी पारित किया गया, मगर बाद में इस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया।  न तो स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने इसमें रुचि दिखाई और न ही अफसरशाही ने इसकी सुध ली। वे तो झगडऩे में व्यस्त रहे। सच तो ये है कि जनप्रतिनिधियों की लापरवाही और आपसी खींचतान के चलते एलिवेटेड रोड तक खटाई में पड़ा हुआ था। तत्कालीन यूआईटी चेयरमैन नरेन शहाणी भगत के कार्यकाल में सर्वे भी हुआ, मगर बाद में उसे लंबे अरसे तक ठंडे बस्ते में डाल कर रख दिया गया। कभी उसकी उपयोगिता के नाम पर विवाद हुआ तो कभी निर्माण के लिए उपयुक्त बजट न होने का रोना रोया गया। कभी उसे अव्यावहारिक बताया गया तो कभी व्यापारियों की नाराजगी का बहाना बनाया गया। पिछली सरकार में शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी व अजमेर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष शिवशंकर हेडा इस मुद्दे पर लगातार टकराते रहे। अगर स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में इसे शामिल नहीं किया जाता तो यह एक कल्पना मात्र रह जाता।
बहरहाल, बात वैकल्पिक मार्ग की। यदि राजनीतिक मतभेद भुला कर केवल जन हित का ही ख्याल रखा जाए तो अजमेर का कुछ भला हो सकता है। नाका मदार, जेपी कॉलोनी, टैम्पो स्टैंड से जयपुर रोड वाया रसूलपुरा तक वैकल्पिक मार्ग बनादिया जाए तो जयपुर रोड, यूनिवर्सिटी, जनाना हॉस्पिटल, लोहागल तक की जनता को मदार रेलवे स्टेशन पर आने-जाने में सुविधा मिलेगी। इससे जनता को नगर के अन्दर से नहीं आना पड़ेगा और नगर में ट्रेफिक के भार में भी कमी आएगी।
इसी प्रकार शास्त्री नगर से वैशाली नगर तक भी एक वैकल्पिक मार्ग बनाया जा सकता है। इसके निर्माण से मुख्य आनासागर सक्र्यूलर रोड पर ट्रेफिक में भारी कमी होगी। आपको बता दें कि इसका प्रारूप जाने-माने इंजीनियर कमलेन्द्र झा ने बनाया था, जो कि काफी हद तक कारगर हो सकता है।

क्या भाजपाई किसी बाहरी दावेदार को बर्दाश्त करेंगे?

ऐसी खुसर-फुसर है कि आगामी लोकसभा चुनाव में अजमेर सीट पर इसे चरागाह समझने वालों की भी नजर है। अब तक तो स्थानीय दावेदारों के नाम ही उभर कर आए थे, मगर एक बाहरी दावेदार की भी चर्चा हो रही है। वो हैं पूर्व केबीनेट मंत्री डॉ. नाथूसिंह गुर्जर। अजमेर संसदीय क्षेत्र में तकरीबन सवा लाख गुर्जर मतदाता हैं। यहां से एक बार मौजूदा उप मुख्यमंत्री व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत चुके हैं। कदाचित यही सोच कर गुर्जर को यहां लॉंच किए जाने की चर्चा है।
पहले आपको बता दें कि यहां स्थानीय दावेदार कौन-कौन से हैं। वे हैं भाजपा देहात जिलाध्यक्ष प्रो बी पी सारस्वत, भाजपा नेता भंवरसिंह पलाड़ा, पूर्व जिला प्रमुख पुखराज पहाडिय़ा, पूर्व विधायक भागीरथ चौधरी, पूर्व यूआईटी चेयरमैन धर्मेश जैन, युवा नेता डॉ. मिथलेश गौतम व जिला मंत्री सत्यनारायण चौधरी। इन सबमें सबसे प्रबल दावेदारी सारस्वत की मानी जा रही है। चूंकि लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस के डॉ. रघु शर्मा यहां से जीत चुके हैं, इस कारण ऐसा माना जा रहा है कि भाजपा इस बार ब्राह्मण कार्ड खेल सकती है।
