गुरुवार, 26 सितंबर 2013

करप्शन की धाराओं से तो बच ही गए आईपीएस अजय सिंह

एंटी करप्शन ब्यूरो की विशेष अदालत ने निलंबित आईपीएस अजय सिंह को आखिरकार भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धाराओं से डिस्चार्ज कर दिया। यह ब्यूरो के लिए एक बड़ा झटका है। सिंह के खिलाफ अब सिर्फ आईपीसी की धाराओं में ही मुकदमा चलेगा। ज्ञातव्य है कि एसीबी ने अजय सिंह के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धाराएं तो लगा दीं, लेकिन इससे संबंधित कोई भी साक्ष्य उपलब्ध नहीं करवाए। आपको याद होगा कि अपुन ने तो बहुत पहले ही कह दिया था कि अपने रीडर रामगंज थाने में एएसआई प्रेमसिंह के हाथों घूस मंगवाने के आरोप में गिरफ्तार आईपीएस अजय सिंह के बच निकलने की पूरी संभावना है।
असल में वे रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ नहीं पकड़े गए थे। रिश्वत तो प्रेम सिंह ने ली थी। अजय सिंह पर तो आरोप था कि उन्होंने शिकायतकर्ता भवानी सिंह से रिश्वत की रकम प्रेम सिंह के हाथों मंगवाई थी। इसे साबित करना आसान काम नहीं था। रही सही कसर तब पूरी हो गई जब शिकायतकर्ता भवानी सिंह ने मजिस्ट्रेट के सामने धारा 164 के तहत जो कलम बंद बयान दिए, उसमें उसने अजय सिंह का जिक्र तक नहीं किया। जब कि शुरू में वह खुल कर बयान दे चुका था कि अजयसिंह के लिए ही रिश्वत ली गई थी। जाहिर तौर पर पूर्व के बयानों की अहमियत इस कारण नहीं थी कि वे बाद में बदले भी जा सकते थे। इसे देखते हुए ही एसीबी ने उसके कलमबंद बयान करवाए, मगर हुआ उलटा। भवानी सिंह ने तो उनका नाम लिया ही नहीं। चूंकि वे कलमबंद बयान थे, इस कारण उनकी ज्यादा अहमियत है। ये परिवर्तन कैसे हुआ, कुछ पता नहीं। 
अजयसिंह के बचने की संभावना इस कारण भी थी कि प्रदेश की आईपीएस लाबी इस दाग को मिटाने में रुचि ले रही बताई। बताया जाता है कि आईपीएस लाबी की इच्छा थी कि नौकरी में जो रिमार्क लगना था, वह तो लग गया, अब सजा जितनी कम से कम हो या सजा मिले ही नहीं तो बेहतर रहेगा, अन्यथा इस जवान आईपीएस की जिंदगी तबाह हो जाएगी। कदाचित इसी वजह से जो जांच पहले डीआईजी स्तर के अधिकारी कर रहे थे, वह आरपीएस स्तर के अधिकारी को सौंप दी गई। जाहिर सी बात है कि कनिष्ट अधिकारी अपने से वरिष्ठ के साथ सख्ती से पेश नहीं आ सकता। वो भी खास कर पुलिस महकमे में, जहां अनुशासन के नाते कनिष्ठता-वरिष्ठता का पूरा ख्याल रखा जाता है। कुल मिला कर संकेत ये ही मिल रहे थे कि अजय सिंह इस प्रकरण में बच कर निकल सकते हैं।
मामले पर एक नजर
21 जून 2012 को एंटी करप्शन ब्यूरो जयपुर की विशेष टीम ने अजमेर के रामगंज थाने में बड़ी कार्रवाई करते हुए एक लाख रुपए की रिश्वत लेते सहायक पुलिस निरीक्षक (एएसआई ) प्रेमसिंह को रंग हाथों गिरफ्तार किया था। प्रेम सिंह ने तत्कालीन सहायक पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात आईपीएस अजयसिंह के लिए रिश्वत की यह रकम मार्केटिंग कंपनी मार्स बिल्ड एंड डेवलपर्स (एमबीडी) के एजेंट से लेना कबूला था। एजेंट को प्रकरण में फंसाने की धमकी देकर उससे दो लाख रुपए की डिमांड की जा रही थी। ट्रेप की कार्रवाई के दौरान आईपीएस अजमेर से चले गए थे, लेकिन ब्यूरो की टीम ने उन्हें जयपुर के पास कानोता में पकड़ लिया था। उनके कब्जे से अंग्रेजी शराब की दो पेटी और 47 हजार रुपए नकद भी बरामद किए गए थे।
-तेजवानी गिरधर
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बुधवार, 25 सितंबर 2013

