गुरुवार, 10 मार्च 2011

अब तक सो क्यों रहा था न्यास कर्मचारी संघ?



अजमेर नगर सुधार न्यास में इन दिनों चर्चित जमीन घोटाले के सिलसिले में जैसे ही सरकार ने दो कर्मचारियों को जैसलमेर व आबूरोड फैंका है, नगर सुधार न्यास कर्मचारी संघ को यहायक याद आ गया है कि न्यास में भारी भ्रष्टाचार व अनियमितता है तथा अधिकारियों ने जमकर बंदरबांट की है। इस सिलसिले में कथित रूप से जिन अधिकारियों को यहां से हटाया गया है, वे जब यहां थे, तब तक उन्हें यह नहीं दिखाई दे रहा था कि वे जम कर लूट मचाए हुए हैं। सवाल उठता है कि अगर अधिकारियों ने घोटाले किए हैं तो वे भला कर्मचारियों की जानकारी के बिना वह कैसे संभव हो सकते हैं? फाइलों पर हस्ताक्षर भले ही अधिकारी करते हैं, मगर उन्हें तैयार तो कर्मचारी ही करते हैं। बेहतर तो यह होता कि वे अधिकारियों की मनमानी शुरू होते ही बोलते, मगर अफसोस कि सत्तारूढ़ दल कांग्रेस के नेताओं ने ध्यान आकर्षित किया तब भी संघ चुप ही बैठा रहा। अब जबकि तत्कालीन न्यास अध्यक्ष व जिला कलेक्टर राजेश यादव, न्यास सचिव अश्फाक हुसैन व विषेशाधिकारी अनुराग भार्गव यहां से हटाए जा चुके हैं, तब जा कर कर्मचारी संघ कह रहा है कि उनके कार्यकाल में हुई भारी वित्तीय अनियमितताओं और भ्रष्टाचार से जनमानस में न्यास की ही नहीं बल्कि राज्य सरकार की भी छवि खराब हुई है। संघ ने मांग की है कि इन अफसरों द्वारा की गई न्यास बैठक, भूमि के बदले भूमि बैठक, भू उपयोग बैठक, वैकल्पिक भूखण्ड व लेआउट बैठक सहित आज तक नियमन किये गये प्रकरणों की जांच किसी निष्पक्ष एजेंसी से करवा कर न्यास को हुए नुकसान की भरपाई की जाए और दोषी अधिकारियों को दंडित किया जाए।
सवाल ये उठता है कि सांप के निकल जाने के बाद लकीर क्यों पीटी जा रही है। समझा जाता है कि जब तक केवल अधिकारियों पर ही आंच आई तो संघ को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, लेकिन जैसे ही इसी सिलसिले में दो कर्मचारियों नवाब अली व अनिल ऐरन को भी दूर फैंका गया है, संघ को तकलीफ हो गई है। जाहिर तौर जब कर्मचारियों पर भी आंच आएगी तो संघ को ही भूमिका अदा करनी होगी। उसी उत्तरदायित्व को निभाते हुए उसने कर्मचारियों का सीधे बचाव करने की बजाय अधिकारियों पर हमला बोल दिया है क्यों इन्हीं अधिकारियों के दबाव में कर्मचारियों को काला-धोला करना पड़ा। अपुन ने तो कल ही कह दिया था कि नवाब अली व अनिल ऐरन की इतनी बिसात नहीं है कि इतना बड़ा जमीन घोटाले को अंजाम दे सकें। उन्होंने जो कुछ किया होगा, वह अधिकारियों के दबाव में किया होगा।
बहरहाल, कर्मचारी संघ को यह समझ लेना चाहिए कि यदि वे केवल अधिकारियों को ही निशाने पर रख रहे हैं तो अधिकारी कितने चतुर होते हैं। घूम-फिर कर वे अपने अधीनस्थ कर्मचारियों पर ही ठीकरा फोडऩे की कोशिश करेंगे।