रविवार, 28 जुलाई 2013

बार अध्यक्ष टंडन की नौटंकी काम कर गई

भले ही अजमेर बार के अध्यक्ष राजेश टंडन की छवि ये बन गई हो कि वे फटे में टांग फंसाते हैं व कई बार कांग्रेस की मुख्य धारा से हट कर काम करते हैं, मगर बीते दिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की जनसुवाई में उनकी नौटंकी काम कर गई।
असल में प्रशासन ने सुरक्षा के लिहाज से जनसुवाई के दौरान वाहनों को सर्किट हाउस जाने से रोक दिया, नतीजतन विशिष्ट जन, बुजुर्गों और बीमार लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा। कई लोग तो बिना गुहार लगाए ही लौट गए। सुरक्षा व्यवस्था इतनी कड़ी थी कि सर्किट हाउस के नीचे ही सभी प्रशासनिक अधिकारी व नेताओं के वाहनों को रोक दिया गया। उन्हें पैदल ही चलकर सर्किट हाउस तक जाना पड़ा। यह स्थिति टंडन को नागवार गुजरी। वैसे भी उन्हें अपने आप को हाईलाइट करने के लिए मौके की तलाश रहती है, वह उन्हें सहज ही मिल गया। हांपते-हांपते जैसे ही ऊपर पहुंचे मुख्यमंत्री व कांग्रेस संगठन की नाराजगी की परवाह न करते हुए उन्होंने हंगामा कर दिया। अजमेर की कांग्रेस में अकेले वे ही हैं, जिनमें इतना माद्दा है। बाद में उन्होंने अव्यवस्था की शिकायत मुख्यमंत्री से भी की। इस पर मुख्यमंत्री ने आईजी, एसपी, अन्य अधिकारियों से इस बारे में चर्चा की। मुख्यमंत्री के निर्देश पर अजमेर प्रशासन ने तय किया कि मुख्यमंत्री या अन्य कोई मंत्री आदि अजमेर प्रवास के दौरान जन सुनवाई करने आते हैं तो वो सर्किट हाउस की बजाय सावित्री कॉलेज के सामने स्थित राजस्थान पर्यटन विभाग के होटल खादिम में होगी।
ज्ञातव्य है टंडन इससे पहले भी कई बार जनहित के मुद्दों पर मुख्य धारा से हट कर कोई न कोई कारनामा करते रहे हैं। एक बार उर्स के दौरान प्रशासन से टकराव को तो लोग वर्षों तक याद रखेंगे। जो कुछ भी हो, इस बार उनकी नौटंकी काम आ गई।
-तेजवानी गिरधर