अजमेर का गौरव और बढ़ाया बंकर रॉय ने

हरमाड़ा के पास बेयरफुट कॉलेज, तिलोनिया के निदेशक व पर्यावरणविद बंकर रॉय अमेरिका के क्लिंटन ग्लोबल सिटीजन अवार्ड से सम्मानित किया जाएगा। बेयरफुट कॉलेज तिलोनिया के बंकर रॉय को ग्रामीण इलाकों में ऊर्जा और पानी के लिए उल्लेखनीय कार्य करने के लिए इस पुरस्कार के लिए चयन किया गया। बंकर रॉय 40 साल से भी अधिक समय से ग्रामीण समुदायों की समस्याओं का निवारण उपलब्ध कराते आ रहे हैं। बेयरफुट कॉलेज के कार्यों के परिणामस्वरूप दस लाख लीटर बारिश के पानी को संरक्षित कर 1300 समुदायों के 239, 000 स्कूली बच्चों को उपलब्ध कराया जाता है। बेयरफुट कॉलेज एक कम्युनिटी बेस्ड मॉडल पर काम करता है। इसके जरिये वैश्विक गरीबी को कम करने के उद्देश्य से दूरदराज और ग्रामीण इलाकों में ऊर्जा और पानी की बेसिक सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं। यहां पर बिना डिग्री डिप्लोमाधारी लोग भी तकनीकी कार्य आसानी से कर रहे हैं। आज बेयरफुट कॉलेज के कारण विश्व 54 से भी अधिक देशों में सौर ऊर्जा की रोशनी फैल रही हैं। यहां से 600 से भी अधिक विदेशी महिलाएं सौर ऊर्जा का प्रशिक्षण लेकर बेयरफुट सोलर इंजीनियर के रूप में काम कर रही हैं।
सन् 1945 में जन्मे श्री संजित बंकर रॉय प्रारंभ से ही ग्रामीण गरीबों के प्रति अतिसंवेदनशील थे। सन् 1960 में उन्होंने तय कर लिया कि वे अपना पूरा जीवन उनकी बहबूदी के लिए समर्पित कर देंगे। सन् 1972 में उन्होंने सोशल वर्क एडं रिसर्च सेंटर नामक संस्था का गठन किया, जो कि आजकल बेयर फुट कॉलेज के नाम से जाना जाता है। यह संस्था गरीबों को शिक्षित, प्रशिक्षित और मजबूत करने का काम कर रही है और ग्रामीण हाईटेक कार्यों के जरिए अपना जीवन स्तर सुधार रहे हैं। इस संस्था ने देश के सोलह राज्यों के दूरदराज गांवों में प्रशिक्षण दे रही है और तकरीबन पचास हजार बच्चे इसकी रात्रिकालीन स्कूलों में शिक्षित हुए हैं। अब यह संस्था अफ्रीकन व मध्य पूर्वी समुदायों में काम कर रही है। श्री रॉय आज भारत में गैर सरकारी संगठनों के लिए शीर्ष पर स्थापित आदर्श व्यक्तित्व हैंं। उन्हें सन् 2002 में अश्देन अवार्ड फोर सस्टेनेबल एनर्जी के लिए चयनित हुए और सन् 2005 में उन्हें स्कॉल सोशल एंटरपे्रनियरशिप अवार्ड हासिल हुआ। उनका आदर्श वाक्य है:- ग्रामीण क्षेत्रों को मजबूत कीजिए, आप पाएंगे कि शहरी क्षेत्रों में पलायन की दर कम हो रही है। आप ग्रामीणों को अवसर, स्वाभिमान व आत्मसम्मान दीजिए, वे शहरी झुग्गियों में कदापि नहीं जाएंगे। ज्ञातव्य है कि वे एशिया के नोबल पुरस्कार के समान माने जाने वाले मेगेसेसे अवार्ड से विभूषित श्रीमती अरुणा राय के पति हैं।
उनका संपर्क सूत्र हैं:-डायरेक्टर, बेयरफुट कॉलेज, तिलोनिया, अजमेर
फोन : 01463-288205 फैक्स : 01463-288206
ईमेल : barefootcollege@gmail.com

