रविवार, 11 दिसंबर 2011

आर्य कर रहे हैं पुष्कर से लडऩे की तैयारी


चौपाल पर चर्चा है कि भाजपा नेता और अजमेर नगर निगम के पूर्व उप महापौर सोमरत्न आर्य आगामी विधानसभा चुनाव में पुष्कर से भाग्य आजमाने की तैयारी कर रहे हैं। असल में वे जानते हैं कि अजमेर शहर में उनके लिए राजनीतिक कैरियर की कोई संभावना नहीं है। संगठन में कई साल से हैं और उसमें कुछ खास मजा नहीं है। वैसे भी संगठन में अध्यक्ष बनने की उनकी कोशिशें बेकार चली गईं और पूर्व सांसद रासासिंह रावत को मौका मिल गया। रहा सवाल चुनावी राजनीति से जुडऩे का तो अजमेर दक्षिण की सीट रिजर्व है और अजमेर उत्तर की सीट अघोषित रूप से सिंधियों के लिए आरक्षित। रहा सवाल नगर निगम का तो वहां चुनाव इस कारण नहीं लड़ा कि उसमें हद से हद पार्षद बन जाते अथवा चांस मिलता तो फिर से उप महापौर बन पाते। महापौर का पद तो रिजर्व था। अगले चुनाव में किसी के लिए रिजर्व होगा या फिर सामान्य, कुछ कहा नहीं जा सकता। ऐसे में आर्य ने सोचा कि इससे तो बेहतर है कि कहीं और भाग्य आजमाया जाए। सुना है कि उन्होंने पुष्कर के चक्कर लगाने शुरू कर दिए हैं। उन्हें अनुमान हो चला है कि पिछली बार भाजपा प्रत्याशी रहे भंवर सिंह पलाड़ा रावतों की भाजपा से बगावत के कारण हारने के बाद वहां रुचि नहीं लेंगे। चर्चा है कि वे अब केकड़ी में ध्यान दे रहे हैं। ऐसे में फिलहाल पुष्कर में कोई दमदार दावेदार है नहीं, यानि कि फिलहाल मैदान साफा है, सो आर्य को यहीं जमीन तलाशना ठीक लग रहा है। इसी सिलसिले में आए दिन किसी न किसी बहाने पुष्कर का चक्कर काट आते हैं। देखते हैं कि चुनाव नजदीक आने पर उन्हें किस अन्य दावेदार से मुकाबला करना होगा।

सिनोदिया हत्याकांड : अब जगी उम्मीद

किशनगढ़ के कांगे्रस विधायक नाथूराम सिनोदिया के पुत्र भंवर सिनोदिया की हत्या के मामले की जांच और कोर्ट की प्रक्रिया में आई तेजी से अब जा कर उम्मीद जगी है कि हत्याकांड के आरोपियों को सजा मिल जाएगी। इससे पूर्व तो हालत ये थी चर्चाओं में इस कांड को लगभग दफन सा माना जा रहा था।
दरअसल सत्तारूढ़ पार्टी के विधायक के बेटे की हत्या अर्थात हाई प्रोफाइल केस होने के बावजूद मीडिया ने कुछ दिन की सक्रियता के बाद चुप्पी सी साध ली थी। सीधी सी बात है कि मीडिया को इसमें कुछ चटपटा मसाला मिलने की उम्मीद नहीं थी, इस कारण इस पर ज्यादा गौर नहीं किया। और यही वजह रही कि जांच एजेंसियों पर कोई दबाव नहीं रहा और वे भी सुस्त ही बैठी रहीं। यदि सक्रिय थीं भी तो दैनिक प्रगति से मीडिया को दूर रख रही थी। इसके विपरीत चूंकि पूर्व जल संसाधन मंत्री महिपाल मदेरणा के मामले में सीधे सरकार तक आंच आ रही थी और मामला महिला से जुड़ा होने के कारण चटपटा था, इस कारण मीडिया खुद ही रोज उसे गर्माए हुए है। स्वाभाविक सी बात है कि किसी की टोपी उछालनी हो तो मीडिया क्रीज से एक कदम आगे बढ़ कर खेलता है। जाहिर तौर पर ऐसे में जांच एजेंसियों पर भारी दबाव बन गया और वे भी मामले की तह तक जाने के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं।
बहरहाल, सिनोदिया हत्याकांड के मामले में पुलिस की ढिलाई और मीडिया की बेरुखी से जवान बेटे की हत्या के कारण सदमे में रहे कांग्रेस विधायक नाथूराम सिनोदिया अफसोस तो हुआ ही होगा। जाहिर तौर पर उन्होंने सरकार पर भी दबाव बनाया होगा। कदाचित उसी वजह से अब जांच में तेजी आई है और कोर्ट भी दैनिक प्रगति पर काम कर रहा है। मीडिया भी अब प्रतिदिन की प्रगति रिपोर्ट प्रकाशित कर रहा है। ऐसे में अब उम्मीद की जा सकती है कि मामले का पूरा पर्दाफाश होगा और दोषियों को सजा मिलेगी।