आइये, अब जरा पीछे चलते हैं। जिस चुनाव में यहां सचिन पायलट आए थे, उस समय कांग्रेस के पास कोई तगड़ा स्थानीय दावेदार था नहीं। हालांकि परिसीमन के बाद यह सीट जाट बहुल हो चुकी थी, मगर जब कांग्रेस ने पायलट को मैदान में उतारा तो सैलिब्रिटी के सामने सैलिब्रिटी को भिड़ाने के लिए भाजपा ने श्रीमती किरण माहेश्वरी को आयातित किया। तब दावा स्वर्गीय प्रो. सांवरलाल जाट का दावा था, मगर उन्हें पायलट के सामने कमजोर माना गया। खैर पायलट जीत गए। बाद के चुनाव में कांग्रेस की ओर से तो पायलट ही आए, मगर भाजपा ने जाट को मौका दिया। हालांकि पायलट ने भरपूर काम करवाए, मगर मोदी लहर के चलते जाट जीत गए।  उनके निधन के बाद हुए उपचुनाव में भाजपा ने सहानुभूति के नाम पर उनके पुत्र रामस्वरूप लांबा पर दाव खेला, लेकिन वे कांग्रेस के डॉ. रघु शर्मा  के सामने टिक नहीं पाए। लांबा अब नसीराबाद से विधायक हैं। ताजा स्थिति ये है कि भाजपा के पास तगड़ा जाट दावेदार है नहीं। गिने-चुने दो नाम हैं पूर्व विधायक भागीरथ चौधरी व पूर्व जिला प्रमुख श्रीमती सरिता गैना। विशेष परिस्थिति में नागौर से सी आर चौधरी को इंपोर्ट किया जा सकता है। गैर जाट में सारस्वत ही सबसे प्रबल दावेदार हैं।
अब सवाल ये उठता है कि क्या स्थानीय दावेदार चौधरी अथवा गुर्जर को बर्दाश्त कर पाएंगे। चौधरी तो फिर भी पचा लिए जा सकते हैं, क्योंकि अजमेर उनका कार्यक्षेत्र रहा है और यह सीट जाट बहुल है, लेकिन मात्र सवा लाख वोटों के आधार पर गुर्जर को यदि लाया गया तो संभव है, पार्टी में विरोध के स्वर उभर कर आएं। बेशक गुर्जर एक सैलिब्रिटी हैं, क्योंकि एक तो वे दो बार सांसद और चार बार विधायक रहे हैं, इसके अतिरिक्त क्रिकेट खिलाड़ी व फिल्म अभिनेता भी हैं। उन्होंने गुर्जरों के आराध्य देवता देवनारायण पर बनाई गई राजस्थानी फिल्म देव में बतौर अभिनेता के रूप में देवनारायण की भूमिका निभाई है। खैर, देखते हैं कि आगे आगे होता है क्या? हो सकता है कि कुछ और नए नाम भी उभर कर आएं।

अजमेर के लिए धर्मेश जैन ने ठोकी सबसे पहली दावेदारी

चंद माह बाद ही होने जा रहे लोकसभा चुनाव में अजमेर सीट से भाजपा टिकट के लिए यूआईटी के पूर्व चेयरमैन धर्मेश जैन ने सबसे पहली दावेदारी ठोक दी है। हालांकि अन्य दावेदार भी अपना मानस बना चुके हैं और टिकट हासिल करने की इक्सरसाइज कर रहे हैं, मगर किसी ने खुल कर दावेदारी अथवा इच्छा नहीं जताई है। जिससे भी पूछो, वह यही कहता है कि अगर पार्टी ने उसे इस योग्य समझा तो वह चुनाव लडऩे को तैयार है।
असल में हुआ ये कि एक दिन पहले ही एक समाचार पत्र ने भाजपा के चार दावेदारों का जिक्र किया था, जिनमें देहात जिला भाजपा अध्यक्ष प्रो. बी. पी. सारस्वत, मेयर धर्मेन्द्र गहलोत, पूर्व विधायक भागीरथ चौधरी व युवा भाजपा नेता भंवर सिंह पलाड़ा का नाम था। स्वाभाविक रूप से यह जैन को नागवार गुजरा कि उन्हें तो मीडिया दावेदार ही नहीं मान रहा। इस पर भला वे चुप क्यों रहने वाले थे। उन्हें तुरंत मौका भी मिल गया। उन्होंने सवर्णों को आरक्षण दिए जाने पर सरकार की तारीफ करने के बहाने पत्रकारों को बुलाया। चूंकि दावेदारी की खबर ताजा थी, इस कारण उस पर भी चर्चा हुई। इसमें जैन ने साफ तौर पर कह दिया कि इस साल होने वाले लोकसभा चुनाव में अजमेर संसदीय सीट से वे भाजपा के टिकट पर चुनाव लडऩे की इच्छुक हैं। जैन ने कहा कि लोकसभा क्षेत्र की सभी विधानसभा सीटों से यह मांग उठ रही है कि पार्टी के कर्मठ व निष्ठावान तथा वरिष्ठता के नाते उन्हें टिकट दिया जाना चाहिए। जैन का कहना है कि उन्हें संसदीय क्षेत्र के सभी जाति वर्ग से जुड़े लोगों का समर्थन प्राप्त है और यह संगठन से जुड़ी सीट है, उनको अवसर दिए जाने पर वरिष्ठता को सम्मान मिलेगा और भाजपा को निश्चित जीत हासिल होगी।