कांग्रेस का सिंधी को ही टिकट देने का मानस

आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का अजमेर उत्तर से किसी सिंधी को ही टिकट देने का मानस बन गया है। सुविज्ञ सूत्रों के अनुसार कांग्रेस हाईकमान ने सिद्धांत: यह मान लिया है कि राज्य की दो सौ सीटों में से एक सीट पर सिंधी को चुनाव लड़ाना चाहिए, ताकि सिंधी समुदाय को यह संदेश दिया जा सके कि वह सिंधियों की उपेक्षा नहीं करना चाहती।
असल में गैर सिंधियों का तर्क था कि एक तो अजमेर उत्तर में जितने सिंधी गिनाए जा रहे हैं, उतने हैं नहीं, दूसरा अधिसंख्य सिंधियों का झुकाव भाजपा की ओर होता है, ऐसे में सिंधी को टिकट देने से क्या फायदा। इस पर प्रतितर्क ये दिया गया कि यदि कांग्रेस एक भी सीट सिंधी को नहीं देगी तो उसे मिलने वाले सिंधियों के न्यूनतम प्रतिशत वोट की उसे उम्मीद नहीं करनी चाहिए। वैसे भी छत्तीस कौमों को साथ ले कर चलने का दावा करने वाली कांग्रेस पर यह दबाव था कि वह सिंधियों को भी अपने साथ लेकर चले, वरना पूरा समुदाय उसके खिलाफ लामबंद हो जाएगा। सिंधियों के वोटों को लेकर भी प्रतिदावे हुए।
तर्कों की इस जद्दोजहद के बीच एक तर्क ये भी आया कि अगर कांग्रेस ने अजमेर उत्तर से किसी सिंधी को चुनाव मैदान में नहीं उतारा तो इस सीट पर तो सिंधी विरोध में आ जाएगा, साथ ही सटी हुई सीट अजमेर दक्षिण के सिंधी भी लामबंद हो सकते हैं, जिससे कांग्रेस को वह सीट भी खोनी पड़ेगी। कुल मिला कर कांग्रेस हाईकमान ने फौरी तौर पर तय कर लिया है कि अजमेर उत्तर से किसी सिंधी को ही टिकट दिया जाएगा। इसमें विशेष परिस्थिति तब उत्पन्न होगी जब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने चहेते पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती के लिए अड़ जाएंगे। इसी प्रकार कांग्रेस महासचिव व मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह अपने खासमखास अजमेर शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता के लिए दबाव बना सकते हैं। हालांकि माना ये जाता है कि कम से कम अजमेर संसदीय क्षेत्र में स्थानीय सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट का वीटो इस्तेमाल होगा। बावजूद इसके यदि गैर सिंधी को टिकट न दे पाने की स्थिति बनी तो संभव है कि जयपुर की सांगानेर सीट सिंधियों को दे दी जाए, ताकि सिंधियों की कम से कम एक सीट की मांग को पूरा किया जा सके। ज्ञातव्य है कि वहां भाजपा के दिग्गज घनश्याम तिवारी सिंधी वोटों के दम पर ही जीत कर आते रहे हैं। वैसे जानकारी ये भी है कि सिंधियों को आकर्षित करने के लिए जयपुर के सांसद महेश शर्मा जयपुर में एक सीट सिंधी को देने का दबाव बना रहे हैं।
जहां तक अजमेर जिले के जातीय समीकरण का सवाल है, जिस प्रकार पुष्कर की विधायक श्रीमती नसीम अख्तर का विरोध हुआ है और अगर इसी आधार पर उनका टिकट काटा जाता है तो वहां डॉ. बाहेती को भेजा जा सकेगा। ऐसे में सिंधियों के लिए राह आसान हो जाएगी। उधर मुसलमानों को संतुष्ट करने के लिए पूर्व विधायक हाजी कयूम खान को मसूदा से टिकट दिया जा सकता है। यूं भी इस बार टिकट हासिल करने के लिए उन्होंने पूरी ताकत झोंक रखी है। कुल मिला कर कहा जा सकता है कि अजमेर जिले की सीटें जातीय लिहाज से इंटरलिंक्ड हैं। जहां तक भाजपा का सवाल है, वह यूं तो किसी सिंधी को ही टिकट देने वाली है, मगर गैर सिंधियों ने भी दबाव बना रखा है। मगर कांग्रेस के सिंधी को ही टिकट देने की खबर से अब वह गैर सिंधी को टिकट देने का दुस्साहस नहीं करेगी।
-तेजवानी गिरधर

