गुरुवार, 2 जुलाई 2015

पार्षद कमल बैरवा भी ताल ठोकने की तैयारी में

अजमेर नगर निगम के मौजूदा वार्ड नंबर एक के कांग्रेस पार्षद कमल बैरवा सामान्य वार्ड नंबर दो से ताल ठोकने की तैयारी में दिखाई देते हैं। असल में जिस इलाके में वे रहते हैं, वह अब सामान्य वार्ड हो गया है। इस कारण इस बात की उम्मीद कम है कि कांग्रेस उन्हें यहां से टिकट दे। जाहिर तौर पर यहां सामान्य वर्ग के नेता ही प्रयास करेंगे। मगर बैरवा की दिक्कत ये है कि उन्होंने पूरे पांच साल जनता की भरपूर सेवा की, इसी उम्मीद में न कि उन्हें फिर से मौका मिलेगा, मगर दुर्भाग्य से वार्ड आरक्षित नहीं रहा।
 बताया जा रहा है कि वे पहले तो कांग्रेस से टिकट की गुजारिश करेंगे। अपने काम गिनाएंगे और साथ ही अपनी जीत का समीकरण बताएंगे। अगर कांग्रेस को समझ में आया तो ठीक, वरना निर्दलीय ही मैदान में उतर जाएंगे। निर्दलीय के रूप में चुनाव लडऩे के लिए उन्होंने तैयारी भी शुरू कर दी है। बाकायदा क्षेत्र के लोगों से संपर्क कर रहे हैं। उन्हें समर्थन भी मिल रहा है। हालांकि वे जानते हैं कि उनके खड़े होने पर कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी को नुकसान होगा, और इसका फायदा भाजपा प्रत्याशी को हो सकता है, मगर वे शतरंज इस प्रकार बिछा रहे हैं कि उनका सीधा मुकाबला भाजपा प्रत्याशी से हो। यदि कांग्रेस को यहां कोई दमदार और जिताऊ प्रत्याशी नहीं मिला तो उनकी चाल कामयाब भी हो सकती है। वैसे बताया जा रहा है कि फिलवक्त भाजपा की ओर से पूर्व मेयर धर्मेन्द्र गहलोत का यहां से चुनाव लडऩे का मानस है। जाहिर तौर पर वे मेयर बनने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं, जिसमें संघ की सहमति बताई जा रहा है। शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी का वरदहस्त तो है ही। अब देखना ये है कि यहां होता क्या है? वैसे जो कुछ होगा, वह काफी दिलचस्प होगा।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
http://ajmernama.com/chaupal/146103/

भाजपा के लिए एक गुत्थी : ज्ञान सारस्वत

निर्दलीय पार्षद ज्ञान सारस्वत भाजपा के लिए एक गुत्थी बने हुए हैं। आगामी नगर निगम चुनाव में वे फिर निर्दलीय ही खड़े होंगे या फिर भाजपा में शामिल हो कर टिकट लेंगे, इस पर पूरे शहर में कयास लगाए जा रहे हैं।
असल में ज्ञान सारस्वत शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी के विरोधी माने जाते हैं। पिछले निगम चुनाव में उन्हें भाजपा ने टिकट नहीं दिया तो निर्दलीय खड़े हो गए। जीते तो सर्वाधिक वोटों से। चूंकि उनका वार्ड देवनानी के विधानसभा क्षेत्र में आता है, लिहाजा वहां भाजपा की हार से देवनानी की किरकिरी हुई। उनसे वरदहस्त प्राप्त वरिष्ठ भाजपा नेता तुलसी सोनी बुरी तरह से जो हारे। हालांकि जब डिप्टी मेयर के चुनाव हुए तो उन पर भाजपा में शामिल होने का भारी दबाव था, कांग्रेस भी उनका साथ देने को तैयार थी, मगर उन्होंने तय कर लिया कि रहेंगे निर्दलीय ही। खैर, जब विधानसभा चुनाव आए तो वे देवनानी को हराने के लिए ताल ठोक बैठे, मगर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के दबाव में पीछे हट गए। अब सवाल ये उठ खड़ा हुआ है कि क्या सारस्वत फिर निर्दलीय ही लड़ेंगे या फिर संघ के कहने पर भाजपा उनको टिकट ऑफर करेगी?
वैसे पार्षद बनने के लिए उन्हें भाजपा के टिकट की जरूरत है नहीं। उन्होंने वार्ड में इतना काम किया और अपना व्यवहार बनाया है कि वे अपने बूते ही फिर से जीत कर आएंगे, ऐसी मान्यता है। इतना ही नहीं, उनका असर आसपास के वार्डों में भी है। अगर निर्दलीय लड़े तो उन वार्डों में भी भाजपा को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इस कारण भाजपा के लिए यह मजबूरी हो सकती है कि उन्हें टिकट दे कर शांत करे। अब ये देवनानी पर निर्भर करेगा कि वे क्या रणनीति अपनाते हैं। वे भी सारा नफा नुकसान आंक कर ही निर्णय करेंगे। जहां तक सारस्वत का सवाल है, वे खुद अपनी ताकत से वाकिफ हैं। यानि कि टिकट लेने के साथ ही जीतने पर कुछ और हासिल करने की उम्मीद पालेंगे। हो सकता है कि मेयर पद की दावेदारी ठोक दें। और अगर अजमेर दक्षिण की विधायक श्रीमती अनिता भदेल ने साथ दिया तो और अधिक ताकतवर हो जाएंगे। कदाचित इसी कारण से देवनानी उनको टिकट देने में रुचि न दिखाएं।
हालांकि सारस्वत को राजनीतिक रूप से बहुत चतुर-चालाक नहीं माना जाता, इस कारण उनसे बहुत बड़े गेम की आशा नहीं की जा सकती। मगर कांग्रेस चाहे तो कुछ सीटें कम रहने पर उन पर कुछ और निर्दलियों के सहारे मेयर का गेम खेल सकती है। हालांकि अभी ये कयास मात्र है, मगर एक समीकरण तो है ही।
वैसे इतना पक्का बताया जा रहा है कि सारस्वत टिकट मिले या न मिले, चुनाव लड़ेगे जरूर और समझा ये ही जा रहा है कि भाजपा उन्हें ऑफर देगी। हाल ही उनकी ओर से सोशल मीडिया पर जिस प्रकार वार्ड के मतदाताओं का आभार जताया गया, वह चुनावी रणभेरी का ही संकेत है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000