मंगलवार, 10 अक्तूबर 2017

क्या प्रो. सारस्वत आरपीएससी के चेयरमेन बनाए जा रहे हैं?

अजमेर भाजपा के देहात जिला अध्यक्ष बी.पी.सारस्वत ने एमडीएस यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर के पद की नौकरी छोडऩे का जैसे ही विधिवत नोटिस दिया है, वैसे ही एक तो ये कयास लगाया जा रहा है कि उन्हें लोकसभा उपचुनाव में टिकट का संकेत दे दिया गया है, वहीं एक अंदाजा ये भी लगाया जा रहा है कि उन्हें आरपीएससी का चेयरमेन बनाया जा सकता है। हालांकि प्रत्यक्षत: इस आशय की फेसबुक पोस्ट राजनीतिक पंडित एडवोकेट राजेश टंडन ने शाया की है, मगर इससे भी इतर शहर में इस प्रकार की चर्चा है। यदि ऐसा होना ही है तो सवाल ये उठता है कि इतनी टॉप सीक्रेट बात वायरल कैसे हो गई? कहीं खुद सारस्वत के मुंह से कहीं ये रहस्य उद्घाटित तो नहीं हो गया? या फिर जिस स्तर पर इस बाबत मंत्रणा हुई है, वहां से किसी ने लीक किया है? टंडन साहब के तो चलो किसी सोर्स ने बताया हो सकता है, मगर यदि राजनीति में रुचि रखने वालों तक भी इस प्रकार की सूचना है तो उनके पास यह बात कैसे पहुंची? क्या उस स्तर पर ये केवल कयास मात्र है? जो कुछ भी हो, जब तक उनकी नियुक्ति नहीं हो जाती, ये अफवाह ही कहलाएगी, क्योंकि इसकी पुष्टि तो कोई करने वाला है नहीं।
हां, इतना जरूर है कि अगर उनके उपचुनाव लडऩे की संभावना है,  तो केवल उसके लिए उनको मौजूदा पोस्ट से इस्तीफा देने की जरूरत ही नहीं है। यूनिवर्सिटी की नौकरी रहते हुए भी वे चुनाव लडऩे को स्वतंत्र हैं। इस कारण चुनाव लडऩे वाली बात में दम कम नजर आता है। हालांकि यह सही है कि स्थानीय स्तर पर उन्होंने जरूर ऐसा माहौल बना लिया है कि वे सबसे प्रबल दावेदार हैं, मगर राजनीतिक समीकरणों में उनकी दावेदारी मजबूत नजर नहीं आती। उसकी वजह ये है कि भाजपा किसी भी सूरत में गैर जाट को टिकट देने का दुस्साहस नहीं करेगी। जैसे ही किसी गैर जाट को टिकट दिया गया तो जाट भाजपा के खिलाफ लामबंद हो जाएंगे। ऐसे में एक कयास ये भी लगाया जा रहा है कि स्वर्गीय प्रो. सांवरलाल जाट के पुत्र रामस्वरूप लांबा को किसान आयोग का अध्यक्ष बना दिया जाएगा और नसीराबाद विधानसभा सीट देने का वादा किया जाएगा। क्या इस सौदेबाजी से जाट समुदाय राजी हो जाएगा, इस बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। राजी होने का एक सूरत ये ही है कि लांबा के अतिरिक्त कोई दूसरा जाट नेता ऐसा नहीं है, जिसकी वाकई दावेदारी बनती हो। अगर लांबा ने सौदेबाजी कर भी ली तो भाजपा को यह खतरा तो बना ही रहेगा कि कोई छोटा-मोटा जाट नेता निर्दलीय रूप से मैदान में उतर सकता है।
जो कुछ भी हो, मगर इतना जरूर है कि सारस्वत के नए कदम से राजनीतिक हलकों हलचल मच गई है। वे मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के करीबी भी हैं, ये सब जानते हैं। ऐसे में अचानक नौकरी छोडऩे का नोटिस यह साफ जाहिर करता है कि जरूर कुछ न कुछ महत्वपूर्ण होने जा रहा है। एक संभावना ये भी है कि चूंकि वरिष्ठ भाजपा नेता घनश्याम तिवाड़ी ने वसुंधरा राजे के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है और शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी की वजह से ब्राह्मण समुदाय के कुछ लोग नाराज हैं, उन पर ठंडे छींटे डालने के लिए सारस्वत को कोई दमदार ओहदा दिया जा रहा हो।
हालांकि खुद सारस्वत ने यह कह कर दिग्भ्रमित करने की कोशिश की है कि उनके इस्तीफे के नोटिस को उपचुनाव से नहीं जोड़ा जाए, मगर दूसरी ओर यह कह कर यह संभावना भी बरकरार रखी है कि अगर वसुंधरा राजे ने  कहा तो वे चुनाव लडऩे को तैयार हैं। वैसे इतना जरूर तय है कि अगर उन्हें आरपीएससी का चेयरमेन बनाया जा रहा है तो वह जल्द ही होगा, क्योंकि निकट भविष्य में कभी भी चुनाव की तारीख का ऐलान होने वाला है, जिसके साथ आचार संहिता लग जाएगी।
-तेजवानी गिरधर
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