वैसे खुसर-फुसर है कि सर्वाधिक दमदार दावेदारी सारस्वत की मानी जा रही है। उनकी खासियत ये है कि वे कभी अपनी ओर से दावेदारी की बात नहीं कहते। पार्टी के भीतर भले ही कोशिश करते हों, मगर मीडिया के सामने यही कहते हैं कि पार्टी का आदेश हुआ तो वे उसके लिए तैयार हैं। हाल ही संपन्न विधानसभा चुनाव में भी केकड़ी से उनकी दावेदारी का जिक्र हुआ था। माना जाता है कि उन्होंने संगठन के लिए अच्छा काम किया है। इस कारण उनका दावा मजबूत है। बात चली है तो बता दें कि पिछले बीस साल से टिकट के इच्छुक हैं। पहले ब्यावर से लडऩे का मानस रखा करते थे।
बताते हैं कि मेयर गहलोत का भी मानस है कि लोकसभा का चुनाव लड़ें। उन्होंने जीत का गणित भी कूत लिया है। जहां तक पलाड़ा का सवाल है, उन्होंने भी पूरी तैयारी आरंभ कर दी है। उनकी दावेदारी के बारे में तो सोशल मीडिया पर भी खबरें आने लग गई हैं। उसमें साफ तौर पर लिखा है कि भाजपा नेता भंवर सिंह पलाड़ा की उम्मीदवारी जोर पकडऩे लगी है। उनका नाम सर्वमान्य नेता के तौर पर तेजी से उभर के आ रहा है। युवाओं एवं आमजन के मुंह पर लोकसभा चुनाव की चर्चा के साथ ही भंवर सिंह पलाड़ा का नाम आम हो चुका है। आम चुनाव से 5 महीने पहले से ही सोशल मीडिया सहित गली, मोहल्ले, चौराहे पर भंवर सिंह पलाड़ा के नाम की चर्चा शुरू हो चुकी है। पलाड़ा ने पत्नी श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा के जिला प्रमुख के कार्यकाल और मसूदा विधायक रहते आमजन के दिलों पर विकास कार्य के साथ ही अपने सरल सहज स्वभाव एवं उपलब्धता के साथ ही त्वरित कार्यवाही से अपनी अलग पहचान बनाई है। हर आम और खास उनकी कार्यशैली के कायल है। पलाड़ा द्वारा बिना भेदभाव एवं पार्टी पॉलिटिक्स के हर फरियादी की फरियाद सुनकर त्वरित न्याय दिलवाने की खूबी भी आज क्षेत्र के लोग गिनाते नहीं थक रहे हैं। शायद ही अजमेर जिले में ऐसा कोई नेता हो, जिसके लिए क्षेत्र के लोग पार्टी पॉलिटिक्स से ऊपर उठ कर वोट करने के लिए तैयार हो। अगर भाजपा जन भावना के अनुरूप पलाड़ा को प्रत्याशी बनाती है तो अजमेर जिले से बहुत बड़ी जीत होने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए।
अगर पार्टी ने इस क्षेत्र में ढ़ाई लाख जाट मतदाताओं को मद्देनजर रखते हुए किसी जाट को मैदान में उतारने की सोची तो पूर्व विधायक भागीरथ चौधरी का नाम आ सकता है। भूतपूर्व केबीनेट मंत्री स्वर्गीय प्रो. सांवरलाल जाट के पुत्र रामस्वरूप लांबा पिछले लोकसभा उपचुनाव में हारने के बाद हाल नसीराबाद विधानसभा सीट से जीत चुके हैं। उनके अतिरिक्त पूर्व जिला प्रमुख सरिता गैना भी दावेदारी करेंगी ही। अगर किसी जाट को ही टिकट देना तय हुआ और अजमेर मौजूद दावेदार कमजोर माने गए तो सी. आर. चौधरी नागौर छोड़ कर यहां टपक सकते हैं। गैर जाटों में पूर्व जिला प्रमुख पुखराज पहाडिय़ा की भी दावेदारी सामने आने वाली है। 

