मंगलवार, 25 जून 2013

अजमेर दक्षिण में कांग्रेस के पास हैं सीमित विकल्प

एक ओर जहां अजमेर उत्तर सीट पर टिकट के लिए घमासान मचा हुआ है, वहीं कांग्रेस के पास अजमेर दक्षिण विधानसभा क्षेत्र में सीमित विकल्प हैं। इसकी एक वजह ये है कि अजमेर दक्षिण सुरक्षित सीट है, जबकि अजमेर उत्तर सामान्य, जहां अनेक समाजों के नेता दावेदार हैं। सिंधी-गैर सिंधी का झगड़ा अलग है।
आइये, जरा बात करें अजमेर दक्षिण के दावेदारों की। पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल इस बार फिर दावेदारी कर रहे हैं, जो कि पिछली बार पूर्व उप मंत्री ललित भाटी की बगावत के कारण हार गए थे। उन्हें कुछ नुकसान सिंधी-गैरसिंधी वाद का भी हुआ। उनकी टिकट में सबसे बड़ा रोड़ा होंगे अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्यमंत्री सचिन पायलट, जिनसे उनका छत्तीस का आंकड़ा है। बात अगर पूर्व उप मंत्री ललित भाटी की करें तो वे चूंकि उन्होंने पायलट को जितवाने में अहम भूमिका निभाई थी इस कारण कुछ उम्मीद बनती है वे उन्हें इनाम देंगे, मगर कांग्रेस इस आशंका में उन पर शायद हाथ नहीं रखे कि इस बार अगर उन्हें टिकट दिया गया तो डॉ. बदला चुकाएंगे।
हालांकि केकड़ी के पूर्व विधायक बाबूलाल सिंगारियां का दावा सामने नहीं आया है, मगर लगता है कि अंदर ही अंदर वे पुरजोर कोशिश में लगे हुए हैं। दावा तो पूर्व पार्षद प्रताप यादव ने भी किया है, मगर स्थानीय गुटबाजी के चलते उसे कितना वजन मिलेगा कुछ कहा नहीं जा सकता। वैसे वे हैं काफी पुराने नेता और पिछले चार चुनावों से टिकट की मांग कर रहे हैं।
जिला लघु उद्योग केन्द्र में रोजगार अधिकारी के पद से वीआरएस ले चुके छीतर मल टेपण के बारे में तो अपुन ने इसी कॉलम में लिख दिया था कि वे इस बार विधानसभा चुनाव में टिकट की दावेदारी खुल कर करेंगे। वे लंबे अरसे से दावेदारी करते रहे हैं, मगर तब सरकारी नौकरी की मर्यादा आड़े आती थी। टेपण अखिल भारतवर्षीय खटीक महासभा, पुष्कर के अध्यक्ष हैं। उनका दावा है कि इस विधानसभा क्षेत्र में उनकी खटीक समाज के लगभग दस हजार वोट हैं, जिन पर उनकी गहरी पकड़ है। दावा पार्षद विजय नागौरा का भी बताया जाता है, मगर उन्होंने फिलहाल चुप्पी साध ली है। टिकट की लाइन में अरविंद धौलखेडिय़ा, राकेश सवासिया, सुनील लारा, श्रवण टोनी, चेतराम आदि भी शामिल हो गए हैं।
इस सीट के बारे में एक बात आपकी में जानकारी में रहे कि पिछले दिनों रेगर समाज के सामूहिक विवाह सम्मेलन में अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट की मौजूदगी में समाज के पंचों की ओर से अजमेर दक्षिण सीट पर जिस प्रकार अपना हक जताया, उससे कोलियों में खुसरफुसर शुरू हो गई थी। हालांकि रेगर समाज की ओर से यह स्पष्ट नहीं किया गया था, उनकी ओर से दावेदार कौन होगा, मगर जिस ढंग से अजमेर के मेयर कमल बाकोलिया मुखर हुए, उससे लगा कि कहीं इस सीट पर उनकी तो लार नहीं टपक रही। वैसे उनके एक बयान से स्वत: ही रेगर समाज का दावा कमजोर हो रहा था, वो यह कि सचिन पायलट ने अजमेर के मेयर बाकोलिया, ब्यावर नगर परिषद के सभापति मुकेश मौर्य व पुष्कर नगर पालिका की अध्यक्ष श्रीमती मंजू कुर्डिया पर भरोसा जताया और तीनों ने सीटें जीत कर दिखाई। ऐसे में सवाल ये उठता है कि यदि अधिसंख्य महत्वपूर्ण सीटें रेगर समाज ही ले जाएगा तो कोली बहुल अजमेर दक्षिण इलाके के कोलियों का क्या होगा?
यहां यह बताना प्रासंगिक होगा कि इस इलाके में सर्वाधिक वोट कोलियों के माने जाते हैं। उनके अतिरिक्त मेघवाल, भांभी, बलाई व बैरवा हैं। इस सभी जातियों का रुझान कांग्रेस की ओर ही रहता है, हालांकि श्रीमती भदेल के विधायक बनने के बाद कोलियों में विभाजन हुआ है। पिछले चुनाव में तो उन्हें पूर्व विधायक ललित भाटी के भाई हेमंत भाटी का भी सहयोग था। करीब 13 हजार मुस्लिमों का झुकाव भी कांग्रेस की ओर ही माना जाता है। यहां भाजपा के वोट बैंक सिंधी, माली व वैश्य माने जाते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कारण कुछ माली जरूर कांगे्रस में हैं।
अब तक के विधायक
1957-महेन्द्र सिंह निर्दलीय
1962-बालकिशन कांगे्रस
1967-अम्बालाल जनसंघ
1972-माणकचंद सोगानी कांग्रेस
1977-कल्याण सिंह जनतापार्टी
1980-कैलाशचंद भाजपा
1985-राजकुमार जयपाल कांग्रेस
1990-श्रीकिशन सोनगरा भाजपा
1993-श्रीकिशन सोनगरा भाजपा
1998-ललित भाटी कांग्रेस
2003-श्रीमती अनिता भदेल भाजपा
2008-श्रीमती अनिता भदेल भाजपा
-तेजवानी गिरधर