रविवार, 22 सितंबर 2013

भाटी बंधुओं के बीच होगी भिड़ंत?

चुनाव के माहौल में कई तरह की बेसिर-पैर की अफवाहें और चर्चाएं चल पड़ती हैं। इसी किस्म की एक अफवाह है कि अजमेर दक्षिण सीट पर भाटी बंधुओं पूर्व उप मंत्री ललित भाटी और समाजसेवी हेमंत भाटी के बीच भिड़ंत हो सकती है। बात अगर ये कही जाए कि ललित भाटी तो कांग्रेस से और हेमंत भाटी भाजपा से आएंगे तो समझ में भी आती है, मगर इसमें ज्यादा दिलचस्प अफवाह ये है कि हेमंत तो कांगे्रेस से और ललित भाजपा की ओर से मैदान में उतरेंगे। बताया जा रहा है कि ललित भाटी व पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल के बीच झगड़े के चलते कांग्रेस विकल्प के रूप में हेमंत भाटी पर डोरे डाल रही है। हालांकि जानकार लोग मानते हैं कि हेमंत ने चूंकि मौजूदा विधायक और इस सीट की प्रबल भाजपा दावेदार श्रीमती अनिता भदेल पर वरदहस्त रखा हुआ है, इस कारण वे इसके लिए तैयार नहीं होंगे, मगर राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है। इसी से जुड़ी अफवाह है कि जैसे ही भाजपा को पता लगा कि हेमंत भाटी कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ सकते हैं तो उसे लगा कि उनके सामने तो श्रीमती भदेल टिकेंगी ही नहीं, सो उनकी काट के लिए ललित भाटी को चुनाव लडऩे की ऑफर दी है। हालांकि इन बातों की पुष्टि करने वाला कोई नहीं है, मगर चर्चाएं तो चर्चाएं हैं, उन्हें भला कौन रोक सकता है। और अगर ये सच है तो पहली बार दोनों भाटी बंधु राजनीति के मैदान में आमने-सामने होंगे।
-तेजवानी गिरधर

जाट व मुंसिफ की जुगलबंदी के मायने?