लीज को लेकर लटके हुए हैं दुकानदार

अजमेर नगर निगम के तकरीबन आठ सौ किरायेदार दुकानदार पिछली सरकार के दौरान जारी हुए लीज के आदेश अमल में नहीं लाए जाने के कारण लटके हुए हैं। चूंकि आदेश की अवधि 31 दिसंबर 2018 को ही समाप्त हो गई थी, इस कारण निगम को अब नए आदेशों का इंतजार है। स्वाभाविक रूप से निगम की दुकानों के किरायेदार दुकानदार भी उसी के इंतजार में बैठे हैं।
असल में निगम के इन किरायेदार दुकानदारों का दुकानों को लीज में कनवर्ट किए जाने का मसला काफी दिन से लटका पड़ा था। कई दौर की वार्ता के बाद लीज के बारे में सहमति तो हो गई, मगर फाइल पूर्व स्वायत्त शासन मंत्री श्रीचंद कृपलानी के पास अटकी रही। जब फाइल मुख्यमंत्री के पास भेजी गई तो वहां से भी आदेश जारी होने में देरी हो गई। आदेश जारी होते ही दुकानदारों को राहत की उम्मीद बंधी, मगर इसी दौरान विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लागू होने के कारण मामला अटका रहा। इस बीच आयुक्त का तबादला हो गया। नए आयुक्त को मामला समझने के लिए वक्त चाहिए था। जैसे ही आचार संहिता समाप्त हुई तो तुरत-फुरत में लीज की कार्यवाही आरंभ की गई, मगर औपचारिकताएं अधिक होने के कारण उसे 31 दिसंबर तक पूरा करना संभव नहीं रहा। हालांकि मेयर धर्मेन्द्र गहलोत चाहते थे कि कैसे भी आदेश पर अमल करवा लिया जाए, मगर संभवत: निगम प्रशासन का अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पाया। ज्ञातव्य है कि इस मामले में पूर्व शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी ने विशेष रुचि ली थी। उन्होंने बाकायदा दुकानदारों की बैठक भी ली। उन्हें उम्मीद थी कि दुकानदारों का काम करने से वोटों का लाभ मिलेगा। स्वाभाविक रूप से मिला भी। मगर अब आदेश की अवधि समाप्त हो जाने व सरकार बदल जाने के कारण मामला अटक गया है। इस बारे में निगम ने डायरेक्टर से मार्गदर्शन मांगा है, मगर समझा जाता है कि इस मामले में अब स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल नए सिरे से विचार करेंगे। हालांकि वे चाहें तो पिछले ही आदेश की अवधि बढ़ा सकते हैं, मगर लगता यही है कि वे आदेश की फिर से समीक्षा करेंगे। दुकानदारों को भी लगता है कि अब धारीवाल रुचि लेंगे, तभी कुछ हो पाएगा, इस कारण वे उनसे संपर्क करने और दबाव बनाने की जुगत में लग गए हैं। इसके लिए वे विभिन्न माध्यमों का इस्तेमाल कर रहे हैं। चूंकि पांच माह के भीतर लोकसभा चुनाव होने हैं, इस कारण दुकानदारों को उम्मीद है कि वोटों की चाहत में कांग्रेस सरकार जरूर राहत प्रदान करेगी। दिक्कत सिर्फ इतनी है कि यदि इस पर जल्द से जल्द फैसला नहीं हुआ तो आचार संहिता फिर से लागू हो जाएगी, और मामला फिर से लटक जाएगा। दुकानदारों का प्रयास है कि कैसे भी आचार संहिता लागू होने से पहले कार्यवाही पूरी हो जाए।

अब कई नेताओं की नजर मेयर सीट पर

कांग्रेस के सत्तारूढ़ होते ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने स्वायत्तशासी संस्थाओं में अध्यक्ष, सभापति व मेयर आदि के चुनाव सीधे कराने के अपने पिछली सरकार के फैसले को फिर से लागू कर दिया है। ज्ञातव्य है कि पिछली भाजपा सरकार ने अध्यक्ष, सभापति व मेयर के चुनाव वार्ड पार्षदों में से चुनने का नियम लागू किया था। इसे यूं समझें कि जिस प्रकार कांग्रेस सरकार के दौरान कमल बाकोलिया सीधे चुनाव से मेयर बने थे, जबकि भाजपा सरकार में धर्मेन्द्र गहलोत पार्षदों में चुन कर मेयर बने। बहरहाल, अब जब कि नया आदेश लागू हो गया है तो कई नेता मेयर बनने का सपना देखने लगे हैं।