क्या वजह है कांग्रेस पार्षद बैरवा की अचानक गिरफ्तारी की?

रविवार को कोटड़ा के सावन पब्लिक स्कूल में वार्ड संख्या एक के पार्षद कमल बैरवा व पर्यवेक्षक राजेश खेरा के बीच नोक-झोंक होती है और सोमवार को राजकाज में बाधा के पुराने मामले में बैरवा की गिरफ्तारी हो जाती है। क्या इन दोनों घटनाओं के बीच कोई संबंध है? संबंध न भी हो तो भी राजनीति में रुचि रखने वालों में चर्चा यही है कि बैरवा को झटका देने की खातिर ही उनकी गिरफ्तारी हुई है।
ज्ञातव्य है कि ब्लॉक की बैठक में न बुलाने पर बैरवा ने बैठक में पहुंच कर नाराजगी जताई कि उनके क्षेत्र में बैठक होने के बावजूद उन्हें दरकिनार किया गया। इस पर पर्यवेक्षक ने कहा कि बैठक में केवल ब्लॉक के पदाधिकारियों व सदस्यों को ही बुलाया गया है, आप सदस्य नहीं हो, इस कारण नहीं बुलाया गया। बात आई गई हो गई। मगर दूसरे ही दिन राजकार्य में बाधा पहुंचाने और पुलिस दल पर पथराव करने के मामले में पुलिस ने पार्षद कमल बैरवा सहित तीन जनों को गिरफ्तार कर कोर्ट के आदेश से जेल भेज दिया। मामला ये था कि कोटड़ा क्षेत्र में मकानों के ऊपर से निकल रही विद्युत लाइन का इलाके के लोग विरोध कर रहे थे। विद्युत वितरण निगम के एक्सईएन सहित अन्य अधिकारी व कर्मचारी मौके पर पहुंचे थे। जहां कस्बेवासियों ने पार्षद के नेतृत्व में जमकर विरोध प्रदर्शन किया था। गुस्साए लोगों ने विद्युत विभाग के कर्मचारियों व अधिकारियों के साथ मारपीट कर पथराव किया और उनके सामान छीनकर उन्हें भगा दिया था। विद्युत विभाग के अधिकारियों की शिकायत पर पुलिस ने मामला दर्ज किया था। फरवरी 2012 में पार्षद सहित अन्य आरोपियों को गिरफ्तार करने पहुंचे पुलिस दल पर कस्बेवासियों ने पथराव किया और पुलिस की जीप को क्षतिग्रस्त कर दिया था। पुलिस ने पार्षद सहित अन्य आरोपियों के खिलाफ राजकार्य में बाधा पहुंचाने का मामला दर्ज किया।  बैरवा ने अग्रिम जमानत के लिये डीजे कोर्ट में प्रार्थना पत्र पेश किया था, जहां से अग्रिम जमानत की अर्जी खारिज हो गई थी।
असल में इस वारदात के बाद जन अभियोग एवं सतर्कता समिति के प्रयासों से समझौता भी हुआ। बावजूद इसके डेढ़ साल पुराने इस मामले में अचानक गिरफ्तारियां हुईं तो इसका संबंध लोगों ने एक दिन पहले हुई घटना से जोड़ दिया। जनअभियोग एवं सर्तकता समिति अजमेर के सदस्य नरेश राघानी ने तो बाकायदा पुलिस की इस कार्यवाही को दमनात्मक बताया है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को लिखे पत्र में कहा गया है कि समिति की पहल पर विद्युत विभाग कर्मियों व ग्राम वासियों के बीच बड़े ही सौहार्दपूर्ण माहौल में समझौता हुआ और विद्युत लाइन का काम सुचारू रूप से पूरा कराया गया था। मुख्यमंत्री को मुकदमे राजकीय अनुशंसा से वापिस लेने का आग्रह किया गया था, जिस पर मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा पुलिस प्रशासन से इस मामले की तत्थात्मक रिपोर्ट भी मंगवाई गई थी। जिसका जवाब पुलिस अधिक्षक अजमेर द्वारा प्रेषित किया गया था। इन सब बातों से साफ है की सरकार उक्त प्रकरण को समझौते के बाद समाप्त करने की दिशा में प्रभावी कदम ले रही है, बावजूद इसके पुलिस ने दमनात्मक कार्यवाही कर दी। इससे आमजन में सरकार का गलत संदेश जा रहा है।
बहरहाल, समझौते के बाद भी पुलिस ने अचानक गिरफ्तारियां की तो स्वाभाविक रूप से लोगों ने इसे कांग्रेस पर्यवेक्षक से माथा लगाने के मामले से जोड़ कर देखना शुरू कर दिया।
-तेजवानी गिरधर