राजस्थान के लोकायुक्त पद पर रिटायर जज सज्जन सिंह कोठारी की नियुक्ति से अजमेर का मान बढा है। जस्टिस कोठारी का जन्म 10 अक्टूबर,1950 को अजमेर में हुआ। उन्होंने 1970 में गवर्नमेंट कॉलेज अजमेर से स्नातक और 1973 में वहीं से एल.एल.बी. किया। ज्ञातव्य है कि हाईकोर्ट के रिटायर जज सज्जन सिंह कोठारी का चयन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया और हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अमिताव रॉय की सहमति से हुआ। यह पद जस्टिस जीएल गुप्ता के मई 2012 में सेवानिवृत्ति के बाद से खाली था। हाई कोर्ट ने सरकार को 28 मार्च तक लोकायुक्त नियुक्त करने के आदेश दिए थे। कोठारी 2000 से 2008 तक टोंक, कोटा और राजसमंद में जिला व सत्र न्यायाधीश रहे। 12 मई 2008 से 23 मई 2010 विधि विभाग के प्रमुख सचिव रहे। 24 मई 2010 को राजस्थान हाईकोर्ट में अतिरिक्त जज बने, 9 सितंबर 2011 को उन्हें स्थायी जज बनाया गया। जस्टिस कोठारी 9 अक्टूबर, 2012 को हाईकोर्ट जज के पद से सेवानिवृत्त हुए। जानकारी के अनुसार लोकायुक्त पद पर नियुक्ति के लिए एक पैनल बनाया गया था। अनुसार मुख्यमंत्री की ओर से जो नाम भेजे गए, उनमें अशोक परिहार, सुनील कुमार गर्ग, शिवकुमार शर्मा, सज्जन सिंह कोठारी, और भंवरू खान के नाम थे। उनमें से कोठारी का चयन किया गया, जो कि अजमेर के लिए गौरव की बात है। कोठारी की नियुक्ति पर जिला बार एसोसिएशन ने हर्ष जाहिर किया है। बार अध्यक्ष राजेश टंडन ने कहा कि मूलत: अजमेर के निवासी जस्टिस कोठारी का बार एसोसिएशन से गहरा नाता रहा है। उनकी नियुक्ति अजमेर के लिए गौरव की बात है।
रविवार, 24 मार्च 2013
इतना डर क्यों है बोर्ड कर्मचारियों में?

असल में तंवर एक ऐसी महत्वपूर्ण पोस्ट पर रहे, जिसके तार बोर्ड की लगभग हर शाखा से जुड़े हुए हैं। घपला भले ही तंवर ने किया हो, मगर उसका संबंध किसी न किसी रूप में अन्य से भी रहा होगा। भुगतान संबंधी फाइलों के संबंध अन्य विभागों की फाइलों से भी निकल कर आ सकते हैं। पता नहीं कौन सी फाइल के तार तंवर की कारगुजारी से जुड़े नजर आएं। मामला अभी गरमागरम है। एसीबी लगातार नई सूचनाएं मांग रही है। जब तक तंवर के खिलाफ पूरा चालान कोर्ट में पेश न हो जाए, कहा नहीं जा सकता कि जांच का दायरा केवल तंवर तक ही सीमित है या उसका दायरा और बढ़ेगा। ऐसे में कहा नहीं जा सकता कि जांच आगे बढऩे पर कौन-कौन और लपेटे में आ जाएगा। ऐसे में बोर्ड कर्मचारियों में घबराहट होना स्वाभाविक है। भला ऐसे में खुशी मनाने की इच्छा कैसे हो सकती है?
बोर्ड के पुराने कर्मचारियों को ख्याल है कि इससे पहले शायद ही ऐसा कोई मौका रहा हो कि होली का रंगीन कार्यक्रम रोकना पड़ा हो।
यहां आपको बता दें कि बोर्ड में हर साल होली के मौके पर हास्य, व्यंग्य और संगीत से भरा मनोरंजक रंगारंग कार्यक्रम होता आया है, जिसकी गिनती शहर के प्रमुख होली महोत्सवों में होती है। इसमें बोर्ड अध्यक्ष से लेकर अधिकारी और छोटे-छोटे से कर्मचारी भी शिरकत करते हैं। इसकी तैयारी भी कुछ दिन पहले से शुय हो जाती है। सभी में बहुत उत्साह होता है। अफसोस कि अकेले तंवर की करतूत के कारण पूरे बोर्ड परिसर में मातम सा पसरा हुआ है।
-तेजवानी गिरधर
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