जहां तक सीट के रिजर्वेशन का सवाल है, अभी यह खुलासा नहीं हुआ है कि क्या रिजर्वेशन की लॉटरी नए सिरे से निकाली जाएगी, या फिर वर्तमान सामान्य सीट को छोड़ कर लॉटरी निकाली जाएगी। अगर नए सिरे से लॉटरी निकाली गई तो सामान्य वर्ग के लिए संभावनाएं बनी रहेंगी। कुछ का मानना है कि चूंकि अनुसूचित जाति महिला, अनुसूचित जाति पुरुष, सामान्य पुरुष वर्ग से एक-एक बार सभापति-मेयर रहे हैं, इस कारण इस बार ओबीसी पुरुष व ओबीसी महिला को चांस मिल सकता है। कुल मिला कर मेयर बनने के इच्छुक नेताओं की नजर लॉटरी पर टिकी हुई है।
मेयर की सीट सामान्य होने पर भाजपा में पार्षद जे. के. शर्मा, नीरज जैन की नजर है तो निवर्तमान एडीए चेयरमैन शिवशंकर हेडा, पूर्व यूआईटी चेयरमैन धर्मेश जैन सरीखे वरिष्ठ नेता भी मन बना सकते हैं। हालांकि मौजूदा मेयर धर्मेन्द्र गहलोत दुबारा मेयर बनने के इच्छुक नहीं बताए जाते, विशेष रूप से सीधे फाइट करके, चूंकि उनकी रुचि अब लोकसभा चुनाव में है, मगर मेयर की सीट ओबीसी के लिए रिजर्व होने पर वे भी मन कर सकते हैं। अगर मेयर की सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होती है तो हाल ही विधानसभा चुनाव में अजमेर दक्षिण से पराजित हेमंत भाटी, पूर्व मेयर कमल बाकोलिया, पूर्व उप मंत्री ललित भाटी व पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल कांग्रेस टिकट के दावेदार हो सकते हैं। इसी प्रकार भाजपा की ओर से मौजूदा जिला प्रमुख सुश्री वंदना नोगिया, पूर्व राज्यमंत्री श्रीकिशन सोनगरा के पुत्र विकास सोनगरा आदि का दावा बन सकता है।
मेयर की सीट ओबीसी के लिए रिजर्व होने पर माली, स्वर्णकार आदि ओबीसी जातियों के नेता दावा ठोक सकते हैं। ये नेता कौन होंगे, इस बारे में अभी से कयास लगाना कठिन है। बानगी के तौर बता सकते हैं कि भाजपा में तुलसी सोनी दावा ठोक सकते हैं, जिनकी विधायक का टिकट हासिल करने की इच्छा पूरी नहीं हो पाई है।
वैसे, एक बात है। मेयर का चुनाव लडऩा आसान काम नहीं है। जो भी नेता पार्टी का टिकट लेकर आएगा, उसको कम से कम तीस लाख रुपए तो केवल पार्षद प्रत्याशियों पर खर्च करने होंगे। साठ वार्डों में प्रत्याशी कम से कम पचास हजार रुपए तो मेयर प्रत्याशी से झटकेंगे, वरना काम नहीं करेंगे।
आखिर में एक फैक्टर का भी जिक्र करना अनुचित नहीं होगा, वो यह कि स्थानीय राजनीति में सिंधियों की अहम भूमिका आंकी गई है। भाजपा जरूर किसी सिंधी को टिकट नहीं देगी, क्योंकि उसका मौजूदा विधायक सिंधी है, मगर कांग्रेस भाजपा मानसिकता के सिंधी वोट बैंक में सेंध मारने के लिए कदाचित किसी सिंधी को टिकट देने पर कम से कम एक बार तो विचार कर ही सकती है।

रामचंद्र चौधरी होंगे अजमेर लोकसभा क्षेत्र के प्रबल कांग्रेस दावेदार

खुसर-फुसर है कि अजमेर डेयरी के चेयरमैन रामचंद्र चौधरी आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से प्रबल दावेदार होंगे। बताया जाता है कि हाल ही संपन्न विधानसभा चुनाव के दौरान फिर से कांग्रेस में शामिल होने के दौरान ही लगभग यह तय हो गया था कि उनकी दावेदारी को गंभीरता से लिया जाएगा।
