रविवार, 7 अगस्त 2016

जनता ने सुनाई भाजपा को खतरे की घंटी

हालांकि उपचुनाव और अगर वे विशेष रूप से पंचायतीराज व स्थानीय निकाय के हों, तो उसके नतीजे किसी पार्टी को पूरी तरह से नकार दिए जाने अथवा किसी को नवाजने का सीधा-सीधा संकेत तो नहीं देते, मगर वे ये इशारा तो करते ही हैं कि प्रदेश में राजनीतिक बयार कैसी बह रही है या बहने जा रही है। प्रदेश के सातों संभागों के सत्रह जिलों में 37 सीटों पर हुए पंचायती राज और नगर निकायों के उपचुनाव में कांग्रेस का 19 सीटों और भाजपा का मात्र 10 सीटों पर जीतना यही दर्शाता है कि जहां कांग्रेस पिछले विधानसभा चुनाव में हुई करारी हार से उबरने लगी है, वहीं केन्द्र व राज्य में प्रचंड बहुमत से जीती भाजपा का ग्राफ गिरने लगा है। इसे साफ तौर पर भले ही आम जनादेश की संज्ञा नहीं दी जा सकती, मगर इतना तय है कि सत्तारूढ़ भाजपा को आम जनता ने खतरे की घंटी तो सुना ही दी है। यद्यपि विधानसभा चुनाव अभी दूर हैं, मगर ये छोटे व स्थानीय चुनाव अनाज की बोरी में लगाए जाने वाली परखी की तरह हैं, जो बयां कर रही है कि वर्तमान में भाजपा की हालत क्या है?
अजमेर के विशेष संदर्भ में बात करें तो भाजपा के लिए यह हार इस कारण सोचनीय है क्योंकि जिले के 8 में से 7 विधायक भाजपा के हैं। इनमें से दो राज्यमंत्री व एक संसदीय सचिव हैं। जिला परिषद और स्थानीय निकाय में भी भाजपा का कब्जा है। भाजपा के लिए यह शर्मनाक इस वजह से भी हो गया है, क्योंकि उसने उसने सत्तारूढ होने के हथकंडे इस्तेमाल करके भी पराजय का मुंह देखा। इन चुनावों पर कदाचित ज्यादा गौर नहीं किया जाता, मगर भाजपा ने खुद ही मंत्रियों व विधायकों से लेकर नगर पालिका अध्यक्षों आदि को जोत कर इसे प्रतिष्ठा का प्रश्र बना दिया। रही सही कसर मीडिया ने पूरी कर दी, जो कि आजकल कुछ ज्यादा ही संवदेनशील हो गई है। यह संवेदना इस वजह से है कि भाजपा ने जिस सुराज का सपना दिखा कर आम जन का जबदस्त समर्थन हासिल किया, वह सपना धरातल पर कहीं उतरता नजर नहीं आया। इस चुनाव ने साफ कर दिया है कि अच्छे दिन के नारे यदि धरातल पर नहीं उतरे तो जनता पलटी भी खिलाना जानती है।
इन उपचुनावों ने देहात जिला भाजपा अध्यक्ष प्रो. बी. पी. सारस्वत सहित कुछ अन्य भाजपा नेताओं को मुंह दिखाने के काबिल नहीं छोड़ा है, क्योंकि महज एक हफ्ते बाद ही 15 अगस्त को अजमेर में आयोजित राज्य स्तरीय स्वतंत्रता दिवस समारोह में मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे आने वाली हैं। कभी सफल सदस्यता अभियान चला कर भाजपा हाईकमान के चहेते बने प्रो. बी. पी. सारस्वत को दुबारा देहात जिला अध्यक्ष बनाया ही इसलिए गया था कि उनसे बेहतर संगठनकर्ता नहीं मिल रहा था, मगर ताजा चुनाव परिणाम ने उनकी माइनस मार्किंग कर दी है। हालांकि पार्टी प्रत्याशियों की हार के अनेक स्थानीय कारण हैं, मगर चूंकि उनके नेतृत्व में रणनीति बनी, इस कारण हार की जिम्मेदारी से वे बच नहीं सकते। अब तो ये भी गिना जा रहा है कि नसीराबाद विधानसभा क्षेत्र में आने वाली 9 ग्राम पंचायतों को मिला कर बनाये गए जिला परिषद के वार्ड नंबर 5 में सारस्वत का गांव बिड़कच्यावस भी आता है, लेकिन उनके गांव में भी भाजपा को जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव से जिला प्रमुख वंदना नोगिया को महज आभूषणात्मक जिला प्रमुख साबित कर दिया है, जिनकी धरातल पर कोई पकड़ नहीं है। उनके अतिरिक्त पुष्कर विधायक सुरेश रावत व किशनगढ़ विधायक भागीरथ चौधरी पर भी हार की जिम्मेदारी आयद होती है। हार की एक वजह जाटों की बेरुखी भी बताई जा रही है, जो कि अजमेर के सांसद प्रो. सांवरलाल जाट को केन्द्रीय मंत्रीमंडल से हटाए जाने से नाराज हैं।
बात कांग्रेस की करें तो उसके इसलिए सुखद क्योंकि वह बहुत सशक्त नहीं रही, फिर भी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के नेतृत्व में फिर से खड़े होने की कोशिश कर रही है। इस जीत को पायलट की लोकप्रियता और रणनीति से जोड़ा जा रहा है, मगर स्थानीय स्तर पर नए नवेले देहात जिला अध्यक्ष भूपेन्द्र सिंह राठौड़ के कंघे पर जीत का तमगा लग गया है। उन्होंने पूर्व विधायक श्रीमती नसीम अख्तर व उनके पति इंसाफ अली और पूर्व विधायक नाथूराम सिनोदिया से तालमेल बैठा कर नियुक्ति के बाद पहली परीक्षा पास कर ली है, लिहाजा उन लोगों के मुंह बंद हो गए हैं, जो कि राठौड़ की नियुक्ति से असहमत थे। स्वाभाविक रूप से राठौड़ अब पायलट के और करीब हो जाएंगे।
कुल मिला कर मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे के आगमन से चंद दिन पहले भाजपा नेताओं के चेहरे बुझ गए हैं और कांग्रेसी बहुत उत्साहित हैं व इसे आगामी विधानसभा चुनाव में जीत की किरण के रूप में देख रहे हैं।
-तेजवानी गिरधर