देवनानी व भदेल के टकराव से उबरने में जुटी भाजपा



फिर से रिंग मास्टर की भूमिका में आने लगे हैं लखावत
अजमेर। शहर के दोनों भाजपा विधायकों प्रो. वासुदेव देवनानी व श्रीमती अनिता भदेल के बीच आए दिन होते टकराव से भट्टे बैठी शहर भाजपा को दोनों से उबारने की कोशिशें लगातार जारी हैं। पहले दोनों की पसंद के दावेदारों को दरकिनार कर बीच का रास्ता अख्तियार कर प्रो. रासासिंह रावत को अध्यक्ष बनाया दिया गया। इसके बाद शहर भाजपा युवा मोर्चा के मामले में भी दोनों विधायकों की सिफारिश को एक तरफ रख कर देवेन्द्र सिंह शेखावत को अध्यक्ष बना दिया गया और अब शहर भाजपा महिला मोर्चा अध्यक्ष पद भी उनकी राय को ठेंगा दिखा कर जयंती तिवारी को दिया गया है।
असल में भाजपा का आम कार्यकर्ता इन दोनों विधायकों की आपसी रंजिश से बेहद त्रस्त रहा है। दोनों के टकराव के चलते पार्टी अपने लगभग जीते हुए प्रत्याशी डॉ. प्रियशील हाड़ा को मेयर नहीं बनवा सकी। हालांकि अपने-अपने पार्षद प्रत्याशियों के लिए काम करने से बोर्ड में भाजपा का बहुमत तो बन गया, मगर मेयर का चुनाव भाजपा हार गई। दोनों के बीच प्रतिष्ठा की लड़ाई के चलते लोकसभा चुनाव में भी श्रीमती किरण माहेश्वरी को हार का मुंह देखना पड़ा था। तब पार्टी साफ तौर पर देवनानी बनाम एंटी देवनानी गुट में बंटी हुई थी। इसका परिणाम ये हुआ कि संगठन पूरी तरह से सक्रिय नहीं हुआ और जहां दस हजार वोटों की बढ़त की उम्मीद थी, वह मात्र 2 हजार 948 पर सिमट गई। दक्षिण में तो हालत बेहद खराब हुई। वहां विधानसभा चुनाव में हासिल की गई 19 हजार 306 मतों की बढ़त तो सिमटी ही, उलटा 2 हजार 157 मतों से मात खानी पड़ी। कुल मिला कर पार्टी हाईकमान को यह समझ में आ गया है कि इन दोनों की खींचतान के कारण नुकसान हो रहा है। ऐसे में जब शहर अध्यक्ष का नाम तय करने का मौका आया तो काफी जद्दोजहद के बाद गुटबाजी का समाप्त करने के लिए रावत को फाइनल कर दिया गया। हालांकि अब भी पार्टी देवनानी व भदेल के गुटों में बंटी हुई है और इन दोनों से पूरी तरह से उबर नहीं पाई है, लेकिन धीरे-धीरे इन दोनों के वर्चस्व से संगठन को मुक्त करने की कोशिशें जारी हैं। उसी सिलसिले में शहर भाजपा युवा मोर्चा के मामले में देवनानी गुट के नितेष आत्रे व भदेल गुट के गौरव टांक को हाशिये पर रख कर देवेन्द्र सिंह शेखावत को अध्यक्ष बना दिया गया। अजमेर भाजपा के भीष्म पितामह औंकार सिंह लखावत के दखल से हुई नियुक्ति पर देवनानी गुट ने जितना उबाल खाया, वह किसी से छिपा हुआ नहीं है। शेखावत का विरोध करने के लिए पार्टी अनुशासन को तार-तार कर दिया गया। आज भी मोर्चा दो गुटों में ही बंटा हुआ है। इस तरह की गुटबाजी से खता खायी भाजपा ने एक बार फिर महिला मोर्चा के मामले में तीसरे विकल्प का रास्ता अख्तियार कर लिया। देवनानी गुट की पार्षद भारती श्रीवास्तव और भदेल गुट की हेमलता शर्मा को दरकिनार कर जयंती तिवारी के नाम पर ठप्पा लगा दिया गया है। हालांकि प्रत्क्षत: गुट देवनानी व भदेल के ही कहलाते हैं, मगर वस्तुस्थिति ये है कि अब एक तरफ देवनानी हैं तो दूसरी ओर भदेल व अन्य सभी। अर्थात भाजपा का एक बड़ा धड़ा देवनानी के खिलाफ है, मगर इसके बावजूद पार्टी के कुछ समझदार नेता भदेल को भी ज्यादा भाव नहीं देना चाहते, इस कारण जहां देवनानी की राय को दरकिनार करते हैं, वहीं भदेल को भी सब्र रखने की सीख देते हैं। इसकी वजह ये है कि देवनानी किसी भी सूरत में भदेल की ओर से सुझाये गए नाम पर सहमति देने को राजी नहीं होते। वे ज्यादा हंगामा न कर सकें, इस कारण दोनों की ओर से सुझाए गए नामों की बजाय तीसरा विकल्प तलाशा जाता है। ताजा प्रकरणों से यह भी पूरी तरह से साफ होने लगा है कि जो लखावत प्रदेश के बड़े नेता होने के बाद भी एक समय में शहर में टांग नहीं अड़ा पा रहे थे, अब वे सीधा दखल करने लगे हैं। यानि कि वे फिर से रिंग मास्टर की भूमिका में आने लगे हैं।