चुनावी मौसम में टिकट वितरण से ठीक पहले पूर्व जल संसाधन मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट व भाजपा किसान मोर्चा के जिला मंत्री मुंसिफ अली खान का साथ-साथ पुष्कर एवं नसीराबाद विधानसभा क्षेत्र के गांवों का दौरा क्या महज एक संयोग है, या फिर इस जुगलबंदी के पीछे कोई राज है? इस संयुक्त दौरे की जानकारी आते ही कयास लगाए जाने शुरू हो गए हैं।
असल में यह तो लगभग तय है कि प्रो. जाट नसीराबाद से ही चुनाव लडऩे वाले हैं। हालांकि उनका नाम किशनगढ़ के लिए भी चल रहा है, मगर ज्यादा संभावना नसीराबाद की ही है। ऐसे में उनका नसीराबाद के गांवों में मुंसिफ के साथ दौरा करना समझ में आता है।
लेकिन साथ ही प्रो. जाट का पुष्कर के गांवों का दौरा करने का मतलब क्या यह निकाला जाए कि वे मुंसिफ को जाटों के वोट दिलवाने की जमीन तैयार कर रहे हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि मुंसिफ पुष्कर सीट पर टिकट के प्रबल दावेदार हैं और साथ ही प्रो. जाट के करीबी भी। अब सबकी नजर इस पर लग गई है कि कहीं प्रो. जाट मुंसिफ को टिकट दिलवाने की जुगत तो नहीं कर रहे। ज्ञातव्य है कि प्रो. जाट अजमेर जिले में सबसे दमदार भाजपा नेता हैं और वसुंधरा के भी खास हैं। हो सकता है, उनकी सिफारिश मुंसिफ के काम आ जाए।
-तेजवानी गिरधर

प्रशासन की नासमझी से हुई पायलट की फजीहत

जिला प्रशासन की नासमझी और लापरवाही के चलते पिछले दिनों अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट की फजीहत हो गई। अजमेर जिले के जाटली गांव में सरकारी भूमि के संबंध में ग्राम पंचायत की उपेक्षा से उपजे ग्रामीणों के आक्रोष को ठीक से नहीं भांप पाने  की वजह से शिलान्यास कार्यक्रम स्थगित करना पड़ा। अपने ही संसदीय क्षेत्र में इस प्रकार की स्थिति से रूबरू होने का यह बेहद गंभीर मामला है।
असल में जिला प्रशासन हालत की गंभीरता को समझ ही नहीं पाया। ऐसा भी नहीं था कि लोगों का गुस्सा अचानक फूटा, जिसे काबू करना कठिन था। यह मुद्दा काफी दिन से चल रहा था। उससे भी बड़ी बात ये कि ठीक एक दिन पहले भी गांव वालों ने शिलान्यास नहीं होने देने की चेतावनी तक दे दी। इसके बावजूद प्रशासन ने उसे हल्के में लिया। कदाचित उसे गुमान