डॉ. जयपाल ने दिखा दिया असल कांग्रेस कहां है

अपने अध्यक्षीय कार्यकाल में पहली बार शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता को वह दिन देखना पड़ा, जिसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की होगी। अब तक तो पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल व पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती की लॉबी ही आरोप लगाया करती थी कि रलावता एक गुट विशेष का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं और कांग्रेस संगठन का सत्यानाश हो गया है, मगर अब तो मीडिया भी इसी सुर में बोलने लगा है। बीते दिवस मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की आजाद पार्क में हुई सभा का पूरा श्रेय मीडिया ने डॉ. राजकुमार जयपाल और पार्षदों को दे दिया गया। और साथ ही लिख दिया कि जो कांग्रेसी मुख्य धारा से अलग नजर आते थे, उन्होंने ही रलावता को आईना दिखा दिया और शहर कांग्रेस पूरी तरह से हाशिये पर चली गई।
असल में रलावता का पोदीना चौड़ा करने की पूरी पटकथा देहात प्रभारी व राजस्थान खाद बीज निगम के अध्यक्ष धर्मेंद्र सिंह राठौड़ ने लिखी।  रलावता ने समय कम होने का तर्क दिया तो राठौड़ ने इसे रूप में लिया कि कांग्रेस संगठन पर काबिज मौजूदा लोगों के भरोसे सभा में भीड़ नहीं जुटाई जा सकती, लिहाजा इनके विरोधियों को ही सारी जिम्मेदारी सौंप दी। बेशक यह एक षड्यंत्र के तहत हुआ, मगर इसको नाकाम करने में रलावता नाकाम हो गए, जबकि उन्हें एक दिन पहले ही इशारा मिल गया था कि उनकी फजीहत की तैयारी कर ली गई है। जहां तक षड्यंत्र का सवाल है, वह इस लिए जायज ठहराया जा सकता है, क्योंकि यह राजनीति है। जो गुट वर्षों तक कांग्रेस पर काबिज रहा और पिछले चार साल से हाशिये पर चल रहा था, वह इसी मौके ही तो तलाश कर रहा था कि कब अपनी ताकत का प्रदर्शन किया जाए। वह यह भी दिखाना चाहता था कि अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट ने गलत मोहरों पर हाथ रखा है, जिसे के वह साबित करने में भी कामयाब रहा। जाहिर तौर पर इसमें जयपाल के पुराने सिपहसालारों कुलदीप कपूर, रमेश सेनानी व फखरे मोइन समेत पार्षदों ने अपनी भूमिका अदा की।
जहां संगठन को व्यवस्थित तरीके से चलाने का सवाल है, इसमें कोई दो राय नहीं कि रलावता ने कांग्रेस कार्यालय को नियमित खोलने के साथ ही खुद भी वहां समय देने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी। वरना स्वर्गीय श्री माणकचंद सोगानी, डॉ. श्रीगोपाल बाहेती व जसराज जयपाल के जमाने में तो केवल अवसर विशेष पर ही कार्यकर्ता कार्यालय में नजर आते थे। यानि कि कांग्रेस घरों से ही चला करती थी। अलबत्ता कभी सेवादल तो कभी युवक कांग्रेस ने जरूर समय-समय पर वहां डेरा डाला। पूर्ववर्ती कांग्रेस संगठन इस कारण कामयाब थे कि असल ताकत भी उनके पास ही थी। भले ही गुटबाजी तब भी थी मगर वे मुख्य धारा से नहीं कटा करते थे। किन्हीं गुटों का पूरी तरह से आइसोलेटेड होने का नजारा पहली बार दिखाई दिया। हालत ये हो गई कि मौजूदा काबिज नेताओं की ओर से आयोजित किसी भी कार्यक्रम में कटे हुए गुट शामिल होना ही अपनी तौहीन समझते थे। यानि कि संगठन अध्यक्ष पर रलावता लॉबी जरूर काबिज है, मगर असल ताकत बाहर ही बनी हुई है। वैसे एक बात जरूर है, रलावता की जगह कोई और भी होता तो संगठन का यही हाल होता, क्योंकि असल कांग्रेस तो बाहर ही बनी रही। इसमें रलावता कर भी क्या सकते थे, मगर इसकी जिम्मेदारी भी तो उन पर ही आयद होती है। हालांकि पद संभालते ही उन्होंने वरिष्ठ नेताओं का देवरा ढोका, मगर उन्होंने उन्हें तवज्जो ही नहीं दी। यह गुटबाजी भले ही पायलट के प्रति वरिष्ठ नेताओं की नाइत्तफाकी की वजह से थी, मगर इसे भुगतना रलावता को पड़ा। हालांकि पायलट ने अपने प्रभाव की वजह से यही समझा कि आखिरकार सभी उनकी छतरी के नीचे आ जाएंगे, मगर यह अनुमान गलत निकला। कुछ दिन तो रलावता ने सभी को जोडऩे का प्रयास किया, मगर जब उन्हें नहीं गांठा गया तो वे आगे बढ़ गए और पीछे छूट गए वरिष्ठ नेताओं से जुड़े कार्यकर्ता।
भले ही निष्पत्ति के रूप में यही माना जाए कि रलावता में संगठन को मैनेज करना नहीं आता, मगर सच ये भी है कि उनकी इस असफलता की एक प्रमुख वजह डॉ. बाहेती व डॉ. जयपाल का पायलट से छत्तीस का आंकड़ा है।
सुविज्ञ सूूत्र बताते हैं कि पायलट को अपनी गलती समझ में आ गई और वे आगामी चुनाव का देखते हुए नाराज नेताओं को मैनेज करने पर विचार कर रहे हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000