ज्ञातव्य है कि प्रदेश कांग्रेस से नाइत्तफाकी के चलते उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था। हालांकि वे भाजपा में तो शामिल नहीं हुए, मगर उन्होंने भाजपा को खुला समर्थन दिया था। इसके एवज में उन्हें भाजपा हाईकमान से कोई लाभ नहीं दिया। विधानसभा चुनाव में जाट वोट बैंक में सेंध मारने के लिए उन्हें कांग्रेस में लिया गया। कहते हैं कि मसूदा में उनकी मेहनत की वजह से ही कांग्रेस के राकेश पारीक विजयी हुए। अब जबकि लोकसभा चुनाव की सरगरमी बढऩे लगी है तो समझा जाता है कि वे टिकट के प्रबल दावेदार होंगे। इस दिशा में उन्होंने प्रयास भी शुरू कर दिए हैं।
यहां आपको बता दें कि अजमेर लोकसभा क्षेत्र में तकरीबन ढ़ाई लाख जाट मतदाता हैं। ऐसे में कांग्रेस किसी जाट पर ही दाव खेलने का विचार कर सकती है। यूं जाट दावेदारों में पूर्व जिला प्रमुख रामस्वरूप चौधरी का नाम भी लिया जा रहा है। रहा सवाल पूर्व विधायक नाथूराम सिनोदिया का तो वे चूंकि पिछले विधानसभा चुनाव में किशनगढ़ से बागी बन कर खड़े हो गए थे, इस कारण उनकी संभावनाएं पूरी तरह से समाप्त मानी जाती हैं। अलबत्ता जाट वोटों पर पकड़ के लिए उन्हें फिर से कांग्रेस में जरूर शामिल किया जा सकता है।
उधर पूर्व जिला प्रमुख व पूर्व मसूदा विधायक श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा के पतिदेव युवा भाजपा नेता व समाजसेवी भंवर सिंह पलाड़ा आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा की ओर से चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहे हैं। श्रीमती पलाड़ा के हाल ही मसूदा से हार जाने के बाद सक्रिय राजनीति में बने रहने की मंशा से उन्होंने पूरे लोकसभा क्षेत्र का बारीकी से अध्ययन शुरू कर दिया है।
असल में डॉ. रघु शर्मा के केकड़ी से चुने जाने के बाद अजमेर लोकसभा क्षेत्र खाली हो गया है। उपचुनाव में हारे रामस्वरूप लांबा नसीराबाद से विधायक चुने जा चुके हैं। चूंकि लोकसभा के आम चुनाव में मात्र पांच माह शेष हैं, इस कारण यहां उपचुनाव नहीं होंगे। आम चुनाव के साथ ही अजमेर में चुनाव होने हैं। फिलवक्त दावेदारी के लिहाज से यह क्षेत्र खाली हो गया है। दोनों दल नए सिरे से विचार कर रहे हैं कि किस पर दाव खेला जाए। हालांकि देहात जिला भाजपा अध्यक्ष प्रो. बी.पी. सारस्वत को पूरी उम्मीद है कि इस बार उन्हें मौका मिल सकता है। देखने वाली बात ये है कि क्या भाजपा भी रघु शर्मा के एक बार यहां से जीतने के बाद ब्राह्मण पर दाव खेलने पर विचार करती है या नहीं। यूं इस क्षेत्र में जाटों के तकरीबन ढ़ाई लाख वोट हैं, इस कारण दावा तो किसी जाट का ही बनता है, मगर भाजपा के कुछ जमा दो प्रबल दावेदार हैं। किशनगढ़ के भाजपा विधायक भागीरथ चौधरी व पूर्व जिला प्रमुख श्रीमती सरिता गैना। अगर इन पर दाव खेलना भाजपा को रिस्की लगा तो हो सकता है कि नागौर से सी. आर. चौधरी को आयातित किया जा सकता है। उधर वैश्य ये मानते हैं कि इस सीट पर उनका दावा बनता है। इस लिहाज से पूर्व जिला प्रमुख पुखराज पहाडिय़ा व पूर्व यूआईटी चेयरमैन धर्मेश जैन दावेदारी करने के मूड में हैं।