था कि अव्वल तो वह गांव वालों को शांत करवा लेगा और अगर जरूरत पड़ी तो पुलिस की मदद ले ली जाएगी। इसी चक्कर में विरोध के बावजूद उसने शिलान्यास का कार्यक्रम तक कर दिया। मगर मौके के हालत इतने बेकाबू हो गए कि प्रशासन मूक दर्शक बना देखता ही रह गया। किसी केन्द्रीय मंत्री का कार्यक्रम इस प्रकार विरोध के चलते रद्द करने की नौबत प्रशासन की पूर्ण विफलता साबित करती है। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रशासन को चलाने वाले दो आला अफसर जिला कलेक्टर वैभव गालरिया व पुलिस अधीक्षक गौरव श्रीवास्तव न तो दूरदर्शिता है और न ही किसी विवाद से निपटने की अक्ल। इस प्रकार की लापरवाही व कमअक्ली वह इससे पहले सरवाड़ के तनाव के दौरान भी दिखा चुका है।
प्रशासन की नासमझी के बाद जाटली की घटना को लेकर प्रस्तावित डाक प्रशिक्षण केंद्र के निर्माण में बाधा पहुंचाने के आरोप में गांव के लोगों के खिलाफ थाना प्रभारी रामेश्वर भाटी की शिकायत पर राजकार्य में बाधा डालने और समारोह के अतिथियों के लिए बनाया गया खाना उठा कर ले जाने के आरोप में मुकदमा दर्ज किया गया है, मगर यह सांप निकल जाने के बाद लकीर पीटने के समान ही है।
जहां तक इस घटना के राजनीतिक पहलु का सवाल है, यह अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट के लिए बेहद शर्मनाक है कि खुद उनके ही संसदीय क्षेत्र में इस प्रकार हो रहे विरोध को ठीक से न तो प्रशासन हल कर पाया और न ही उनके राजनीतिक शागिर्द  सही तरीके से हैंडल कर पाए। या तो उनके चेलों ने इस पर ध्यान ही नहीं दिया, या फिर उनकी जमीन पर पकड़ ही नहीं थी। वैसे बताया जाता है कि आंदोलन के अगुवा हरिराम व अन्य पायलट के जगजाहिर राजनीतिक दुश्मन अजमेर डेयरी अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी के लोग हैं। इस कारण इसमें साजिश की बू भी आ रही है। बताया जाता है कि हरिराम के पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती के भी गुडफेथ में हैं, मगर मौके पर वे डॉ. बाहेती की एक नहीं माने। कुल मिला कर सचिन की जो यह अपने ही संसदीय क्षेत्र में फजीहत हुई है, यह भविष्य के लिए अच्छे संकेत नहीं है। इसे उन्हें गंभीरता से लेना होगा।
-तेजवानी गिरधर

गुरुवार, 12 सितंबर 2013

रघु शर्मा को निपटाने को सारस्वत को भेजा जाएगा?

विधानसभा चुनाव में सरकारी मुख्य सचेतक डॉ. रघु शर्मा को केकड़ी सीट पर घेरने के लिए भाजपा में गंभीर चिंतन हो रहा है। कांग्रेस के एक बड़े मोहरे को पीटने का मकसद तो है ही, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष श्रीमती वसुंधरा राजे के साथ विधानसभा में हुई व्यक्तिगत नाइत्तफाकी के चलते भी स्वाभाविक रूप से रघु निशाने पर रहेंगे। यहां कहने की जरूरत नहीं है कि कांग्रेस की ओर से रघु को ही मैदान में उतारने की प्रबल संभावना है। एक तो उनके कद के बराबर कोई दूसरा है नहीं, दूसरा विधानसभा क्षेत्र में सक्रियता के कारण कांग्रेस की नजर में वे ही जिताऊ उम्मीदवार हैं। जानकारी के अनुसार प्रदेश कांग्रेस की ओर से बनाए गए पैनल में अकेले उनका ही नाम है।
खैर, बात चल रही थी भाजपा की। असल में भाजपा में वहां रिंकू कंवर व भूपेन्द्र सिंह की लॉबियों में छत्तीस का आंकड़ा होने के कारण इन दोनों में किसी भी एक को मौका देने पर दूसरे के हार जाने का पूरा अंदेशा है। ज्ञातव्य है कि पिछली बार रिंकू कंवर को पार्टी की फूट के चलते ही हार का सामना करना पड़ा था। स्थानीय अन्य दावेदारों में भी जबरदस्त खींचतान है। दावेदारों की इस आपसी सिर फुटव्वल के चलते इस सीट को बीजेपी के खाते में डालना बेहद मुश्किल है। इसी के चलते पिछले दिनों पूर्व मंत्री जर्नादनसिंह गहलोत का नाम उभरा। ज्ञातव्य है कि करोली से कई बार विधायक रहे जर्नादन सिंह गहलोत रावणा राजपूत समुदाय के बड़े नेताओं में से एक हैं। कद के लिहाज से भी गहलोत रघु शर्मा पर भारी पड़ सकते हैं। मगर जैसे ही उनका नाम आया, स्थानीय अन्य नेता उनके खिलाफ लामबंद हो गए। ऐसे में भाजपा प्रो. बी. पी. सारस्वत के नाम पर गंभीर विचार कर रही है। इसके पीछे बाकायदा एक पुख्ता गणित भी है। वो ये कि यूं तो रघु ने इलाके में कुछ काम करवा कर अपनी टिकट पक्की कर ली, मगर पिछले एक साल के दौरान केकड़ी सहित सरवाड़ में बिगड़े सांप्रदायिक माहौल में रघु की हालत खराब हो गई है। असल में वहां इस बार बाकायदा हिंदू-मुस्लिम के बीच वोटों का धु्रवीकरण होता दिखाई दे रहा है। ऐसे में स्वाभाविक रूप से सारस्वत उन पर भारी पड़ सकते हैं। वे ब्राह्मण वोटों का बंटवारा तो करेंगे ही, हिंदूवाद का भी फायदा लेंगे। कहने की जरूरत नहीं है कि सारस्वत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद व विश्व हिंदू परिषद में सक्रिय रहे हैं और पूर्व में ब्यावर विधानसभा क्षेत्र से भाजपा टिकट के प्रबल दावेदार रहे हैं। वे विहिप के दिग्गज प्रवीण भाई तोगडिय़ा के त्रिशूल दीक्षा कार्यक्रम के दौरान प्रमुख भूमिका अदा करने पर मुकदमा दर्ज होने के कारण काफी चर्चित हुए थे। महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय, अजमेर में सेंटर फोर एन्थे्रप्रिनियरशिप एंड स्माल बिजनिस मैनेजमेंट के आठ वर्ष तक डायरेक्टर रहे प्रो. बी. पी. सारस्वत उच्च शिक्षा जगत में भी एक जाना-पहचाना नाम है।
बताया जाता है कि वे इन दिनों प्रदेश भाजपा अध्यक्ष श्रीमती वसुंधरा राजे के काफी करीब हैं। वे न केवल अजमेर में भाजपा सदस्यता अभियान समिति के प्रभारी रहे, अपितु हाल ही में चुनाव के मद्देनजर विधानसभा वार चंदा एकत्रित करने की टास्क में उन पर पुष्कर विधानसभा क्षेत्र की जिम्मेदारी डाली गई है। समझा जा सकता है कि यद्यपि पुष्कर उनका क्षेत्र नहीं, फिर भी ऐसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देने के मायने यही हैं कि आने वाले दिनों में उन पर और भी दायित्व सौंपा जा सकता है। चर्चा यही है कि उन्हें केकड़ी में रघु शर्मा को निपटाने का काम दिया जा सकता है। हालांकि उन्होंने टिकट के लिए दावेदारी नहीं की है, मगर उनकी सक्रियता यही जताती है कि वे टिकट हासिल करने की दिशा में बढ़ रहे हैं।
-तेजवानी गिरधर

बुधवार, 4 सितंबर 2013

अजमेर उत्तर को लेकर कांग्रेस व भाजपा उलझन में

आगामी विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर सीट को लेकर कांग्रेस व भाजपा, दोनों बड़ी उलझन में हैं। असल में दोनों ही दलों में दमदार गैर सिंधी दावेदार पूरा दबाव बनाए हुए हैं, मगर दोनों ही पार्टियों को समझ में नहीं आ रहा कि क्या गैर सिंधी को टिकट देने का रिस्क उठाया जाए या नहीं।
असल में यह स्थिति बनी है पिछले चुनाव परिणामों की वजह से। पिछली बार कांग्रेस ने गैर सिंधी को टिकट देने का प्रयोग आजादी के बाद पहली बार बड़े साहस के साथ किया, मगर वह नाकामयाब रहा। सिंधियों के लामबंद हो जाने के कारण कांग्रेस ने न केवल अजमेर उत्तर की सीट खोई, अपितु अजमेर दक्षिण में भी उसे करारी हार का सामना करना पड़ा। हालांकि कांग्रेस की हार में पूर्व उप मंत्री ललित भाटी का बागी हो कर मैदान में डटना था, मगर श्रीमती अनिता भदेल की जीत में मुख्य वजह सिंधी मतदाताओं के थोक वोट पडऩा रहा। आपको याद होगा कि लतित भाटी ने 15 हजार 610 वोट हासिल किए थे, जबकि अनिता भदेल ने कांग्रेस के डॉ. राजकुमार जयपाल को 19 हजार 306 मतों से पराजित किया था। कांग्रेस के लिए यह परिणाम एक सबक के समान था तो भाजपा के लिए नजीर के रूप में। बावजूद इसके इस बार अजमेर उत्तर में कांग्रेस व भाजपा के दमदार दावेदार पूरी ताकत लगाए हुए हैं। भाजपा में जहां नगर परिषद के पूर्व सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत व पूर्व शहर जिला भाजपा अध्यक्ष शिवशंकर हेड़ा ने पूरी ताकत झोंक रखी हैं, वहीं कांग्रेस में शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता व पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती और साथ ही शहर युवक कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुकेश कांकरिया भी ताल ठोकने में पीछे नहीं हैं। कांग्रेस आलाकमान समझ नहीं पा रहा कि वह फिर से किसी सिंधी को मैदान में उतारने की रिस्क उठाए अथवा नहीं। हालांकि मोटे तौर पर कांग्रेस ने तय कर लिया है कि वह किसी सिंधी को ही टिकट देगी, मगर गैर सिंधी दावेदार सिंधी दावेदारों पर भारी पड़ रहे हैं। रलावता पर कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह का हाथ है तो डॉ. बाहेती पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का वरदहस्त। दिल्ली में बैठे अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट के निवास से आ रही हवाएं यही संकेत दे रही हैं कि वे अब भी किसी दमदार सिंधी की तलाश में है, जो उनकी लाज बचा सके।
बात अगर भाजपा की करें तो यूं तो मौजूदा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी की दावेदारी नंबर वन पर है, मगर भाजपा का एक बड़ा धड़ा प्रदेश उपाध्यक्ष औंकार सिंह लखावत के नेतृत्व में उन्हें निपटाने की ठान चुका है। इसका सीधा फायदा शहर जिला भाजपा के प्रचार मंत्री कंवल प्रकाश किशनानी को होता दिखाई दे रहा है, जो प्रदेश भाजपा अध्यक्ष श्रीमती वसुंधरा राजे की पूरी सुराज संकल्प यात्रा में उनके साथ लगे रहे। भाजपा हाईकमान सिंधी मतदाताओं की ताकत को अच्छी तरह से जानता है, बावजूद इसके पूर्व सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत व शिव शंकर हेड़ा ताल ठोके हुए हैं। समझा जाता है कि वे दिल्ली तक भी टिकट का पीछा नहीं छोडऩे वाले हैं। रसूख में वे हैं भी दमदार। शेखावत के बारे में तो यहां तक कहा जाता है कि वे पिछली बार टिकट फाइनल ही करवा चुके थे, मगर ऐन वक्त पर संघ के दबाव में देवनानी को टिकट देना पड़ा था। इस बार भाजपा को समझ में नहीं आ रहा कि वह दमदार गैर सिंधी दावेदारों की सुने या फिर किसी सिंधी पर ही हाथ रखे। असल में उसे पता है कि गैर सिंधी का प्रयोग करने पर उसकी अजमेर दक्षिण सीट को भी खतरा उत्पन्न हो सकता है। मौजूदा विधायक श्रीमती अनिता भदेल की भी यही मंशा बताई जा रही है कि वे अपनी जीत सुनिश्चित करवाने के लिए अजमेर उत्तर में किसी सिंधी को ही टिकट देने के पक्ष में हैं। सुना है कि इसी चक्कर में उनकी कभी निकटस्थ रहे शेखावत से कुछ नाइत्तफाकी होने लगी है। जाहिर तौर पर पूर्व में अनिता का साथ देने की ऐवज में शेखावत उनसे सहयोग की उम्मीद करते हैं, मगर अनिता के लिए पहला लक्ष्य अपना घर सुरक्षित करना है।
कुल मिला कर दोनों ही दलों में अजमेर उत्तर सीट को लेकर जबरदस्त खींचतान मची हुई है। देखते हैं दोनों इस गुत्थी को कैसे सुलझाते हैं।
-तेजवानी गिरधर